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THE HOLY TOUR & TRAVEL OF TEMPLES IN INDIA

Category: हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

हिन्दू व्रत एवं त्यौहार fast and festivals in 2021

Fast and Festivals in August 2021.

Posted on August 8, 2021August 9, 2021 By Pradeep Sharma
हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

Fast and Festivals in July 2021

Posted on June 26, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

जुलाई 2021, के व्रत एवं त्यौहार

01 July, Thu 2021 कालाष्टमी
03 July, Sat 2021 संत थॉमस डे
05 July, Mon 2021 योगिनी एकादशी
07 July, Wed 2021 प्रदोष व्रत , रोहिणी व्रत
08 July, Thu 2021 मास शिवरात्रि
09 July, Fri 2021 अमावस्या
11 July, Sun 2021 जनसंख्या दिवस , चंद्र दर्शन
12 July, Mon 2021 पूरी जगन्नाथ रथ यात्रा , सोमवार व्रत
13 July, Tue 2021 वरद चतुर्थी
15 July, Thu 2021 षष्टी , कौमार षष्ठी
16 July, Fri 2021 कर्क संक्रांति
17 July, Sat 2021 दुर्गाष्टमी व्रत
20 July, Tue 2021 आषाढ़ी एकादशी
21 July, Wed 2021 जाया पार्वती व्रत प्रारंभ , बकरीद (ईद-उल-अज़हा) , प्रदोष व्रत
23 July, Fri 2021 पूर्णिमा व्रत , सत्य व्रत , सत्य व्रत
24 July, Sat 2021 गुरु पूर्णिमा , पूर्णिमा , कांवड़ यात्रा , व्यास पूजा
25 July, Sun 2021 जाया पारवती व्रत जागरण
26 July, Mon 2021 जाया पार्वती व्रत समाप्त
27 July, Tue 2021 संकष्टी गणेश चतुर्थी , अंगारकी चतुर्थी
31 July, Sat 2021 कालाष्टमी

ज्योतिष विज्ञान, धर्म कथा, हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

