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THE HOLY TOUR & TRAVEL OF TEMPLES IN INDIA

Category: मंदिर

भारतवर्ष के हिन्दू मंदिर

Why So Many Shiv-Linga in Mahakaleshwar in Ujjain (Awantika Nagari)

Posted on November 7, 2021November 7, 2021 By Pradeep Sharma

प्रिय पाठको आप सभी का www.121holyindia.in पर स्वागत है | मैं कृतकृत्य हूँ कि जो आप सभी श्री मानो का सानिध्य मुझे मिला और आप सभी श्रेष्ट साधुजनों का संग मुझे निश्चय ही धनवान बनता है |

आज मैं आप सभी को मेरे ब्लॉग में सनातन धर्मं संस्कृति के तीसरे ज्योतिर्लिंग कि मानस यात्रा का वर्णन करने जा रहा हूँ आशा करता हूँ आप सभी को यह मानस यात्रा खूब पसंद आएगी और आप सभी जन मानस पुण्य के भागी बंगेंगे |

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पापनाशिनी परम दिव्या कथा:

भारतवर्ष में अवंतिका नाम से एक प्रसिध्ध नगरी है जिसे वर्त्तमान में उज्जैन के नाम से जाना जाता है यह रमणीय धरा देहधारियो को मोक्ष प्रदान करने वाली है | यह वो धरा है जो भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है | इस नगरी में एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहा करते थे जो कि चारो वेदों के ज्ञाता एवं शुभकर्म परायण वादी थे| वे ब्राह्मण देवता सदैव मिटटी से शिव लिंग बनाकर सदा घर में हवन किया करते थे और भगवान् शिव कि पूजा और अर्चना तल्लीनता से करते थे | आगे चलकर उन ब्राह्मण संत के ०४ चार तेजस्वी पुत्र हुए वो भी माता पिता से सद्गुणों में कम नहीं थे |
    1. देवप्रिय 2. प्रियमेधा 3. सुकृत और 4. सुव्रत
इन्ही चार ओजस्वी, तेजस्वी, पुण्यप्रतापी ब्राह्मण कुमारो के कारण अवंतिका नगरी ब्रह्मतेज से परिपूर्ण हो गयी थी |

उसी समय रत्न-माल पर्वत पर दूषण नामक एक असुर ने ब्रह्मा जी से वर प्राप्त करके धर्म और धर्मात्माओ पर आक्रमण क्र दिया | अंत में उस राक्षस कुल के कुमार दूषण ने अपनी सेना लेकर अवंतिका नगरी पर आक्रमण कर दिया |

मित्रो यहां एक खास बात है आप और हम अक्सर उज्जैन नगरी में महाकाल के दर्शन हेतु जाते है | वह हम देखते है कि चारो और सभी जगह भगवान् शिव शिवलिंग के रूपमे स्थापित है , महकलेश्वेअर भगवान् शिव के साथ साथ अनेक रूपों में अनेक शिवलिंग वह प्रतिष्ठित है आखिर ऐसा क्यों ? इतने शिवलिंग क्यों ?

इस उक्त प्रश्न का उत्तर इसी शिवपुराण कि कहानी में मिलता है –

जब उस राक्षष दूषण ने अवंतिका नगरी पर अपनी सेना लेकर आक्रमण कर दिया तब सभी नगरवासी उन चार वेद्ग् ज्ञाता धर्म परायण परम शिव भक्त ब्राह्मण कुमारो १. देवप्रिय २. प्रियमेधा ३. सुकृत और ४. सुव्रत

के पास जाते है और इस भयंकर समस्या का समाधान पूछते है तब :

चारों ब्राह्मण कुमार समस्त अवन्तिका नगर वासिओ को आश्वस्त करते है और कहते है कि सभी नगर वासी भगवान् शिव का ध्यान लगाये और भगवान् शिव का आह्वाहन करे | ऐसा जानकार सभी नगर वासी भगवान् शिव का ध्यान लगाते है |

और चारों ब्राह्मण कुमार भगवान् शिव की पूजा और आराधन में हर दिन कि व्यस्त हो जाते है | इतने में ही सेनासहित दूषण वहाँ आ जाता है और अपनी सेना से कहता है कि इन्हें मार डालो पर वेदप्रिय ब्राह्मण कुमार भयभीत नहीं होते क्योंकि वे भगवान् शंभु के ध्यान् मार्ग में स्थित थे |

उस दुष्ट आत्मा दूषण ने जेसे ही उन ब्राह्मणों को मारने कि इच्छा कि , त्यों ही उनके द्वारा निर्मित मिटटी के शिवलिंग के स्थान में बड़ी भारी आवाज के साथ एक गड्ढा प्रकट हो गया उसी गड्ढे से तत्काल विशाल रूपधारी भगवान् शिव प्रकट हुए | जो महाकाल नाम से विख्यात हुए इसी समय अवंतिका नगरी के नगर वासियो ने अवंतिका नगरी में जहां जहां भगवान् शिव का ध्यान लगाया और शिव का आह्वाहन किया वहाँ वहाँ भगवान् शिव उनकी रक्षार्थ प्रकट हुये | इस प्रकार सम्पूर्ण अवंतिका नगरी में भगवान् शिव ने स्वयम नगरवासियों और ब्राह्मण कुमारो कि रक्षा की|जैसे सूर्य के प्रकट होने पर सम्पूर्ण अन्धकार लुप्त हो जाता है ठीक वैसे ही भगवान् शिव के महाकाल रूप में प्रकट होने पर सम्पूर्ण राक्षस सेना अदृश्य हो जाती है| महाकाल महेश्वर शिव ने ब्राह्मण कुमारों से कहा कि तुम लोग वर मांगो – ब्राह्मण कुमारो ने हाथ जोड़ भक्ति भाव से प्रणाम करके नतमस्तक होकर बोले : महाकाल ! महादेव! दुष्टों को दंड देंनेवाले प्रभो ! हे शंभू नाथ आप हमें इस संसार सागर से मोक्ष प्रदान करे | आप जन साधारण कि रक्षा के लिए सदा यही निवास करे | प्रभो ! शम्भो ! अपना दर्शन करने वाले मनुष्य का आप सदा ही उद्धार करे| ब्राह्मण कुमारो के ऐसा कहने पर उन्हें भगवान् सद्गति प्रदान कर मोक्ष दे देते है और हमेशा हमेशा के लिए उस परमसुन्दर गड्ढे में लीन होकर निवास करने लगते है |यह स्थान पर भगवान् शिव महाकालेश्वर के नाम से विख्यात हुए | वे ब्राहमण मोक्ष पा जाते है वहाँ चारो और की एक एक कोस भूमि लिंगरुपी भगवान् शिव का स्थल बन गयी और जहा कही भी नगरवासियों ने भगवान् शिव का आह्वाहन किया वह स्थल भी लिंगरुपी भगवान् शिव का स्थल बन जाता है |

मित्रो हाल ही में मेने भगवान् महाकालेश्वर कि यात्रा कि है वह मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि एक ही नगर में भला इतने सारे शिवलिंग क्यों? तब मेने शिवपुराण कि इस कहानी को पढ़ा जिससे मुझे संतोषकारक जानकारी मिली जिसे मैं सभी से साझा करने जा रहा हूँ आशा करता हु आप सभी को यह कहानी सुनकर पढ़कर मानस पुण्य कि प्राप्ति अवश्य ही हुयी होगी |

जय महाकाल

मंदिर

Patients suffering from paralysis come to the EedanaTemple of the Maa and become healthy.

Posted on August 6, 2021August 8, 2021 By Pradeep Sharma

लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं।

Patients suffering from paralysis come to the EedanaTemple of the Maa and become healthy. ईडाणा माता मंदिर राजस्थान में स्थित है जिसकी ख्याति और प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारतवर्ष में है । यहां पर मां के चमत्कारिक दरबार की महिमा बहुत ही अजब गजब और निराली है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। वैसे तो आप सभी ने ने बहुत सारे चमत्कारिक स्थलों के बारें में सुना होगा, लेकिन इसकी दास्तां बिल्कुल ही अलग और चौंकाने वाली है। ईडाणा माता मंदिर उदयपुर शहर से 60 कि.मी. दूर अरावली की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। ईडाणा माता मंदिर में माँ का यह दरबार बिल्कुल खुले एक चौक में स्थित है। आपको बता दें कि उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से इस मंदिर का नाम ईडाणा प्रसिद्ध हुआ।

इस मंदिर में भक्तों की खास आस्था है, क्योंकि यहां मान्यता है कि लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक हो जाते हैं। इस मंदिर की हैरान करने वाली बात है ये है कि यहां स्थित देवी मां की प्रतिमा से हर महीने में दो से तीन बार अग्नि प्रजवल्लित होती है। इस अग्नि स्नान से मां की सम्पूर्ण चढ़ाई गयी चुनरियां, धागे भस्म हो जाते हैं और इसे देखने के लिए मां के दरबार में भक्तों का मेला लगा रहता है। लेकिन अगर बात करें इस अग्नि की तो आज तक कोई भी इस बात का पता नहीं लगा पाया कि ये अग्नि कैसे जलती है।  

ईडाणा माता मंदिर में अग्नि स्नान का पता लगते ही आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है। मंदिर के पुजारी के अनुसार ईडाणा माता पर अधिक भार होने पर माता स्वयं ज्वालादेवी का रूप धारण कर लेती हैं। ये अग्नि धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करती है और इसकी लपटें 10 से 20 फीट तक पहुंच जाती है। लेकिन इस अग्नि के पीछे खास बात ये भी है कि आज तक श्रृंगार के अलावा किसी अन्य चीज को कोई आंच तक नहीं आती। भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं और इसी अग्नि स्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया। ऐसा मान्यता है कि जो भी भक्त इस अग्नि के दर्शन करता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। यहां भक्त अपनी इच्छा पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते है और साथ ही जिन लोगों के संतान नहीं होती वो दम्पत्ति यहां झुला चढ़ाने आते हैं। खासकर इस मंदिर के प्रति लोगों का विश्वास है कि लकवा से ग्रसित रोगी मां के दरबार में आकर स्वस्थ हो जाते हैं।

 

मंदिर

How Many State University in Rajasthan (India)?

Posted on August 6, 2021August 8, 2021 By Pradeep Sharma

राजस्थान में सरकारी विश्वविद्यालय कितने है ?

There are 27 State University running in Rajasthan under monitering of AICTE & UGC.

1 University of Rajasthan, Jaipur 08.01.1946
2 Jai Narain Vyas University Jodhpur 14.07.1962
3 Mohan Lal Sukhadia University, Udaipur 28.03.1962
4 Maharshi Dayanand Saraswati University, Ajmer 01.08.1987
5 University of Kota, Kota 07.06.2003
6 Maharaja Ganga Singh University, Bikaner 07.06.2003
7 Vardhman Mahaveer Open University, Kota 23.07.1987
8 Govind Guru Tribal University, Banswara 27.08.2012
9 Pt. Deendayal Upadhyay Shekhawati University, Sikar 23.08.2012
10 The Maharaja Surajmal Brij University, Bharatpur 23.08.2012
11 The Rajrishi Bhartrihari Matsya University, Alwar 23.08.2012
12 Haridev Joshi University of Journalism and Mass Communication 01.03.2019
13 Dr. Bhimrao Ambedkar Law University, Jaipur 26.02.2019
14 Jagadguru Ramandacharya Rajasthan Sanskrit University, Jaipur 06.02.2001
15 Dr. Sarvepalli Radhakrishnan Rajasthan Ayurved University, Jodhpur 10.03.2003
16 Rajasthan University of Health Sciences, Jaipur 26.02.2015
17 Swami Keshvanand Agriculture University, Bikaner 01.08.1987
18 Maharana Pratap University of Agriculture & Technology, Udaipur 01.11.1999
19 Sri Karan Narendra Agriculture University, Jobner 13.09.2013
20 Agriculture University, Kota 14.09.2013
21 Agriculture University, Jodhpur 14.09.2013
22 Rajasthan University of Veterinary and Animal Sciences, Bikaner. 18.05.2010
23 Sardar Patel University of Police, Security and Criminal Justice, Jodhpur. 04.02.2013
24 The Rajasthan Sports University, Jhunjhunu.
25 Rajasthan Technical University, Kota 16.02.2006
26 The Rajasthan ILD Skills University, Jaipur 30.03.2017
27 Bikaner Technical University, Bikner 18.05.2018

Source:- https://rajbhawan.rajasthan.gov.in/

मंदिर

Aksar Maine Use Rote Dekha Hai

Posted on August 4, 2021August 8, 2021 By Pradeep Sharma
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अकसर मेने उसे रोते देखा है ......

कलम से- अहमद सलीम त्यागी 

मैंने अक्सर उसे रोते देखा है……………
वक्त से पहले बड़े होते देखा है |
वो रहने लगा बहुत संजीदा सा,
जबसे जिम्मेदारी का बोझ ढोते देखा है ||
ख्वाब उसके भी थे बचपन के खिलौने वाले,
उसके बचपन को कहीं खोते देखा है |
मैंने अक्सर उसे रोते देखा है…………………………
सामने सबके वो छिपा लेता है सिसकियां अपनी,
मगर तनहाई में आंख भिगोते देखा है |
मैंने अक्सर उसे रोते देखा है………..
तलब गार हैं वो अच्छे दिनों का यूं तो,
कभी कभी ख्वाब पिरोते देखा है |
मगर मैंने अक्सर उसे रोते देखा है………..

