अधूरे सफ़र की दास्तां: मेरी शिमला यात्रा
अधूरे सफ़र की दास्तां
मेरी शिमला यात्रा
जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर, हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया |
2020
भीमराज कुमावत
सूची
- शीतकालीन अवकाश 2
- दिल्ली में मॉर्निंग वॉक 5
- वादियों का सफ़र 9
- क्रिसमस की रात 13
- जाखू के वीर हनुमान 18
- सफ़र अधुरा सबक पूरा 24
शीतकालीन अवकाश
“निकल गया क्या कॉलेज से, कितना टाइम और लगेगा तुझे”, कॉल उठाते ही हेल्लो की जगह यही यही बोला मनीष ने, “नहीं यार वो अभी छुट्टीयों को लेकर प्रिंसिपल ऑफिस में मीटिंग चल रही है, देखो ऊंट किस करवट बैठे, शायद अच्छी ख़बर आएगी, करता हूँ मैं थोड़ी देर में कॉल तुझे, तू अपनी तैयारी रख”, ये कहकर फ़ोन काटते हुए मैं स्टाफ रूम में चला गया | सबके चहरे पर एक अजीब सी उलझन साफ छलक रही थी | “भई सुन लो सभी, नोटिस आ गया है 31 दिसम्बर तक शीतकाल अवकाश रहेगा कॉलेज में”, कहते हुए बाईजी स्टाफ रूम में आई | हम सबके चहरे खुशी से चमक उठे | “ये अच्छी ख़बर सुनाई बाईजी आपने, हैप्पी न्यू इयर”, “चलो महेश बाबु, अब देर मत करो यार” मेरे रूममेट और कलीग महेश की तरफ देखते हुए कहा | जल्दी ही कॉलेज से फ्री हो बाइक से रूम की तरफ चल निकले हम | “अरे मनीष, छुट्टी आ गयी हमारी, अब आराम से घूमेंगे दोनों, रूम पर जा रहा हूँ, मिलते हैं जयपुर रेलवे स्टेशन पर, आ जाना टाइम पर |”
मानों कोई गढ़ ही जीत लिया आज तो, इतनी ख़ुशी कई सालों बाद महसूस हुई, आख़िर तीन साल हो गये शिमला जाने की योजना बनाते हुए, हर साल दिसम्बर की छुट्टियों में शिमला जाने का प्लान बनता हूँ और कभी जा नहीं पाता | पिछली बार 2017 में गया था और तब ही ये सोच लिया था कि मुझे दुबारा आना है यहाँ | मेरी आखों में विशाल हिमालय और उसकी घनी वादियों का अक्ष तैरने लगा | अपना तो काउंटडाउन शुरू हो गया यार |
“लो भई, आ गया रूम, उतरो”, कहते हुए महेश जी ने बाइक रोक दी | मैं जल्दी ही रूम में आया, हाथ पैर धोकर कपड़े बदले और रसोई में खाना बनाने के लिए चला गया | पहले चाय बनाकर पी, बाद में रोटी – सब्जी बनाने में जुट गया | इधर महेश बाबु अपनी पैकिंग करके घर को जाने के लिए तैयार हैं, “ठीक है ब्रो, जा रहा हूँ मैं, शिमला यात्रा शुभ हो आपकी”, कहते हुए महेश चला गया | वैसे तो मैंने सारी पैकिंग रात को ही कर ली थी, बस टिफ़िन पैक करके बैग में रखना है | बमुश्किल आधे घंटे में खाना तैयार करके टिफ़िन पैक हो गया अपना | कमरे में आया और तुरंत तैयार हुआ, बैग उठाया, इअर फोन गले में डाले, शूज़ पहने और मन ही मन इष्ट को याद करते हुए रूम लॉक किया और बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा
आज तो किस्मत भी महरबान है, स्टैंड पर पहुँचते ही जयपुर के लिए बस भी मिल गयी, लेकिन ख्चाख्च्च भरी हुई थी, खड़े खड़े ही जाना पड़ेगा | ये शिमला जाने की ख़ुशी ही थी कि थर्मल और उस पर भारी – भरकम कोट पहनने के बावजूद भी मेरा ध्यान गर्मी पर नहीं जा रहा था | मन में तो हिलोरे उठ रही है कि कल तो इस समय शिमला की मॉल रोड पर घूम रहा हूँगा, वाह ! क्या नज़ारे होंगे, मानो मेरी दिवाली आने वाली है | अभी जयपुर की आधी दूरी ही तय हुई थी, मनीष का कॉल आया, “कहाँ है तू, मैं रेलवे स्टेशन पहुँच गया हूँ, कितना टाइम और लगेगा”, “बस मान ले 40 मिनट और लगेंगे, पहुँचता हूँ मैं भी, तब तक तू घूम ले आस पास (हहह्हहाहा)”|
मेरे से ज्यादा उसको जल्दी है शिमला जाने की, इतना उत्साह है कि जयपुर में रहते हुए भी डेढ़ घंटे पहले स्टेशन पर आ गया | एक महीने से शिमला जाने की तैयारी चल रही थी हमारी, रोज शाम इस पर चर्चा होना सामान्य हो गया था |
ट्रेन की टिकट्स की बुकिंग को लेकर काफी असमंजस में रहा बीते दिनों, और हो भी क्यों नहीं राजधानी में किसान आन्दोलन जो चल रहा था | रोज अख़बार में इस आंदोंलन की ख़बरें पढना मेरी दिनचर्या का खास हिस्सा बन गया था | इन सबके चलते तीन दिन का शिमला घुमने का कार्यक्रम आख़िर बना ही लिया | अचानक बस रुकी तो धक्का लगा, मैं विचारों से बाहर आया | पास की सीट खाली हो गयी और मैं बैठ गया, और फिर दुबारा विचारों की लहरों में बह निकला | कहीं इस किसान आन्दोलन की वजह से यातायात न बंद हो जाए, कहीं फंस गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे, ये मनीष भी न घर पर किसी को बिना बताये हुए शिमला जा तो रहा है, अगर पता चल गया इसके पापा को, तो मुसीबत बढ़ जाएगी, मेरे विचार अब मुझे डराने लगे थे | खैर हम बतायेंगे नहीं तो पता कैसे चलेगा | इस तरह असमंजस में हमारी शिमला यात्रा शुरू हुई|
लो आ गया जयपुर, मैं तुरंत रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ा, वो क्या उस दुकान पर ताज़ा आगरे के पेठे, वाह !, हम दोनों को पेठे बहुत पसंद है जब भी मनीष के पास जयपुर आता हूँ खाने के बाद पेठे जरुर लेते हैं | मैंने पेठे के साथ थोड़ी नमकीन भी ले ली और पहुँच गया रेलवे स्टेशन | “अरे वाह, तू तो एकदम शिमला वाले लुक में आया है ब्रो, सर्दी का पूरा जाब्ता करके, वाह बेटे”, ये कहते हुए मनीष ने मेरा अभिवादन किया | “सही है ब्रो, मांगे हुए कोट में हम दोनों ही डैशिंग लगते हैं”, मेरे इतना कहते ही हम दोनों ठहाके लगा के हँसने लगे | फिर दोनों ने साइड में बैठकर अपना दस्तर – खान जमाया और भोजन करना शुरू किया जो टिफ़िन मैं बनाकर लाया था | “गजब यार, तू तो शेफ हो गया आजकल, खाना भी बनाकर लाने लगा वो भी मेरे टिफ़िन वाले भैया से बढ़िया” मनीष ने खाने की तारीफ़ में कहा | “अब बन्दा रूम पर रहेगा तो खाना भी बनाना सीख ही जायेगा न”, मैंने कहते हुए निवाला मुहं में रख लिया | आगरे के पेठे की पेशकश ने खाने की लज्ज़त को और बढ़ा दिया |
अभी ट्रेन के आने में काफी समय था तो हम भी साइड में बैठकर टाइम पास करने लगे | पूरा रेलवे स्टेशन खाली पड़ा था, केवल वो ही लोग दिख रहे हैं जिनको स्टेशन पर कोई काम हो | कोरोना का असर देखा जा सकता है, वरना इस जयपुर के स्टेशन पर तो बहुत भीड़ हुआ करती है | “ले बीस मिनट और बची है ट्रेन आने में, चल ले प्लेटफार्म पर चलते हैं, वैसे भी कोरोना चल रहा है क्या पता टाइम लग जाये किसी काम में”, मैंने जुते पहनते हुए मनीष को कहा और फिर दोनों प्लेटफार्म की तरफ चल पड़े | बैग को सेनिताईज करवाया और फिर प्लेटफार्म और जाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गये | कोरोना महामारी में लॉकडाउन के चलते रेलवे स्टेशन की साफ़ सफाई को देखकर दंग रह गया, जयपुर रेलवे स्टेशन इतना खूबसूरत आज पता चला | जैसा कि हमारे यहाँ रिवाज़ है ट्रेनों के देरी से आने का बस उसी का अनुसरण करते हुए केवल तीन मिनट देरी से हमारी ट्रेन आ पहुंची प्लेटफार्म पर और हमेशा की तरह इस बार भी मैंने विंडो सीट ही बुक करवा रखी थी | हम जाकर अपनी सीट पर बैठ गये | सर्दी चाहे कितनी भी हो, विंडो चाहे खोलनी भी न हो फिर भी विंडो सीट पर ट्रैवल करने का मजा अलग ही है |
ट्रेन चल पड़ी और धीरे – धीरे अपनी रफ़्तार को बढ़ाते हुए सरपट दौड़ने लगी | हम दोनों का उत्साह इतना परवान था कि आसपास बैठे यात्रियों को भी हमारी बातों से पता चल रहा था कि हम शिमला जा रहे हैं | यकीन नहीं हो रहा है कि हम वाकई में शिमला जा रहे हैं, एक सपने की तरह लग रहा है सब कुछ | सब कुछ कितना अच्छा हो रहा है न, हम दोनों अपनी इन्हीं बातों में मशरूफ थे | पिछली रणथम्भोर यात्रा का अनुभव बताते हुए मैंने कहा कि भई अपने सामान का जरुर ध्यान रखना | लगभग तीन घंटे हो गये ऐसे ही बाते करते करते अब सो जाना चाहिए अभी तो कल भी ट्रेन में ही सफ़र करना है | लेकिन क्या करें ख़ुशी के मारे नींद भी तो नहीं आ रही है | फिर पुरे डिब्बे में घूमकर देखा कि कहीं सोने के लिए अपर बर्थ मिल जाये तो आराम से कट जायेगा सफ़र, और फिर दोनों को अलग – अलग जगह बर्थ मिल गये और हम सोने की कोशिश करने लगे | गाने सुनना बंद किया मैंने, और मन में शिमला के बारे में सोचने लगा और प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान बर्फबारी करवा देना, बर्फ देखने के लिए ही तो दुबारा शिमला आया हूँ |
ट्रेन अपनी रफ़्तार से दिल्ली की ओर बढ़ रही थी | रात के सन्नाटे में ट्रेन के चलने की आवाज़े एकदम सुनाई दे रही थी | मन में शिमला की वादियों के नजारे लिए धीरे – धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया |
दिल्ली में मॉर्निंग वॉक
“यहाँ नींद नहीं आई पुरे सफ़र में और ये बन्दा आराम से सो रहा है, चल अब उठ जा दिल्ली आ गयी”, मनीष की जोरदार आवाज़ सुनकर नींद खुली मेरी, “अगर मैं नहीं होता तो तू सोता ही रह जाता ट्रेन में ब्रो, इतना बेफिक्र सोता है क्या कोई सफ़र में”, कहते हुए उसने बात पूरी की | “यार क्या करूं जब नींद आती है तो आती ही है, और फिर रात भी थी तो सो गया, तुझे नहीं आई क्या ?” जानते हुए भी मैंने उससे पूछा | उठकर मुहं धोया और ट्रेन के दरवाजे पर जाकर खड़े हो गये दोनों | अभी सुबह के चार बजने वाले थे, अपने तय समय पर, ट्रेन दिल्ली प्लेटफार्म पर पहुंच गयी | यहाँ से हमे नई दिल्ली जाना होगा, कालका के लिए वहीं से ट्रेन मिलनी थी | “चल यार बाहर चलकर चाय – पानी पीते हैं, फिर सोचेंगे कैसे नई दिल्ली पहुंचा जाए”, मनीष से मैंने कहा और हम प्लेटफार्म से बाहर निकल आये | बाहर निकलकर देखा तो ऐसा लग ही नही रहा था कि अभी चार बजे होंगे, मानों यहाँ रात होती ही नहीं होगी | बाहर ऑटो वालों की लाइन लगी हुई है और इधर उधर घूमते लोग भी खूब दिख रहें है | वाकई में मेट्रो शहर में जीवन बहुत प्रतिस्पर्धा में गुजरता है | ये पौ फटने वाला मंजर सिर्फ गाँवों में देखने को मिलता है, शहरों में कहाँ ये सब |
बाहर दुकान वाले से गरमा – गर्म चाय ली | “भैया मेट्रो कब चलती है सुबह”, चाय की चुस्की लेते हुए मैंने चाय वाले भैया से पूछा | “भैया साढ़े पांच बजे से चलेगी पहली मेट्रो” चाय के बर्तन को घुमाते हुए वो बोला | हमारी ट्रेन साढ़े सात बजे के बाद है, जिसमे अभी काफी टाइम पड़ा था हमारे पास | हमने मन बनाया कि क्यों न पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली पैदल ही चला जाये, वैसे पास में ही तो है और इतना तो हम गाँवों में अपने खेतों में पैदल जाते ही है | फिर क्या चाय खत्म करके गूगल मैप निकला और चल पड़े नई दिल्ली की ओर | कंपकपा देने वाली दिल्ली की सर्दी ने मजबूर कर दिया दस्ताने पहनने को, जितनी मजेदार हमारी मंजिल होने वाली है उतना ही खूबसूरत सफ़र भी चल रहा था हमारा |
वो सुबह और पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली तक पैदल यात्रा का अहसास आज भी तरोताजा है, ये दिल्ली की खाली सड़के, कड़कती सर्दी और जिगरी हमसफ़र, ऐसे संयोग हमेशा नहीं बनते | सर्दी में लिपटी कुछ सड़के खाली पड़ी थी तो कुछ सरपट दौड़ती दो – चार गाड़ियों की हल्की गर्मी पर इतरा रही थी | जितना सुना था पुरानी दिल्ली के बारे में आज वो सामने था, ये तंग गलियाँ और धूल चढ़ी हुई इमारतें, कहीं ट्रक से सामान उतारने की आवाजें तो कहीं डेयरी की दुकानों पर हल्की चहल – पहल पुरानी दिल्ली के इस बाज़ार के सन्नाटे में दख़ल अंदाजी कर रही थी | जब कहीं ये रास्ते सुनसान और तंग थे उन रास्तों से खुद-ब-खुद हमारे कदम जल्दी उठ रहे थे, शायद बड़े शहर की आबो – हवा में ही ऐसा असर था कि हमारे मन में कुछ गलत हो जाने की शंका उत्पन्न हुई | ये लो हमारी मोर्निंग वॉक भी हो गयी और हम पहुँच गये नई दिल्ली | कहाँ सुनसान पुरानी दिल्ली और कहाँ चकाचौंध से भरी नई दिल्ली, राजधानी के दो पहलु है पुरानी और नई दिल्ली |
“वाह, आमलेट की खुशबु, चल क्यों ना थोड़ी सर्दी कम कर ली जाए”, एक ठेले की तरफ इशारा करते हुए मैंने मनीष से कहा | हमेशा की तरह वो तैयार था | सुबह – सुबह आमलेट खाने का मेरा पहला अनुभव था | यहाँ से निपट कर हम अंदर रेलवे स्टेशन चले गये | कोरोना और लॉकडाउन के दौर का एक फायदा तो साफ़ नजर आ रहा था कि रेलवे स्टेशन चमकने लगे, चाहे कहीं भी चद्दर डाल कर सो जाओ | नित्य क्रिया से निवर्त होकर हम प्रतीक्षालय की तरफ आकर बैठ गये | “यार अभी ट्रेन चलने में तो काफी टाइम है, चल लेटकर थोडा आराम कर लेते हैं, तू भी सो जा”, ये कहते हुए मैंने बैग से चद्दर निकालकर फर्श पर बिछा दी | बैग को सिरहाने लगाकर दोनों लेट गये और दूसरी चद्दर जो उसके बैग में थी उसको ओढ़ लिया | ट्रेनों के आने – जाने की एनाउंसमेंट हो रहे थे और ऐसे माहौल में भी मैं सोने की कोशिश कर रहा था | लेकिन मनीष मुझे बातों में उलझाने की कोशिश में था क्योंकि उसको तो नींद आने वाली थी नहीं | थोड़ी देर में मुझे नींद आ गयी |