MOHINI EKADASHI KATHA

Posted on May 22, 2021May 27, 2021 By Pradeep Sharma

मोहिनी एकादशी

आज मोहिनी एकादशी व्रत है।  मित्रों आज भगवान श्री विष्णु की मोहिनी स्वरूप की पूजा अर्चना होने के कारण आज एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं।  सनातन धर्म संस्कृति में एकादशी का महत्व बहुत अधिक होने से आज के दिन की महत्वता और भी अधिक बढ़ जाती है। भगवान श्री विष्णु के मोहिनी अवतार से संबंधित एक पौराणिक कथा है, चलिए दोस्तों हम उस पौराणिक कथा को थोड़ा आगे जानते हैं तो यह बात है समुद्र मंथन के समय की, जब देवताओं ने और दानवों ने मिलकर के समुद्र मंथन की प्रक्रिया को करने के लिए आगे बढ़े तो समुद्र मंथन के दौरान अनेकों चीजें निकली बहुत से रत्न निकले, विष निकला जिसका पान भगवान श्री भोलेनाथ ने किया।  और साथ ही साथ कई आभूषण निकले कई प्रकार की विद्या निकली वर्तमान समय में हम जो भी संसाधन आज देख रहे हैं ऐसा प्राय तौर पर माना जाता है कि यह मूल रूप से समुद्र मंथन से ही प्राप्त हुए हैं।  तो वार्ता कुछ इस प्रकार से है कि  अंततोगत्वा समुद्र मंथन से अमृत का एक कलश निकला, और उस अमृत को पाने की इच्छा देवताओं में भी थी और दानवों में भी थी। अमृत पान करने से प्रत्येक जीव अजर अमर हो जाता है तो दानवों ने भी चाहा कि हमें यह अमृतपान मिले और हम अजर अमर हो जाएं।  लेकिन ईश्वर का विधान है ईश्वर सदैव धर्म के साथ है, ईश्वर सदैव सच्चाई के साथ है, तो सभी देवताओं में यह हड़कंप मच गया और सभी देवताओं ने सोचा इस प्रकार से दानव यदि अमृत पान करेंगे तो सृष्टि में केवल दानवता हि खेलेगी और देवताओं के दिव्य गुण फैलने में बड़ी मुश्किल होगी तो सभी देवता मिलकर भगवान श्री विष्णु के पास गए और इस समस्या का एक हल मांगने का प्रयास किया भगवान श्री विष्णु ने सभी देवताओं को इस समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया।  तभी समुद्र मंथन से निकला अमृत कभी देवता छीन रहे थे तो कभी दानव छीन रहे थे।  इस बीच एक मनोरम स्त्री उनके बीच में आती है।  उसके रूप और उसके सौंदर्य को देखकर देवता और दानव आपस में झगड़ा भूल जाते हैं।  जो देवता थे वह इस बात से परिचित थे कि यह सुंदर स्त्री भगवान श्री विष्णु की योग माया की शक्ति है।  भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया है यह कोई सामान्य स्त्री नहीं है। और इसे कोई वश में नहीं कर सकता तब देवताओं ने इस युक्ति को समझ कर उस सुंदर स्त्री की बातें मानने के लिए राजी हो गए।  तो दानव उस सुंदर स्त्री के पास जाते हैं और कहते हैं कि है स्त्री तुम इतनी सुंदर हो कितनी मनमोहक हो और तुम्हारी सुंदरता से हम कायल हैं।  हमारे बीच यह जो झगड़ा है इसे तुम मिटा दो तुम न्याय के अनुसार निष्पक्ष भाव से इस अमृत को हम में बांट दो।  जिससे हम लोगों में और अधिक झगड़ा ना हो।  ऐसा देत्यो ने प्रस्ताव रखा उस सुंदर स्त्री के सामने अब क्योंकि वह सुंदर स्त्री कोई और नहीं बल्कि भगवान श्री विष्णु का मोहिनी अवतार ही थी वह भगवान श्री विष्णु की योगमाया शक्ति से सृजित है । सुंदर स्त्री ने देत्यो  से कहा कि ऐसा न्याय करने का भार मुझे क्यों दे रहे हो? तुम बुद्धिमान पुरुष को स्वेच्छाचारी स्त्रियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। भगवान श्री विष्णु की मोहिनी अवतार के रूप में इस देवी की परिहास भरी वाणी को सुनकर के देत्यो को और अधिक आश्वासन हो गया और देत्यो एवं दानवों ने  ने वह अमृत का कलश सुंदर स्त्री मोहिनी को थमा दिया।  सुंदर स्त्री ने कहा कि अब न्याय मेरे अनुसार होगा और मैं किस प्रकार से अमृत बाटूंगी यह सब मुझ पर निर्भर करता है। तुम्हें सबको मेरी बात माननी होगी। इस प्रस्ताव के लिए सभी देत्य सहमत हो गए तो मोहिनी ने सभी को अमृत पान कराने के लिए युक्ति संगत हल धुंद लिया और दानवों से कहा की मै कल सभी को अमृत का पान करवाउंगी आप आज सभी जाए और कल स्नान करके लौटे। उसके बाद मोहिनी ने सभी देवताओ को  बिठा दिया।  मोहिनी अवतार में भगवान श्री विष्णु स्त्री रूप में मनमोहक थे उनकी नासिका कपूर मुखारविंद मनोरम थे और भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी अवतार में देवताओं को अमृत पान कराया और देत्यो के साथ छल किया इस बात का ज्ञान जब भगवान श्री शिव को हुआ, उन्हें पता चला कि श्री हरि ने दानवो  को मोहित करके देवताओं को अमृत पिला कर के छल किया है तब भगवान श्री हरि की स्तुति वंदना भोलेनाथ ने की।

धर्म कथा, हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

Ganga Shaptami A Story of Birth of Maa Ganga

Posted on May 18, 2021May 27, 2021 By Pradeep Sharma

माँ गंगा के जन्म की कथा - गंगा शप्तमी

हिन्दू संस्कृति की आस्था की आधार स्वरूपा माँ गंगा की उत्पति के बारे में अनेक मान्यताये हैं। हिन्दूओ की आस्था का केंद्र गंगा एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल से माँ गंगा का जन्म हुआ।