मैंने अक्सर उसे रोते देखा है…………... वक्त से पहले बड़े होते देखा है | वो रहने लगा बहुत संजीदा सा, जबसे जिम्मेदारी का बोझ ढोते देखा है || ख्वाब उसके भी थे बचपन के खिलौने वाले, उसके बचपन को कहीं खोते देखा है | मैंने अक्सर उसे रोते देखा है………………………… सामने सबके वो छिपा लेता है सिसकियां अपनी, मगर तनहाई में आंख भिगोते देखा है | मैंने अक्सर उसे रोते देखा है……….. तलब गार हैं वो अच्छे दिनों का यूं तो, कभी कभी ख्वाब पिरोते देखा है | मगर मैंने अक्सर उसे रोते देखा है………..
मंदिर, हिंदी कि कविताये

A Message By Teacher to His Students

Posted on August 3, 2021August 8, 2021 By Pradeep Sharma

विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

मेरे प्यारे विद्यार्थियों मैं आज का यह लेख विशेष रूप से आपके लिए लिख रहा हूं। मैं आपको एकआदर्श बात बताने की चेष्टा में यह लेख लिख रहा हूं, मेरे इस लेख को अवश्य ही पूर्ण रूप से पढ़ना। आपको इससे कुछ निर्णय करने में आसानी जरूर होगी। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

आप अक्सर सोचते होंगे कि हमने फलाने नामचीन स्कूल में या फलाने नामचीन कॉलेज में एडमिशन ले लिया है, और अब हम निश्चित रूप से सफल हो जाएंगे। तो प्यारे विद्यार्थियों! किसी स्कूल या कॉलेज विशेष में प्रवेश लेने मात्र से आप सफल नहीं हो सकते। सफल होने के लिए निरंतर अभ्यास और प्रयास करने होते हैं। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

मेरे अनुभव के अनुसार मैंने अक्सर पाया है कि विद्यार्थी जब किसी पाठ्यक्रम में प्रवेश लेता है, तब वह बहुत बड़े-बड़े सपने देखता है और उन सारे बड़े बड़े सपनों को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े वादे वह अपनी अंतरात्मा में स्वयं के साथ करता है। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

पर क्या आप जानते हैं? कुछ चुनिंदा लोग ही ऐसा कर पाने में समर्थ होते हैं। जहां अधिकांश विद्यार्थी अपना समय पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के उपरांत अनुपयोगी काम काजो में और दोस्तों के साथ गपशप में बिता देते हैं। देखते ही देखते समय बिट जाता है। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

वर्तमान समय कोविड-19 महामारी का समय चल रहा है। ऐसे समय में स्कूल में अथवा किसी भी कॉलेज में नियमित रूप से भौतिक रूप से आप प्रस्तुत होकर अपनी कक्षाएं नहीं ले पा रहे हैं। यह बड़ी विकट समस्या है जिससे आप और आपके साथी झुझ रहे है । विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश 

आपकी इस व्यथा को हम समझ सकते हैं, किंतु फिर भी बहुत से स्कूल और कॉलेज प्रशासन ने बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन क्लासेस की सुविधा उपलब्ध करवा रखी है। यह सराहनीय है। बावजूद इसके बहुत से विद्यार्थी इन कक्षाओं में उपस्थित नहीं होते है ।इन ऑनलाइन क्लासेस में उपस्थित नहीं कि कोई ठोस वजह भी नहीं होती। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

जब उन विद्यार्थियों से मैंने संपर्क किया और जानने की कोशिश की, और उनसे पूछा कि आप इन ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थित क्यों नहीं होते? तो उनका मानना है और कहना है कि- ऑनलाइन कक्षा में हमें कुछ ज्यादा समझ में नहीं आता। मैंने एक विद्यार्थी की यह बात सुनी मुझे लगा कि वह सही बोल रहा है किंतु दूसरे ही पल उसने अपनी ही कही बात को झुठला दिया। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

फिर मैंने जब उस विद्यार्थी से यह पूछा कि आजकल तुम क्या कर रहे हो? तो वह विद्यार्थी बोला कि मैं आज कल घर पर डांस सीख रहा हूं। जब उससे पूछा कि क्या डांस सिखाने के लिए कोई शिक्षक तुम्हारे घर आता है? तब उसने कहा नहीं सर! मैं वह डांस खुद ही प्रैक्टिस करता हूं। पहले टीवी में देखता हूं और फिर उसे में प्रायोगिक तौर पर करने की कोशिश करता हूं। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

उसकी ऐसी बात सुनकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई, फिर मैंने उसी विद्यार्थी से यह कहा कि जब तुम टीवी में डांस देख कर, निजी रूप से अपने जीवन में उसका अभ्यास करते हो, तो तुम्हें वह ठीक से समझ भी आ जाता है। तुम उसे ठीक से कर भी पाते हो। ठीक वैसे ही तुम ऑनलाइन क्लास ले करके भी अपने ज्ञान का संवर्धन कर सकते हो। पहले शिक्षक से सुनो और उसे समझने की कोशिश करो और फिर उसका अभ्यास करोगे तो निश्चित ही तुम्हें समझ आ जाएगा। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

ऐसा कहने पर उस विद्यार्थी ने इस बात को स्वीकार भी किया और उसने इस बात को माना कि अक्सर ऐसा होता है कि जब हम ऑनलाइन में किसी से बात सुनते हैं तो ठीक उसी समय हमें वह बात समझ नहीं आती परंतु उसका अभ्यास और समझने का प्रयास अपने स्वयं के एकांकी जीवन में किया जाता है तो निश्चित ही वह बात उसे समझ में आ जाती है। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

जीवन में सफलता पाने और किसी कार्य में दक्षता पाने के लिए बार-बार अभ्यास करना आवश्यक होता है। यह बात हम पर ही नहीं बल्कि सभी जीव जंतुओं, पशु पक्षियों आदि पर लागू होती है। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

अत्यंत महीन और मुलायम तिनको से बनी रस्सी के बार बार आने जाने से भी पत्थर से बनी हुई कुएं की जगत पर निशान पड़ जाते हैं, तो बार-बार अभ्यास करने से निश्चित ही जड़ बुद्धि वाला विद्यार्थी भी एक महान ज्ञानी और सफल व्यक्ति बन सकता है। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

प्यारे विद्यार्थियों! मै इतना ही कहना चाहूंगा कि अभ्यास के महत्व केवल मानव जाति के लिए नहीं बल्कि पशु पक्षी के लिए भी है मधुमक्खियां निरंतर परिश्रम करके और अभ्यास करके फूलों का पराग एकत्र करती है, और अमृत्तुल्य शहद बनाती है। तो यदि आप अपने जीवन में एक अच्छा करियर चाहते हैं, आप अपने जीवन को अमृत्तुल्य शहद की भांति बनाना चाहते हैं, तो आपको निरंतर अभ्यास करना होगा । और आपको उपलब्ध होने वाली प्रत्येक कक्षा में आपको उपस्थित होना चाहिए। आप को समझना होगा कि आपकी दैनिक रूप से की गई मेहनत आपके भविष्य को संवारने में एक आधार बनती है। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

सबसे बड़ी विशेष बात जो ध्यान देने योग्य है वह है आपके माता-पिता के द्वारा किए गए धन के विनियोग का। आपके माता-पिता के द्वारा धन की एक बहुत बड़ी धनराशि का विनियोग किया जाता है आपकी शिक्षा और दीक्षा पर। किंतु आप उसी शिक्षा और दीक्षा की प्राप्ति की बजाय अपना संपूर्ण दिवस मित्रों के साथ गपशप और बाजार व अन्य मटरगश्ती में निकाल देते हैं जो कि आपके लिए उचित नहीं दिखाई पड़ता। उन्ही सभी अभिभावकों कि और आपके शिक्षक-गणों की आपसे यही गुजारिश है कि आप दिन प्रतिदिन शिक्षक के द्वारा ऑनलाइन कक्षा में जो पढ़ाया जाता है उसकी पुनरावृत्ति आप स्वयं के स्तर पर दैनिक रूप से अवश्य करें और अपने माता-पिता के द्वारा किए गए धन विनियोग को सही आधार प्रदान करें। जिससे कि उनके धन विनियोग का सही प्रतिफल उन्हें प्राप्त हो सके। विद्यार्थी के नाम शिक्षक सन्देश

प्रिय विद्यार्थी –मै आपका शिक्षक 

मंदिर, हिंदी कि कविताये

Mallikarjun Jyotirlinga Shree Shailam Hydrabad

Posted on August 1, 2021August 8, 2021 By Pradeep Sharma

श्री-शैलम, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र-प्रदेश (भारत)

श्री-शैलम, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र-प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित है ।  श्री-शैलम जो नल्लामाला पर्वत पर कृष्णा नदी के तट पर स्थित है ।  दोस्तों, यहां भगवान मल्लिकार्जुन स्वामी (देवो के देव महादेव, शिव ) और भ्रांभा देवी (पार्वती) को समर्पित एक मंदिर है ।  यहां की सबसे खास बात यह है कि यह भगवान देवो के देव महादेव, शिव  के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक और माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक है ।

कैसे पहुंचे श्री-शैलम, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्री-शैलम, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग हवाई मार्ग से पहुँचने के लिए, यहाँ हैदराबाद में राजीव गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है । यह हवाई अड्डा हैदराबाद शहर को सभी प्रमुख भारतीय शहरो और अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों से जोड़ता है ।  यह देश के सबसे व्यस्ततम  हवाई अड्डों में से एक है और यहाँ से जेट एयरवेज, एयर इंडिया, इंडिगो और स्पाइस-जेट जैसी प्रमुख एयरलाइंस नई दिल्ली, मुंबई, गोवा, अगरतला, अहमदाबाद, बैंगलोर, चेन्नई और लखनऊ से और के लिए संचालित होती हैं ।  हवाई अड्डा हैदराबाद शहर से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है ।  हवाई अड्डे के बाहर के यात्रियों के लिए ऑटो और टैक्सी सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं ।

रेल मार्ग के द्वारा कैसे पहुंचे श्री-शैलम, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

श्री-शैलम का निकटतम रेलवे स्टेशन गुंटूर-हुबली मीटर गेज रेल मार्ग पर मरकापुर है ।  यह स्थान श्री-शैलम से 90 किमी दूर है ।  दूसरा रेलवे स्टेशन हैदराबाद है ।  हैदराबाद से श्री-शैलम तक 230 कि.मी. दूर है ।  हैदराबाद से श्री-शैलम के लिए टैक्सी, कार और बसें उपलब्ध हैं ।

हैदराबाद में मुख्य रूप से तीन रेलवे स्टेशन हैं, 1. हैदराबाद रेलवे स्टेशन, 2. सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन और 3. काचीगुडा रेलवे स्टेशन ।  हैदराबाद भारत के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, पुणे, चेन्नई और बैंगलोर से रेल द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है ।  हैदराबाद से अन्य शहरों के लिए दैनिक आधार पर चलने वाली कुछ लोकप्रिय ट्रेनों में हैदराबाद एक्सप्रेस, शताब्दी एक्सप्रेस, चारमीनार एक्सप्रेस, कोणार्क एक्सप्रेस और आंध्र-प्रदेश एक्सप्रेस शामिल हैं ।  रेलवे स्टेशन के बाहर से टैक्सी या कैब भी आसानी से उपलब्ध हैं ।

हैदराबाद से श्री-शैलम कैसे पहुंचे

हैदराबाद से दो बस स्टैंडों पर सरकारी बसें चलती हैं ।  (जे-बी-एस) जुबली बस स्टेशन और एम-जी-बी-एस (महात्मा गांधी बस स्टेशन) ये दोनों बस स्टैंड आंध्रप्रदेश और तेलंगाना की सरकारी बसें चलाते हैं ।  आप इस वेबसाइट www.tsrtconline.in पर जाकर ऑनलाइन बस टिकट भी बुक कर सकते हैं ।  रेलवे स्टेशन के बाहर से टैक्सी या कैब आसानी से उपलब्ध हैं ।

श्री-शैलम कितने दिन रहे :- 2 दिन

श्री-शैलम में ठहरने की क्या व्यवस्था है –

आप श्री-शैलम में देवस्थान के निम्नलिखित भक्त निवास में ऑनलाइन कमरे बुक कर सकते हैं ।  ऑनलाइन कमरा बुक करने के लिए देवस्थान की वेबसाइट www.srisailamonline.com पर जाएं ।

  1. गंगा सदानामी, 2. गौरी सदानामी, 3. चंडीश्वर सदानामी, 4. अन्नपूर्णा सत्रम,  5. बलिजा सतराम,  6. काकतीय कम्मवारी सत्रम,  7. न्यू ब्राह्मण चूल्ट्री,  8. पद्मशालीउला सतराम,  9. रेड्डी सत्रराम,  10. श्रीविद्या पीठम,  11. वासवी विहार,  12. वेल्मा सत्रम

कमरे का किराया

देवस्थान भक्ति निवास का किराया 300 से 700 तक गैर-ऐसी है और ऐसे कमरे का किराया 700 से 1200 तक है ।

चेक इन चेक आउट समय:- सुबह 8 बजे

श्री-शैलम आकर्षण

चेंचू लक्ष्मी जनजातीय संग्रहालय जो की श्री-शैलम से लगभग 1 किमी  की दूरी पर है |

यह जनजातीय संग्रहालय श्री-शैलम शहर के प्रवेश द्वार के पास स्थित है ।  यह संग्रहालय श्री-शैलम के जंगलों में रहने वाली विभिन्न स्वदेशी जनजातियों के जीवन की एक झलक प्रस्तुत करता है ।  संग्रहालय में चेंचू लक्ष्मी की एक मूर्ति भी देखी जा सकती है जो सनातन संस्कृति की विरासत को दर्शाती है ।  यह संग्रहालय में वन जनजातियों के जीवन, उनकी प्रथाओं और संस्कृति की बेहतर समझ देता है ।  नल्लामाला पहाड़ियों में प्रमुख जनजातियों में से एक चंचा है ।  नल्लामाला वन जन-जातियों का निवास स्थान रहा है, जो बाहरी दुनिया के संपर्क में आज भी नहीं के बराबर हैं ।  हालांकि, सरकार द्वारा कंक्रीट सड़क के निर्माण के बाद, इन जनजातियों के लोग पर्यटकों के साथ घुलने मिलने लगे ।  इस जन-जातीय संग्रहालय में दो मंजिल हैं;  प्रत्येक मंजिल विभिन्न जन-जातियों से संबंधित कलाकृतियों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदर्शित करती है ।  संग्रहालय में प्रदर्शित कुछ वस्तुओं में देवता, हथियार, दैनिक उपयोग की वस्तुएं, संगीत वाद्ययंत्र और कई अन्य शामिल हैं ।  संग्रहालय के आसपास के क्षेत्र में एक पार्क भी है जो डायनासोर, आदिवासी झोपड़ियों आदि की छवियों से भरा है । यहां संग्रहालय की दुकान में स्थानीय रूप से एकत्र शहद बेचा जाता है ।  यहां बेचा जाने वाला शहद जनजातियों के सदस्यों द्वारा एकत्र किया जाता है और राज्य सरकार द्वारा बेचा जाता है ।

