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THE HOLY TOUR & TRAVEL OF TEMPLES IN INDIA

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श्री आरासुरी अम्बाजी माता मंदिर, अम्बाजी (ता० दांता) गुजरात

कुलदेवी तथा लोकदेवी मंदिर
  1. दधिमती माता जी मंदिर (Nagaur)
  2. गब्बर वाली अम्बाजी मंदिर (गुजरात)
  3. सांडण काली माता मंदिर (churu)
  4. चामुण्डा माता मंदिर (sikar)
  5. श्री आरासुरी अम्बाजी माता मंदिर (अम्बाजी) गुजरात
  6. जीण माता मंदिर

 

कुल-देवता एवम लोक देवता मंदिर
1. खाटू श्याम जी मंदिर (sikar)
2. हर्षनाथ भैरव जी मंदिर (sikar)
3. रिंगस के भैरू जी का मंदिर (sikar)
4. पशुपति नाथ मंदिर (nagaur)
5. भांडा शाह जैन मंदिर (Bikaner)
6. सालासर बालाजी मंदिर (churu)
7. मालासी के भैरूजी का मंदिर 

रणथम्बोर त्रिनेत्र गणेश मंदिर 

 

शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
4. ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
5. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
7. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग
8. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
9. बैधनाथ ज्योतिर्लिंग
10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
11. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग
12. घ्रष्नेश्वर ज्योतिर्लिंग




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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

चामुण्डा माता मंदिर खंडेला

 

जीवन एक यात्रा है, इसमें ठहराव भी है और थकान भी पर मंजील अंतिम ठहराव सबका एक ही है |

रणथम्बोर श्री त्रिनेत्र गणेश गणपति मंदिर (सवाई माधोपुर ) राजस्थान

ganesh mandir

श्री गणपति अर्थात त्रिनेत्र गणेश जी का यह मंदिर कई विशेषताओं में अनूठा और अद्भुत  है। इस मंदिर को भारतवर्ष का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्वधरा  का प्रथम गणेश मंदिर का खिताब प्राप्त है। यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्र प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा स्वयं प्रकट है जिसका किसी मानव ने निर्माण नहीं किया है । हमारे देश भारत में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं । हम आपको www.121holyinida.in  के माध्यम से इस पवित्र स्थल त्रिनेत्र गणेश मंदिर के और करीब लिए चलते हैं…   

अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों के बीच जहां राजा हमीर का गढ़ है वही रहते हैं ये गणेशजी भगवान् गणपति, जी हां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी गणपति मंदिर की । इसे यंहा लोकल भाषा में रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में जहां राजा हमीर का गढ़ है वही स्थित है। 

सनातन धर्मं संस्कृति में हर शुभ कार्य श्री गणेश जी को प्रथम निमंत्रण देने से शुरू होता है ! अतः यहाँ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सनातन धर्मं संस्कृति को अनुयायी के किसी के घर में शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है। इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरज, प्रार्थना, अरदास भी भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है। रोजाना हजारों शुभ कार्यो के निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं। मान्यता है कि  यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है।

तत्कालीन महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर में हुआ। इस दौरान नौ महीने से भी ज्यादा समय तक यह किला दुश्मनों ने घेरे रखा। दुर्ग में राशन सामग्री समाप्त होने लगी तब गणेशजी ने हमीरदेव चौहान को स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। हमीर देव वहां पहुंचे तो उन्हे वहां स्वयंभू प्रकट गणेशजी की प्रतिमा मिली। हमीर देव ने फिर यहां मंदिर का निर्माण कराया।

भगवान् त्रिनेत्र गणेश जी का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता हैं कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था। इस विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए । गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे—पीछे सब जगह खोद दिया । कृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। तब गणेशजी हर मंगल कार्य करने से पहले पूजते है। कृष्ण ने जहां गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था । यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है । मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे । 

 

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