“अरे उठ यार, सोता ही रहेगा क्या जब देखो, सुन ये अपनी ट्रेन की एनाउंसमेंट है ना”, मेरे हाथ को हिलाते हुए मनीष ने जगाया मुझे | मैंने ध्यान से सुना, “हाँ यार ये तो अपनी ही कालका वाली ट्रेन है !” माथे पर शिकन लाते हुए मैंने पुष्ठी की | “सोते ही रह जायेंगे यहीं, फटाफट चल, दिल्ली का रेलवे स्टेशन है ये, अभी तो प्लेटफार्म भी ढूँढना है”, मुझे डांटते हुए मनीष बोला | हम जल्दी से चद्दर समेटकर यहाँ से पैक-उप करके प्लेटफार्म की तरफ दौड़े | पांच – सात मिनट में हम प्लेटफार्म पर पहुँच गये, जहाँ कालका शताब्दी स्पेशल ट्रेन हमारे इंतजार में खड़ी थी |
हमने C7 कोच ढूंढा और तपाक से अंदर घुस गये | “अरे यार गजब की ट्रेन बुक करवाई है तुमने तो, ऐसे लगता है कि अपन लोग वी आई पी हो गये है, क्या गजब की लक्ज़री ट्रेन है”, अंदर घुसते ही मनीष बोला | “अभी तो सीट देख अपनी, विंडो वाली है, सफ़र का मजा और बढ़ जायेगा”, इतराते हुए मैंने कहा | “वो रही अपनी सीट, आ जा और हाँ विंडो तो भाई की ही होगी तू बाजु में बैठेगा”, कहते हुए वो लपक के सीट पर बैठ गया | मैंने दोनों बैग ऊपर रख दिए और अपना छोटे वाला ट्रैवेल बैग निकाल कर अपनी सीट पर बैठ गया | अब इतनी शानदार ट्रेन में दोनों पहली बार बैठे हैं तो सेल्फियों के दौर का शुरू होना तो लाज़िमी था |
ट्रेन ने हॉर्न बजा दिया और धीरे – धीरे कालका की तरफ़ बढने लगी | कोच में अधिकतर यात्री शिमला और चंडीगढ़ घुमने वाले ही थे | कुछ परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने जा रहे थे तो कुछ नवविवाहित जोड़े अपनी जिंदगी में और एक हसीं लम्हें को जोड़ने हिमालय की वादियों में जा रहे थे | इनको देखकर किंचित मेरा मन भी भाव विभोर हो रहा था कि शायद मेरे हिस्से भी ये लम्हें आयेंगे कभी, बहरहाल अभी तो हम दोनों ही श्रेणी के यात्री नहीं थे, मैं अपनी शिमला जाने की जिद्द पर आया हूँ तो वो अपनी आबो – हवा बदलने के लिए | हमारी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था | सफ़र इतना सुहाना लग रहा है कि बस ये जिंदगी यूँ ही सफ़र में चलती रहे, इस हसीं सफ़र का सिलसिला कभी खत्म न हो | बस एक प्रार्थना कर रहा था इश्वर से कि कालका – शिमला वाली टॉय ट्रेन की टिकट कन्फर्म हो जाये जो वेटिंग में चल रही थी, पता नहीं क्यों मुझे उम्मीद थी कि ऐसा हो जायेगा |
हमारी हँसी – ठिठोली चल रही थी फिर मैंने बैग से मेरे बेस्ट फ्रेंड JBL ब्लूटूथ स्पीकर को निकाल कर सामने रख लिया और थोड़े बिस्किट – सनैक्स भी निकाले | सामने अंग्रेजी अख़बार पड़ा दिखा, तो उसमे सुडूको देखा और उसको भरने लगा | इअर फ़ोन का एक स्पीकर मेरे कान में तो दूसरा मनीष के कान में लगा था और दोनों गानों का लुफ्त उठा रहे थे | “ये देख कोई मेसेज आया है ट्रेन से सम्बन्धित”, मोबाइल में हाथ में थमाते हुए मनीष बोला | “अरे यार ये तो चमत्कार हो गया, ये कालका – शिमला वाली ट्रेन की टिकट के कन्फर्मेशन का लगता है”, मैं खुश होते हुए बोला | “तो क्या अपनी टिकट कन्फर्म हो गयी आगे की !” उत्सुकतापूर्वक मनीष ने पूछा | हम दोनों को ही ट्रेन के बारे में कोई विशेष ज्ञान नहीं था तो दोनों ही इस असमंजस में थे कि क्या हमारी टिकट कन्फर्म हो गयी | मैंने एक दोस्त को कॉल करके अपनी दुविधा साझा की और उसने कहा “बधाई हो भाई, टिकट कन्फर्म हो गयी आपकी, आराम से घुमियों शिमले की वादियों में |” इतना सुनकर हम दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, आज तो ईश्वर ने प्रार्थना स्वीकार कर ली | शायद नियति को भी ये ही मंजूर था की हमारा ये सफ़र एक यादगार लम्हा बन जाये जिंदगी का ताकि जब भी कभी अतीत के पन्नों में झांककर देखे, तो खुशियों के ये मंजर दृष्टिपटल पर जीवित हो उठे | हम दोनों एकदूसरे को ऐसे बधाई दे रहे थे मानो हमने UPSC में सलेक्शन ले लिया हो रहा | किस्मत का ऐसा साथ देखकर अब मन में बिलकुल भी मलाल नहीं था कि मनीष बिना घर पर बताये शिमला जा रहा है |
चंडीगढ़ आया तो मैंने विंडो से इशारा करते हुए मनीष को चंडीगढ़ का रेलवे स्टेशन दिखाया और बताया कि मैं दो बार आ चूका हूँ यहाँ, बहुत खूबसूरत शहर है | “एक बात बताउं भाई, मेरा चंडीगढ़ घुमने का भी बहुत मन कर रहा है”, उत्सुकतापूर्वक मनीष बोला | “हाँ आते वक़्त समय रहा तो जरुर ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी ब्रो, बस अब थोड़ी देर में कालका स्टेशन आ आने वाला है”, मुस्कुराते हुए मैंने कहा |
लगभग आधे घंटे में कालका रेलवे स्टेशन पहुँच गये, हम तुरंत हमारी टॉय ट्रेन की तरफ दौड़े, उसकी रवानगी का समय हो रहा था | ट्रेन के पास छोटी – छोटी दो कतारें लगी थी, सबका तापमान चेक करके ट्रेन में बैठाया जा रहा था | हमारी बारी आई और फिर हम ट्रेन में आकर बैठ गये, देखा ट्रेन सारी खाली पड़ी है | सस्ती टिकट होने के चक्कर में लोग यात्रा रद्द हो जाने पर भी अपनी टिकट कैंसल नही करवाते, ये तो गलत बात है, आप नहीं जा रहे तो प्रतीक्षा में लगे हुए लोगों को मौका दो भाई, आख़िर हमें भी तो ऐसे ही मौका मिला है मेरी सपनों की ट्रेन में बैठने का | टॉय ट्रेन शिमला का एक प्रमुख आकर्षण है जो आपकी यात्रा को और भी खुबसूरत बना देती है | हमने ट्रेन के पास बहुत सारी फ़ोटो खींची, कभी सेल्फी तो कभी पोट्रेट | टॉय ट्रेन में बैठकर शिमला जाना मानों सपने के सच होने जैसा था | कोच खाली होने का ये फायदा था की दोनों को ही विंडो सीट मिल गयी | यहाँ से हमारा वादियों का सफ़र शुरू होने वाला है, अब शिमला दूर नहीं है, “हम आ रहे हैं शिमला |”
वादियों का सफ़र
“अरे अभी तो सफ़र काफ़ी लम्बा पड़ा है, आगे खिंच लेना और फोटो, ऊर्जा बचा के रख देख गाड़ी चलने वाली है अंदर आजा”, खिड़की से झांकते हुए मैंने मनीष को आवाज़ लगाई, बड़े उत्साहपूर्वक कालका स्टेशन के मंजर को मोबाइल में कैद करने में लगा हुआ था | “आया ब्रो, गाड़ी को रोककर रखना तू”, कहते हुए वापस अपनी धुन में लग गया | “ब्रो गाड़ी चलने लग गयी है, और तू सिमरन भी नहीं है कि चलती ट्रेन में मैं तेरा हाथ पकड़कर चढा लूँगा, आजा फटाफट”, मजाक करते हुए मैंने बोला | ट्रेन ने लम्बा हॉर्न दिया और मनीष ब्रो तुरंत गाड़ी में आ गया | “देख मैं गाड़ी चलने के विपरीत दिशा में नहीं बैठूँगा, इसलिए सामने वाली विंडो सीट पर तू बैठ जा और खिड़की से वादियों का लुफ्त उठा”, मैनें सीट की तरफ इशारा करते हुए उसको कहा | “भाई इस सीट पर तो हमारी बैग ही बैठेगी, हम तो दरवाजे में खड़े होकर वादियों को निहारने वाले हैं”, अपनी बैग रखते हुए मनीष बोला | थोड़ी देर बाद वैसे मुझे भी दरवाज़े पर ही जाना था बस गाड़ी थोड़ी चढाई में आ जाए | जैसे ही गाड़ी स्टेशन से चली पीछे वाले कोच में बैठे दिल्ली से आया पांच – सात दोस्तों एक ग्रुप जोर से चिल्लाते हुए सफ़र का आगाज़ करने लगा | ख़ुशी ज़ाहिर करने का अपना तरीका है भई, वैसे भी जब हिमालय में आप आये हो तो इस दुनियादारी को भुलाकर नादानियों का दामन थाम लेना आपकी ख़ुशी में चार चाँद लगा देता है |
मैंने भी इअर फ़ोन लगाए और मोबाइल में अपनी स्पेशल प्लेलिस्ट जो की मैंने दस पहले ही बना ली थी, को शुरू कर दिया, “वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाँहें” शिमला की वादियों का सफ़र और उस पर शहंशाह – ए – तरन्नुम मोहम्मद रफ़ी की तिलिस्मी आवाज़, मेरे सफ़र को और सुहाना बना रही थी | मंजिल और भी खुबसुरत हो जाती है जब सफ़र को हसीं बना दिया जाये | पिछली बार शिमला आया था तब कई बातें अधूरी रह गयी थी वो सब इस बार पूरी कर दूंगा, यही ख्याल लेकर दुबारा शिमला आया हूँ | पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि मेरा कोई तो राबता है हिमालय के आँचल में बसे इन गाँवों से, क्यों मुझे से बरबस अपनी और खिंचते हैं | “तू कहीं और भी तो जा सकता हूँ फिर दुबारा शिमला ही क्यों !” मनीष के इस सवाल के जवाब में केवल इतना ही कह पाया कि बस मेरा दिल भरा नहीं अभी शिमले से, ये वादियाँ मुझे अपने घर जैसी लगती हैं, मानों ये मुझसे कह रही है कि आख़िर घर आ गया तू |
बात ही कुछ ऐसी है हिमालय की रानी शिमला की, ब्रिटिश हुकुमत में गौरों ने भी गर्मी के दिनों का ठिकाना शिमला को ही बना रखा था | ये रेलवे ट्रेक भी ब्रिटिशराज की दास्तां को अपने में समेटे हुए आज भी हिमालय की वादियों में अपनी बाहें फैलाये सैलानियों की सैर को बेहतरीन बना रहा है | यूनेस्को ने इस ट्रेक को विश्व धरोहर में शामिल करके इसकी शान को और बढ़ा दिया है | ख्वाहिश तो ये भी थी कि बर्फबारी में हिमालय जब सफेद चद्दर ओढ़ ले और मैं इस गाड़ी से बस उसको निहारता जाऊं लेकिन अभी मेरी ये ख्वाहिश ख्यालों तक ही सिमित रह गयी | अक्सर जनवरी के शुरुआत में आप इस नायाब सपने को हकीक़त में जीने का लुफ़्त उठा सकते हो, मैं थोडा जल्दी ही आ गया |
गाड़ी अब चढाई में आ गयी यहाँ से नज़ारों का भरपूर आनन्द लिया जाना चाहिए और मुझे भी अब दरवाज़े पर जाना होगा | “थोड़ी जगह दे दे मुझे, तेरे पास खड़ा हो जाऊं मैं”, गुनगुनाते हुए मैं मनीष के पास जाकर गाड़ी के दरवाजे में खड़ा हो गया | ट्रेन के समान्तर घुमावदार सड़क पर दौड़ती गाड़ियाँ, अनन्त तक फैला विशाल हिमालय ही हिमालय, रास्ते में गाड़ी को देखकर टाटा करते हुए बच्चे यकायक ध्यान को आकर्षित कर लेते हैं | गाड़ी को देखकर उन बच्चों के चहरे की उस मासूम ख़ुशी को भुला देना सहज नहीं, वो नि:स्वार्थ, निश्छल मुस्कान आज भी मेरे ध्यान को उन वादियों में बरबस खींच ले जाती है |
सैंकड़ो छोटी बड़ी अँधेरी सुरंगों से निकलकर, पहाड़ों की वादियों में अपने हौर्न का नाद करते हुए गाड़ी जैसे – जैसे आगे बढ़ रही थी मेरा मन बस पहाड़ों की इन वादियों में रमता जा रहा था | यकायक एक बड़ा ही हास्यास्पद मंजर देखने को मिला, बाहर एक आदमी गाड़ी के आगे हाथ का इशारा करता है और चलती गाड़ी में हमारे वाले कोच जो कि पहला कोच ही था गाड़ी का, दरवाजे पर लगे डंडे के सहारे चढ़ आया इस नज़ारे को देखकर हम दोनों की हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि अब तक तो सोशल मिडिया पर ऐसे “मीम” ही देखें थे कि लोग चलती ट्रेन के आगे हाथ देकर चढ़ जाते हैं, यहाँ तो सारी घटना साक्षात् देखने को मिल गयी | आज भी जब इस बात को याद करता हूँ तो हँसने लगता हूँ | जब कभी भी मनीष से फ़ोन पर बात होती है और शिमला का जिक्र हो तो इस फलसफे का जिक्र हुए बिना नहीं रहता |
इस दौरान सफ़र को तस्वीरों के रूप में मोबाइल में कैद कर लिया | रास्ते में कई सारे छोटे – बड़े स्टेशनों से गुजर कर गाड़ी बरोग (बड़ोग) स्टेशन पर आ पहुंची | गाड़ी को रोककर चालक बंदु भी उतर आया | “भैया कितनी देर रुकेगी यहाँ”, आवाज़ लगते हुए मैं गाड़ी से उतर आया | “चाय – नाश्ता कर लो आराम से, पन्द्रह – बीस मिनट यहीं रुकेंगे”, बड़े ही सहज भाव से उन्होंने कहा | इन पहाड़ियों के लहजे की सरलता और बोली में मिठास को महसूस किया मैंने | “क्या बोला, कितनी देर रुकेगी यहाँ”, पूछता हुआ मनीष भी पास आ गया | “ब्रो खायेंगे, पियेंगे और मौज उड़ायेंगे इस स्टेशन पर, इतनी देर रुकेगी, चल पहले कुछ फोटो ले ली जाए फिर थोड़ी पेट – पूजा करेंगे”, ये कहते हुए मैंने मोबाइल का केमरा चालू कर लिया | ये स्टेशन पुरे सफ़र का सबसे खूबसूरत स्टेशन लगा मुझे, यहाँ के स्टेशनों पर ब्रिटिशकाल की झलक आसानी से देखी जा सकती है | प्रकृति के आँचल में बने ये अनोखे और खूबसूरत स्थानों पर घुमने का मजा तो इस गाड़ी से ही लिया जा सकता है | ये गाड़ी यहाँ का सबसे सस्ता और खूबसूरत साधन है जो आपके सफ़र को मज़ेदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती | यहाँ लगभग आधे घंटे तक ये गाड़ी रुकी, इस बीच हमने हल्का नाश्ता भी कर लिया और खूब सारी फोटो भी इकट्ठी कर ली | दोपहर का शाम से मिलन हो रहा है और सर्दी भी लगने लगी, तो सर पर मफ़लर बांध लिया, क्योंकि जुकाम को न्योता देकर मैं अपने सफ़र के मजे को किरकरा नहीं करना चाहता था | अभी यहाँ से लगभग दो से अढाई घन्टे और लगने थे शिमला पहुँचने में |