साक्षी गणपति मंदिर जो की श्री-शैलम से लगभग 3 कि० मी०  की दूरी पर है |  

साक्षी गणपति मंदिर श्री-शैलम के रास्ते में ही स्थित है ।  इस मंदिर में श्री मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन करने आने वाला हर भक्त आता है ।  ऐसा प्राय माना जाता है कि अगर कोई भक्त साक्षी गणपति मंदिर नहीं जाता है, तो उसकी श्री-शैलम यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है ।  इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान श्री गणेश हैं ।  साक्षी शब्द का अर्थ है साक्षी, भगवान गणेश उन सभी भक्त लोगों का रिकॉर्ड लेखन रखते हैं, जो मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग गए थे, जो भगवान देवो के देव महादेव, शिव  को दिखाया जाता है ।

पाताल गंगा जो की श्री-शैलम से लगभग 1 किमी  की दूरी पर है |

कृष्णा नदी को पाताल गंगा कहा जाता है ।  पहाड़ी के नीचे से बहती है, इसलिए इसे पाताल गंगा कहा जाता है ।  यहां तक ​​पहुंचने के लिए करीब 500 सीढ़ियां उतरकर नीचे जाना पड़ता है ।  नीचे जाने के लिए आप रोप-वे का भी इस्तेमाल कर सकते हैं ।  यहां स्नान करने के बाद भक्तों ने श्री मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन किए ।

पालधरा पंचधारा जो की श्री-शैलम से लगभग 4 किमी  की दूरी पर है |

भगवान आदि शंकराचार्य ने इस स्थान पर तपस्या की और यहां प्रसिद्ध ‘शिवानंदलाहारी’ की रचना की ।  यह जगह एक संकरी घाटी में है जहां पैदल ही पहुंचा जा सकता है ।  160 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं ।  पहाड़ियों से पानी की धारा गिरती रहती है ।  सभी मौसमों में धारा गिरती रहती है ।  यह धारा कृष्णा नदी में मिल जाती है ।  धारा का नाम भगवान देवो के देव महादेव, शिव  से लिया गया है ।  माना जाता है कि पालधारा की उत्पत्ति भगवान देवो के देव महादेव, शिव  के मस्तक से हुई थी ।  धारा के पानी में औषधीय गुण होते हैं इसलिए भक्त अपनी बीमारियों को ठीक करने के लिए यहां से पानी लेते हैं ।  श्री आदि शंकराचार्य ने ८वीं शताब्दी में इस स्थान पर तपस्या की थी ।  था ।  ऐसा कहा जाता है कि इस अवधि के दौरान उन्होंने प्रसिद्ध काम शिवानंदलाहारी की रचना की जिसमें उन्होंने छंदों में भगवान मल्लिकार्जुन की प्रशंसा की ।  श्री आदि शंकराचार्य ने देवी भ्रामराम्बा के बारे में भी लिखा है और एक अन्य रचना, भ्रामराम्बा अष्टक में उनकी प्रशंसा की है ।  इसी के चलते यहां शारदा देवी और श्री आदि शंकराचार्य की मूर्तियां बनाई गई हैं ।

हटकेश्वर मंदिर: जो की श्री-शैलम से लगभग 5 किमी  की दूरी पर है |

‘हटका’ शब्द का अर्थ है सोना ।  इसी स्थान पर भगवान देवो के देव महादेव, शिव  ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था ।  यहां देवो के देव महादेव, शिव  को एक स्वर्ण लिंगम के रूप में पूजा जाता है ।  इसलिए इसे हाटकेश्वरम कहा जाता है ।  मंदिर के सामने 150 फीट क्षेत्रफल की पानी की टंकी भी है ।  इसे हथकेश्वर (हाटकेश्वरम) तीर्थ कहते हैं ।  ऐसा माना जाता है कि जो भक्त यहां स्नान करते हैं और पालधारा-पंचधारा में जल के पिता हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं ।

सिखरेश्वर: जो की श्री-शैलम से लगभग 8 किमी  की दूरी पर है |

श्री-शैलम में सिखेश्वर स्वामी मंदिर एक लोकप्रिय स्थान है ।  श्री-शैलम की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है जिसे सिखराम के नाम से जाना जाता है ।  यह प्राचीन मंदिर वीर शंकर स्वामी को समर्पित है ।  1398 ई. में रेड्डी राजाओं ने यहां सीढ़ियां और एक तालाब बनवाया ।  इस मंदिर से खड़े होकर पूरी घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ।  यहां से पूरे श्री-शैलम मंदिर और कृष्णा नदी का खूबसूरत नजारा आसानी से देखा जा सकता है ।  एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर में स्थापित नंदी जी के सींगों के माध्यम से श्री-शैलम मंदिर को देखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।  मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है ।

श्री-शैलम दामो: जो की श्री-शैलम से लगभग 13 किमी  की दूरी पर है |

श्री-शैलम बांध श्री-शैलम पर्यटन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ।  जो कृष्णा नदी पर बना है ।  नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित, श्री-शैलम बांध देश की दूसरी सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है ।  अपने शांत जल के विशाल खंड के साथ कृष्णा नदी का दृश्य बहुत ही आकर्षक लगता है ।  बरसात के मौसम में जब बांध पूरी तरह से पानी से भर जाता है, तो शिखा के द्वार खोल दिए जाते हैं ।  शिखा के फाटकों से पानी की एक विशाल धारा शक्तिशाली रूप से निकलती है ।  यह दृश्य देखने लायक है ।

अक्का महादेवी गुफाएं: जो की श्री-शैलम से लगभग 10 किमी  की दूरी पर है |

अक्कमहादेवी भगवान मल्लिकार्जुनस्वामी की भक्त थीं ।  उनका जन्म कर्नाटक के शिमोगा जिले के ‘उदुतदी’ गांव में हुआ था ।  उनके माता-पिता सुमति और निर्मला सेती देवो के देव महादेव, शिव  भक्त थे ।  राजा कुशीकुडु ।  उन्होंने इन गुफाओं में तपस्या की ।  ये गुफाएं प्राकृतिक रूप से बनी हैं, बेहद आकर्षक और प्राकृतिक सुंदरता का केंद्र हैं ।

इष्टकामेश्वरी देवी: जो की श्री-शैलम से लगभग 21 किमी  की दूरी पर है |

यह मंदिर श्री-शैलम पहाड़ी के घने जंगल में स्थित है ।  यह मंदिर 8वीं-10वीं सदी का है ।  इष्टकामेश्वरी देवी पार्वती का दूसरा नाम है ।  यहां तक ​​पहुंचना फिलहाल मुश्किल है ।  यहां निजी वाहनों की अनुमति नहीं है और इसलिए वन विभाग के वाहनों को किराए पर लेना पड़ता है ।  मूर्ति की एक विशेषता है कि यदि आप माथे को छूते हैं तो आप मानव त्वचा की तरह महसूस कर सकते हैं ।

श्री-शैलम अभयारण्य: जो की श्री-शैलम से लगभग 30 किमी  की दूरी पर है |

जीप सफारी का समय:- सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक (डेढ़ घंटे)

भारत में सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व, नागार्जुन श्री-शैलम टाइगर रिजर्व, जिसे श्री-शैलम वन्यजीव अभयारण्य के रूप में जाना जाता है, श्री-शैलम में देखने के लिए सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक है ।  3568 वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्रफल को कवर करते हुए तेलंगाना के पांच जिलों में फैला, यह नागार्जुन सागर जलाशय और श्री-शैलम जलाशय के बीच घिरा हुआ है ।  टाइगर रिजर्व का मुख्य क्षेत्र लगभग 1,200 वर्ग किमी है ।  इस अभयारण्य के अंदर, आप कई जंगली जानवरों को देख पाएंगे जिनमें बाघ, लकड़बग्घा, तेंदुआ, ताड़, जंगली बिल्ली, भालू, हिरण शामिल हैं ।  श्री-शैलम टाइगर रिजर्व आपकी यात्रा को यादगार अनुभव बनाता है ।

मल्लेला तीर्थम जलप्रपात (झरना) natural watrfall : जो की श्री-शैलम से लगभग 58 किमी  की दूरी पर है |

मल्लेला तीर्थ श्री-शैलम के पास स्थित एक अद्भुत जलप्रपात (झरना) natural watrfall  है ।  नल्लामाला के शांत घने जंगल के बीच स्थित है ।  यह श्री-शैलम-हैदराबाद राजमार्ग पर एक छोटे से गांव वटवरला पल्ली के पास स्थित है ।  जंगल में वाहन से 10 किमी और 2 किमी पैदल चलकर आगे की दूरी तय करनी पड़ती है ।  देश की दूसरी सबसे लंबी नदी कृष्णा नदी इसी जंगल से होकर बहती है ।  घने जंगल के बीच स्थित इस झरने तक पहुंचने के लिए 350 सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं ।  साहसिक पर्यटन और वन्य जीवन में रुचि रखने वालों के लिए यह एक आदर्श स्थान है ।  प्रकृति की खूबसूरत हरियाली का आनंद लेते हुए जंगल में घूमना और ताजी हवा का आनंद लेना एक रोमांचकारी अनुभव है ।

मंदिर

MALIKARJUN JYOTIRLING

Posted on July 31, 2021August 8, 2021 By Pradeep Sharma
श्री शैल मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग / Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga
श्री शैल मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग / Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga

श्री शैल मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग Sri Sailam Mallikarjuna Jyotirlinga

मल्लिकार्जुन भगवान शिव को समर्पित एक ज्योतिर्लिंग है जो कि भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से दूसरे नंबर का ज्योतिर्लिंग है| जो की भगवान शिव को समर्पित दूसरा ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में श्री शैलम में अवस्थित है-
प्रिय दर्शकों मल्लिकार्जुन के प्रादुर्भाव का प्रसंग का वर्णन प्रस्तुत है www.121holyindia.in पर |
मित्रो! सनातन धर्म में मान्यता है कि भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के प्रादुर्भाव की महिमा कथा सुनकर बुद्धिमान पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं|
आओ आपको बताते है भगवान शिव के दूसरे ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन के प्रादुर्भाव की महिमा कथा-
शिव पुराण के अनुसार जब महाबली शिवा पुत्र कुमार कार्तिकेय संपूर्ण सृष्टि की परिक्रमा करके पुनः कैलाश पर्वत पर आए और भगवान श्री गणेश के विवाह आदि की बात सुनते है और भगवान् गणेश को विजयी होते देख वे इस बात से सहमत नहीं होते है | क्योकि वे ही सर्वप्रथम सृष्टी की परिक्रमा करते है जबकि भगवान् गणेश तो कैलाश से जाते ही नहीं है और अपने माता पिता की परिक्रमा कर ही इस प्रतियोगिता को जीत लेते है |और वे अपने भाई गणेश से इर्ष्या कर बैठते है बाद में महाबली कार्तिकेय को अपने पिता महादेव की शिक्षा दीक्षा का स्मरण हो जाता है| तब उन्हें इस बात का वास्तविक आभास हो जाता है की यथार्त में तो श्री भगवान् गणेश ही इस प्रतियोगिता में विजयी हुए है और यही सत्य एवं उचित है| तब कार्तिकेय को भगवान् गणेश के प्रति अपने दुर्व्यवहार के लिए आत्म ग्लानी होती है | फिर वो अपनी आत्मग्लानी के पश्च्याताप हेतु क्रौंच पर्वत पर चले जाते है, उसके बाद माता पार्वती और शिव जी के वहां जाकर अनुरोध करने पर भी कार्तिकेय भगवान वापस नहीं लौटे और वहां से भी 12 कोस की दूरी पर आगे चले गए और वहा तप में लीन हो जाते है इसके कारण भगवान शिव और माता पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारण करके वहां प्रतिष्ठित हो जाते हैं|
देवादि-देव महादेव शिव और माता पार्वती, पुत्र स्नेह से आतुर होकर अपने पुत्र कुमार कार्तिकेय को देखने के लिए उनके पास जाया करते हैं अमावस्या के दिन भगवान शंकर स्वयं वहां जाते हैं और पूर्णमासी के दिन माता पार्वती जी निश्चय ही वहां पदार्पण करते हैं|
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दक्षिण भारत में कैलाश की संज्ञा दी जाती है| इस ज्योतिर्लिंग की सबसे विशेष बात यह है कि यह एक ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों का संगम है
उसी दिन से लेकर आज तक भगवान शिव का मल्लिकार्जुन नामक एक लिंग तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुआ| (उसमें माता पार्वती और शिव दोनों की ज्योतिया प्रतिष्ठित है “मल्लिका” का अर्थ माता पार्वती जी से हैं और अर्जुन शब्द “शिव” का वाचक है) | उस लिंग का जो दर्शन करता है वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और संपूर्ण अभीष्ट को प्राप्त कर लेता है इसमें कोई संशय नहीं है| इस प्रकार मल्लिकार्जुन नामक द्वितीय ज्योतिर्लिंग का 121holyindia.in पर वर्णन किया गया जो दर्शन मात्र से लोगों के लिए सब प्रकार का सुख देने वाला बताया गया है |
मंदिर के खुले रहने का समय –
मंदिर सुबह 5:30 बजे से रात्रि 9:30 बजे तक खुला रहता है
महाशिवरात्रि के दिन यहां विशेष पर्व बड़े उत्साह उमंग से वह हर्ष उल्लास से मनाया जाता है
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग केसे पहुचे
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग तीर्थ पर पहुंचने के लिए हम हमारी यात्रा को सर्वप्रथम हमारे निवास स्थान से हैदराबाद तक तय करेंगे और हैदराबाद पहुंचने के बाद 327 किलोमीटर की यात्रा को हम तय करके मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पहुंच सकते हैं
उत्तर भारत से कोई भी दर्शनार्थी यदि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन हेतु जाना चाहता है तो उसे सर्वप्रथम हैदराबाद तक की यात्रा तय करनी होगी उसके पश्चात वह हैदराबाद से बस एवं टैक्सी की सर्विस लेकर के श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग तीर्थ धाम तक पहुंच सकता है जिसके लिए 327 किलोमीटर की यात्रा तय करनी होती है

मंदिर

What is the history and glory and importance of Shri Somnath temple?