एक अन्य मान्यता के अनुसार गंगा श्री विष्णु जी के चरणों से अवतरित हुई। जिसका पृथ्वी पर अवतरण राजा सगर के साठ हजार पुत्रो का उद्दार करने के लिए इनके वंशज राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हुए। राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजो का उद्धार करने के लिए पहले माँ गंगा को प्रसन्न किया उसके बाद भगवान शंकर की कठोर आराधना कर नदियों में श्रेष्ठ गंगा को पृथ्वी पर उतरा व व अंत में  माँ गंगा भागीरथ के पीछे – पीछे कपिल मुनि के आश्रम में गई एवं देवनदी गंगा  का स्पर्श होते ही भागीरथ के पूर्वजो [ राजा सगर के साठ  हजार पुत्रो ] का उद्धार हुआ।

एक अन्य कथा श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्धानुसार राजा बलि ने तिन पग पृथ्वी नापने के समय भगवान वामन का बायाँ चरण ब्रह्मांड के ऊपर चला गया। वहाँ ब्रह्माजी के द्वारा भगवान के चरण धोने के बाद जों जलधारा थी , वह उनके चरणों को स्पर्श करती हुई चार भागो में विभक्त हो गई।

सीता👉  पूर्व दिशा अलकनंदा👉 दक्षिण चक्षु👉 पश्चिम भद्रा👉 उत्तर

विन्ध्यगिरी के उत्तरी भागो में इसे भागीरथी गंगा के नाम से जाना जाता हैं। भारतीय साहित्य में देवनदी गंगा के उत्पत्ति की दो तिथिया बताई जाती हैं।

प्रथम👉 बैशाख मास शुक्ल पक्ष तृतीया

द्वितीय👉 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की गंगा दशमी इनमे से प्रथम वैशाख मास शुक्ल पक्ष का शुभ पर्व आज है।

गंगा जल का स्पर्श होते ही सारे पाप क्षण भर में धुल जाते हैं। देवनदी गंगा जिनके दर्शन मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं क्यों की गंगा जी भगवान के उन चरण कमलो से निकली हैं जिनके  शरण में जाने से सारे क्लेश मिट जाते हैं।

धर्म कथा, हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

Janaki Nawami A Birthday of Sita Mata

Posted on May 18, 2021May 27, 2021 By Pradeep Sharma

माता सीता का प्राकट्य दिवस : जानकी नवमी
वैशाख शुक्ल नवमी -21 मई 2021

वैशाख शुक्ल नवमी को सीता नवमी कहते हैं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्यान काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ ज्योति हुई भूमि तथा हल्के लोग को भी सीता कहा जाता है. इसलिए बालिका का नाम सीता रखा गया था। अतः इस पर्व को जाने की नवमी भी कहते हैं मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है वह राम सीता का विधि विधान से पूजन करता है उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी-दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम – श्री सीताजी नमः ओम श्री सीतारामाय नमः का उच्चारण करना लाभदायक रहता है सीता नवमी की पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी धर्मधुरीण ब्राह्मण निवास करते थे उनका नाम देवदत्त था। उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपवती पत्नी थी उनका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षा के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई, अब तो पूरे गांव में उसके इस निकृष्ट कर्म की चर्चाएं होने लगी परंतु उस दुष्टा ने गांव ही जलवा दिया दुष्कर्म में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ और पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी। ग्रामवासी ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ट रोग हो गया तथा व्यभिचार कर्म के कारण वह अंधी हो गई। अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनोंदिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश देशांतर में भटकने लगी, एक बार देव-योग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है सीता जानकी माता। नवमी के पावन उत्सव पर भूख प्यास से व्याकुल वह दुखियारी इस प्रकार प्रार्थना करने लगी है सज्जनों मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो मैं भूख से मर रही हूं ऐसा कहती हुई वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई उसने उनको पुकार लगाई भैया कोई तो मेरी मदद करो कुछ तो भोजन दे दो, इतने में एक भक्त ने उससे कहा देवी आज तो सीता नवमी है। भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है इसलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा कल पारना करने के समय आना ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा। किंतु वह नहीं मानी अधिक कहने पर भक्तों ने उसे तुलसी और जल प्रदान किया। वह पापीनी भूख से मर गई किंतु इसी बहाने अनजाने में उसने सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया, अब तो परम कृपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंद पूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात वह कामरूप देश के महान राजा जयसिंह की महारानी कामकला के नाम से विख्यात हुई उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाएं जिनमें जानकी रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई अतः सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजा अर्चन करते हैं उनको सभी प्रकार के सुख सौभाग्य प्राप्त होते हैं इस दिन जानकी-स्त्रोत्र रामचंद्र-अष्टकं रामचरितमानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