साढ़े तीन होते – होते गाड़ी कंडाघाट स्टेशन पर पहुंची, यहाँ पर भी काफ़ी समय रुकी गाड़ी फिर आगे बढ़ी | धीरे – धीरे सूरज ढल रहा है और आसमान में लालिमा छाने लगी | ऊँचे देवदारों के पेड़ों के बीच से सूरज की आती स्वर्ण किरणें इस शाम की ख़ूबसूरती को सूफ़ियाना बना रही है | दिन अब शाम के आग़ोश से निकलकर रात के आँचल में जाने को अग्रसर है, आसमान में पंछी अपने घोंसलों की ओर लौट रहें हैं, रास्ते में छोटे – छोटे समूहों में अपने घरों को प्रस्थान करते लोग |
घुमावदार रास्तों से नाद करती हुई हमारी गाड़ी अब मंजिल के करीब आ पहुंची है | पहाड़ो की ढलानों में बने घर रौशनी से जगमगाने लगे हैं, मानों दिवाली आ गयी हो और दूर तक दीयों की तरह टिमटिमाती रौशनी दिखाई देने लगी | धीरे – धीरे अँधेरा घाटियों से उतरकर घनी वादियों को अपने आग़ोश में भरने लगा है | मैं सीट पर बैठा खिड़की में अपने हाथ पर ठुडी को समाये इस मंजर को अपनी आँखों में उतार रहा हूँ | अब केवल घरों में जलते बल्ब और अँधेरा ही दिखाई पड़ रहा है और ट्रेन की चलने की आवाज़ें ऊँची होने लगी है मानों अब ये मुझे अलविदा कह रही है और बता रही है कि तुम्हारे जैसे ऱोज कितने ही लोग अपने सपनों को जीने मेरे साथ सफ़र करते हुए मुझे अपनी यादों में बसाकर आगे चले जाते हैं, ऱोज सैंकड़ो मुसाफ़िरों की हमसफ़र बनती हूँ और शाम होते – होते फिर तन्हां रह जाती हूँ इस उम्मीद में कि कल कोई और आयेगा अपनी ख्वाहिशों को जीने, और अगले दिन फिर उसी जोश के साथ बन जाती हूँ फिर किसी की हमसफ़र | ढ़लती शाम और अँधेरे के बीच हम पहुँच गये शिमला और आज तो क्रिसमस की रात है, इस रात को यादगार बनाने का सफ़र अब शुरू होता है |
क्रिसमस की रात
गाड़ी शिमला के रेलवे स्टेशन पर पहुँच गयी सभी यात्री उतरकर प्लेटफार्म से बाहर जा रहें हैं लेकिन हमें जल्दी नहीं है बाहर जाने कि और वैसे भी हमने कोई होटल भी तो बुक नहीं करवा रखा था, अभी तो उसके लिए भी ख़ूब भटकना पड़ेगा, क्रिसमस का सीजन जो चल रहा है, होटल के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी हमें | बिना इस बात की परवाह किये हम दोनों प्लेटफार्म पर लगी रेलिंग के पास खड़े थे और वहां से हिमालय की रानी शिमला के उन नयनाभिराम मनोरम दृश्यों से, बरसों से इस मंजर की प्यासी आँखों की प्यास को बुझा रहें थे |
“घरों में जलती लाइट को देख कर ऐसा लगता है कि मानों दिवाली है आज, देख कैसे जगमगा रहा है हिमालय”, आँखों में एक चमक लिए इस मंजर को निहारते हुए मैंने मनीष से कहा | “भाई मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं शिमला में हूँ इस वक्त, मेरे लिए तो ये एक सपने जैसा है”, मुस्कुराते हुए उसने मुझसे कहा | हम दोनों इस खूबसूरत मंजर को देखने में व्यस्त थे कि एक ट्रेन प्लेटफार्म पर धीमी गति से गुजर रही थी फिर क्या था बचपन के दिन याद आ गये और हम दोनों दौड़कर उस गाड़ी में चढ़ गये मनीष पहले दरवाजे में चढ़ गया और बन गया मनीष से राज और मेरी तरफ़ हाथ बढ़ाकर चिल्लाने लगा “भाग सिमरन भाग, बाबूजी आ जायेंगे”, हहाहहहा अगर कोई तीसरा होता तो आज क्या कमाल क्या शानदार स्लो मोशन वीडियो बनता | हम दोनों धीरे – धीरे चलती उस गाड़ी बचपन की तरह नादानियोँ कर रहे थे कि किसी अफ़सर को आते देख उतर गये और चल पड़े निकास की तरफ़ |
“ट्रेन में तो मजे ले लिए बस अब जल्दी से कोई कमरा मिल जाये तो मॉल रोड पर जाना है ब्रो, आज की रात हाथ से निकलनी नहीं चाहिए”, मनीष से रास्ते में चलते हुए बतिया रहा था | अब दोनों इधर – उधर भटक रहें हैं कि कोई होटल-कमरा कुछ मिल जाए, आसान नहीं है इस सीजन में तो पहले से ही बुकिंग करवानी पड़ती है | तकरीबन 20 मिनट हो गये ऐसे भटकते हुए, कभी ऊपर चढ़ो – कभी नीचे उतरों, पहाड़ों के ढलानों वाले रास्ते हमे थकाने लगे | “चल यार मनीष चाय पीते हैं उस दुकान, उसी से पूछते है कोई डोरमेट्री मिल जाएगी शायद”, एक दुकान की तरफ़ इशारा करते हुए मैंने कहा | “भाई साब लो चाय पिला दो, काफी ठण्ड हो गयी, बर्फ पड़ने की सम्भावना है क्या ?”, वार्तालाप को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने चाय वाले भाई से कहा | “दो चाय बनाना, हाँ वैसे ऊपर वाले इलाके में थोड़ी – थोड़ी होने लगी है तो यहाँ भी होने की सम्भावना है, चाय के साथ और कुछ लोगे ?”, बड़ी सहजता से उन्होंने पूछा | “चाय ही पिला दो, वैसे भी खाने का टाइम हो गया, कोई होटल या डोरमेट्री मिल जाए तो बात बन जाये, है क्या आपकी नजर में कोई ?” बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा | उन्होंने कॉल करके एक डोरमेट्री वाले बन्दे को बुला दिया, फिर वहां से चाय पीकर और एक पानी की बोतल भरवाकर हम डोरमेट्री देखने चल पड़े जो की थोड़ी नीचे की तरफ थी |
“देखो बाबूजी ये है अपनी छोटी – सी जगह, दस बिस्तर है अपने पास, अभी एक भी बुक नहीं हुआ है, सीजन चल रहा है दो घंटे तक सारे बुक हो जायेंगे, आपको किसी तरह की समस्या नहीं होगी यहाँ, ओढने के लिए कम्बल मिल जाएगी नहाने के लिए गर्म पानी”, एक ही बार में अपनी बात खत्म करते हुए अंकल ने हमसे कहा | हमने भी सोचा चलो वैसे भी केवल रैन-बसेरा ही तो करना है, बाकि दिन में तो बाहर ही घूमना है | डोरमेट्री को बुक करवाकर हम खाने के लिए वापस ऊपर आ गये |
पहले का अनुभव था इसलिए हल्के खाने के तौर पर दाल – रोटी और दही ही लिया खाने में ताकि शरीर का संतुलन बना रहे | फिर यहाँ से सीधे निकल पड़े मॉल रोड के लिए कोविड की वजह से देर रात तक घूमने पर भी मनाही थी | मॉल रोड पर पहुंचे तो वहां की रंगत देखकर रस्ते की सारी थकान भूल गये | “गजब ब्रो क्या मस्त जगह है यार कसम से मज़ा आ गया”, कहते हुए मनीष का चेहरा खिलखिला उठा | वहां पहुँच कर सबसे पहले तो उस जगह फोटो खिंचवायी जहाँ पिछली बार आइसक्रीम खाते हुए खींची थी | बहुत ही दिलकश नज़ारा था यहाँ का, मेरा मन पिछली बार जो देखा उसको आज से तुलना करने लगा कि क्या कुछ बदला | रात को यहाँ से पहाड़ों का दृश्य अद्भुत और अनुपम है | ये मनुष्य की इच्छाशक्ति और प्रकृति के असीम स्नेह का एक ख़ूबसूरत संयोग है कि इन दुर्गम पहाड़ों में भी जीवन सामान्य की भांति फल – फूल रहा है |
क्रिसमस की रात के साथ – साथ आज भारत माँ के बेटे श्री अटल जी की जयंती भी है आज, यहाँ पर वाजपेयी जी की मूर्ति बनी हुई है जहाँ पर कई लोग इक्कठे हो रखे हैं | बहुत हर्षोल्लास के साथ वाजपेयी जी का जन्मदिन मनाया जा रहा है, फूलों और रंग बिरंगी लाइट की सजावट हर किसी के लिए फोटो पॉइंट बना हुआ था | रेलिंग को फूलों की माला से से सजाया हुआ था जहाँ पर लोग इंतजार कर रहे थे फोटो खिचवाने के लिए अपनी बारी का, जिनमे हम भी एक थे | दिसम्बर महीना अंतिम चरण पर था इसलिए सर्दी भी अपने चरम की और अग्रसर थी | सर्दी का पूरी तरह से बन्दोबस्त किया हुआ था हम दोनों ने | “एक काम तुमने बहुत बढ़िया किया है ब्रो, ये स्क्रीन टच वाले दस्ताने ला कर, नहीं तो इतनी ठंड में फोटो खींचने के लिए बार – बार इनको उतराने में बड़ी दिक्कत होती”, उसकी फोटो खींचते हुए मैंने मजाक में बोला | “अरे ब्रो, मुझे मालूम था पहले से ही की इनकी बहुत जरूरत पड़ेगी”, अब इतराना तो उसका लाज़िमी था ही | यहाँ से आगे बढ़े यहाँ के मशहूर क्राइस्ट चर्च की ओर जहाँ पर सबसे ज्यादा भीड़ लगी हुई थी |
चर्च को दुल्हन की तरह सजाया हुआ था, लेकिन कोरोना की वजह से अंदर जाने की अनुमति नहीं थी | सभी लोग बाहर से ही यहाँ का लुफ्त उठा रहे हैं, अब तो हम भी भीड़ का एक हिस्सा हैं | कभी खुद को तो कभी चर्च को हम मोबाइल में कैद करने लगे | यहाँ पर काफी समय बिताया | यहाँ की फ़ोटोबाज़ी खत्म करके हम चर्च के बाजु से ऊपर की तरफ चले गये जहाँ से पूरी मॉल रोड का नज़ारा देखा जा सकता है | शान से हिमालय की वादियों में लहराता देश का तिरंगा मॉल रोड की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है |
देर रात तक यहाँ रुकने की अनुमति नहीं होने के कारण अब यहाँ से लौटने का समय होने लगा था | हम दोनों मजे करते हुए वापस लौट रहे थे की अचानक पान की दुकान पर नज़र पड़ी, पान की पेशकश बहुत ही अच्छे ढंग से की जा रही थी | “क्यों न एक – एक पान खाया जाए”, मनीष ने प्रस्ताव दिया | पान इतना स्वादिष्ट था कि फिर हमने एक की जगह दो – दो पान खाये | पान मुहँ में रखकर हम वापस नीचे की तरफ लौट आये | दाद देनी पड़ेगी मनीष की यादास्त की वाकई में वो जिस रस्ते से एक बार गुजर जाता है उसको भूलता नहीं और एक मैं हूँ जो दूसरी बार यहाँ आ रहा हूँ फिर भी रस्ते याद नहीं रहते, इसी बात पर हँसी – ठिठोली करते हुए हम अपनी डोरमेट्री पर पहुँच गये |
“घूम आये बाबूजी मॉल रोड, कैसी लगी”, कमरे में हमारा अभिवादन किया डोरमेट्री वाले चाचा ने |
“बहुत अच्छी जगह है अंकल जी, सारे बेड बुक हो गये आपके”, बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा |
“हां जी सर, सीजन का टाइम है तो हो ही जाते है, बाकि रोज – रोज तो ऐसा होता नहीं”, बड़ी शालीनता से, बीड़ी का सुट्टा लगाते हुए अंकल ने कहा |
“अच्छा अंकल जी, यहाँ बर्फ कब पड़ने के आसार है, कोई सम्भावना है क्या ?” मैंने उत्सुकता से पूछा |
“बाबूजी ऊपर की तरफ तो पड़ने लगी थोड़ी – थोड़ी, यहाँ भी
3-4 रोज में पड़ने लग जाएगी, पिछली साल बहुत बर्फ थी यहाँ भी, मोबाइल में दिखाता हूँ आपको |”
हमने मोबाइल में पिछली साल की कई तस्वीर देखी, जिनको देखकर मैंने मनीष से कहा कि यार काश कल ऐसा ही देखने को मिले हमें भी |
“तो बाबूजी कल कहाँ घुमने का विचार है आपका, यहीं आसपास ही या कहीं दूर ?”,अंकल ने पूछा ताकि वो ये पहचान सके कि कल भी यहाँ रुकेंगे ये लोग या चले जायेंगे |
“पिछली बार आया था तो दूर – दूर घूम लिया था केवल शिमला ही बाकि रह गया था इसलिए इस बार तो शिमला में ही घुमने का विचार है अंकल जी, सोच तो रहे हैं कि कल जाखू टेम्पल और लकड़बाजार घुमा लिया जाए |”, अब तक मैं अपनी रजाई में पहुँच चूका और वहीँ से वार्तालाप चल रहा था |
ऐसे ही बातें करते – करते मैं और मनीष फिर मोबाइल में आज खींची गयी सारी तस्वीरें देखने में व्यस्त हो गये | कल सुबह जाखू के बजरंग बली के दर्शन की योजना बनाकर हम अपने अपने मोबाइल में खो गये | दिनभर सफ़र की थकान थी लेकिन उत्साह ऐसा कि अभी नींद भी नहीं आ रही | मोबाइल में सुबह का अलार्म लगा कर सोने की कोशिश करने लगा, कल के प्लान को सोचने लगा और धीरे – धीरे पता नहीं चला कब आँख लग गयी |
जाखू के वीर हनुमान
अलार्म बजा, नींद टूटी आदतन अलार्म काटकर फिर से सोने लगा, और वापस सपने को याद करने लगा | कितना अच्छा सपना था, जब भी घर से इतनी दूरी होती है, माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है | “कितना सोयेगा यार, अलार्म भी बज गया, उठ जा अब तो”, मनीष बडबडाया | वो अपने मोबाइल में लगा हुआ था, काफी जल्दी उठ गया था | “क्या आधी आँख खोलकर देख रहा है, अभी वाशरूम खाली है, हो आ तू चलना भी तो है फिर”, डांटते हुए उसने कहा | “लो बाबूजी गर्म पानी, दूसरी बाल्टी में खाली करके ये बाल्टी वापस दे दो ताकि इसमें और हो जाये गर्म पानी”, हाथ में बाल्टी लटकाए हुए अंकल आये अंर | डोरमेट्री के अपने संघर्ष हैं |
तकरीबन साढ़े नौ बजे हम यहाँ से निकल गये | आज केवल जाखू मन्दिर और लकड़बाज़ार ही घूमना है तो समय काफी था हमारे पास, इसलिए हमने तय किया कि पैदल ही चलेंगे जाखू | चाय पीने और शुक्रिया अदा करने वापस उसी दुकान पर आये जहाँ से कल रात हमें ये डोरमेट्री मिली थी | चाय पीकर ऊपर माल रोड की तरफ बढ़े, सीढियों में लगे बाज़ार और छोटी – छोटी दुकानों के खुलने का समय हो रहा था, कुछ पर ग्राहक थे तो कई अभी खोली जा रही थी | एक घड़ी – चश्में की दूकान पर हम रुक गये और एक चश्मा खरीद लिया जो कि आगे फोटोशूट में बड़ा काम आने वाला था | यहाँ से आगे बढ़े तो और एक दुकान पर मास्क देखकर रुक गये, “मास्क लेते हैं यार, N-95 से परेशान हो गया” हम दोनों अपनी राजस्थानी भाषा में बाते कर रहे थे कि दुकान वाले भाई साब बोले, “आप, शेखावाटी से आये हो क्या ?”