Posted on July 29, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

भारतीय उप-महाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थ-स्थान देश के प्राचीनतम तीर्थ-स्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंद-पुराण, श्री-मद्‍भागवत गीता, शिव-पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।

श्री सोमनाथ मंदिर का इतिहास और महिमा तथा महत्त्व क्या है ?

भारत के गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में  भगवान् शिव का यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पौराणिक समय में  यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से ख्यातिप्राप्त  था अर्थात इस नाम से इस क्षेत्र को जाना जाता था । यहीं भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का वरण किया था। यहां के ज्योतिर्लिंग की कथा का सनातन धर्म के अनेक पुराणों में वर्णन है, यहाँ हम शिव पुराण की कथा के माध्यम से इस मंदिर के इतिहास और महात्म्य के विषय में जानने का प्रयास करेंगे |

शिव पुराण में सोमेश्वर महादेव मंदिर अर्थात श्री सोमनाथ मंदिर का इतिहास और महिमा का वर्णन

राजा दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। राजा दक्ष ने उन सभी का विवाह चंद्रदेव के किया था। किंतु चंद्रदेव का समस्त अनुराग व प्रेम तथा आकर्षण उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से राजा दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी पीड़ा की व्यथा-कथा अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया।

किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर, इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः राजा दक्ष ने क्रोधित  होकर उन्हें ‘क्षय-ग्रस्त’ हो जाने का श्राप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काच ल क्षय-ग्रस्त हो गए। उनके क्षय-ग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। क्योंकि चंद्रदेव सृष्टी वासियों के मन के कारक है, और उन्ही से समस्त सृष्टी वासियों को मन की शीतलता प्राप्त होती है | चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे। सम्पूर्ण सृष्टी पर इस बात का नकारात्मक परिणाम आने लगता है |

चन्द्रदेव अपनी व्याधि की पीड़ा देवराज इंद्र को सुनाते है | उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास जाते है । सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- ‘चंद्रमा अपने श्राप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभास-क्षेत्र में जाकर महा मृत्युंजय भगवान्‌ शिव की आराधना व् उपासना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका श्राप नष्ट हो जाएगा और चन्द्रमा क्षय के रोग से मक्त हो जाएंगे। ऐसा उपाय ब्रह्माजी श्री चन्द्र देव को बतलाते है |

मित्रो आप सभी को बतला दे की वर्तमान समय में यह प्रभास क्षेत्र भारत के गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे के एक विशिष्ट स्थान को कहा जाता है जो की सोमनाथ मंदिर परिसर है |

 

प्रजापिता श्री ब्रह्मा जी के  कथनानुसार चंद्रदेव ने महा मृत्युंजय भगवान्‌ की आराधना और उपासना  का सारा कार्य शुरू कर छह माह तक तपश्या की । चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान्‌ शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार महा मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- है सोमेश्वर ‘चंद्रदेव! कलानिधे  तुम व्यर्थ शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा श्राप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।

माह के एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः दुसरे पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।’ चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण अर्थात शीतलता के वितरण का कार्य पूर्ववत्‌ करने लगे।

श्राप से  मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान्‌ से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए भूलोक के प्राणियों के उद्धार के लिए यहाँ निवास करें। भगवान्‌ शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे।

इस ज्योतिर्लिंग को सोमदेव अर्थात चन्द्र देव के द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं।

वर्तमान समय में

भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराण, श्रीमद्‍भागवत गीता, शिवपुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।

यह लिंग शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार मुग़ल आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर 6 बार आक्रमण किया। इसके बाद भी इस मंदिर का वर्तमान अस्तित्व इसके पुनर्निर्माण के प्रयास और सांप्रदायिक सद्‍भावना का ही परिचायक है। सातवीं बार यह मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में बनाया गया है। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं।

यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का वजन दस टन है और इसकी शिखर की ध्वजा 27 फुट ऊंची है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्‍भुत साक्ष्य माना जाता है। आप दर्शको एवं पाठको को बता दे की इस मंदिर का पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई के द्वारा  करवाया गया था।

श्री सोमनाथ मंदिर कैसे पहुंचें?

How to Reach Somnath Mandir

मित्रो वायु मार्ग से सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए – सोमनाथ से 55 किलोमीटर की दुरी पर स्थित केशोड नामक स्थान से सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा उपलब्ध है। केशोड और सोमनाथ के बीच बस व टैक्सी सेवा भी सहजता से उपलब्ध होती है। साथ ही रेल मार्ग से सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए – सोमनाथ के सबसे समीप वेरावल रेलवे स्टेशन है, जो वहां से मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहाँ से अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों का सीधा संपर्क है। इसके अलावा सड़क परिवहन से सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए – सोमनाथ वेरावल से 7 किलोमीटर, मुंबई 889 किलोमीटर, अहमदाबाद 400 किलोमीटर, भावनगर 266 किलोमीटर, जूनागढ़ 85 और पोरबंदर से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। पूरे राज्य में इस स्थान के लिए बस सेवा उपलब्ध है। विश्रामशाला- इस स्थान पर तीर्थयात्रियों के लिए गेस्ट हाउस, विश्रामशाला व धर्मशाला की व्यवस्था है। साधारण व किफायती सेवाएं उपलब्ध हैं। वेरावल में भी रुकने की व्यवस्था है।

 

मंदिर

पिशाच मुक्तेश्वर महादेव मंदिर

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

पिशाच मुक्तेश्वर महादेव मंदिर की कहानी

कलियुग में सोमा नाम का शूद्र हुअ करता था। धनवान होने के साथ ही सोमा नास्तिक था। वह हमेशा वेदों की निंदा करता था। उसको संतान नहीं थी। सोमा हमेशा हिंसावृत्ति में रहकर अपना जीवन व्यतीत करता था। इसी स्वभाव के कारण सोमा कष्ट के साथ मरण को प्राप्त हुआ। इसके बाद सोमा पिशाच्य योनि को प्राप्त हुआ। नग्न शरीर ओर भयावह आकृति वाला पिशाच्य मार्गो पर खड़े होकर लोगो को मारने लगा। एक समय वेद विद्या जानने वाले सदा सत्य बोलने वाले कहीं जा रहे थे, पिशाच्य उनको खाने के लिए दौड़ा। तभी ब्राम्हण को देखकर पिशाच्य रूक गया ओर संज्ञाहीन हो गया। पिशाच्य को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है। ब्राम्हण ने पिशाच्य से पूछा तुम मुझसे घबरा क्यों रहे हो। पिशाच्य ने कहा तुम ब्रम्ह राक्षस हो इसलिए मुझे तुमसे भय लग रहा है। यह सब सुनकर ब्रम्हण हंसने लगे ओर पिशाच्य को पिशाच्य योनि से मुक्त होने का मार्ग बताया। उन्होने कहा द्रव्य हरण करने ओर देवता के द्रव्य को चुराने वाला पिशाच्य योनी को प्राप्त होता है। ब्राम्हण के कटु वचनों को सुनकर पिशाच्य ने मुक्ति का मार्ग पूछा। ब्राम्हण ने बताया कि सब तीर्थो में उत्तम तीर्थ है अवंतिका तीर्थ जो प्रलय में अक्षय रहती है। वंहा पिशाच्य का नाश करने वाले महादेव है। ढूंढेश्वर के दक्षिण में देवताओं से पूजित पिशाचत्व को नाश करने वाले महादेव है। ब्राम्हण के वचनो को सुनकर वह जल्दी से वहां से महाकाल वन की ओर चल दिया। वहां क्षिप्रा के जल से स्नान कर उसने पिशाच मुक्तेश्वर के दर्शन किए। दर्शन मात्र से पिशाच दिव्य देव को प्राप्त हो गया। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पिशाच मुक्तेश्वर महादेव का दर्शन कर पूजन करता है उसे धन ओर पुत्र का वियोग नहीं होता ओर संसार में सभी सुखों को भोगकर अंतकाल में परमगति को प्राप्त करता है।

मंदिर

SANGAMESHWAR MAHADEV MANDIR UJJAIN

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

संगमेश्वर महादेव मंदिर की कहानी

बहुत पुरानी बात है। कलिंग देश में सुबाहू नाम के राजा हुआ करते थे। उनकी पत्नी दृढधन्वा (कांचीपुरी के राजा) की कन्या विशालाक्षी नाम की थी। दोनो परस्पर प्रेम से रहते थे। राजा को माथे मे दोपहर में रोज पीडा हुआ करती थी। निपुण वैद्यों ने ओषधियां दी किन्तु पीडा दूर नही हुई। रानी ने राजा से पीडा का कारण पूछा। राजा ने रानी को दुखी देखकर कहा, पूर्व जन्म में कर्म से शरीर को सुख-दुख हुआ करता है। इतना सुनने के बाद भी रानी संतुष्ट नही हुई। तब राजा ने कहां में इसका कारण यहां नही कहूंगा। महाकाल वन मे चलों वहां पूरी बात समझा सकूंगा। सुबह होते ही राजा सेना ओर रानी के साथ महाकाल वन अंवतिका नगरी की ओर चल दिए। पाताल में गमन करने वाली गंगा तथा नीलगंगा ओर क्षिप्रा इनका जहां संगम हुआ है वहां ठहरा ओर इनके पास जो महादेव है उनका नाम संगमेश्वर है। राजा ने क्षिप्रा तथा पाताल गंगा का जल लेकर महादेव का पूजन किया। इतना सब देखकर रानी ने फिर पूछा राजन अपने दुख का कारण बताइए। राजा ने हंसते हुए कहा रानी आज तो थक गए है कल बताएगें। सुबह रानी ने फिर पूछा कि अब तो बता दीजीए। तब राजा ने कहा पूर्व जन्म में में नीच शुद्र था। वेदों की निंदा करने के साथ लोगो के साथ विश्वासघात करता था। तुम भी मेरे साथ इस कार्य में भागीदारी निभाती थी। हमसे जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह भी पापी हुआ तथा बारह वर्ष तक अनावृष्टि के कारण प्राणी मात्र दुखी हो गए भयभीत रहने लगा। उस समय मुझे वियोग हो गया। मै अकेला रहने लगा। तब मुझे वैराग्य प्राप्त हुआ ओर अंत मे मैने कहा धर्म ही श्रेष्ठ है, पाप करना बुरा है। मैने अंत समय में धर्म की प्रशंसा की थी इसलिए क्षिप्रा जी में मत्स्य बना ओर तुम उसी वन में श्येनी (कबूतनी) बन गई। एक दिन दोपहर को अश्लेषा के सूर्य (श्रावण) में त्रिवेणी से बाहर निकला ओर तुम्हे लेकर संगमेश्वर के पास ले गया। पारधि ने हम दोनो का शिकार कर लिया। हमने अंत समय में संगमेश्वर के दर्शन किये थे, इसलिए पृथ्वी पर जन्म मिला है। सारी बाते बताकर राजा ने कहा रानी अब मै हमेशा संगमेश्वर महादेव के पास रहुगा। रानी यदि तुम्हे जाना हो तो पुनः राजमहल लौट जाओं । रानी ने कहा राजन जैसे शिव बिना पार्वती, कृष्ण बिना राधा ठीक उसी प्राकर में आपके बिना अधूरी हूं। मान्यता है कि पूर्व जन्मों में वियोग से मरे हुए पति पत्नी संगमेश्वर महादेव के दर्शन से मिल जाते है।

मंदिर

SHREE PRAYAGESHWAR MANDIR, UJJAIN

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

श्री प्रयागेश्वर महादेव, मंदिर की कहानी  

काफी समय पहले एक राजा थे शांतनु। धर्मात्मा ओर वेदों को जानने वाले राजा एक दिन सेना के साथ शिकार करने लिए वन में गए। वहा एक स्त्री को देखा। राजा ने उससे परिचय पूछा तो स्त्री ने कहा कि राजन आप मेरा परिचय न पूछें, आप जो चाहते है उसके लिए वह तैयार है। इसके लिए उसने एक शर्त रखी की वह रानी बनने के बाद जो भी करें राजा कभी उससे उस बारे में कुछ नही पुछेगा। राजा ने स्वीकृति दी ओर स्त्री से विवाह के कर लिया। विवाह के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया और तुरंत नदी में प्रवाहित कर दिया। वचन के कारण राजा रानी से प्रश्न न पूछ सका। आठवें पुत्र को रानी नदी में प्रावाहित करने जा रही थी, तभी राजा ने रानी को रोका और कहा कि तुम इस पुत्र को नदी में प्रवाहित मत करों। रानी ने कहा कि आपको पुत्र चाहिए मै आपको पुत्र सौपती हूं और वचन को तोडने के कारण मै आपका त्याग करती हूं। मै जन्हू की कन्या गंगा हूं और देवताओं के कार्य सिद्ध करने के लिए मैने आपसे विवाह किया था। यह आठ वसु है जो वश्ष्ठि ऋषि के श्राप के कारण मनुष्य योनि में आए थे। गंगा वहां से आगे जाकर पुत्र हत्या के पाप के कारण रूदन करने लगी। गंगा के रूदन को सुनकर नारद मुनि आए और रूदन का कारण पूछा। गंगा ने कहा महर्षि मैने पुत्रो की हत्या की है। मुझे इस पापकर्म से मुक्ति कैसे मिलेगी। नारद मुनि ने कहा गंगा तुम अवंतिका नगरी में जाओं जहां तुम्हारी सखी क्षिप्रा रहती है । वहां दुर्धेश्वर महादेव के दक्षिण में स्थित महादेव का पूजन करों, जिससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगें। गंगा अवंतिका नगरी आई ओर सखी क्षिप्रा के साथ मिलकर भगवान शिव का पूजन किया। फिर वहां सूर्य की पुत्री यमुना ओर फिर सरस्वती भी आ मिली। इस बीच इंद्र ने नारद मुनि से पूछा कि मुनिवर प्रयाग नजर नही आ रहा तो नारद ने कहा कि वह महाकाल वन में गया होगा, जहां चार नदियों का मिलन हो रहा है। प्रयाग के बाद इन चार नदियों के मिलन के कारण शिवलिंग प्रयागेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। मान्यता है कि जो भी मनुष्य प्रयागेश्वर महोदव के दर्शन कर पूजन करता है उसके सभी पापों का नाश होता है ओर मोक्ष को प्राप्त करता है।