धर्म कथा, हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

AKSHAY TRITIYA

Posted on May 18, 2021May 28, 2021 By Pradeep Sharma
(अक्षय तृतीया एवं भगवान श्री परशुराम जन्मोत्सव की शुभकामनाये )
 
 

अक्षय तृतीया के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहूर्तो में से एक माना जाता है| पौराणिक मान्यता है, कि इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता मिलती है| अक्षय तृतीया में 42 घटी और 21 पल होते हैं| सोना खरीदने के लिए यह श्रेष्ठ काल माना गया है| अध्ययन आरंभ करने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ दिन है| अक्षय तृतीया- कुंभ स्नान व दान पुण्य के साथ पितरों की आत्मा की शांति के लिए आराधना का दिन भी माना गया है|

शास्त्रों में अक्षय तृतीया को स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया है| अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, व्यापार एवं उद्योग धंधों का आरंभ करना अति शुभ फलदायक होता है सही मायने में अक्षय तृतीया अपने नाम के अनुरूप शुभ फल प्रदान करती है| अक्षय तृतीया पर सूर्य तथा चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं तथा आखा तीज तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है जिनके विवाह के लिए ग्रह नक्षत्र मेल नहीं खाते इस शुभ तिथि पर सबसे ज्यादा विवाह संपन्न होते हैं| मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री परशुराम का जन्म हुआ था, इसलिए सभी इसे परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं वही हिंदू शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व के दिन स्नान होम, जप, दान, आदि का अनंत फल मिलता है| इसलिए हिंदू संस्कृति में इसका विशेष महत्व हो जाता है| अक्षय तृतीया के पावन पर्व को कई नामों से जाना जाता है इसे आखा तीज वैशाख तीज भी कहा जाता है भारतीय शास्त्रों में चार अत्यंत शुभ सिद्ध मंगल मुहूर्त माने गए हैं 1. गुड़ी पड़वा 2. अक्षय तृतीया 3. दशहरा 4. धनतेरस वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया या आखातीज कहते हैं| अक्षय का शाब्दिक अर्थ होता है जिसका कभी नाश या क्षय नहीं होता अर्थात जो स्थाई रहता है स्थाई वही रह सकता है जो सदा शाश्वत है इस पृथ्वी पर केवल और केवल सत्य, परमात्मा है जो अक्षय अखंड और सर्वव्यापक हैं यानी अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर की तिथि है| इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतिया भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है| परशुराम जी की गिनती 4 चिरंजीवी विभूतियों में की जाती है इसी वजह से यह तिथि चिरंजीवी की भी कहलाती है चार युग 1.सतयुग 2.त्रेता युग 3.द्वापर युग और 4.कलियुग में से त्रेता युग का आरंभ इसी अक्षय तृतीया से हुआ है| अंकों में विषम अंको को विशेष रूप से तीन को अविभाज्य यानी अक्षय माना जाता है| तिथियों में शुक्ल पक्ष की तीज यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है| वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समस्त अतिथियों से सबसे विशेष स्थान प्राप्त है

 

धर्म कथा, हिन्दू व्रत एवं त्यौहार

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