“हाँ भाई साब, आपको मारवाड़ी आती है !”, मुस्काते हुए मैंने कहा |
“शेखावाटी में कहाँ से आये हो, नीमकाथाना जानते हो क्या”, वो बोले
“हाँ जानते हैं, पास ही है, आप कैसे जानते हो”, ताजुब करते हुए मपूछा मैंने
“फिर तो खंडेला भी जानते होंगे, मैं वही का ही हूँ”, मुस्काते हुए वो बोले
हंसते हुए कहा मैंन, “खंडेला वाली भाषा बोलकर बताओ, आप तो हिंदी बोल रहे हो”
मुस्कुराते हुए वो बोले, “बठ्या को ही छुं मैं” (और हम तीनों हँसने लगे)
“मेरा गाँव और इसका ननिहाल खंडेला ही है”, मनीष बोला
उनसे काफी देर बात हुई हमारी, उन्होंने चाय-पानी के लिए कहा और बोला कि रूम आदि की समस्या हो तो बताये दूसरे की व्यवस्था कर देंगे | उनको साधुवाद कर शाम को आते वक़्त मिलने का कहकर आगे चल पड़े | अच्छा लगा जब बाहर देश में अपने गाँव का कोई मिलता है तो, साथ ही में हँसी मजाक के लिए एक टॉपिक भी मिल गया | “भाई शिमला में तुझे मामा और मुझे काका मिल गया”, मजाक करते हुए मनीष बोला और हम दोनों जोर से ठहाके लगाने लगे |
शिमला के बाज़ार को देखकर लग रहा था कि जैसे मेले में आ गया हूँ | कई छोटी – बड़ी दुकाने ज्यादातर कपड़ों की थी | बाज़ार की उन गलियों में हम एक दुसरे की फोटो क्लिक करते हुए और स्थानीय लोगों से जाखू मन्दिर का रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ रहे थे | देखा कि सामने से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपनी पीठ पर बहुत सारी प्लास्टिक की केरेट को लादे हुए बहुत ही आराम से आ रहा था, इस नजारे को देखकर हम दंग रह गये कि इनती उम्र का आदमी और इतना वजन उठा रहा है, हम लोग तो इसका चौथा हिस्सा भी उठाये तो पसीने छूट जाए | वाकई में पहाड़ी लोग बहुत मेहनती होते हैं इसका उदाहरण मिल गया था मुझे और ये तो अभी शुरुआत थी आगे भी ऐसे कई लोग दिखे, सलाम है इनको |
रास्ते में जहाँ भी अच्छी जगह दिखी वहां पर इत्मीनान से तस्वीरें खींची आख़िर पैदल आने का मकसद भी तो यही था जिसका कि हम भरपूर लाभ उठा रहे थे | रास्ते में एक अच्छा मकान देखकर रुक गये, मनीष तपाक से अंदर चला गया | “अरे क्या कर रहा है”, ताजुब करते हुए मैंने पूछा | “भाई फोटो खींच ले मेरी इसकी सीढियों से उतरते हुए की, ताकि मैं ये कह सकू की इस होटल में रुके थे हम, डोरमेट्री के बारे में थोड़ी ना लोगों को बतायेंगे”, हंसते हुए वो बोला |
फिर क्या था अंदर का फोटोग्राफ़र और बच्चा दोनों जग गये | उस मकान के सामने हमने तस्वीरें खींची | रास्ते में कई जगह हमने खूब सारी तस्वीरें खींची कभी मकानों के आगे तो कभी किसी की कार के आगे, कभी बंदरो के साथ तो कभी सड़क से लगी रेलिंग के सहारे | बस ऐसे ही हंसते – खेलते हम जाखू मन्दिर के पास पहुँच गये | सामने चाय वाली दूकान को देखकर चाय की तलब लगी साथ ही में आलू – टिकिया का भी आनन्द उठाया | थोड़ी दूर नज़र घुमाई तो एक पाईप से पानी गिरता दिखा शायद टू – वेल का पाईप था, हाथ – मुंह धोने चले गये | वहां जाकर देखा तो शानदार जगह लगी, फिर क्या था आधे घंटे तक तस्वीरों और स्लो – मोशन का सिलसला चलता रहा |
फिर यहाँ से निपटकर मन्दिर की सुध ली | सीढियों से होते हुए हम मन्दिर के परिसर में आ गये | दूर से दिखाई पड़ने वाली हिमालय की वादियों में बनी हनुमान जी की ये मूर्ति लगभग 100 फीट की जान पडती है | मन्दिर परिसर में कई लोग घूम रहे थे, हर कोई अपनों के साथ इस भव्य मंदिर में अपने जीवन के पलों का आनन्द लेने में व्यस्त था | स्थानीय मान्यता है कि जब हनुमान जी हिमालय से संजीवन बूटी लेने आये थे तब यहाँ विश्राम किया था | अगर आप शिमला आओ तो जाखू मन्दिर जरुर आना, मन को शांत करने वाला यहाँ का वातावारण आपको मन्त्र मुग्ध कर देगा | हमने मंदिर परिसर में कई तस्वीरें खींची जैसा कि हम करते आ रहे थे अब तक, कभी हनुमान जी की तो कभी वादियों की |
पिछली बार मेरा शिमला आकर भी जाखू मंदिर नहीं आने का मलाल इस बार सबसे पहले यहीं आकर दूर हो गया और मन ही मन हनुमान जी से जल्दी ही दुबारा मुलाकात का वादा भी कर आया | यहाँ काफी समय बिताया हम लोगो ने अब लौटने का समय हो गया | यहाँ से हमे अब लकड़बाज़ार जाना था | लकड़बाज़ार शिमला की एक बेहतरीन जगह है जहाँ पर घुमने और खरीददारी करने लगभग सभी सैलानी आते हैं |
हम मन्दिर से नीचे उतर आये और शाम होते-होते लकड़बाज़ार पहुँच गये | जैसा कि नाम से ही पता चल रहा इस बाज़ार में हस्तशिल्प की वस्तुएं बहुत मिलती है | हमने भी निशानी के तौर पर कुछ की-चैन और की-होल्डर खरीद लिए जो कि आसानी से हमारी बैग में रखे जा सकते थे | बड़े इत्मिनान से बाज़ार में घुमे | धीरे – धीरे शाम ढलने लगी और अँधेरा होने लगा, फिर से दिवाली की तरह हिमालय की वादियाँ जगमग हो उठी |
बाज़ार से निकल कर हम मॉल रोड आ गये, यहाँ से नीचे उतरने लगे | नीचे लगा बाज़ार भी अब धीरे – धीरे मंगल हो रहा था | मैंने बाज़ार से कुछ कपड़े और स्वेटर खरीदे, शाम का समय था तो थोड़ी बारगेनिंग भी हो रही थी | वैसे तो मेरा सबके लिए कुछ न कुछ खरीदने का मन था फिर भी सोचा कि कल भी इधर आना होगा, इसलिए थोडा बहुत कल के लिए छोड़ देते हैं | हम बाज़ार से निकल कर नीचे आ गये | हम दोनों नया कमरा देखने के लिए इधर – उधर घुमने लग गये | इसी सिलसले में एक बंदु से मुलाकात हुई जो कमरा दिखाने नीचे ले आया | उसी डोरमेट्री के थोडा आगे आ गये जहाँ हम रुके हुए थे | हमे एक होटल में कमरा दिखाया गया लेकिन हमने अब इरादा बदल दिया था | हम अपनी डोरमेट्री चले आये जहाँ पर बैग में खरीदा हुआ सामान रखा और वापस ऊपर लौट आये खाना खाने के लिए |
कल की तरह दाल – रोटी और दही के रूप में हल्का खाना खाकर सैर – सपाटा करते हुए डोरमेट्री लौट आये | बड़ा हो- हल्ला हो रहा है यहाँ क्या बात है ..! हम दोनों ही अचम्भित थे | हरियाणा से आये हुए 6 – 7 दोस्तों का एक ग्रुप यहाँ ठहरा हुआ था | अंकल की तो निकल पड़ी, एक साथ ही सारे बेड बुक हो गये आज तो | रात काफी हो जाने के बावजूद भी इनका हो – हल्ला अभी रुका नहीं था | आसपास सभी बेड वाले परेशान थे लेकिन येलोग अपनी अभद्रता और असभ्यता का परिचय बार – बार दे रहें थे | दो व्यक्ति तो उनमे से सरकारी शिक्षक भी थे, ये पता चलने के बाद तो और भीर अखरने लगे वो लोग | वैसे भी मन विचलित हो रहा था पता नहीं क्यों ऊपर से इनकी हरकतें | मना करने के बावजूद भी बाज़ नहीं आये | विवशता ऐसी कि कुछ कर भी नहीं सकते सिवा नींद आने के इंतजार के | आख़िर देर रात ही सही आँख लग गयी |
सफ़र अधुरा सबक पूरा
“भाई, ओ भाई, उठ ना, माँ (दादी) खत्म हो गयी” मनीष की धीमी लेकिन गम्भीर आवाज़ ने मुझे जगाया |
“सुबह – सुबह मज़ाक मत कर यार, वैसे भी रात को ढंग से नींद नहीं आई” आधी नींद में ही मैंने बोला |
“ये देख अभी पापा का कॉल आया है”, मोबाइल में दिखाते हुए वो बोला |
अब मेरी नींद उड़ गयी थी, “कब हुआ ये सब, तुमने मामा से क्या कहा…!”, मैंने पूछा |
मनीष – “आज सुबह लगभग 5 बजे के आस पास, मैंने तो बोला कि मैं जयपुर हूँ”
मैं – “अच्छा, फिर थोड़ी देर बाद वो दुबारा नहीं पूछेंगे कि कहा तक पहुँच गया तब क्या बोलेगा …!”
मनीष – “फिर अब क्या करें”
मैं – “अभी कॉल कर उनको, और बोल कि मैं तो शिमला हूँ”
पांच – सात मिनट के वार्तालाप के बाद हम डोरमेट्री से बाहर आ गये, बाहर आकर मनीष ने अपने पापा यानि मेरे मामा को कॉल किया, पता था कि अब बहुत डाट पड़ने वाली है | लेकिन जिसकी माँ का अभी – अभी देहान्त हुआ हो और अभी दाह – संस्कार भी नहीं किये हो, उस व्यक्ति की मानसिक हालत क्या होगी, ऐसी विषम परिस्थिति में भी खुद को संतुलित रखना कितना मुश्किल है | मामा ने फोन पर बस थोड़ा ही कहा और कॉल कट कर दिया, शायद यही परिपक्वता होती है | लेकिन अब मनीष की चिंता और बढ़ गयी, बोला कि पापा ने उम्मीद से कम डांटा, ये तूफ़ान से पहले की शांति है यार |
हम अंदर आ गये, और वापस लौटने के लिए बस आदि ऑनलाइन सर्च करने लगे | “मेरी वजह से तेरा ट्यूर और खराब हो गया, यही सोच रहा होगा न कि किस को साथ ले आया यार”, मनीष ने ग्लानी के भाव से अपनी व्यथा सुनाई | “ऐसा कुछ नहीं है, होनी थी और हो गयी”, मैंने कहा | हम जल्दी ही घर पहुंचना चाहते थे लेकिन इतनी दूर से सम्भव नहीं था कि दाह – संस्कार से पहले पहुँच जाए | तुरंत हाथ – मुँह धोकर डोरमेट्री से निकले और चंडीगढ़ की बस पकड़ी | उल्टियाँ होने के डर से पहाड़ों में बस का सफ़र बिलकुल नहीं करना था, इसलिए कुछ भी बिना खाए बस में बैठा |
“पापा से सब पूछेंगे कि सारे रिश्तेदार आ गये, मनीष तो जयपुर ही था फिर क्यों नहीं आया, दादी के पास सभी पोते – पोतियाँ हैं, केवल मैं ही नहीं हूँ, अच्छे बदनाम हो गये रिश्तेदारों में, पहले से ही सी. ए. की परीक्षा पास नहीं होने के कारण खूब ताने मारते हैं, अब तो जीने नहीं देंगे, मम्मी – पापा को मेरी वजह से ये सब सुनना पड़ेगा”, मनीष ने अपनी चिंता जाहिर की | “मेरे साथ भी तो यही होगा यार, ननिहाल में मुझे कम ही लोग जानते हैं, अब तक तो वायरल हो गया हूँगा मैं, कि रामेश्वरी जीजी का बेटा गया है साथ में”, हम दोनों अपनी चिंताए जता रहें थे |
बस थोड़ी दूर ही चली थी कि मेरा जी ख़राब होने लगा, पेट में कुछ था नहीं फिर भी उल्टी होने लगी, बस खाली थी तो दूसरी सीट पर खिड़की की तरफ बैठ गया और सोने की कोशिश करने लगा | लेकिन विचारों में तो नानी का अक्ष छाने लगा | सोचा था कि शिमला से आकर सीधा उनके पास जाऊंगा, कई दिन हो गये मिले हुए | माँ तो पहले ही गुजर चुकी थी, आज ऊपरवाले ने नानी को भी बुला लिया, मेरी मांओं के पीछे ही क्यों पड़ा है ये ! रह – रह के नानी की बातें याद आ रही थी, उनकी डांट, उनका प्यार उनके एक हाथ के वो दो अंगूठे जो मेरे बचपन में सबसे बड़ा सवाल था, सब आँखों में तैरने लगे | दिल भरना लाज़िमी था, आँखें आंसुओ को और नहीं रोक पाई, अश्रु – धारा गालों पर लुढक आई | आँखे जलने लगी अब तो सिसकियों के साथ रोने लगा | कैसा मंजर है ये, मेरे कंधों को उनकी अर्थी भी नसीब नहीं हुई | कम से कम मुझे फ़ोन पर तो बात कर ही लेनी चाहिए थी एक बार, रह – रह की यही बात चुभ रही थी | नानी को यादों में लिए शिमला से चंडीगढ़ आ पहुंचा |
सबसे पहले रात को जहाँ से बस मिलनी थी उसी के पास के होटल में कमरा बुक करवाया | उल्टी होने के कारण भूख भी लगी हुई थी, चंडीगढ़ के आई. एस. बी. टी. बस डिपो पर नजरें दौड़ाई तो एक होटल दिखा, अब तक का सबसे घटिया बर्गर और चाय पी वहां | फिर बाहर निकले यहाँ से तो सड़क के किनारे छोले – कुलचे वाला दिखा तो रहा नहीं गया, पेट भरके खाए और होटल की और निकल गये |
मैं – “तुझे चंडीगढ़ देखने की इच्छा थी न ब्रो, देख हम चंडीगढ़ में हैं, लेकिन दिल में दोनों के ही ख़ुशी नहीं है, सोचा था क्या इस हालात में चंडीगढ़ आयेंगे”
मनीष – “भाई, काश में चंडीगढ़ देखने की इच्छा ही न रखता तो शायद ऐसा नहीं होता न…!”
होटल पहुँचकर पहले गीजर में पानी गर्म किया और मैं नहाने चला गया | बाथरूम से नहाकर बाहर आया तो मनीष बोला, “पता है मुझे आठ – दस दिन पहले एक सपना आया था कि हम दोनों चंडीगढ़ में किसी होटल में हैं, और मैं नहाकर आ रहा हूँ और तू बोल रहा है कि थर्मल पहन ले, ठण्ड बहुत है, ये सपना अब हकीक़त बन गया भाई”
मैं – “तुमने मुझे तब क्यों नहीं बताया इस बारे में, ये इशारा था कि नानी बीमार है और तुम लोग मत जाओ”
मनीष – “मुझे क्या पता था कि ऐसा होगा, तब बताता तो कौनसा प्रोग्राम कैंसिल कर देता”
मैं – “तभी अपने साथ सब ठीक हो रहा था, वेटिंग टिकटे क्नर्फ्र्म हो रही है, आसानी से बजट में डोरमेट्री मिल रही है, हम इसको अच्छी किस्मत मान रहे थे, और ये सब तो हमारी बुरी किस्मत का कमाल था”
मनीष – “बुरा वक्त आता है तो पहले सब ठीक होने लगता है फिर एक जोरदार झटका देता है और सब खत्म”
नहा – धोकर दोनों ने थोड़ा आराम किया, थोड़ी देर बाद आँख लग गयी | शाम को उठकर बाहर जाकर थोडा हल्का – फुल्का खाना खा आये, बस का समय हो गया, होटल से चेक – आउट करके बस में आकर बैठ गये | जितना उत्साह आते समय था उससे कहीं जाता दुःख और उदासी लौटते समय हो रही थी | रेल की सारी टिकट कैंसिल करवाकर बस में यूँ जाना पड़ेगा सोचा ही नहीं था | हम दोनों के संवाद मानो जैसे खत्म से हो गये हो, बस केवल औपचारिकता जैसा ही रह गया | मायूसी दोनों के चहरों पर साफ दिखाई पड़ रही थी | बस हवा से बातें कर रही थी, रह – रहकर नींद टूट रही थी और बेचैनी बरकरार थी |
जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं और फिर केवल पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | जीवन तो ऐसा सफ़र है जिसकी कोई टिकट नहीं है, केवल मंजिल को पाने के लिए हम लोग सफ़र का लुफ्त उठाना भूल जाते हैं | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया | मेरे अधूरे सफ़र की दास्तां एक मुक्क्मल सीख पर खत्म करता हूँ |
धन्यवाद
अधूरे सफ़र की दास्तां
मेरी शिमला यात्रा
जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर, हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया |
2020
भीमराज कुमावत
सूची
शीतकालीन अवकाश 2
दिल्ली में मॉर्निंग वॉक 5
वादियों का सफ़र 9
क्रिसमस की रात 13
जाखू के वीर हनुमान 18
सफ़र अधुरा सबक पूरा 24
शीतकालीन अवकाश
“निकल गया क्या कॉलेज से, कितना टाइम और लगेगा तुझे”, कॉल उठाते ही हेल्लो की जगह यही यही बोला मनीष ने, “नहीं यार वो अभी छुट्टीयों को लेकर प्रिंसिपल ऑफिस में मीटिंग चल रही है, देखो ऊंट किस करवट बैठे, शायद अच्छी ख़बर आएगी, करता हूँ मैं थोड़ी देर में कॉल तुझे, तू अपनी तैयारी रख”, ये कहकर फ़ोन काटते हुए मैं स्टाफ रूम में चला गया | सबके चहरे पर एक अजीब सी उलझन साफ छलक रही थी | “भई सुन लो सभी, नोटिस आ गया है 31 दिसम्बर तक शीतकाल अवकाश रहेगा कॉलेज में”, कहते हुए बाईजी स्टाफ रूम में आई | हम सबके चहरे खुशी से चमक उठे | “ये अच्छी ख़बर सुनाई बाईजी आपने, हैप्पी न्यू इयर”, “चलो महेश बाबु, अब देर मत करो यार” मेरे रूममेट और कलीग महेश की तरफ देखते हुए कहा | जल्दी ही कॉलेज से फ्री हो बाइक से रूम की तरफ चल निकले हम | “अरे मनीष, छुट्टी आ गयी हमारी, अब आराम से घूमेंगे दोनों, रूम पर जा रहा हूँ, मिलते हैं जयपुर रेलवे स्टेशन पर, आ जाना टाइम पर |”
मानों कोई गढ़ ही जीत लिया आज तो, इतनी ख़ुशी कई सालों बाद महसूस हुई, आख़िर तीन साल हो गये शिमला जाने की योजना बनाते हुए, हर साल दिसम्बर की छुट्टियों में शिमला जाने का प्लान बनता हूँ और कभी जा नहीं पाता | पिछली बार 2017 में गया था और तब ही ये सोच लिया था कि मुझे दुबारा आना है यहाँ | मेरी आखों में विशाल हिमालय और उसकी घनी वादियों का अक्ष तैरने लगा | अपना तो काउंटडाउन शुरू हो गया यार |
“लो भई, आ गया रूम, उतरो”, कहते हुए महेश जी ने बाइक रोक दी | मैं जल्दी ही रूम में आया, हाथ पैर धोकर कपड़े बदले और रसोई में खाना बनाने के लिए चला गया | पहले चाय बनाकर पी, बाद में रोटी – सब्जी बनाने में जुट गया | इधर महेश बाबु अपनी पैकिंग करके घर को जाने के लिए तैयार हैं, “ठीक है ब्रो, जा रहा हूँ मैं, शिमला यात्रा शुभ हो आपकी”, कहते हुए महेश चला गया | वैसे तो मैंने सारी पैकिंग रात को ही कर ली थी, बस टिफ़िन पैक करके बैग में रखना है | बमुश्किल आधे घंटे में खाना तैयार करके टिफ़िन पैक हो गया अपना | कमरे में आया और तुरंत तैयार हुआ, बैग उठाया, इअर फोन गले में डाले, शूज़ पहने और मन ही मन इष्ट को याद करते हुए रूम लॉक किया और बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा
आज तो किस्मत भी महरबान है, स्टैंड पर पहुँचते ही जयपुर के लिए बस भी मिल गयी, लेकिन ख्चाख्च्च भरी हुई थी, खड़े खड़े ही जाना पड़ेगा | ये शिमला जाने की ख़ुशी ही थी कि थर्मल और उस पर भारी – भरकम कोट पहनने के बावजूद भी मेरा ध्यान गर्मी पर नहीं जा रहा था | मन में तो हिलोरे उठ रही है कि कल तो इस समय शिमला की मॉल रोड पर घूम रहा हूँगा, वाह ! क्या नज़ारे होंगे, मानो मेरी दिवाली आने वाली है | अभी जयपुर की आधी दूरी ही तय हुई थी, मनीष का कॉल आया, “कहाँ है तू, मैं रेलवे स्टेशन पहुँच गया हूँ, कितना टाइम और लगेगा”, “बस मान ले 40 मिनट और लगेंगे, पहुँचता हूँ मैं भी, तब तक तू घूम ले आस पास (हहह्हहाहा)”|
मेरे से ज्यादा उसको जल्दी है शिमला जाने की, इतना उत्साह है कि जयपुर में रहते हुए भी डेढ़ घंटे पहले स्टेशन पर आ गया | एक महीने से शिमला जाने की तैयारी चल रही थी हमारी, रोज शाम इस पर चर्चा होना सामान्य हो गया था |
ट्रेन की टिकट्स की बुकिंग को लेकर काफी असमंजस में रहा बीते दिनों, और हो भी क्यों नहीं राजधानी में किसान आन्दोलन जो चल रहा था | रोज अख़बार में इस आंदोंलन की ख़बरें पढना मेरी दिनचर्या का खास हिस्सा बन गया था | इन सबके चलते तीन दिन का शिमला घुमने का कार्यक्रम आख़िर बना ही लिया | अचानक बस रुकी तो धक्का लगा, मैं विचारों से बाहर आया | पास की सीट खाली हो गयी और मैं बैठ गया, और फिर दुबारा विचारों की लहरों में बह निकला | कहीं इस किसान आन्दोलन की वजह से यातायात न बंद हो जाए, कहीं फंस गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे, ये मनीष भी न घर पर किसी को बिना बताये हुए शिमला जा तो रहा है, अगर पता चल गया इसके पापा को, तो मुसीबत बढ़ जाएगी, मेरे विचार अब मुझे डराने लगे थे | खैर हम बतायेंगे नहीं तो पता कैसे चलेगा | इस तरह असमंजस में हमारी शिमला यात्रा शुरू हुई|
लो आ गया जयपुर, मैं तुरंत रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ा, वो क्या उस दुकान पर ताज़ा आगरे के पेठे, वाह !, हम दोनों को पेठे बहुत पसंद है जब भी मनीष के पास जयपुर आता हूँ खाने के बाद पेठे जरुर लेते हैं | मैंने पेठे के साथ थोड़ी नमकीन भी ले ली और पहुँच गया रेलवे स्टेशन | “अरे वाह, तू तो एकदम शिमला वाले लुक में आया है ब्रो, सर्दी का पूरा जाब्ता करके, वाह बेटे”, ये कहते हुए मनीष ने मेरा अभिवादन किया | “सही है ब्रो, मांगे हुए कोट में हम दोनों ही डैशिंग लगते हैं”, मेरे इतना कहते ही हम दोनों ठहाके लगा के हँसने लगे | फिर दोनों ने साइड में बैठकर अपना दस्तर – खान जमाया और भोजन करना शुरू किया जो टिफ़िन मैं बनाकर लाया था | “गजब यार, तू तो शेफ हो गया आजकल, खाना भी बनाकर लाने लगा वो भी मेरे टिफ़िन वाले भैया से बढ़िया” मनीष ने खाने की तारीफ़ में कहा | “अब बन्दा रूम पर रहेगा तो खाना भी बनाना सीख ही जायेगा न”, मैंने कहते हुए निवाला मुहं में रख लिया | आगरे के पेठे की पेशकश ने खाने की लज्ज़त को और बढ़ा दिया |
अभी ट्रेन के आने में काफी समय था तो हम भी साइड में बैठकर टाइम पास करने लगे | पूरा रेलवे स्टेशन खाली पड़ा था, केवल वो ही लोग दिख रहे हैं जिनको स्टेशन पर कोई काम हो | कोरोना का असर देखा जा सकता है, वरना इस जयपुर के स्टेशन पर तो बहुत भीड़ हुआ करती है | “ले बीस मिनट और बची है ट्रेन आने में, चल ले प्लेटफार्म पर चलते हैं, वैसे भी कोरोना चल रहा है क्या पता टाइम लग जाये किसी काम में”, मैंने जुते पहनते हुए मनीष को कहा और फिर दोनों प्लेटफार्म की तरफ चल पड़े | बैग को सेनिताईज करवाया और फिर प्लेटफार्म और जाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गये | कोरोना महामारी में लॉकडाउन के चलते रेलवे स्टेशन की साफ़ सफाई को देखकर दंग रह गया, जयपुर रेलवे स्टेशन इतना खूबसूरत आज पता चला | जैसा कि हमारे यहाँ रिवाज़ है ट्रेनों के देरी से आने का बस उसी का अनुसरण करते हुए केवल तीन मिनट देरी से हमारी ट्रेन आ पहुंची प्लेटफार्म पर और हमेशा की तरह इस बार भी मैंने विंडो सीट ही बुक करवा रखी थी | हम जाकर अपनी सीट पर बैठ गये | सर्दी चाहे कितनी भी हो, विंडो चाहे खोलनी भी न हो फिर भी विंडो सीट पर ट्रैवल करने का मजा अलग ही है |
ट्रेन चल पड़ी और धीरे – धीरे अपनी रफ़्तार को बढ़ाते हुए सरपट दौड़ने लगी | हम दोनों का उत्साह इतना परवान था कि आसपास बैठे यात्रियों को भी हमारी बातों से पता चल रहा था कि हम शिमला जा रहे हैं | यकीन नहीं हो रहा है कि हम वाकई में शिमला जा रहे हैं, एक सपने की तरह लग रहा है सब कुछ | सब कुछ कितना अच्छा हो रहा है न, हम दोनों अपनी इन्हीं बातों में मशरूफ थे | पिछली रणथम्भोर यात्रा का अनुभव बताते हुए मैंने कहा कि भई अपने सामान का जरुर ध्यान रखना | लगभग तीन घंटे हो गये ऐसे ही बाते करते करते अब सो जाना चाहिए अभी तो कल भी ट्रेन में ही सफ़र करना है | लेकिन क्या करें ख़ुशी के मारे नींद भी तो नहीं आ रही है | फिर पुरे डिब्बे में घूमकर देखा कि कहीं सोने के लिए अपर बर्थ मिल जाये तो आराम से कट जायेगा सफ़र, और फिर दोनों को अलग – अलग जगह बर्थ मिल गये और हम सोने की कोशिश करने लगे | गाने सुनना बंद किया मैंने, और मन में शिमला के बारे में सोचने लगा और प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान बर्फबारी करवा देना, बर्फ देखने के लिए ही तो दुबारा शिमला आया हूँ |
ट्रेन अपनी रफ़्तार से दिल्ली की ओर बढ़ रही थी | रात के सन्नाटे में ट्रेन के चलने की आवाज़े एकदम सुनाई दे रही थी | मन में शिमला की वादियों के नजारे लिए धीरे – धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया |
दिल्ली में मॉर्निंग वॉक
“यहाँ नींद नहीं आई पुरे सफ़र में और ये बन्दा आराम से सो रहा है, चल अब उठ जा दिल्ली आ गयी”, मनीष की जोरदार आवाज़ सुनकर नींद खुली मेरी, “अगर मैं नहीं होता तो तू सोता ही रह जाता ट्रेन में ब्रो, इतना बेफिक्र सोता है क्या कोई सफ़र में”, कहते हुए उसने बात पूरी की | “यार क्या करूं जब नींद आती है तो आती ही है, और फिर रात भी थी तो सो गया, तुझे नहीं आई क्या ?” जानते हुए भी मैंने उससे पूछा | उठकर मुहं धोया और ट्रेन के दरवाजे पर जाकर खड़े हो गये दोनों | अभी सुबह के चार बजने वाले थे, अपने तय समय पर, ट्रेन दिल्ली प्लेटफार्म पर पहुंच गयी | यहाँ से हमे नई दिल्ली जाना होगा, कालका के लिए वहीं से ट्रेन मिलनी थी | “चल यार बाहर चलकर चाय – पानी पीते हैं, फिर सोचेंगे कैसे नई दिल्ली पहुंचा जाए”, मनीष से मैंने कहा और हम प्लेटफार्म से बाहर निकल आये | बाहर निकलकर देखा तो ऐसा लग ही नही रहा था कि अभी चार बजे होंगे, मानों यहाँ रात होती ही नहीं होगी | बाहर ऑटो वालों की लाइन लगी हुई है और इधर उधर घूमते लोग भी खूब दिख रहें है | वाकई में मेट्रो शहर में जीवन बहुत प्रतिस्पर्धा में गुजरता है | ये पौ फटने वाला मंजर सिर्फ गाँवों में देखने को मिलता है, शहरों में कहाँ ये सब |
बाहर दुकान वाले से गरमा – गर्म चाय ली | “भैया मेट्रो कब चलती है सुबह”, चाय की चुस्की लेते हुए मैंने चाय वाले भैया से पूछा | “भैया साढ़े पांच बजे से चलेगी पहली मेट्रो” चाय के बर्तन को घुमाते हुए वो बोला | हमारी ट्रेन साढ़े सात बजे के बाद है, जिसमे अभी काफी टाइम पड़ा था हमारे पास | हमने मन बनाया कि क्यों न पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली पैदल ही चला जाये, वैसे पास में ही तो है और इतना तो हम गाँवों में अपने खेतों में पैदल जाते ही है | फिर क्या चाय खत्म करके गूगल मैप निकला और चल पड़े नई दिल्ली की ओर | कंपकपा देने वाली दिल्ली की सर्दी ने मजबूर कर दिया दस्ताने पहनने को, जितनी मजेदार हमारी मंजिल होने वाली है उतना ही खूबसूरत सफ़र भी चल रहा था हमारा |
वो सुबह और पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली तक पैदल यात्रा का अहसास आज भी तरोताजा है, ये दिल्ली की खाली सड़के, कड़कती सर्दी और जिगरी हमसफ़र, ऐसे संयोग हमेशा नहीं बनते | सर्दी में लिपटी कुछ सड़के खाली पड़ी थी तो कुछ सरपट दौड़ती दो – चार गाड़ियों की हल्की गर्मी पर इतरा रही थी | जितना सुना था पुरानी दिल्ली के बारे में आज वो सामने था, ये तंग गलियाँ और धूल चढ़ी हुई इमारतें, कहीं ट्रक से सामान उतारने की आवाजें तो कहीं डेयरी की दुकानों पर हल्की चहल – पहल पुरानी दिल्ली के इस बाज़ार के सन्नाटे में दख़ल अंदाजी कर रही थी | जब कहीं ये रास्ते सुनसान और तंग थे उन रास्तों से खुद-ब-खुद हमारे कदम जल्दी उठ रहे थे, शायद बड़े शहर की आबो – हवा में ही ऐसा असर था कि हमारे मन में कुछ गलत हो जाने की शंका उत्पन्न हुई | ये लो हमारी मोर्निंग वॉक भी हो गयी और हम पहुँच गये नई दिल्ली | कहाँ सुनसान पुरानी दिल्ली और कहाँ चकाचौंध से भरी नई दिल्ली, राजधानी के दो पहलु है पुरानी और नई दिल्ली |
“वाह, आमलेट की खुशबु, चल क्यों ना थोड़ी सर्दी कम कर ली जाए”, एक ठेले की तरफ इशारा करते हुए मैंने मनीष से कहा | हमेशा की तरह वो तैयार था | सुबह – सुबह आमलेट खाने का मेरा पहला अनुभव था | यहाँ से निपट कर हम अंदर रेलवे स्टेशन चले गये | कोरोना और लॉकडाउन के दौर का एक फायदा तो साफ़ नजर आ रहा था कि रेलवे स्टेशन चमकने लगे, चाहे कहीं भी चद्दर डाल कर सो जाओ | नित्य क्रिया से निवर्त होकर हम प्रतीक्षालय की तरफ आकर बैठ गये | “यार अभी ट्रेन चलने में तो काफी टाइम है, चल लेटकर थोडा आराम कर लेते हैं, तू भी सो जा”, ये कहते हुए मैंने बैग से चद्दर निकालकर फर्श पर बिछा दी | बैग को सिरहाने लगाकर दोनों लेट गये और दूसरी चद्दर जो उसके बैग में थी उसको ओढ़ लिया | ट्रेनों के आने – जाने की एनाउंसमेंट हो रहे थे और ऐसे माहौल में भी मैं सोने की कोशिश कर रहा था | लेकिन मनीष मुझे बातों में उलझाने की कोशिश में था क्योंकि उसको तो नींद आने वाली थी नहीं | थोड़ी देर में मुझे नींद आ गयी |
“अरे उठ यार, सोता ही रहेगा क्या जब देखो, सुन ये अपनी ट्रेन की एनाउंसमेंट है ना”, मेरे हाथ को हिलाते हुए मनीष ने जगाया मुझे | मैंने ध्यान से सुना, “हाँ यार ये तो अपनी ही कालका वाली ट्रेन है !” माथे पर शिकन लाते हुए मैंने पुष्ठी की | “सोते ही रह जायेंगे यहीं, फटाफट चल, दिल्ली का रेलवे स्टेशन है ये, अभी तो प्लेटफार्म भी ढूँढना है”, मुझे डांटते हुए मनीष बोला | हम जल्दी से चद्दर समेटकर यहाँ से पैक-उप करके प्लेटफार्म की तरफ दौड़े | पांच – सात मिनट में हम प्लेटफार्म पर पहुँच गये, जहाँ कालका शताब्दी स्पेशल ट्रेन हमारे इंतजार में खड़ी थी |
हमने C7 कोच ढूंढा और तपाक से अंदर घुस गये | “अरे यार गजब की ट्रेन बुक करवाई है तुमने तो, ऐसे लगता है कि अपन लोग वी आई पी हो गये है, क्या गजब की लक्ज़री ट्रेन है”, अंदर घुसते ही मनीष बोला | “अभी तो सीट देख अपनी, विंडो वाली है, सफ़र का मजा और बढ़ जायेगा”, इतराते हुए मैंने कहा | “वो रही अपनी सीट, आ जा और हाँ विंडो तो भाई की ही होगी तू बाजु में बैठेगा”, कहते हुए वो लपक के सीट पर बैठ गया | मैंने दोनों बैग ऊपर रख दिए और अपना छोटे वाला ट्रैवेल बैग निकाल कर अपनी सीट पर बैठ गया | अब इतनी शानदार ट्रेन में दोनों पहली बार बैठे हैं तो सेल्फियों के दौर का शुरू होना तो लाज़िमी था |
ट्रेन ने हॉर्न बजा दिया और धीरे – धीरे कालका की तरफ़ बढने लगी | कोच में अधिकतर यात्री शिमला और चंडीगढ़ घुमने वाले ही थे | कुछ परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने जा रहे थे तो कुछ नवविवाहित जोड़े अपनी जिंदगी में और एक हसीं लम्हें को जोड़ने हिमालय की वादियों में जा रहे थे | इनको देखकर किंचित मेरा मन भी भाव विभोर हो रहा था कि शायद मेरे हिस्से भी ये लम्हें आयेंगे कभी, बहरहाल अभी तो हम दोनों ही श्रेणी के यात्री नहीं थे, मैं अपनी शिमला जाने की जिद्द पर आया हूँ तो वो अपनी आबो – हवा बदलने के लिए | हमारी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था | सफ़र इतना सुहाना लग रहा है कि बस ये जिंदगी यूँ ही सफ़र में चलती रहे, इस हसीं सफ़र का सिलसिला कभी खत्म न हो | बस एक प्रार्थना कर रहा था इश्वर से कि कालका – शिमला वाली टॉय ट्रेन की टिकट कन्फर्म हो जाये जो वेटिंग में चल रही थी, पता नहीं क्यों मुझे उम्मीद थी कि ऐसा हो जायेगा |
हमारी हँसी – ठिठोली चल रही थी फिर मैंने बैग से मेरे बेस्ट फ्रेंड JBL ब्लूटूथ स्पीकर को निकाल कर सामने रख लिया और थोड़े बिस्किट – सनैक्स भी निकाले | सामने अंग्रेजी अख़बार पड़ा दिखा, तो उसमे सुडूको देखा और उसको भरने लगा | इअर फ़ोन का एक स्पीकर मेरे कान में तो दूसरा मनीष के कान में लगा था और दोनों गानों का लुफ्त उठा रहे थे | “ये देख कोई मेसेज आया है ट्रेन से सम्बन्धित”, मोबाइल में हाथ में थमाते हुए मनीष बोला | “अरे यार ये तो चमत्कार हो गया, ये कालका – शिमला वाली ट्रेन की टिकट के कन्फर्मेशन का लगता है”, मैं खुश होते हुए बोला | “तो क्या अपनी टिकट कन्फर्म हो गयी आगे की !” उत्सुकतापूर्वक मनीष ने पूछा | हम दोनों को ही ट्रेन के बारे में कोई विशेष ज्ञान नहीं था तो दोनों ही इस असमंजस में थे कि क्या हमारी टिकट कन्फर्म हो गयी | मैंने एक दोस्त को कॉल करके अपनी दुविधा साझा की और उसने कहा “बधाई हो भाई, टिकट कन्फर्म हो गयी आपकी, आराम से घुमियों शिमले की वादियों में |” इतना सुनकर हम दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, आज तो ईश्वर ने प्रार्थना स्वीकार कर ली | शायद नियति को भी ये ही मंजूर था की हमारा ये सफ़र एक यादगार लम्हा बन जाये जिंदगी का ताकि जब भी कभी अतीत के पन्नों में झांककर देखे, तो खुशियों के ये मंजर दृष्टिपटल पर जीवित हो उठे | हम दोनों एकदूसरे को ऐसे बधाई दे रहे थे मानो हमने UPSC में सलेक्शन ले लिया हो रहा | किस्मत का ऐसा साथ देखकर अब मन में बिलकुल भी मलाल नहीं था कि मनीष बिना घर पर बताये शिमला जा रहा है |
चंडीगढ़ आया तो मैंने विंडो से इशारा करते हुए मनीष को चंडीगढ़ का रेलवे स्टेशन दिखाया और बताया कि मैं दो बार आ चूका हूँ यहाँ, बहुत खूबसूरत शहर है | “एक बात बताउं भाई, मेरा चंडीगढ़ घुमने का भी बहुत मन कर रहा है”, उत्सुकतापूर्वक मनीष बोला | “हाँ आते वक़्त समय रहा तो जरुर ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी ब्रो, बस अब थोड़ी देर में कालका स्टेशन आ आने वाला है”, मुस्कुराते हुए मैंने कहा |
लगभग आधे घंटे में कालका रेलवे स्टेशन पहुँच गये, हम तुरंत हमारी टॉय ट्रेन की तरफ दौड़े, उसकी रवानगी का समय हो रहा था | ट्रेन के पास छोटी – छोटी दो कतारें लगी थी, सबका तापमान चेक करके ट्रेन में बैठाया जा रहा था | हमारी बारी आई और फिर हम ट्रेन में आकर बैठ गये, देखा ट्रेन सारी खाली पड़ी है | सस्ती टिकट होने के चक्कर में लोग यात्रा रद्द हो जाने पर भी अपनी टिकट कैंसल नही करवाते, ये तो गलत बात है, आप नहीं जा रहे तो प्रतीक्षा में लगे हुए लोगों को मौका दो भाई, आख़िर हमें भी तो ऐसे ही मौका मिला है मेरी सपनों की ट्रेन में बैठने का | टॉय ट्रेन शिमला का एक प्रमुख आकर्षण है जो आपकी यात्रा को और भी खुबसूरत बना देती है | हमने ट्रेन के पास बहुत सारी फ़ोटो खींची, कभी सेल्फी तो कभी पोट्रेट | टॉय ट्रेन में बैठकर शिमला जाना मानों सपने के सच होने जैसा था | कोच खाली होने का ये फायदा था की दोनों को ही विंडो सीट मिल गयी | यहाँ से हमारा वादियों का सफ़र शुरू होने वाला है, अब शिमला दूर नहीं है, “हम आ रहे हैं शिमला |”
वादियों का सफ़र
“अरे अभी तो सफ़र काफ़ी लम्बा पड़ा है, आगे खिंच लेना और फोटो, ऊर्जा बचा के रख देख गाड़ी चलने वाली है अंदर आजा”, खिड़की से झांकते हुए मैंने मनीष को आवाज़ लगाई, बड़े उत्साहपूर्वक कालका स्टेशन के मंजर को मोबाइल में कैद करने में लगा हुआ था | “आया ब्रो, गाड़ी को रोककर रखना तू”, कहते हुए वापस अपनी धुन में लग गया | “ब्रो गाड़ी चलने लग गयी है, और तू सिमरन भी नहीं है कि चलती ट्रेन में मैं तेरा हाथ पकड़कर चढा लूँगा, आजा फटाफट”, मजाक करते हुए मैंने बोला | ट्रेन ने लम्बा हॉर्न दिया और मनीष ब्रो तुरंत गाड़ी में आ गया | “देख मैं गाड़ी चलने के विपरीत दिशा में नहीं बैठूँगा, इसलिए सामने वाली विंडो सीट पर तू बैठ जा और खिड़की से वादियों का लुफ्त उठा”, मैनें सीट की तरफ इशारा करते हुए उसको कहा | “भाई इस सीट पर तो हमारी बैग ही बैठेगी, हम तो दरवाजे में खड़े होकर वादियों को निहारने वाले हैं”, अपनी बैग रखते हुए मनीष बोला | थोड़ी देर बाद वैसे मुझे भी दरवाज़े पर ही जाना था बस गाड़ी थोड़ी चढाई में आ जाए | जैसे ही गाड़ी स्टेशन से चली पीछे वाले कोच में बैठे दिल्ली से आया पांच – सात दोस्तों एक ग्रुप जोर से चिल्लाते हुए सफ़र का आगाज़ करने लगा | ख़ुशी ज़ाहिर करने का अपना तरीका है भई, वैसे भी जब हिमालय में आप आये हो तो इस दुनियादारी को भुलाकर नादानियों का दामन थाम लेना आपकी ख़ुशी में चार चाँद लगा देता है |
मैंने भी इअर फ़ोन लगाए और मोबाइल में अपनी स्पेशल प्लेलिस्ट जो की मैंने दस पहले ही बना ली थी, को शुरू कर दिया, “वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाँहें” शिमला की वादियों का सफ़र और उस पर शहंशाह – ए – तरन्नुम मोहम्मद रफ़ी की तिलिस्मी आवाज़, मेरे सफ़र को और सुहाना बना रही थी | मंजिल और भी खुबसुरत हो जाती है जब सफ़र को हसीं बना दिया जाये | पिछली बार शिमला आया था तब कई बातें अधूरी रह गयी थी वो सब इस बार पूरी कर दूंगा, यही ख्याल लेकर दुबारा शिमला आया हूँ | पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि मेरा कोई तो राबता है हिमालय के आँचल में बसे इन गाँवों से, क्यों मुझे से बरबस अपनी और खिंचते हैं | “तू कहीं और भी तो जा सकता हूँ फिर दुबारा शिमला ही क्यों !” मनीष के इस सवाल के जवाब में केवल इतना ही कह पाया कि बस मेरा दिल भरा नहीं अभी शिमले से, ये वादियाँ मुझे अपने घर जैसी लगती हैं, मानों ये मुझसे कह रही है कि आख़िर घर आ गया तू |
बात ही कुछ ऐसी है हिमालय की रानी शिमला की, ब्रिटिश हुकुमत में गौरों ने भी गर्मी के दिनों का ठिकाना शिमला को ही बना रखा था | ये रेलवे ट्रेक भी ब्रिटिशराज की दास्तां को अपने में समेटे हुए आज भी हिमालय की वादियों में अपनी बाहें फैलाये सैलानियों की सैर को बेहतरीन बना रहा है | यूनेस्को ने इस ट्रेक को विश्व धरोहर में शामिल करके इसकी शान को और बढ़ा दिया है | ख्वाहिश तो ये भी थी कि बर्फबारी में हिमालय जब सफेद चद्दर ओढ़ ले और मैं इस गाड़ी से बस उसको निहारता जाऊं लेकिन अभी मेरी ये ख्वाहिश ख्यालों तक ही सिमित रह गयी | अक्सर जनवरी के शुरुआत में आप इस नायाब सपने को हकीक़त में जीने का लुफ़्त उठा सकते हो, मैं थोडा जल्दी ही आ गया |
गाड़ी अब चढाई में आ गयी यहाँ से नज़ारों का भरपूर आनन्द लिया जाना चाहिए और मुझे भी अब दरवाज़े पर जाना होगा | “थोड़ी जगह दे दे मुझे, तेरे पास खड़ा हो जाऊं मैं”, गुनगुनाते हुए मैं मनीष के पास जाकर गाड़ी के दरवाजे में खड़ा हो गया | ट्रेन के समान्तर घुमावदार सड़क पर दौड़ती गाड़ियाँ, अनन्त तक फैला विशाल हिमालय ही हिमालय, रास्ते में गाड़ी को देखकर टाटा करते हुए बच्चे यकायक ध्यान को आकर्षित कर लेते हैं | गाड़ी को देखकर उन बच्चों के चहरे की उस मासूम ख़ुशी को भुला देना सहज नहीं, वो नि:स्वार्थ, निश्छल मुस्कान आज भी मेरे ध्यान को उन वादियों में बरबस खींच ले जाती है |
सैंकड़ो छोटी बड़ी अँधेरी सुरंगों से निकलकर, पहाड़ों की वादियों में अपने हौर्न का नाद करते हुए गाड़ी जैसे – जैसे आगे बढ़ रही थी मेरा मन बस पहाड़ों की इन वादियों में रमता जा रहा था | यकायक एक बड़ा ही हास्यास्पद मंजर देखने को मिला, बाहर एक आदमी गाड़ी के आगे हाथ का इशारा करता है और चलती गाड़ी में हमारे वाले कोच जो कि पहला कोच ही था गाड़ी का, दरवाजे पर लगे डंडे के सहारे चढ़ आया इस नज़ारे को देखकर हम दोनों की हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि अब तक तो सोशल मिडिया पर ऐसे “मीम” ही देखें थे कि लोग चलती ट्रेन के आगे हाथ देकर चढ़ जाते हैं, यहाँ तो सारी घटना साक्षात् देखने को मिल गयी | आज भी जब इस बात को याद करता हूँ तो हँसने लगता हूँ | जब कभी भी मनीष से फ़ोन पर बात होती है और शिमला का जिक्र हो तो इस फलसफे का जिक्र हुए बिना नहीं रहता |