मंदिर

SHREE PUSHPDANTESHWAR MANDIR STORY, UJAAIN

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

श्री पुष्पदन्तेश्वर महादेव, मंदिर की कहानी –

काफी समय पहले एक ब्राम्हण था तिमि। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसने कई प्रकार से भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की । शिव के प्रसन्न न होने पर उसने और भी अधिक कठोर तप प्रांरभ कर दिया, इस प्राकर बारह वर्ष बीत गए। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शंकर को कहा कि यह तिमि नामक ब्राम्हण कई वर्षो से आपकी आराधना कर रहा है। उसके तेज से पर्वत प्रकाशमान है ओर समुद्र सूख रहा है। आप उसकी कामना की पूर्ति करें। पार्वती की बात मानकर शिव ने अपने गणो को बुलया ओर कहा कि तुम मे से कोई एक ब्राम्हण के यहां पुत्र रूप में जन्म लो। इस पर शिव के एक गण पुष्पदंत ने कहा कि प्रभु कहां पृथ्वी पर जन्म लेकर दुख भोगेगे हम आपके पास कुशल से है। शिव ने क्रोध में कहा कि तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी अब तुम पृथ्वी जाओं। शिव के श्राप के कारण पुष्पदंत पृथ्वी पर गिर पड़ा। शिव ने दूसरे गण वीरक से का वीरक तुम ब्राम्हण के घर जन्म लो, मै तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करूगा। पुत्र पाकर ब्राम्हण प्रसन्न हुआ। दूसरी ओर पुष्पदंत रूदन करेन लगा ओर कहा कि उसने शिव की आज्ञा नहीं मानी। तब पार्वती ले उससे कहां कि पुष्पदंत तुम महाकाल वन के उत्तर में महादेव है उकना पूजन करों। शिव ने भी पुप्पदंत को शिवलिंग की उपासना करने की आज्ञा दी। पुष्पदंत महाकाल वन गया ओर वहां शिवलिंग के दर्शन कर पूजन किया। उसके पूजन से शिव प्रसन्न हुए ओर अपनी गोद में बैठाया। उसे उत्तम स्थान दिया। पुष्पदंत के पूजन करने के कारण शिवलिंग पुष्पदंतेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पुष्पदंतेश्वर के दर्शन करेगा उसके कुल में सात कुलो का उद्धार होगा ओर अंतकाल में शिवलोक को प्राप्त करेगा।

मंदिर

Ujaain ke 84 Mahadev Mandir

Posted on July 26, 2021July 26, 2021 By Pradeep Sharma
उज्जैन के चौरासी महादेव की सूची इस प्रकार है
1 श्री अगस्त्येश्वर महादेव,
2 श्री गुहेश्वर महादेव,
3 श्री ढूँढ़ेश्वर महादेव,
4 श्री डमरुकेश्वर महादेव,
5 श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव,
6श्री स्वर्णजालेश्वर महादेव,
7 श्री त्रिविष्टपेश्वर महादेव,
8 श्री कपालेश्वर महादेव,
9 श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव,
10 श्री कर्कोटकेश्वर महादेव,
11 श्री सिद्धेश्वर महादेव,
12 श्री लोकपालेश्वर महादेव,
13 श्री कामेश्वर महादेव,
14 श्री कुटुम्बेश्वर महादेव,
15 श्री इन्द्रद्युम्नेश्वर महादेव,
16 श्री ईशानेश्वर महादेव,
17 श्री अप्सरेश्वर महादेव,
18 श्री कलकलेश्वर महादेव,
19 श्री नागचण्डेश्वर महादेव,
20 श्री प्रतिहारेश्वर महादेव,
21 श्री कुटुम्बकेश्वर महादेव,
22 श्री कर्कटेश्वर महादेव,
23 श्री मेघनादेश्वर महादेव,
24 श्री महालयेश्वर महादेव,
25 श्री मुक्तेश्वर महादेव,
26 श्री सोमेश्वर महादेव,
27 श्री अनरकेश्वर महादेव,
28 श्री जटेश्वर महादेव,
29 श्री रामेश्वर महादेव,
30 श्री च्यवनेश्वर महादेव,
31 श्री खण्डेश्वर महादेव,
32 श्री पत्तनेश्वर महादेव,
33 श्री आनंदेश्वर महादेव,
34 श्री कन्थडेश्वर महादेव,
35 श्री इंद्रेश्वर महादेव,
36 श्री मार्कण्डेश्वर महादेव,
37 श्री शिवेश्वर महादेव,
38 श्री कुसुमेश्वर महादेव,
39 श्री अक्रूरेश्वर महादेव,
40 श्री कुण्डेश्वर महादेव,
41 श्री लुम्पेश्वर महादेव,
42 श्री गंगेश्वर महादेव,
43 श्री अंगारेश्वर महादेव,
44 श्री उत्तरेश्वर महादेव,
45 श्री त्रिलोचनेश्वर महादेव,
46 श्री वीरेश्वर महादेव,
47 श्री नूपुरेश्वर महादेव,
48 श्री अभयेश्वर महादेव,
49 श्री पृथुकेश्वर महादेव,
50 श्री स्थावरेश्वर महादेव,
51 श्री शूलेश्वर महादेव,
52 श्री ओंकारेश्वर महादेव,
53 श्री विश्वेश्वर महादेव,
54 श्री कंटेश्वर महादेव,
55 श्री सिंहेश्वर महादेव,
56 श्री रेवन्तेश्वर महादेव,
57 श्री घंटेश्वर महादेव,
58 श्री प्रयागेश्वर महादेव,
59 श्री सिद्धेश्वर महादेव,
60 श्री मातंगेश्वर महादेव,
61 श्री सौभाग्येश्वर महादेव,
62 श्री रुपेश्वर महादेव,
63 श्री धनु: साहस्त्रेश्वर महादेव,
64 श्री पशुपतेश्वर महादेव,
65 श्री ब्रम्हेश्वर महादेव,
66 श्री जल्पेश्वर महादेव,
67 श्री केदारेश्वर महादेव,
68 श्री पिशाचमुक्तेश्वर महादेव,
69 श्री संगमेश्वर महादेव,
70 श्री दुर्घरेश्वर महादेव,
71 श्री प्रयागेश्वर महादेव,
72 श्री चन्द्रादित्येश्वर महादेव,
73 श्री करभेश्वर महादेव,
74 श्री राजस्थलेश्वर महादेव,
75 श्री बडलेश्वर महादेव,
76 श्री अरुणेश्वर महादेव,
77 श्री पुष्पदन्तेश्वर महादेव,
78 श्री अविमुक्तेश्वर महादेव,
79 श्री हनुमत्केश्वर महादेव,
80 श्री स्वप्नेश्वर महादेव,
81 श्री पिंगलेश्वर महादेव,
82 श्री कायावरोहणेश्वर महादेव,
83 श्री बिल्वेश्वर महादेव,
84 श्री दुदुरेश्वर महादेव।
मंदिर

Dwarikadheesh Awataar Shree Baba Ramdev Peer (Ramsa Peer) Runicha Dhaam

Posted on July 22, 2021July 22, 2021 By Pradeep Sharma

प्रिय पाठकों आप सभी का www.121holyindia.in पर स्वागत है | आपको दिन-प्रतिदिन हम भारतवर्ष के तमाम अलग-अलग क्षेत्रों में सनातन धर्म संस्कृति से जुड़े हुए विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिरों की मानस यात्रा करवाते हैं |
हमारे लिए गौरव का विषय है कि आज हम आप सभी को www.121holyindia.in के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के अंश-अवतार कलयुग के भगवान श्री बाबा रामदेव जी के मानस दर्शन की यात्रा करवाएंगे |

भगवान श्री बाबा रामदेवजी की श्रद्धा का विषय हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों से जुड़ा हुआ है |

भगवान् श्री बाबा रामदेव जी के समाधि स्थल का वर्णन

जन-जन का आस्था का केन्द्र रामदेवरा राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले में पोकरण नामक ग्राम से लगभग 21 कि.मी. उत्तर दिशा में स्थित है। जहां बाबा रामदेव का तीर्थ स्थान है उस गांव को रुणिचा गांव कहते हैं|रुणिचा धाम जोधपुर पोकरण रेल मार्ग के माध्यम से वह बीकानेर से रेल मार्ग के माध्यम से वह सड़क मार्ग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है | यह धाम जोधपुर-पोकरण रेलमार्ग एवं बीकानेर-रामदेवरा मोटर मार्ग से जुड़ा हुआ है । इस रुणिचा गांव की स्थापना भगवान श्री बाबा रामदेव के द्वारा ही की गई है क्योंकि रुणिचा गांव में भगवान श्री रामदेव का धाम है अतः इस गांव को रामदेवरा के नाम से भी जाना जाता है अमूमन तौर पर रामदेवरा ही कहा जाता है और रामदेवरा तीर्थ के नाम से यह गांव प्रसिद्ध है|

उनकी पावन-स्मृति में प्रतिवर्ष दो बार – शुक्ला 10 तथा माघ शुक्ला 10 को मेला लगता है । इस मेले में राजस्थान, गुजरात, पंजाब, मध्यप्रदेश इत्यादि प्रांतों के सहस्त्रों नर-नारी भाग लेते हैं तथा बाबा रामदेवजी के दर्शन, रामसरोवर मर मज्जन, बावड़ी के जल का आचमन एवं नगर प्रदक्षिणा करके अपने आप को कृतकृत्य समझते हैं । तेरहताली नृत्य मेले का प्रमुख आकर्षण है । इसे कामड़िया लोग प्रस्तुत करते हैं ।

श्री रामदेव जी का जन्म संवत् 1409 में भाद्र मास की दूज को राजा अजमल जी के घर हुआ । संवत् 1426 में अमर कोट के ठाकुर दल जी सोढ़ की पुत्री नैतलदे के साथ श्री रामदेव जी का विवाह हुआ । संवत् 1425 में रामदेव जी महाराज ने पोकरण से 12 कि०मी० उत्तर दिशा में एक गांव की स्थापना की जिसका नाम रूणिचा रखा । भगवान रामदेव जी अतिथियों की सेवा में ही अपना धर्म समझते थे । अंधे, लूले-लंगड़े, कोढ़ी व दुखियों को हमेशा हृदय से लगाकर रखते थे । वर्तमान में रूणिचा को रामदेवरा के नाम से पुकारा जाता है ।

रामदेव जी के वर्तमान मंदिर के निर्माण के विषय मे-

रामदेवरा में स्थित रामदेवजी के वर्तमान मंदिर का निर्माण सन् 1939 में बीकानेर के महाराजा श्री गंगासिंह जी ने करवाया था । देश में ऐसे अनूठे मंदिर कम ही हैं जो हिन्दू मुसलमान दोनों की आस्था के केन्द्र बिन्दु हैं । बाबा रामदेव का मंदिर इस दृष्टि से भी अनुपम है कि वहां बाबा रामदेव की मूर्ति भी है और मजार भी । बाबा के पवित्र राम सरोवर में स्नान से अनेक चर्मरोगों से मुक्ति मिलती है ।

जैसलमेर जिले में स्थित बाबारामदेव का (रुणीचा) नामक स्थान जन-जन की आस्था का केन्द्र स्थल है । यह देश-विदेश से यात्री मन्नत माँगने एवं पुण्य लाभ कमाने आते हैं ।पोकरण परमाणु परीक्षण स्थल से मात्र 13 कि.मी. की दुरी पर स्थित यह पवित्र स्थल हिन्दू, मुस्लिम सभी के लिए श्रद्धा केन्द्र  है । इसके आलावा सभी हिन्दू-मुस्लिम लोग यहाँ आकर पुण्य कमाते हैं । हिन्दुओं में यह बाबा रामदेव के नाम से पूजे जाते हैं तो मुसलमानों में बाबा रामशाह पीर के नाम से पूजे जाते हैं ।

वि.सं. संवत् 1442 को रामदेव जी ने जीवित समाधी ली । बाबा ने जिस स्‍थान पर समाधी ली, उस स्‍थान पर बीकानेर के राजा गंगासिंह ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया इस मंदिर में बाबा की समाधी के अलावा उनके परिवार वालो की समाधियाँ भी स्थित है । मंदिर परिसर में बाबा की मुंहबोली बहिन डाली बाई की समाधी, डालीबाई का कंगन एवं राम झरोखा भी स्थित हैं ।

बाबा रामदेव जी ने जब समाधि ली तो समाधि लेने से पहले आम जन समुदाय को उन्होंने एक समुदाय संदेश दिया वह संदेश इस प्रकार है-

महे तो चाल्‍या म्‍हारे गाँव, थां सगळा ने राम राम |

जग में चम‍के थारों नाम, करज्‍यों चोखा चोखा काम ||

ऊँचो ना निंचो कोई, सरखो सगळा में लोही |

कुण बामण ने कुण चमार, सगळा में वो ही करतार ||

के हिन्‍दू के मुसळमान, एक बराबर सब इंशान |

ईश्‍वर अल्‍लाह तेरो नाम, भजता रहिज्‍यों सुबह शाम ||

म्‍हे तो चाल्‍या म्‍हारे गाँव, थां सगळा ने राम राम |

थां सगळा ने राम राम ||

मंदिर

Bell Temple, Tilinga Mandir, Tinsukia, Asam (India)

Posted on July 22, 2021July 22, 2021 By Pradeep Sharma

भगवान शिव का ऐसा मंदिर जहां हजारो की संख्या में बंधी घंटिया आकर्षण का मुख्य केंद्र है |

