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THE HOLY TOUR & TRAVEL OF TEMPLES IN INDIA

Association of Godhead

Posted on May 26, 2021May 27, 2021 By Pradeep Sharma

भगवान् का सानिध्य

महाभारत के समय की एक कथा के अनुसार एक बार अर्जुन कृष्ण के यह कदली वन में पूजा हेतु फूल तोड़ने के लिए जाते है। जेसे ही धनंजय कदली वन में पहुच कर फुल तोड़ना सुरु करते है।  पीछे से एक वृद्ध वानर(हनुमान) आवाज देता है- “ऐ भाई क्या कर रहे हो ?

अजुर्न जवाब में कहता है- “फुल तोड़ रहा हु”

वृद्ध वानर(हनुमान): क्यों तोड़ रहे हो

अर्जुन: पूजा करनी है इसलिए फुल तोड़ रहा हु।

वृद्ध वानर(हनुमान): “अरे भाई फुल तोड़ने से पहले कम से कम पूछ तो लीजिये” एक तो आप अच्छे काम के लिए फुल तोड़ रहे हो तो चोरी करने की बुराई क्यों लेते हो? भलाई के काम में बुराई का सहारा क्यों? पूछ तो लेते फुल तोड़ने से पहले।  खेर छोडिये किनकी पूजा के लिए फुल तोड़ रहे हो ? अर्जुन जवाब में कहते है मेरे प्रभु श्री कृष्ण के लिए।

वृद्ध वानर(हनुमान) हसते हुए कहते तब ठीक है तोड़ लीजिये फुल, जिसका भगवन खुद चोर हो भला भक्त भी क्या करेगा।

इस बात से एकाएक अर्जुन थोड़े से क्रोधित हो जाते हैं और उपहास करते हुए बोलते हैं तो तुम्हारे भगवान में कौन सी खास बात थी।  वानरों का साथ लेकर के एक पूल बनाया अगर दम होता तो पूल अपने तीर से ही बना देते अपने धनुष बाण का क्या उपयोग किया फीर ?

वृद्ध वानर(हनुमान) इस बात पर कहते हैं कि- तो क्या तुम अपने धनुष बाण से अथवा तीर से पुल बना सकते हो? 

अर्जुन बोला हां बिल्कुल मैं अपने धनुष बाण तीर से पुल बना सकता हूं।

वृद्ध वानर(हनुमान) ने कहा कि मेरे प्रभु श्री राम ने जो पुल बनवाया उस पर हम सभी वानर और हमारी सेना चलकर लंका गए किंतु तुम्हारे पुल से मैं एक ही व्यक्ति गुजर जाऊं और पुल ना टूटे तब मैं समझूंगा कि तुम महागुणी हो।  और तब में हारा ओर तुम जीते अन्यथा ऐसा न होने पर तुम क्या करोगे?

इस बात पर अर्जुन अपने क्षत्रिय धर्म को आगे रखकर वचन देता है कि यदि पुल टूट गया तो मैं अग्नि में स्वयं को स्वाहा कर लूंगा।

वृद्ध वानर(हनुमान) अर्जुन को वचन देते हैं कि यदि वह हारे तो वह भी अर्जुन जो कहेंगे करने को तैयार होंगे।

फिर क्या था अर्जुन ने मंत्र जाप किया और अपने धनुष बाण को हाथ में लेकर तीर को प्रत्यंचा पर चढ़ाया और एक विशाल पुल का निर्माण कर दिया।

देखते ही देखते वृद्ध वानर(हनुमान) ने अपने शरीर के आकार को असंख्य गुना बड़ा कर लिया फिर क्या था अर्जुन ने जैसे ही वृद्ध वानर(हनुमान) के विशालकाय शरीर को देखा अर्जुन का अहंकार टूटा सा दिखाई पड़ा जैसे ही वृद्ध वानर(हनुमान) ने अपना एक पैर उस पुल पर रखा वह पुल धराशाई हो गया।  पलट कर जब देखा तो अर्जुन दिखाई नहीं पड़ रहा था।

क्षत्रिय धर्म के वचन अनुसार अर्जुन स्वयं को अग्नि में स्वाहा करने की तैयारी में जुट गया।

कहानी कोई नया मोड़ लेती कि संपूर्ण दृष्टांत भगवान श्री कृष्ण अपने अंतर्मन में देख रहे थे और वह एक ब्राह्मण का वेश धारण करके वहां पहुंच गए और वृद्ध वानर(हनुमान) से कहा कि क्या कहानी का वृतांत है।  तब वृद्ध वानर(हनुमान) ने कहा कि यह व्यक्ति जो कहता है कि मेरे प्रभु श्री राम मैं कोई गुण नहीं था और उन्होंने वानरों की सहायता से पुल बनवाया और मैं अपने तील कौशल से पुल बना सकता हूं लेकिन इनके तीन कौशल से बना पुल मेरे एक पांव रखते ही टूट गया और अब यह अपने वचन अनुसार अग्नि में स्वयं कुशवाहा करेंगे

किंतु भगवान का सानिध्य अनन्य होता है भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण के वेश में वृद्ध वानर(हनुमान) से कहते हैं जब दो व्यक्ति किसी संवाद में होते हैं या किसी विवाद में होते हैं तो निर्णय सदा तीसरे का होता है तुम जो मिल कर के ही निर्णय कैसे ले सकते हो तुम्हें यही घटना मेरे सामने दौरानी होगी

तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि क्या अर्जुन तुम दोबारा से पूल बना सकते हो?  अर्जुन बोलता है हां मैं दोबारा से फूल बना सकता हूं।  ब्राह्मण वेश में भगवान श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन दुबारा से पुल का निर्माण कर लेता है।

ब्राह्मण वेश में कृष्ण वृद्ध वानर(हनुमान) को कहते हैं कि अब तुम पुल पर चलो यदि पुल टूट गया तो निश्चित ही अर्जुन को अपने आपको स्वयं को अग्नि में स्वाहा करना ही होगा और यदि पूल नहीं टूटा तो आप को वचनानुसार वो सब करना होगा जो अर्जुन कहेगा।

फिर क्या था नवनिर्मित पुल पर जैसे ही वृद्ध वानर(हनुमान) ने अपना कदम रखा भगवान श्री कृष्ण कश्यप का रूप धारण कर लेते हैं और पुल के नीचे बैठ जाते हैं ऐसे में पुल नहीं टूटता और वृद्ध वानर(हनुमान) आगे निकल जाते है इस बात को देख वृद्ध वानर(हनुमान) असमंजस में पड़ जाते हैं।

फिर क्या था इस बार वृद्ध वानर(हनुमान) अपने वचन अनुसार अर्जुन के प्रत्येक आदेश की पालना के लिए तत्पर थे।  निवेदन किया कि अर्जुन मेरे लिए क्या आदेश है मैं क्या करूं तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने स्वरूप का परिचय दिया और वृद्ध वानर(हनुमान) को अनुग्रहित कर आदेशित किया कि युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ में आप साथ ही रहेंगे।

वृद्ध वानर(हनुमान) में भगवान श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु जहां सत्संग न हो वहां मेरा क्या काम हमारे प्रभु श्री राम तो युद्ध में भी सत्संग कर लिया करते थे।  इसलिए आप मुझे वचन दीजिए कि इस युद्ध में भी आप मेरे साथ सत्संग करेंगे।

भगवान श्री कृष्ण ने वचन दीया और कहा निश्चित ही तुम्हें सत्संग का आनंद अनुभव होगा तो मित्रों अर्जुन का तो बहाना था किंतु श्रीमद्भागवत गीता का सत्संग हनुमान से करना जो था

यही तो है भगवान और भगवान के भक्तों का सानिध्य।  

 

धर्म कथा Tags:#arjun and hanuman talk #krrishna and hanuman meeting

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