इस दौरान सफ़र को तस्वीरों के रूप में मोबाइल में कैद कर लिया | रास्ते में कई सारे छोटे – बड़े स्टेशनों से गुजर कर गाड़ी बरोग (बड़ोग) स्टेशन पर आ पहुंची | गाड़ी को रोककर चालक बंदु भी उतर आया | “भैया कितनी देर रुकेगी यहाँ”, आवाज़ लगते हुए मैं गाड़ी से उतर आया | “चाय – नाश्ता कर लो आराम से, पन्द्रह – बीस मिनट यहीं रुकेंगे”, बड़े ही सहज भाव से उन्होंने कहा | इन पहाड़ियों के लहजे की सरलता और बोली में मिठास को महसूस किया मैंने | “क्या बोला, कितनी देर रुकेगी यहाँ”, पूछता हुआ मनीष भी पास आ गया | “ब्रो खायेंगे, पियेंगे और मौज उड़ायेंगे इस स्टेशन पर, इतनी देर रुकेगी, चल पहले कुछ फोटो ले ली जाए फिर थोड़ी पेट – पूजा करेंगे”, ये कहते हुए मैंने मोबाइल का केमरा चालू कर लिया | ये स्टेशन पुरे सफ़र का सबसे खूबसूरत स्टेशन लगा मुझे, यहाँ के स्टेशनों पर ब्रिटिशकाल की झलक आसानी से देखी जा सकती है | प्रकृति के आँचल में बने ये अनोखे और खूबसूरत स्थानों पर घुमने का मजा तो इस गाड़ी से ही लिया जा सकता है | ये गाड़ी यहाँ का सबसे सस्ता और खूबसूरत साधन है जो आपके सफ़र को मज़ेदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती | यहाँ लगभग आधे घंटे तक ये गाड़ी रुकी, इस बीच हमने हल्का नाश्ता भी कर लिया और खूब सारी फोटो भी इकट्ठी कर ली | दोपहर का शाम से मिलन हो रहा है और सर्दी भी लगने लगी, तो सर पर मफ़लर बांध लिया, क्योंकि जुकाम को न्योता देकर मैं अपने सफ़र के मजे को किरकरा नहीं करना चाहता था | अभी यहाँ से लगभग दो से अढाई घन्टे और लगने थे शिमला पहुँचने में |
साढ़े तीन होते – होते गाड़ी कंडाघाट स्टेशन पर पहुंची, यहाँ पर भी काफ़ी समय रुकी गाड़ी फिर आगे बढ़ी | धीरे – धीरे सूरज ढल रहा है और आसमान में लालिमा छाने लगी | ऊँचे देवदारों के पेड़ों के बीच से सूरज की आती स्वर्ण किरणें इस शाम की ख़ूबसूरती को सूफ़ियाना बना रही है | दिन अब शाम के आग़ोश से निकलकर रात के आँचल में जाने को अग्रसर है, आसमान में पंछी अपने घोंसलों की ओर लौट रहें हैं, रास्ते में छोटे – छोटे समूहों में अपने घरों को प्रस्थान करते लोग |
घुमावदार रास्तों से नाद करती हुई हमारी गाड़ी अब मंजिल के करीब आ पहुंची है | पहाड़ो की ढलानों में बने घर रौशनी से जगमगाने लगे हैं, मानों दिवाली आ गयी हो और दूर तक दीयों की तरह टिमटिमाती रौशनी दिखाई देने लगी | धीरे – धीरे अँधेरा घाटियों से उतरकर घनी वादियों को अपने आग़ोश में भरने लगा है | मैं सीट पर बैठा खिड़की में अपने हाथ पर ठुडी को समाये इस मंजर को अपनी आँखों में उतार रहा हूँ | अब केवल घरों में जलते बल्ब और अँधेरा ही दिखाई पड़ रहा है और ट्रेन की चलने की आवाज़ें ऊँची होने लगी है मानों अब ये मुझे अलविदा कह रही है और बता रही है कि तुम्हारे जैसे ऱोज कितने ही लोग अपने सपनों को जीने मेरे साथ सफ़र करते हुए मुझे अपनी यादों में बसाकर आगे चले जाते हैं, ऱोज सैंकड़ो मुसाफ़िरों की हमसफ़र बनती हूँ और शाम होते – होते फिर तन्हां रह जाती हूँ इस उम्मीद में कि कल कोई और आयेगा अपनी ख्वाहिशों को जीने, और अगले दिन फिर उसी जोश के साथ बन जाती हूँ फिर किसी की हमसफ़र | ढ़लती शाम और अँधेरे के बीच हम पहुँच गये शिमला और आज तो क्रिसमस की रात है, इस रात को यादगार बनाने का सफ़र अब शुरू होता है |
क्रिसमस की रात
गाड़ी शिमला के रेलवे स्टेशन पर पहुँच गयी सभी यात्री उतरकर प्लेटफार्म से बाहर जा रहें हैं लेकिन हमें जल्दी नहीं है बाहर जाने कि और वैसे भी हमने कोई होटल भी तो बुक नहीं करवा रखा था, अभी तो उसके लिए भी ख़ूब भटकना पड़ेगा, क्रिसमस का सीजन जो चल रहा है, होटल के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी हमें | बिना इस बात की परवाह किये हम दोनों प्लेटफार्म पर लगी रेलिंग के पास खड़े थे और वहां से हिमालय की रानी शिमला के उन नयनाभिराम मनोरम दृश्यों से, बरसों से इस मंजर की प्यासी आँखों की प्यास को बुझा रहें थे |
“घरों में जलती लाइट को देख कर ऐसा लगता है कि मानों दिवाली है आज, देख कैसे जगमगा रहा है हिमालय”, आँखों में एक चमक लिए इस मंजर को निहारते हुए मैंने मनीष से कहा | “भाई मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं शिमला में हूँ इस वक्त, मेरे लिए तो ये एक सपने जैसा है”, मुस्कुराते हुए उसने मुझसे कहा | हम दोनों इस खूबसूरत मंजर को देखने में व्यस्त थे कि एक ट्रेन प्लेटफार्म पर धीमी गति से गुजर रही थी फिर क्या था बचपन के दिन याद आ गये और हम दोनों दौड़कर उस गाड़ी में चढ़ गये मनीष पहले दरवाजे में चढ़ गया और बन गया मनीष से राज और मेरी तरफ़ हाथ बढ़ाकर चिल्लाने लगा “भाग सिमरन भाग, बाबूजी आ जायेंगे”, हहाहहहा अगर कोई तीसरा होता तो आज क्या कमाल क्या शानदार स्लो मोशन वीडियो बनता | हम दोनों धीरे – धीरे चलती उस गाड़ी बचपन की तरह नादानियोँ कर रहे थे कि किसी अफ़सर को आते देख उतर गये और चल पड़े निकास की तरफ़ |
“ट्रेन में तो मजे ले लिए बस अब जल्दी से कोई कमरा मिल जाये तो मॉल रोड पर जाना है ब्रो, आज की रात हाथ से निकलनी नहीं चाहिए”, मनीष से रास्ते में चलते हुए बतिया रहा था | अब दोनों इधर – उधर भटक रहें हैं कि कोई होटल-कमरा कुछ मिल जाए, आसान नहीं है इस सीजन में तो पहले से ही बुकिंग करवानी पड़ती है | तकरीबन 20 मिनट हो गये ऐसे भटकते हुए, कभी ऊपर चढ़ो – कभी नीचे उतरों, पहाड़ों के ढलानों वाले रास्ते हमे थकाने लगे | “चल यार मनीष चाय पीते हैं उस दुकान, उसी से पूछते है कोई डोरमेट्री मिल जाएगी शायद”, एक दुकान की तरफ़ इशारा करते हुए मैंने कहा | “भाई साब लो चाय पिला दो, काफी ठण्ड हो गयी, बर्फ पड़ने की सम्भावना है क्या ?”, वार्तालाप को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने चाय वाले भाई से कहा | “दो चाय बनाना, हाँ वैसे ऊपर वाले इलाके में थोड़ी – थोड़ी होने लगी है तो यहाँ भी होने की सम्भावना है, चाय के साथ और कुछ लोगे ?”, बड़ी सहजता से उन्होंने पूछा | “चाय ही पिला दो, वैसे भी खाने का टाइम हो गया, कोई होटल या डोरमेट्री मिल जाए तो बात बन जाये, है क्या आपकी नजर में कोई ?” बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा | उन्होंने कॉल करके एक डोरमेट्री वाले बन्दे को बुला दिया, फिर वहां से चाय पीकर और एक पानी की बोतल भरवाकर हम डोरमेट्री देखने चल पड़े जो की थोड़ी नीचे की तरफ थी |
“देखो बाबूजी ये है अपनी छोटी – सी जगह, दस बिस्तर है अपने पास, अभी एक भी बुक नहीं हुआ है, सीजन चल रहा है दो घंटे तक सारे बुक हो जायेंगे, आपको किसी तरह की समस्या नहीं होगी यहाँ, ओढने के लिए कम्बल मिल जाएगी नहाने के लिए गर्म पानी”, एक ही बार में अपनी बात खत्म करते हुए अंकल ने हमसे कहा | हमने भी सोचा चलो वैसे भी केवल रैन-बसेरा ही तो करना है, बाकि दिन में तो बाहर ही घूमना है | डोरमेट्री को बुक करवाकर हम खाने के लिए वापस ऊपर आ गये |
पहले का अनुभव था इसलिए हल्के खाने के तौर पर दाल – रोटी और दही ही लिया खाने में ताकि शरीर का संतुलन बना रहे | फिर यहाँ से सीधे निकल पड़े मॉल रोड के लिए कोविड की वजह से देर रात तक घूमने पर भी मनाही थी | मॉल रोड पर पहुंचे तो वहां की रंगत देखकर रस्ते की सारी थकान भूल गये | “गजब ब्रो क्या मस्त जगह है यार कसम से मज़ा आ गया”, कहते हुए मनीष का चेहरा खिलखिला उठा | वहां पहुँच कर सबसे पहले तो उस जगह फोटो खिंचवायी जहाँ पिछली बार आइसक्रीम खाते हुए खींची थी | बहुत ही दिलकश नज़ारा था यहाँ का, मेरा मन पिछली बार जो देखा उसको आज से तुलना करने लगा कि क्या कुछ बदला | रात को यहाँ से पहाड़ों का दृश्य अद्भुत और अनुपम है | ये मनुष्य की इच्छाशक्ति और प्रकृति के असीम स्नेह का एक ख़ूबसूरत संयोग है कि इन दुर्गम पहाड़ों में भी जीवन सामान्य की भांति फल – फूल रहा है |
क्रिसमस की रात के साथ – साथ आज भारत माँ के बेटे श्री अटल जी की जयंती भी है आज, यहाँ पर वाजपेयी जी की मूर्ति बनी हुई है जहाँ पर कई लोग इक्कठे हो रखे हैं | बहुत हर्षोल्लास के साथ वाजपेयी जी का जन्मदिन मनाया जा रहा है, फूलों और रंग बिरंगी लाइट की सजावट हर किसी के लिए फोटो पॉइंट बना हुआ था | रेलिंग को फूलों की माला से से सजाया हुआ था जहाँ पर लोग इंतजार कर रहे थे फोटो खिचवाने के लिए अपनी बारी का, जिनमे हम भी एक थे | दिसम्बर महीना अंतिम चरण पर था इसलिए सर्दी भी अपने चरम की और अग्रसर थी | सर्दी का पूरी तरह से बन्दोबस्त किया हुआ था हम दोनों ने | “एक काम तुमने बहुत बढ़िया किया है ब्रो, ये स्क्रीन टच वाले दस्ताने ला कर, नहीं तो इतनी ठंड में फोटो खींचने के लिए बार – बार इनको उतराने में बड़ी दिक्कत होती”, उसकी फोटो खींचते हुए मैंने मजाक में बोला | “अरे ब्रो, मुझे मालूम था पहले से ही की इनकी बहुत जरूरत पड़ेगी”, अब इतराना तो उसका लाज़िमी था ही | यहाँ से आगे बढ़े यहाँ के मशहूर क्राइस्ट चर्च की ओर जहाँ पर सबसे ज्यादा भीड़ लगी हुई थी |
चर्च को दुल्हन की तरह सजाया हुआ था, लेकिन कोरोना की वजह से अंदर जाने की अनुमति नहीं थी | सभी लोग बाहर से ही यहाँ का लुफ्त उठा रहे हैं, अब तो हम भी भीड़ का एक हिस्सा हैं | कभी खुद को तो कभी चर्च को हम मोबाइल में कैद करने लगे | यहाँ पर काफी समय बिताया | यहाँ की फ़ोटोबाज़ी खत्म करके हम चर्च के बाजु से ऊपर की तरफ चले गये जहाँ से पूरी मॉल रोड का नज़ारा देखा जा सकता है | शान से हिमालय की वादियों में लहराता देश का तिरंगा मॉल रोड की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है |
देर रात तक यहाँ रुकने की अनुमति नहीं होने के कारण अब यहाँ से लौटने का समय होने लगा था | हम दोनों मजे करते हुए वापस लौट रहे थे की अचानक पान की दुकान पर नज़र पड़ी, पान की पेशकश बहुत ही अच्छे ढंग से की जा रही थी | “क्यों न एक – एक पान खाया जाए”, मनीष ने प्रस्ताव दिया | पान इतना स्वादिष्ट था कि फिर हमने एक की जगह दो – दो पान खाये | पान मुहँ में रखकर हम वापस नीचे की तरफ लौट आये | दाद देनी पड़ेगी मनीष की यादास्त की वाकई में वो जिस रस्ते से एक बार गुजर जाता है उसको भूलता नहीं और एक मैं हूँ जो दूसरी बार यहाँ आ रहा हूँ फिर भी रस्ते याद नहीं रहते, इसी बात पर हँसी – ठिठोली करते हुए हम अपनी डोरमेट्री पर पहुँच गये |
“घूम आये बाबूजी मॉल रोड, कैसी लगी”, कमरे में हमारा अभिवादन किया डोरमेट्री वाले चाचा ने |
“बहुत अच्छी जगह है अंकल जी, सारे बेड बुक हो गये आपके”, बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा |
“हां जी सर, सीजन का टाइम है तो हो ही जाते है, बाकि रोज – रोज तो ऐसा होता नहीं”, बड़ी शालीनता से, बीड़ी का सुट्टा लगाते हुए अंकल ने कहा |
“अच्छा अंकल जी, यहाँ बर्फ कब पड़ने के आसार है, कोई सम्भावना है क्या ?” मैंने उत्सुकता से पूछा |
“बाबूजी ऊपर की तरफ तो पड़ने लगी थोड़ी – थोड़ी, यहाँ भी
3-4 रोज में पड़ने लग जाएगी, पिछली साल बहुत बर्फ थी यहाँ भी, मोबाइल में दिखाता हूँ आपको |”
हमने मोबाइल में पिछली साल की कई तस्वीर देखी, जिनको देखकर मैंने मनीष से कहा कि यार काश कल ऐसा ही देखने को मिले हमें भी |
“तो बाबूजी कल कहाँ घुमने का विचार है आपका, यहीं आसपास ही या कहीं दूर ?”,अंकल ने पूछा ताकि वो ये पहचान सके कि कल भी यहाँ रुकेंगे ये लोग या चले जायेंगे |
“पिछली बार आया था तो दूर – दूर घूम लिया था केवल शिमला ही बाकि रह गया था इसलिए इस बार तो शिमला में ही घुमने का विचार है अंकल जी, सोच तो रहे हैं कि कल जाखू टेम्पल और लकड़बाजार घुमा लिया जाए |”, अब तक मैं अपनी रजाई में पहुँच चूका और वहीँ से वार्तालाप चल रहा था |
ऐसे ही बातें करते – करते मैं और मनीष फिर मोबाइल में आज खींची गयी सारी तस्वीरें देखने में व्यस्त हो गये | कल सुबह जाखू के बजरंग बली के दर्शन की योजना बनाकर हम अपने अपने मोबाइल में खो गये | दिनभर सफ़र की थकान थी लेकिन उत्साह ऐसा कि अभी नींद भी नहीं आ रही | मोबाइल में सुबह का अलार्म लगा कर सोने की कोशिश करने लगा, कल के प्लान को सोचने लगा और धीरे – धीरे पता नहीं चला कब आँख लग गयी |
जाखू के वीर हनुमान
अलार्म बजा, नींद टूटी आदतन अलार्म काटकर फिर से सोने लगा, और वापस सपने को याद करने लगा | कितना अच्छा सपना था, जब भी घर से इतनी दूरी होती है, माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है | “कितना सोयेगा यार, अलार्म भी बज गया, उठ जा अब तो”, मनीष बडबडाया | वो अपने मोबाइल में लगा हुआ था, काफी जल्दी उठ गया था | “क्या आधी आँख खोलकर देख रहा है, अभी वाशरूम खाली है, हो आ तू चलना भी तो है फिर”, डांटते हुए उसने कहा | “लो बाबूजी गर्म पानी, दूसरी बाल्टी में खाली करके ये बाल्टी वापस दे दो ताकि इसमें और हो जाये गर्म पानी”, हाथ में बाल्टी लटकाए हुए अंकल आये अंर | डोरमेट्री के अपने संघर्ष हैं |
तकरीबन साढ़े नौ बजे हम यहाँ से निकल गये | आज केवल जाखू मन्दिर और लकड़बाज़ार ही घूमना है तो समय काफी था हमारे पास, इसलिए हमने तय किया कि पैदल ही चलेंगे जाखू | चाय पीने और शुक्रिया अदा करने वापस उसी दुकान पर आये जहाँ से कल रात हमें ये डोरमेट्री मिली थी | चाय पीकर ऊपर माल रोड की तरफ बढ़े, सीढियों में लगे बाज़ार और छोटी – छोटी दुकानों के खुलने का समय हो रहा था, कुछ पर ग्राहक थे तो कई अभी खोली जा रही थी | एक घड़ी – चश्में की दूकान पर हम रुक गये और एक चश्मा खरीद लिया जो कि आगे फोटोशूट में बड़ा काम आने वाला था | यहाँ से आगे बढ़े तो और एक दुकान पर मास्क देखकर रुक गये, “मास्क लेते हैं यार, N-95 से परेशान हो गया” हम दोनों अपनी राजस्थानी भाषा में बाते कर रहे थे कि दुकान वाले भाई साब बोले, “आप, शेखावाटी से आये हो क्या ?”
“हाँ भाई साब, आपको मारवाड़ी आती है !”, मुस्काते हुए मैंने कहा |
“शेखावाटी में कहाँ से आये हो, नीमकाथाना जानते हो क्या”, वो बोले
“हाँ जानते हैं, पास ही है, आप कैसे जानते हो”, ताजुब करते हुए मपूछा मैंने
“फिर तो खंडेला भी जानते होंगे, मैं वही का ही हूँ”, मुस्काते हुए वो बोले
हंसते हुए कहा मैंन, “खंडेला वाली भाषा बोलकर बताओ, आप तो हिंदी बोल रहे हो”
मुस्कुराते हुए वो बोले, “बठ्या को ही छुं मैं” (और हम तीनों हँसने लगे)
“मेरा गाँव और इसका ननिहाल खंडेला ही है”, मनीष बोला
उनसे काफी देर बात हुई हमारी, उन्होंने चाय-पानी के लिए कहा और बोला कि रूम आदि की समस्या हो तो बताये दूसरे की व्यवस्था कर देंगे | उनको साधुवाद कर शाम को आते वक़्त मिलने का कहकर आगे चल पड़े | अच्छा लगा जब बाहर देश में अपने गाँव का कोई मिलता है तो, साथ ही में हँसी मजाक के लिए एक टॉपिक भी मिल गया | “भाई शिमला में तुझे मामा और मुझे काका मिल गया”, मजाक करते हुए मनीष बोला और हम दोनों जोर से ठहाके लगाने लगे |
शिमला के बाज़ार को देखकर लग रहा था कि जैसे मेले में आ गया हूँ | कई छोटी – बड़ी दुकाने ज्यादातर कपड़ों की थी | बाज़ार की उन गलियों में हम एक दुसरे की फोटो क्लिक करते हुए और स्थानीय लोगों से जाखू मन्दिर का रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ रहे थे | देखा कि सामने से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपनी पीठ पर बहुत सारी प्लास्टिक की केरेट को लादे हुए बहुत ही आराम से आ रहा था, इस नजारे को देखकर हम दंग रह गये कि इनती उम्र का आदमी और इतना वजन उठा रहा है, हम लोग तो इसका चौथा हिस्सा भी उठाये तो पसीने छूट जाए | वाकई में पहाड़ी लोग बहुत मेहनती होते हैं इसका उदाहरण मिल गया था मुझे और ये तो अभी शुरुआत थी आगे भी ऐसे कई लोग दिखे, सलाम है इनको |
रास्ते में जहाँ भी अच्छी जगह दिखी वहां पर इत्मीनान से तस्वीरें खींची आख़िर पैदल आने का मकसद भी तो यही था जिसका कि हम भरपूर लाभ उठा रहे थे | रास्ते में एक अच्छा मकान देखकर रुक गये, मनीष तपाक से अंदर चला गया | “अरे क्या कर रहा है”, ताजुब करते हुए मैंने पूछा | “भाई फोटो खींच ले मेरी इसकी सीढियों से उतरते हुए की, ताकि मैं ये कह सकू की इस होटल में रुके थे हम, डोरमेट्री के बारे में थोड़ी ना लोगों को बतायेंगे”, हंसते हुए वो बोला |
फिर क्या था अंदर का फोटोग्राफ़र और बच्चा दोनों जग गये | उस मकान के सामने हमने तस्वीरें खींची | रास्ते में कई जगह हमने खूब सारी तस्वीरें खींची कभी मकानों के आगे तो कभी किसी की कार के आगे, कभी बंदरो के साथ तो कभी सड़क से लगी रेलिंग के सहारे | बस ऐसे ही हंसते – खेलते हम जाखू मन्दिर के पास पहुँच गये | सामने चाय वाली दूकान को देखकर चाय की तलब लगी साथ ही में आलू – टिकिया का भी आनन्द उठाया | थोड़ी दूर नज़र घुमाई तो एक पाईप से पानी गिरता दिखा शायद टू – वेल का पाईप था, हाथ – मुंह धोने चले गये | वहां जाकर देखा तो शानदार जगह लगी, फिर क्या था आधे घंटे तक तस्वीरों और स्लो – मोशन का सिलसला चलता रहा |
फिर यहाँ से निपटकर मन्दिर की सुध ली | सीढियों से होते हुए हम मन्दिर के परिसर में आ गये | दूर से दिखाई पड़ने वाली हिमालय की वादियों में बनी हनुमान जी की ये मूर्ति लगभग 100 फीट की जान पडती है | मन्दिर परिसर में कई लोग घूम रहे थे, हर कोई अपनों के साथ इस भव्य मंदिर में अपने जीवन के पलों का आनन्द लेने में व्यस्त था | स्थानीय मान्यता है कि जब हनुमान जी हिमालय से संजीवन बूटी लेने आये थे तब यहाँ विश्राम किया था | अगर आप शिमला आओ तो जाखू मन्दिर जरुर आना, मन को शांत करने वाला यहाँ का वातावारण आपको मन्त्र मुग्ध कर देगा | हमने मंदिर परिसर में कई तस्वीरें खींची जैसा कि हम करते आ रहे थे अब तक, कभी हनुमान जी की तो कभी वादियों की |
पिछली बार मेरा शिमला आकर भी जाखू मंदिर नहीं आने का मलाल इस बार सबसे पहले यहीं आकर दूर हो गया और मन ही मन हनुमान जी से जल्दी ही दुबारा मुलाकात का वादा भी कर आया | यहाँ काफी समय बिताया हम लोगो ने अब लौटने का समय हो गया | यहाँ से हमे अब लकड़बाज़ार जाना था | लकड़बाज़ार शिमला की एक बेहतरीन जगह है जहाँ पर घुमने और खरीददारी करने लगभग सभी सैलानी आते हैं |
हम मन्दिर से नीचे उतर आये और शाम होते-होते लकड़बाज़ार पहुँच गये | जैसा कि नाम से ही पता चल रहा इस बाज़ार में हस्तशिल्प की वस्तुएं बहुत मिलती है | हमने भी निशानी के तौर पर कुछ की-चैन और की-होल्डर खरीद लिए जो कि आसानी से हमारी बैग में रखे जा सकते थे | बड़े इत्मिनान से बाज़ार में घुमे | धीरे – धीरे शाम ढलने लगी और अँधेरा होने लगा, फिर से दिवाली की तरह हिमालय की वादियाँ जगमग हो उठी |
बाज़ार से निकल कर हम मॉल रोड आ गये, यहाँ से नीचे उतरने लगे | नीचे लगा बाज़ार भी अब धीरे – धीरे मंगल हो रहा था | मैंने बाज़ार से कुछ कपड़े और स्वेटर खरीदे, शाम का समय था तो थोड़ी बारगेनिंग भी हो रही थी | वैसे तो मेरा सबके लिए कुछ न कुछ खरीदने का मन था फिर भी सोचा कि कल भी इधर आना होगा, इसलिए थोडा बहुत कल के लिए छोड़ देते हैं | हम बाज़ार से निकल कर नीचे आ गये | हम दोनों नया कमरा देखने के लिए इधर – उधर घुमने लग गये | इसी सिलसले में एक बंदु से मुलाकात हुई जो कमरा दिखाने नीचे ले आया | उसी डोरमेट्री के थोडा आगे आ गये जहाँ हम रुके हुए थे | हमे एक होटल में कमरा दिखाया गया लेकिन हमने अब इरादा बदल दिया था | हम अपनी डोरमेट्री चले आये जहाँ पर बैग में खरीदा हुआ सामान रखा और वापस ऊपर लौट आये खाना खाने के लिए |
कल की तरह दाल – रोटी और दही के रूप में हल्का खाना खाकर सैर – सपाटा करते हुए डोरमेट्री लौट आये | बड़ा हो- हल्ला हो रहा है यहाँ क्या बात है ..! हम दोनों ही अचम्भित थे | हरियाणा से आये हुए 6 – 7 दोस्तों का एक ग्रुप यहाँ ठहरा हुआ था | अंकल की तो निकल पड़ी, एक साथ ही सारे बेड बुक हो गये आज तो | रात काफी हो जाने के बावजूद भी इनका हो – हल्ला अभी रुका नहीं था | आसपास सभी बेड वाले परेशान थे लेकिन येलोग अपनी अभद्रता और असभ्यता का परिचय बार – बार दे रहें थे | दो व्यक्ति तो उनमे से सरकारी शिक्षक भी थे, ये पता चलने के बाद तो और भीर अखरने लगे वो लोग | वैसे भी मन विचलित हो रहा था पता नहीं क्यों ऊपर से इनकी हरकतें | मना करने के बावजूद भी बाज़ नहीं आये | विवशता ऐसी कि कुछ कर भी नहीं सकते सिवा नींद आने के इंतजार के | आख़िर देर रात ही सही आँख लग गयी |
सफ़र अधुरा सबक पूरा
“भाई, ओ भाई, उठ ना, माँ (दादी) खत्म हो गयी” मनीष की धीमी लेकिन गम्भीर आवाज़ ने मुझे जगाया |
“सुबह – सुबह मज़ाक मत कर यार, वैसे भी रात को ढंग से नींद नहीं आई” आधी नींद में ही मैंने बोला |
“ये देख अभी पापा का कॉल आया है”, मोबाइल में दिखाते हुए वो बोला |
अब मेरी नींद उड़ गयी थी, “कब हुआ ये सब, तुमने मामा से क्या कहा…!”, मैंने पूछा |
मनीष – “आज सुबह लगभग 5 बजे के आस पास, मैंने तो बोला कि मैं जयपुर हूँ”
मैं – “अच्छा, फिर थोड़ी देर बाद वो दुबारा नहीं पूछेंगे कि कहा तक पहुँच गया तब क्या बोलेगा …!”
मनीष – “फिर अब क्या करें”
मैं – “अभी कॉल कर उनको, और बोल कि मैं तो शिमला हूँ”
पांच – सात मिनट के वार्तालाप के बाद हम डोरमेट्री से बाहर आ गये, बाहर आकर मनीष ने अपने पापा यानि मेरे मामा को कॉल किया, पता था कि अब बहुत डाट पड़ने वाली है | लेकिन जिसकी माँ का अभी – अभी देहान्त हुआ हो और अभी दाह – संस्कार भी नहीं किये हो, उस व्यक्ति की मानसिक हालत क्या होगी, ऐसी विषम परिस्थिति में भी खुद को संतुलित रखना कितना मुश्किल है | मामा ने फोन पर बस थोड़ा ही कहा और कॉल कट कर दिया, शायद यही परिपक्वता होती है | लेकिन अब मनीष की चिंता और बढ़ गयी, बोला कि पापा ने उम्मीद से कम डांटा, ये तूफ़ान से पहले की शांति है यार |
हम अंदर आ गये, और वापस लौटने के लिए बस आदि ऑनलाइन सर्च करने लगे | “मेरी वजह से तेरा ट्यूर और खराब हो गया, यही सोच रहा होगा न कि किस को साथ ले आया यार”, मनीष ने ग्लानी के भाव से अपनी व्यथा सुनाई | “ऐसा कुछ नहीं है, होनी थी और हो गयी”, मैंने कहा | हम जल्दी ही घर पहुंचना चाहते थे लेकिन इतनी दूर से सम्भव नहीं था कि दाह – संस्कार से पहले पहुँच जाए | तुरंत हाथ – मुँह धोकर डोरमेट्री से निकले और चंडीगढ़ की बस पकड़ी | उल्टियाँ होने के डर से पहाड़ों में बस का सफ़र बिलकुल नहीं करना था, इसलिए कुछ भी बिना खाए बस में बैठा |
“पापा से सब पूछेंगे कि सारे रिश्तेदार आ गये, मनीष तो जयपुर ही था फिर क्यों नहीं आया, दादी के पास सभी पोते – पोतियाँ हैं, केवल मैं ही नहीं हूँ, अच्छे बदनाम हो गये रिश्तेदारों में, पहले से ही सी. ए. की परीक्षा पास नहीं होने के कारण खूब ताने मारते हैं, अब तो जीने नहीं देंगे, मम्मी – पापा को मेरी वजह से ये सब सुनना पड़ेगा”, मनीष ने अपनी चिंता जाहिर की | “मेरे साथ भी तो यही होगा यार, ननिहाल में मुझे कम ही लोग जानते हैं, अब तक तो वायरल हो गया हूँगा मैं, कि रामेश्वरी जीजी का बेटा गया है साथ में”, हम दोनों अपनी चिंताए जता रहें थे |
बस थोड़ी दूर ही चली थी कि मेरा जी ख़राब होने लगा, पेट में कुछ था नहीं फिर भी उल्टी होने लगी, बस खाली थी तो दूसरी सीट पर खिड़की की तरफ बैठ गया और सोने की कोशिश करने लगा | लेकिन विचारों में तो नानी का अक्ष छाने लगा | सोचा था कि शिमला से आकर सीधा उनके पास जाऊंगा, कई दिन हो गये मिले हुए | माँ तो पहले ही गुजर चुकी थी, आज ऊपरवाले ने नानी को भी बुला लिया, मेरी मांओं के पीछे ही क्यों पड़ा है ये ! रह – रह के नानी की बातें याद आ रही थी, उनकी डांट, उनका प्यार उनके एक हाथ के वो दो अंगूठे जो मेरे बचपन में सबसे बड़ा सवाल था, सब आँखों में तैरने लगे | दिल भरना लाज़िमी था, आँखें आंसुओ को और नहीं रोक पाई, अश्रु – धारा गालों पर लुढक आई | आँखे जलने लगी अब तो सिसकियों के साथ रोने लगा | कैसा मंजर है ये, मेरे कंधों को उनकी अर्थी भी नसीब नहीं हुई | कम से कम मुझे फ़ोन पर तो बात कर ही लेनी चाहिए थी एक बार, रह – रह की यही बात चुभ रही थी | नानी को यादों में लिए शिमला से चंडीगढ़ आ पहुंचा |
सबसे पहले रात को जहाँ से बस मिलनी थी उसी के पास के होटल में कमरा बुक करवाया | उल्टी होने के कारण भूख भी लगी हुई थी, चंडीगढ़ के आई. एस. बी. टी. बस डिपो पर नजरें दौड़ाई तो एक होटल दिखा, अब तक का सबसे घटिया बर्गर और चाय पी वहां | फिर बाहर निकले यहाँ से तो सड़क के किनारे छोले – कुलचे वाला दिखा तो रहा नहीं गया, पेट भरके खाए और होटल की और निकल गये |
मैं – “तुझे चंडीगढ़ देखने की इच्छा थी न ब्रो, देख हम चंडीगढ़ में हैं, लेकिन दिल में दोनों के ही ख़ुशी नहीं है, सोचा था क्या इस हालात में चंडीगढ़ आयेंगे”
मनीष – “भाई, काश में चंडीगढ़ देखने की इच्छा ही न रखता तो शायद ऐसा नहीं होता न…!”
होटल पहुँचकर पहले गीजर में पानी गर्म किया और मैं नहाने चला गया | बाथरूम से नहाकर बाहर आया तो मनीष बोला, “पता है मुझे आठ – दस दिन पहले एक सपना आया था कि हम दोनों चंडीगढ़ में किसी होटल में हैं, और मैं नहाकर आ रहा हूँ और तू बोल रहा है कि थर्मल पहन ले, ठण्ड बहुत है, ये सपना अब हकीक़त बन गया भाई”
मैं – “तुमने मुझे तब क्यों नहीं बताया इस बारे में, ये इशारा था कि नानी बीमार है और तुम लोग मत जाओ”
मनीष – “मुझे क्या पता था कि ऐसा होगा, तब बताता तो कौनसा प्रोग्राम कैंसिल कर देता”
मैं – “तभी अपने साथ सब ठीक हो रहा था, वेटिंग टिकटे क्नर्फ्र्म हो रही है, आसानी से बजट में डोरमेट्री मिल रही है, हम इसको अच्छी किस्मत मान रहे थे, और ये सब तो हमारी बुरी किस्मत का कमाल था”
मनीष – “बुरा वक्त आता है तो पहले सब ठीक होने लगता है फिर एक जोरदार झटका देता है और सब खत्म”
नहा – धोकर दोनों ने थोड़ा आराम किया, थोड़ी देर बाद आँख लग गयी | शाम को उठकर बाहर जाकर थोडा हल्का – फुल्का खाना खा आये, बस का समय हो गया, होटल से चेक – आउट करके बस में आकर बैठ गये | जितना उत्साह आते समय था उससे कहीं जाता दुःख और उदासी लौटते समय हो रही थी | रेल की सारी टिकट कैंसिल करवाकर बस में यूँ जाना पड़ेगा सोचा ही नहीं था | हम दोनों के संवाद मानो जैसे खत्म से हो गये हो, बस केवल औपचारिकता जैसा ही रह गया | मायूसी दोनों के चहरों पर साफ दिखाई पड़ रही थी | बस हवा से बातें कर रही थी, रह – रहकर नींद टूट रही थी और बेचैनी बरकरार थी |
जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं और फिर केवल पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | जीवन तो ऐसा सफ़र है जिसकी कोई टिकट नहीं है, केवल मंजिल को पाने के लिए हम लोग सफ़र का लुफ्त उठाना भूल जाते हैं | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया | मेरे अधूरे सफ़र की दास्तां एक मुक्क्मल सीख पर खत्म करता हूँ |
धन्यवाद