प्यारे दर्शको एवं पाठको 121holyindia.in में एक और नए तीर्थ की मानस यात्रा में आगे बढ़ने से पहले मैं आप सभी का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ की आप सभी मेरे youtube चैनल मानस यात्रा से जुड़े और मेरे साथ विभिन्न तीर्थो की मानस यात्रा में मेरे सहभागी बने | मैं हृदय की गहराइयो से आप सभी शुक्र गुजार हूँ |

आज हम जिस तीर्थ की 121holyindia.in के माध्यम से जिस नये तीर्थ की यात्रा करने जा रहे है वह भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर जिसे आप और हम सभी तिलिंगा मंदिर तिनसुकिया के नाम से जानते है। इस मंदिर की खास बात यह है की इसके चारो ओर हजारो की संख्या में छोटी और बड़ी सभी तरह की अलग अलग घंटिया बंधी हुई है इसी कारण से इस मंदिर को, बेल टेंपल भी कहा जाता है। यह घंटिया अगल-अलग आकार की हैं और अलग-अलग धातु जैसे कॉपर, कांसा, एल्यूमिनियम और पीतल की बनी होती हैं। ये घंटियां बरगद के पेड़ की शाखाओं पर बंधी हुई हैं।

यह मंदिर भारत के आसाम प्रांत के तिनसुकिया शहर से लगभग 7 किमी दूर,  बोरदुबी गाँव  में स्थित है | तिलिंग मंदिर के परिसर में बंधी हजारों घंटियों की झनझनाहट व् घंटियों की आवाज से   से एक अदभुदत मनोरम्य संगीत का निर्माण स्वत ही बन जाता है। जो यहाँ के दर्शनार्थियों के आकर्षण की मुख्य वजह है| शहर की हलचल से दूर, ब्रह्मपुत्र के उत्तरी तट की ओर हरे-भरे चाय बागानों के लंबे हिस्सों के बीच मंदिर एक शांत वातावरण का निर्माण करता है। तिलिंग मंदिर का शाब्दिक अर्थ घंटी मंदिर है। अपने शांतिपूर्ण परिवेश और इससे जुड़ी मजबूत धार्मिक मान्यताओं के कारण, यह मंदिर एक अत्यंत लोकप्रिय स्थान है जो लोगों की भीड़ अर्थात दर्शनार्थियों व् पर्यटकों को आकर्षित करता है।

घंटियों के ढेर के साथ, तिलिंग मंदिर विभिन्न आकारों और प्रकारों की सबसे बड़ी संख्या में घंटियों की मेजबानी करने का रिकॉर्ड रखता है। मंदिर के इतिहास और निर्माण की कहानी का पता वर्ष 1965  से लगाया जा सकता है,  जब पास के ही चाय बागानों के श्रमिकों ने एक बरगद के पेड़ के पास जमीन से एक शिव लिंग निकलते देखा था। तब उन सभी ने इसके चारों ओर एक मंदिर परिसर बनाने का फैसला किया, जिसे अंततः तिलिंग मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। आप और हम सभी जानते है की सामान्य रूप से मंदिर का निर्माण पहले होता है फिर उसमे भगवान् की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया जाता है किन्तु यह भगवान् पहले ही प्रतिष्ठित थे और मंदिर का निर्माण बाद में हुआ | यह मंदिर भगवान् शिव का स्वयं भू मंदिर है, जहा भगवान् स्वत ही भूगर्भ के बहार आये है|

तिलिंग मंदिर की यात्रा दर्शनीय स्थलों के कई अन्य विकल्पों के साथ की जा सकती है। दर्शनार्थियो व् पर्यटकों के द्वारा तिलिंग मंदिर की यात्रा के दौरान,  कोई रुक्मिणी द्वीप,  देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य,  लखीपाथर,  ऐथान आदि की यात्रा करना पसंद किया जाता है। कुछ दर्शनार्थियो व् पर्यटकों के द्वारा आसपास के चाय बागानों में घूमना भी पसंद किया जाता है ताकि उनकी आंखों को हरी-भरी हरियाली का आनंद और लुफ्त मिले।

यहाँ पहुचने के लिए रेलमार्ग के माध्यम से निकटतम रेलवे स्टेशन: तिनसुकिया रेलवे स्टेशन का प्रयोग किया जा सकता है और हवाई मार्ग से यात्रा करने के लिए निकटतम हवाई अड्डा: मोहनबाड़ी हवाई अड्डा, डिब्रूगढ़ का उपयोग लिया जा सकता है|

आशा करता हूँ आप सभी को हमारी यह मानस यात्रा पसंद आयी होगी | आप सभी भक्तजनों को भगवान् शिव को समर्पित श्रावन मास की हार्दिक शुभकामनाये और खूब खूब अभिनन्दन|

ईश्वर श्री भोलेनाथ भोले शंकर हम सभी का कल्याण करे|

जय श्री भोले बाबा की |

मंदिर

KYO HOTI HAI KHATU ME SHYAAM KI POOJA

Posted on June 27, 2021July 22, 2021 By Pradeep Sharma

क्यों होती है खाटू गाँव में श्याम कि पूजा ?

नमस्कार पाठको बाबा श्याम धणी खाटूश्याम जी का पवित्र तीर्थस्थल राजस्थान के शेखावाटी आँचल में सीकर जिले के “खाटू” गाँव में है। यह जिला मुख्यालय से 48 कि.मी., रींगस से 16 कि.मी. और दांतारामगढ़ तहसील से 30 कि.मी. की दुरी पर अवस्थित है । खाटूश्याम जी तीर्थ नगरी तक सड़क मार्ग के माध्यम से पंहुचा जा सकता है| जयपुर से रींगस होकर खाटूश्यामजी 68 किलोमीटर तक पक्की सड़क मार्ग है यह जयपुर ससे पहुचने में करीब सवा घंटा लगता है ।

यह मन्दिर भगवान् श्रीकृष्ण के ही अवतार स्वरूप श्यामजी का है । श्यामजी की प्रतिमा के विषय में महाभारत कालीन इस कहानी का उल्लेख है कि श्रीकृष्ण ने पांडू पुत्र पांडव भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का सिर दान में मांग लिया था, फिर उसको एक पर्वत शिखर पर स्थित कर दिया जहाँ से उसने सम्पूर्ण महाभारत का युद्ध देखा । इससे भगवान श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर उसे अपना नाम दान किया और भगवान श्रीकृष्ण ने वरदान दिया कि वह कलयुग में उन्ही के “श्याम” नाम से प्रसिद्ध और पूजित होगा । वही श्यामजी उपरोक्त खाटूग्राम में प्रतिष्ठित है और “खाटूश्यामजी” नाम से विख्यात है ।

                 ऐसी कहावत है कि  बर्बरीक के शीश कि पूजा भगवान् श्री कृष्ण के श्याम के नाम से, होती है और बर्बरीक के धड कि पूजा रामदेव जी के नाम होती है और पाँव कि पूजा श्री पाबू जी के नाम से होती है |   

खाटूधाम के दर्शनीय स्थल  

श्याम कुण्ड

प्राचीन समय में इस कुण्ड के स्थान पर एक बहुत बड़ा रेत का टीला था । उस पर आक का पेड़ उग आया । वहाँ इदा नाम के एक जाट समुदाय के व्यक्ति की गायें चरने आया करती थीं । आक के वृक्ष के समीप जाते ही गाय का दूध स्वत ही टपक जाया करता था । एक दिन इदा जाट गाय के साथ गया और इस प्रक्रिया को होते देखा, तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, वह सोचने लगा कि इस आक के पास आने पर दूध पीने वाला कौन हो सकता है । उसी रात इदा जाट को स्वप्न में दिखाई दिया कि तुम्हारी गाय का दूध पीने वाला आक नहीं “श्याम” नाम से कुण्ड में मैं स्वयं कृष्ण हूँ । यहाँ के राजा से कहकर कुण्ड खुदवा कर मेरी मूर्ति निकलवाओ । समस्त संसार मेरी “श्याम” नाम से पूजा करेगा । राजा से कहने पर उस कुण्ड से मिट्टी निकालने पर, भगवान श्री श्याम कि मूर्ति प्रकट हुई, उसी की पूजा की जाती है । अतः कुण्ड का नाम ही “श्याम कुण्ड” पड़ गया ।

श्यामजी का प्राचीन मन्दिर 

श्यामकुण्ड से मूर्ति निकाली गई और बाजार स्थित प्राचीन मन्दिर में स्थापित कर दी गई । इसी मन्दिर की परिक्रमा में उस समय का शिवालय है । इस मन्दिर को मुसलमान बादशाह औरंगजेब ने तुड़वा दिया था,तदुपरान्त श्याम मूर्ति वर्तमान मन्दिर में लाई गई । श्याम मन्दिर के स्थान पर मस्जिद बन गई और शिवालय वहीं है ।

 

मंदिर

SALASAR BALAJI MANDIR KI KATHA MAHIMA

Posted on June 26, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

श्री सालासर बालाजी मंदिर की कथा, महिमा व इतिहास

मेलों की नगरी श्री सालासरधाम नगरी

राजस्थान का सालासर धाम मेलों की नगरी है। सिद्धपीठ बालाजी तीर्थ में आने वाले उत्साही लोगों के लिए यहां प्रत्येक शनिवार, मंगलवार और पूर्णिमा को मेला लगता है। चैत्र, अश्विन और भाद्रपद के लंबे हिस्सों में, शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी और पूर्णिमा पर विशाल मेला लगता हैं।

सालासर के हनुमानजी उत्साही लोगों के बीच ‘श्री बालाजी’ के नाम से प्रमुखता से जाने जाते हैं। देश के कोने-कोने से प्रशंसक हनुमान जयंती के मेलों के अवसर पर असाधारण दर्शन के लिए श्रीसालसर-बालाजीधाम की ओर चहलकदमी करते हैं, पैदल चलते हैं, कोई पेट के बल सरक कर आगे बढ़ता है, तो कोई रास्ते में साष्टांग प्रणाम करता है। कोई ऊँट, रेलगाड़ी,कोई परिवहन कि बसों में, तो कोई जीप, वाहन आदि से यात्रा करते हैं, शायद सालासर एक ऐसा सागर है जहाँ जलमार्गों की तरह प्रशंसकों की भीड़ प्रवेश करती है। सामान्य रूप से लहराता हुआ समूह भक्तो का संघ , जय बालाजी के मनमोहक जयकारे, तीर्थ  में ढोल-नगाड़ों की उद्देश्यपूर्ण ध्वनि, कतार में खड़े रहने वालों का उत्साह और उत्साह बढ़ाती है यही  इस धाम की विशेषता है।

श्री सालासर बालाजी की प्रतिमा का स्वरुप  

बालाजी के दर्शन के लिए लड्डू, पेड़ा, बताशा, मखाना, मिश्री, मेवा, ध्वजा-नारियल आदि सामग्री से लाइन में लगे प्रेमी बालाजी के दर्शन के लिए काफी समय से जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते हैं। बालाजी की विग्रह प्रतिमा विलक्षण है जो कहीं और असंभव है। सिंदूर से लगाई गई पहली मूर्ति पर वैष्णव साधु की मूर्ति बनाई गई है। मंदिर पर उर्ध्वपुंड्रा तिलक, लंबी झुकी हुई भौहें, चेहरे पर घने बाल वाली मूंछें, कानों में कर्ल, एक हाथ में गदा और दूसरे में एक ध्वजा , और उत्कृष्ट आँखें भीड़ के मूल में जेसे मानो सभी के चित्त में झांकती हैं; यह बालाजी का असाधारण स्वरुप है। पहले प्रकार की मूर्ति कुछ अलग थी। उसमें श्रीराम और लक्ष्मण हनुमानजी के कंधों पर विराजमान थे। बालाजी का यह वर्तमान स्वरूप संतशिरोमणि मोहनदासजी की निधि है।

बालाजी सबसे पहले शुरू में मोहनदासजी को वैष्णव पवित्र व्यक्ति के रूप में दिखाई दिए। बालाजी मोहनदाश जी को अपना रूप बदल कर दर्शन देते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी को उनके दर्शन कोढ़ी के रूप में हुए। जिस समय बालाजी कि मुलाकात भगवान श्री राम से हुई, तब वे विप्र-वेश में थे। मोहनदासजी के मन में प्रथम दर्शन का प्रभाव इस प्रकार था कि वह उनके मानस और मस्तिष्क में हमेशा के लिए अंकित हो गया। वह अपनी चिंतनशील अवस्था में भी समान संरचना में दर्शन करने लगे। बार-बार देखने पर उस प्रारूप में इतनी अटूटता अनन्य श्रध्दा थी कि वह किसी अन्य संरचना को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। बालाजी वही करते हैं जो भक्त चाहते हैं। उनकी अपनी कोई चाहत कहां है तो बालाजी भी भक्त के फैसले के रूप में सामने आए। और इस प्रकार सालासर में यह उनका स्थायी स्वरूप बन गया।

बालाजी भी कम विलक्षण नहीं हैं। दर्शन जिस स्वरूप में होता है उसी स्वरुप के अनुसार ही श्री बालाजी भोग स्वीकार करते है। बचपन में जब मोहनदासजी रुलियानी की बीड (गोचरभूमि) में गाय चरा रहे थे, बालाजी ने शुरुआत में उन्हें एक हिंदू संत के रूप में आभास दर्शन दिया था । उस समय, मोहनदासजी ने उन्हें मोठ-बाजरे की एक खिचड़ी भेंट की, जिसे माँ ने उनके साथ दोपहर के भोजन के लिए भेजा था। संत-वेशधारी बालाजी ने उस खिचड़ी को बड़े चाव से पाया था। वे प्यार से दी जाने वाली उस खिचड़ी की शैली व् स्वाद को नहीं भूले। बालाजी सिर्फ प्यार के भूखे हैं। प्रेम के द्वारा ही भक्ति के क्षेत्र में प्रवेश किया जा सकता है। स्नेह का कंपन आराध्य के केंद्र को एक लहर की तरह छूता है और प्रभावित करता है। मोहनदासजी द्वारा भेंट की गई मोठ-बाजरे की वह खिचड़ी सालासर के बालाजी का स्थायी भोग बन गई। वह परंपरा आज भी जारी है। बालाजी की प्रसन्नता के लिए सूखे मेवे और मिठाइयों के साथ मोठ-बाजरे की खिचड़ी का विशेष भोग निःसंदेह चढ़ाया जाता है। शौकीन और पीठासीन देवत्व के बीच यह भावनात्मक जुड़ाव सालासर के बालाजीधाम की विशिष्ट विशेषता है।

श्री सालासर बालाजी मंदिर का निर्माण

सालासर के बालाजी मंदिर को संवत 1815 में मोहनदासजी ने बनवाया था। मंदिर परिसर के भीतर उनका लेख उनकी श्रद्धा, भक्ति, सेवा और समर्पण को दर्शाता है। उनकी स्मृति को भक्तों के द्वारा संरक्षित किया गया है।

मोहनदासजी की धुणा और रहवास कुटिया

मंदिर के पास ही मोहनदास जी का धूना है, जहां कोई भी वहां बैठकर तपस्या करना चाहेगा। यह अभी भी हमेशा के लिए रोशन (प्रज्वलीत) है। मंदिर के अखंडदीप को भी उनके द्वारा ही प्रथम प्रज्ज्वलित किया गया था। धुने के पास उनकी एक झोपड़ी थी, जिसका वर्तमान में एक पक्के निर्माण में जीर्णोधार  हुआ है। इसमें उनकी मूर्ति भी लगाई गई है। जो भक्त श्री सालासर धाम में आता है, तब बालाजी के दर्शन के बाद मोहनदासजी कुटिया में दर्शन हेतु अवश्य जाता है।

मंदिर

RINGAS BHAIRU JI KA MANDIR

Posted on June 26, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

रींगस के भैरू जी का मंदिर (sikar) राजस्थान

मसाणिया भैरव ग्राम-रींगस (sikar) राजस्थान |
मित्रो स्वागत है आप सभी का www.121holyindia.in मानस यात्रा पर जहा आज तीर्थ कि चर्चा करने जा रहे है उसका नाम है रिंगस के मसानिया भैरव: राजस्थान कि पवन धरा में अनेक लोकदेवी और लोकदेवता हैं। इन्हीं में से एक रींगस के मसानिया भैरूजी। भगवान श्री भैरवनाथ का यह स्थान बहुत प्राचीन है। भगवन श्री भैरवनाथ के इस मंदिर की जयपुर, सीकर, झुंझुनू, चूरू, बीकानेर, जोधपुर, अजमेर आदि जिलों में काफी मान्यता है। अब तो राजस्थान के बाहर से भी भक्त यहां आते हैं। दरअसल, ये परिवार वे है जो राजस्थान से बाहर जाकर बस गए हैं, लेकिन धार्मिक आस्था और मान्यता के कारण यहां जरूर आते है।
जिन परिवारों में रींगस के भैरूजी की मान्यता है उनमें शादी के बाद मंदिर में पहली बार धोक लगाने यानि जात देने की परम्परा है। बच्चों के जन्म के बाद उनके जात जडूले-मुंडन भी यहां होते है। फाल्गुन माह में जब खाटू श्यामजी का मेला आयोजित होता है तब कई भक्त अपनी पदयात्रा रींगस से ही शुरू करते है।

मंदिर

JEEN MATAJI SIKAR

Posted on June 25, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

आदिशक्ति माँ  भंवरा वाली जीणमाता (कथा वृतांत निज मंदिर के पुजारी,  पाराशर  परिवार के द्वारा) श्री श्याम सुन्दर परासर,  

भारतवर्ष में समस्त देवी- देवताओं की पावन धरा राजस्थान के सीकर जिला में गोरियां गांव के दक्षिण में ऊंचे पहाड़ो पर आदिशक्ति माँ  भंवरा वाली जीणमाता का एक सिद्ध धाम है| आदिकाल की माता जयंती ही कलयुग में जीणमाता के नाम से घर घर पूजी जा रही है ।  जीणमाता का प्रशिद्ध धाम जयपुर- सीकर रोड पर सीकर से 14 की मी की दुरी पर गोरिया नामक जगह से 15 की.मी अंदर पहाड़ी पर स्थित है । यह स्थान ऋषियों की तपस्थली है । यहाँ पर  प्राचीन काल के मठ (धूणा) है यहाँ कपिल ऋषि ने भी तपस्या की थी । यहां पर उनका धूणा भी है । उनके नाम से यहां एक झरना भी गिरता है । जिसे कपिल धार कहते है । यहां पर पूरी साधुओं का मठ भी है और यहाँ बहुत सी जीवित समाधियां है । श्री जीण-धाम आदिशक्ती महामाया जयंती माता का सिद्ध पीठ है । इस मंदिर की प्राचीनता का यहां के शिलालेखो से अंदाजा लगाया जा सकता है । प्रथम शिलालेख विक्रमी सम्वत 985 भादव बदी अष्टमी का मंदिर शिखर के जीणोद्धार कराने का है कि मंदिर हजारो वर्ष पुराना है अन्य शिलालेख सम्वत 1132, 1196 , 1230 , 1382 , 1520 , 1535 आदि के है । इन सभी बातों से यही प्रमाणित होता है कि यह स्थान आदिकाल  से मातेश्वरी का सिद्वपीठ  रहा है । आज से लगभग 1200 वर्ष पूर्व लोहागल के राजा गंगो जी चौहान व उनकी पत्नी रातादे ( उवर्शी ) नाम की अप्सरा की कन्या जीण बाई ने इस स्थान पर माँ भगवती आदिशक्ती की काजल शिखर पर बैठकर घोर तपस्या की थी । तब आदिशक्ती ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें यह वर दिया था कि ” आज से इस स्थान पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी और यह वरदान दिया की जो भी मनुष्य इस स्थान पर आकर सच्चे मन से प्रार्थना करेगा उसे मनवाँछित फल मिलेगा । तब से आदिशक्ती जयंती माता आदिशक्ती माँ जीण भवानी कहि जाने लगी । भगतो के लिए यह स्थान कल्प व्रक्ष के समान है यहां पर अनगिनत चमत्कार देखे व महसूस किए जाते है यहां भगतो द्वारा की गई प्राथना माँ पूर्ण कर उनका कल्याण करती है । यहाँ पर भगति मुक्ति सन्तान धन ज्ञान सब कुछ मिलता है । यहां पर विश्वास है कि महामाया आदि शक्ति माँ जीण  भवानी यहां पर साक्षात रूप में विराजमान है ।

इस पावन धरा में सिथत दो पहाड़ो के बीच मे माँ जीण भवानी का मंदिर बना हुआ है यहाँ पर दूर दूर से यात्री माँ के धोख लगाने आते है और यहाँ पर 36 कॉम धूकती अर्थात पूजा करती है यहां  पर जात जडूले मुस्लिम के भी होते है । ओर इस मंदिर में कौरव ओर पांडव ने भी सेवा की है ये वो ही मंदिर है जो मुगल काल के राजा ओरंगजेब को यही पर्चा मिला था उसने सभी हिन्दू मंदिर को तोड़ कर ये मंदिर भी तोड़ने के लिए आया था फिर माँ ने उसे यही पर्चा दिखाया था उसने अपनी सेना को आक्रमण के लिए कहा और तभि भवरों वाली माता ने अपने भवरे छोड़े फिर सेना को छीन विछिन्न कर दिया फिर औरगजेब ने नाक रगड़ कर क्षमा याचना की फिर उसने अखंड दीपक तेल और घी का जलाया था । और आज भी वो ज्योत प्रज्वलित है । उसने नगारे ओर भी चढ़ाए ओर आज भी उनके वंशज माँ के चरणों मे जात जुडले करने के लिए आते है । इस धरा पर 1 मुख्य जीणमाता मंदिर 2 भवरा वाली मंदिर 3 काजल शिखर 4 प्राचीन मठ ( धूणा ) 5 प्रचीन  शिवालये का मंदिर 6 प्रचीन कुंड 7 पहाड़ो के बीच झरनों को बहना 8 जीवित समाधि 9 पाराशर वंसज पुजारी माला  बाबा का स्थान जो कि पहाड़ी पर सिथत है 10 बटुकभैरव मंदिर इस धरा पर स्थित है ।

मंदिर की पूजा अर्चना ओर देख भाल निज मंदिर के पुजारी,  पाराशर  परिवार ही करते है और इस मंदिर में   सूर्येग्रहण  एवं चन्द्रग्रहण  में भी मंदिर खुला रहता है ओर मंदिर के मुख्य पुजारी माँ की सेवा में 3  ही पूजारी 24 घण्टे ब्रमचारी रुप में रहकर माँ की सेवा पूजा करते है । और विश्व मे एक ऐसा मन्दिर है जहाँ प्रशाद में मीठा चावल का प्रशाद दोनों टाइम लगता है । और 1 साल में 2 नवरात्रे के मेले भरे जाता है और मंदिर खुलने का समय सर्दियों में सुबह 4 बजे से रात्रि 9 बजे तक ओर गर्मियों में सुबह 4 बजे से 10 बजे तक, मंदिर के मुख्य द्वार 24 घंटे खुले रहते है ।

मंदिर

Malasi Bhaironji, Riktiya Bhairav ji Malasi, Sujangarh, Churu, Rajasthan

Posted on June 25, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

लोकदेवता मालासी भैरू जी

(Malasi Bhaironji, Malasi, Sujangarh, Churu, Rajasthan)

राजस्थान में लोकदेवता मालासी भैरू जी की बहुत मान्यता है, खासकर बीकानेर, चुरु, जयपुर, और झुंझुनू में । भैरुजी की पूजा  उनके जन्मस्थान और ससुराल वालो दोनों पक्षों में की जाती है।  इन भैरूजी की पूजा उनके जन्म स्थान और ससुराल दोनों जगह पूजा होती है। उनके देवरे कई जगह है जहां जात—जडूले करने उनके भक्त पहुंचते है। रिक्त्या भैरू उनका असली नाम है। जन्म स्थान राजस्थान के झुंझुनू जिले की नवलगढ़ पंचायत समिति के खिरोड़ गांव में है।जन्मस्थान में पूजा करने के लिए हर साल हजारों परिवार आते हैं। उनके वंशज गोरुरम भींचड, सतीश भींचड, जगदीश भींचड  इत्यादि के इस गांव में रहते हैं।

रिक्त्या नाम के जाट समुदाय के एक व्यक्ति का विवाह चुरू जिले के मालासी गांव में जाट समुदाय के दहिया माला राम की बेटी से हुआ था ऐसी जानकारी मालासी गांव वासी बताते हैं कि यह गांव माला राम ने ही विकसित किया था। और जंवाई के रूप में रिक्तियां हंसी मजाक के स्वभाव का व्यक्ति था। और वह अपनी पत्नी को लेने के लिए ससुराल आए हुए थे। संध्या कालीन समय में गांव में आमतौर पर औरतें गीत गाने लगती हैं। तभी सालियों और सालों को मजाक करने का मन हुआ वह अपने जीजा श्री रिक्तया  को लेकर नजदीक खेत में कुए पर गए। और उन्हें उल्टा लटका दिया। जिससे वह भयभीत हो जाए। उनको भयभीत करने के इस मजाक में हाथ छूट गए। और वह जंवाई कुए में जा गिरे। इस घटना में रिक्तियां के जीवन की लीला समाप्त हो गई। देखते ही देखते गांव के लोग इकट्ठे होना शुरू हो गए सरपंच और पंच वहां इकट्ठे हो गए। तभी सरपंच और पंच मिलकर के साले और सालियों को दंडित करने हेतु फैसला सुनाते हैं परंतु ऐसी परिस्थिति में साले और सानिया घबरा जाते हैं और वह रिकत्या की आत्मा से प्रार्थना करते हैं। निवेदन करते हैं, और माफीनामा करते हैं। ये अपनी आत्मा से अपने इस कृत्य को स्वीकार कर क्षमा याचना करते हैं। तभी अचानक जैसे ही सब पंच और सरपंच अपना फैसला सुनाने लगते हैं उसी वक्त एक चमत्कार होता है वहां मौजूद कुछ बच्चे जिनको बोलना नहीं आता है वह बोल पड़ते हैं। और कुछ बच्चे जो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं होते वह ठीक हो जाते हैं। इस चमत्कार के हो जाने के बाद पंच और सरपंच अपना निर्णय अगले दिन के लिए छोड़ देते हैं। और वो सभी इस खुशी को सब मिलकर मनाते हैं अगले दिन फिर से पंच-सरपंच और ग्रामवासी इकट्ठे होते हैं।अपना फैसला सुनाने के लिए आगे बढ़ते है क्योंकि ग्रामवासी पंच और सरपंच की नजरों में यह अपराध ही था परंतु यह अपराध जानबूझकर हत्या करने की दृष्टि से नहीं किया गया था। जो रिक्त्या जो कि अब भैरव योनी में जा चूका था वह इन्हें क्षमा कर देता है। और समस्त ग्रामवासी पर तथा वहां के छोटे बच्चों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। ऐसे में तब यह निर्णय लिया गया कि इनकी मृत्यु कोई सोची-समझी हत्या नहीं थी, बल्कि इनकी मृत्यु प्रेम के प्रतीक के रूप में हुई। इनके प्राणों का बलिदान हुआ तब यहां के सभी लोगों ने इन्हें लोक देवता मानकर इनको सम्मान दिया। तब से  यहां पर क्या भेरू के नाम से पूजने लगे ठीक उसी कुए पर उनका मंदिर बना हुआ है। कुछ परिवारों में कहावत है कि जन्म स्थान को विशेष महत्व दिया जाए तो कुछ रिक्तिया के ससुराल स्थान को विशेष महत्व देते हैं। किंतु चैत्र और आश्विन नवरात्र और विशेष दिवसों पर यहां मेला आयोजित होता है। और दोनों ही जगह महत्व मिलता है। हरियाणा पंजाब आसाम गुजरात मध्य प्रदेश दूर-दूर से यहां भक्तजन आते हैं।

