
श्री आरासुरी अम्बाजी माता मंदिर, अम्बाजी (ता० दांता) गुजरात

शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग
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जीवन एक यात्रा है, इसमें ठहराव भी है और थकान भी पर मंजील अंतिम ठहराव सबका एक ही है |




रणथम्बोर श्री त्रिनेत्र गणेश गणपति मंदिर (सवाई माधोपुर ) राजस्थान




श्री गणपति अर्थात त्रिनेत्र गणेश जी का यह मंदिर कई विशेषताओं में अनूठा और अद्भुत है। इस मंदिर को भारतवर्ष का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्वधरा का प्रथम गणेश मंदिर का खिताब प्राप्त है। यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्र प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा स्वयं प्रकट है जिसका किसी मानव ने निर्माण नहीं किया है । हमारे देश भारत में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं । हम आपको www.121holyinida.in के माध्यम से इस पवित्र स्थल त्रिनेत्र गणेश मंदिर के और करीब लिए चलते हैं…
अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों के बीच जहां राजा हमीर का गढ़ है वही रहते हैं ये गणेशजी भगवान् गणपति, जी हां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी गणपति मंदिर की । इसे यंहा लोकल भाषा में रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में जहां राजा हमीर का गढ़ है वही स्थित है।
सनातन धर्मं संस्कृति में हर शुभ कार्य श्री गणेश जी को प्रथम निमंत्रण देने से शुरू होता है ! अतः यहाँ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सनातन धर्मं संस्कृति को अनुयायी के किसी के घर में शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है। इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरज, प्रार्थना, अरदास भी भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है। रोजाना हजारों शुभ कार्यो के निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है।
तत्कालीन महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर में हुआ। इस दौरान नौ महीने से भी ज्यादा समय तक यह किला दुश्मनों ने घेरे रखा। दुर्ग में राशन सामग्री समाप्त होने लगी तब गणेशजी ने हमीरदेव चौहान को स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। हमीर देव वहां पहुंचे तो उन्हे वहां स्वयंभू प्रकट गणेशजी की प्रतिमा मिली। हमीर देव ने फिर यहां मंदिर का निर्माण कराया।
भगवान् त्रिनेत्र गणेश जी का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता हैं कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था। इस विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए । गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे—पीछे सब जगह खोद दिया । कृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। तब गणेशजी हर मंगल कार्य करने से पहले पूजते है। कृष्ण ने जहां गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था । यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है । मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे ।