
अकसर मेने उसे रोते देखा है ......
कलम से- अहमद सलीम त्यागी
मैंने अक्सर उसे रोते देखा है……………
वक्त से पहले बड़े होते देखा है |
वो रहने लगा बहुत संजीदा सा,
जबसे जिम्मेदारी का बोझ ढोते देखा है ||
ख्वाब उसके भी थे बचपन के खिलौने वाले,
उसके बचपन को कहीं खोते देखा है |
मैंने अक्सर उसे रोते देखा है…………………………
सामने सबके वो छिपा लेता है सिसकियां अपनी,
मगर तनहाई में आंख भिगोते देखा है |
मैंने अक्सर उसे रोते देखा है………..
तलब गार हैं वो अच्छे दिनों का यूं तो,
कभी कभी ख्वाब पिरोते देखा है |
मगर मैंने अक्सर उसे रोते देखा है………..