मित्रो हमारा प्रयास है कि हम भारत के हर मंदिर की जानकारी पाठकों तक पहुंचाएं। यदि आपके पास ​किसी मंदिर की जानकारी है या आप इस वेबसाइट पर विज्ञापन देना चाहते हैं, तो आप हमसे info@121holyindia.in  या drpradeepsharma1986@gmail.com  पर संपर्क कर सकते हैं।

मंदिर

HARSHNATH BHAIRAV MANDIR SIKAR

Posted on June 18, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

भैरव पूजा एवं उपासना

पूजा अर्चना एवं उपासना के अंतर्गत भैरव को तमस का देवता माना जाता है भैरव को बलि भी अर्पित की जाती है | किंतु जहां बलि प्रथा समाप्त कर दी गई है वहां आम जन समुदाय नारियल फोड़कर अथवा किसी अन्य वस्तु को प्रतीक के रूप में अर्पित करके इस प्रथा को संपन्न करता है | भैरव तामस के देवता होने के कारण तंत्रशास्त्र में इनकी आराधना को प्रधान महत्व प्राप्त होता है | शैव धर्म में भैरव शिव के विनाश से जुड़ा हुआ एक उग्र रूप है | भैरव अर्थात जो देखने में भयंकर हो या जिसे देख कर के भी भय उत्पन्न होता है | भैरव को दंडपाणी भी कहा जाता है अर्थात जिसके हाथ में दंड विधान हो | भैरव की उपासना न केवल भारत बल्कि श्रीलंका नेपाल एवं तिब्बत में भी की जाती है | भैरव की पूजा अर्चना एवं उपासना न केवल हिंदू बल्कि जैन एवं बौद्ध धर्म में भी की जाती है | भैरव विविध रोगों एवं आपत्तियों को दूर करने के लिए अधिदेवता भी हैं | शिव पुराण के अनुसार भैरव की उत्पत्ति शिव के अंश से ही है| मृत्यु के भय के निवारण हेतु भी समाज में काल भैरव की उपासना की जाती है | आदिसमय से भैरव की पूजा अर्चना की दो अलग-अलग शाखाएं है बटुक भैरव उपासना एवं काल भैरव उपासना |

हर्षनाथ भैरव एवं शिव मंदिर

हर्षनाथ भैरव एवं शिव मंदिर राजस्थान राज्य में सीकर शहर के पास स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर है। सीकर से करीब 12 किलोमीटर दक्षिण पूर्व दिशा में हर्षगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ एक गाँव है जिसका नाम हर्षनाथ है |

हर्ष  गाँव के पास हर्षगिरि नामक पहाड़ी है, जिसकी उंचाई 3,000 फुट के लगभग है | इस पहाड़ी पर लगभग 900 वर्ष से अधिक प्राचीन भैरव नाथ एवं शिव जी का मंदिर हैं। यहाँ एक काले पत्थर पर उत्कीर्ण लेख भी है, जो शिवस्तुति से प्रारम्भ होता है और जो पौराणिक कथा के रूप में लिखा गया है। लेख में हर्षगिरि अर्थात हर्ष पहाड़ और मन्दिर का वर्णन है और इसमें बताया गया है कि मन्दिर के निर्माण का कार्य आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, सोमवार 1030 विक्रम सम्वत् (956 ई.) को प्रारम्भ होकर विग्रहराज चौहान के समय में 1030 विक्रम सम्वत (973 ई.) को पूरा हुआ था। यह लेख संस्कृत में है और इसे रामचन्द्र नामक कवि ने लेखबद्ध किया था। मंदिर के भग्नावशेषों में अनेक सुंदर कलापूर्ण मूर्तियाँ तथा स्तंभ आदि प्राप्त हुए हैं, जिनमें से अधिकांश सीकर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

शिव एवं हर्षनाथ भैरव का यह मंदिर चौहान शासकों के कुल देवता बताये जाते हैं | हर्ष पहाड़ी पर मुख्य रूप से 3 मंदिर हैं, एक मंदिर भगवान श्री भैरवनाथ जिन्हें हर्ष भैरव नाथ कहते हैं का है | वही दूसरा एक मंदिर पौराणिक मंदिर है किंतु उस मंदिर को विदेशी आक्रांताओ ने अपने आक्रमण से ध्वस्त कर दिया था | अतः उसके ठीक नजदीक में एक अन्य मंदिर है जो भगवान शिव को अर्पित है | ये मंदिर महामेरु शैली में निर्मित मंदिर है। मन्दिर में एक गर्भगृह, अंतराल, कक्षासन युक्त रंग मंडप एवं अर्द्धमंडप के साथ एक अलग नंदी मंडप भी है। अपनी मौलिक अवस्था में यह मन्दिर एक शिखर से परिपूर्ण था जो अब विदेशी अक्रान्ताओ के आक्रमण से खंडित हो चुका है। वर्तमान खंडित अवस्था में भी यह मन्दिर अपनी स्थापत्य विशिष्टताओं एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाओं सहित नर्तकों, संगीतज्ञों, योद्धाओं व कीर्तिमुख के प्रारूप वाली सजावटी दृश्यावलियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल हेतु उल्लेखनीय है। इस मन्दिर से संलग्न एक ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित दूसरा मन्दिर उत्तर मध्यकालीन है, तथा शिव को समर्पित है। कुछ दूरी पर स्थित एक अन्य मन्दिर भैरव को समर्पित है।

हर्षनाथ भैरव मंदिर की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा-

हर्षनाथ भैरव मंदिर की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा है जिसमें बताया जाता है कि हर्ष और जीण नाम से दो भाई बहन थे एवं हर्ष कि एक पत्नी थी |

हर्ष की पत्नी अर्थात जीण की भाभी जीण के साथ तालाब से पानी लेने जाती है | पानी भरते समय जीण और हर्ष की पत्नी (जीण की भाभी) में एक विवाद शुरू हो जाता है कि जब वह पानी लेकर घर पहुंचेंगे तो  घर पर हर्ष सबसे पहले जिसका मटका उतारेगा यह माना जाएगा कि हर्ष उससे अधिक प्रेम और स्नेह करता है | इस निश्चय के होने के बाद जीण और जीण की भाभी दोनों मटका लेकर घर पहुंची परंतु जैसे ही वे दोनों घर पहुंचते हैं हर्ष ने अपनी पत्नी के सिर से पानी का मटका पहले उतार लिया | इस बात को देख हर्ष की बहन जीण नाराज हो गई और वह अरावली की एक पर्वत माला जिसे काजल शिखर कहते हैं, पर पहुंच गई और वहां रुष्ट होकर तपस्या करने लगी | हर्ष जो कि जीण का भाई था, उसे इस विवाद के विषय में कोई जानकारी नहीं थी | बाद में जब हर्ष को इस बात का पता चला तो वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए, उसे मनाने के लिए काजल शिखर पर पहुंचा हर्ष ने अपना पूरा जतन किया और अपनी बहन को घर ले जाने के लिए राजी करने का प्रयास किया | किंतु जीण ने घर वापस जाने से मना कर दिया हर्ष इस बात से आहत हुआ और हर्ष ने समीप एक दूसरी पहाड़ी पर जिसे हर्ष गिरी पहाड़ी कहते हैं पर जाकर भैरव की तपस्या करने लग गया |

जीण बहन ने जिस शक्ति कि उपासना कि कालांतर में वह उस शक्ति में ही समा गयी | आगे चलकर वहा पर माँ जगदम्बा का एक शक्तिपीठ स्थापित हो गया जिसे आज हम सभी जीण माताजी के नाम से जानते है |

वही दूसरी और हर्ष नाम से भाई ने एक दुसरे पर्वत पर भैरव एवं महादेव कि उपासना की | वह पर्वत आज हर्ष पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है | जहा भगवान् श्री शंकर अपने भैरव रूप के साथ विराजमान है |

मंदिर

KAPAAL PITH DADHIMATI MATA MANDIR

Posted on June 3, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

दधिमती माता मंदिर


गोठ - मांगलोद, जायल तहसील, नागौर, (राजस्थान)

दधिमती माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के गोठ व मांगलोद गांव के बीच में स्थित है । यह नागौर से 37 किलोमीटर दूर है । यह उत्तरी भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह चौथी शताब्दी में बनवाया गया था। दधिमती माता लक्ष्मी जी का अवतार है । यह मंदिर 2000 साल पुराना है । दधिमती माता दाधीच ब्राह्मणों व् दाहिमा राजपूतो की कुलदेवी है । इस मंदिर का निर्माण गुप्त संवत 289 को हुआ था । इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि इस मंदिर के गुंबद पर हाथ से पूरी रामायण उकेरी गई है। इस गुंबद का निर्माण 1300 साल पहले हुआ था ।

भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण के साथ वनवास हेतु प्रस्थान के लिए जब अयोध्या से चले और वनवास में उन्होंने किस प्रकार से अपना गुजर-बसर किया तथा रावण से युद्ध किया व सेतु बनाने  तथा विशेष घटनाओं से संबंधित चित्रों को इस मंदिर में दर्शाया गया है ।

ब्राह्मण जाट व अन्य जातियों के अलावा दाहिमा एवं पुंडीर राजपूत दधिमती माता को अपनी कुलदेवी मानते हुए इसकी उपासना करते है । इतिहास की दृष्टि से देखें तो दाहिमा राजपूतों का इतिहास दधिमती माता मंदिर के साथ काफी लंबे अरसे से जुड़ा हुआ है । किंतु मानस यात्रा में हम हमारे मन व चित्त को दधिमती माता मंदिर की यात्रा में लगाना उचित समझते हैं अतः हम माता के विषय में अधिक से अधिक जान पाए ऐसा हम प्रयास करेंगे ।  

यह कहा जाता है कि दधिमती माता ऋषि दाधीच की बहन हैं । इनका जन्म माघ महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था । माता दधिमती ने दैत्य विकटासुर  का वध भी किया था। यह कहा जाता है कि अयोध्या के राजा मांधाता ने यहाँ यज्ञ किया था, जिसके लिए चार हवन कुंड बनाए गए थे । राजा ने आह्वान कर के चारों कून्डो में 4 नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा का जल उत्पन्न किया था। इन कुंडों के पानी का स्वाद अलग ही जान पड़ता है ।

यह धाम कपाल पीठ के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि माता की प्रतिमा का केवल कपाल भाग  ही मूर्ति से निकला हुआ है । माता के मंदिर में एक अधर स्तंभ है । जो भूमि से उठा हुआ है । इस अधर स्तंभ पर लोग मन्नत मांग कर मौली बांधते हैं। विजय शंकर श्रीवास्तव के मतानुसार यह मंदिर प्रतिहार कालीन (महामारू शैली) स्थापत्य का सुंदर उदाहरण है । तथा उस युग की कला के उत्कृष्ट स्वरूप को व्यक्त  करता है ।

मंदिर के सामने हनुमान जी और भगवान शिव का मंदिर स्थित है। मंदिर के आसपास का प्रदेश प्राचीन काल में दधिमती (दाहिमा क्षेत्र) कहलाता था । इस क्षेत्र से निकले हुए विभिन्न जातियों के लोग यहां ब्राह्मण, राजपूत, जाट आदि दाहिमा ब्राह्मण, दाहिमा राजपूत दाहिमा जाट कहलाए । यह मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है । बताया जाता है। कि मुगल काल में औरंगजेब ने मंदिर पर हमला किया तब यहां गुंबद पर मौजूद मधुमक्खियों ने औरंगजेब की सेना पर हमला बोल दिया जिससे सैनिक वापस  भाग गए थे ।

यह कहां जाता है कि देवताओं ने दधिसागर का मंथन किया था तब दधिमती माता की उत्पत्ति हुई थी । कई किवदंतियों में ऐसा भी जानने को मिला है कि यह मंदिर स्वत ही भूगर्भ से उत्पन्न मंदिर है । जो कपाल पीठनाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के पास स्थित कुंड को कपाल कुंड कहा जाता है । चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में यहां विशाल मेला भरता है । दाधीच ब्राह्मण तथा निकटस्थ गांव के सर्व जातीय लोग और दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं । नवरात्र की सप्तमी को माता दधिमती की विशाल झांकी निकलती है । जो दर्शनीय होती है । इस झांकी में मां दधिमती जी की शोभायात्रा होती है । और दधिमती माता को पाताल कुंड में स्नान कराया जाता है ।

वर्तमान समय में मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट के द्वारा तथा अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण महासभा के द्वारा की जाती है।यहां विशाल चबूतरो का निर्माण और रहने के लिए कक्ष का निर्माण व अन्य प्रकार की व्यवस्थाओं का व्यवस्थापन अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण महासभा व मंदिर ट्रस्ट की द्वारा की जाती है । दाधीच ब्राह्मण कुमारों का चूड़ाकरण संस्कार दधिमती माता मंदिर परिसर में करने का रिवाज है । दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी को समर्पित यह देव भवन भारतीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला का गौरव है । चार बड़े चौक वाला यह मंदिर भव्य एवं अत्यंत विशाल है ।

मंदिर

CHAMUNDA MATA MANDIR, KHANDELA (RAJ)

Posted on May 27, 2021May 28, 2021 By Pradeep Sharma

श्री चामुंडा माता (चक्रेश्वरी माता) मंदिर ग्राम- खण्डेला सीकर (राज०)

पुजारी : श्री राकेश कुमार शर्मा  


पुत्र- पंडित श्री चौथमल जी शर्मा


ब्रह्मपुरी वार्ड न० 20 खंडेला (सीकर) राज०

Mobile: +91-9252409087    +91-7976109030 

नमस्कार मित्रों!

स्वागत है आप सभी का मेरी अपनी ब्लॉग वेबसाइट www.121holyindia.in पर।

मित्रो आज मैं आप सभी भक्तजनों को जिस तीर्थ की मानस यात्रा करवाने जा रहा हूँ।  उस पावन तीर्थ का नाम है-  चामुंडा माता मंदिर, जिसे जैन समाज चक्रेश्वरी माता के नाम से जनता है।  

मित्रो यह मंदिर ग्राम खंडेला जिला सीकर (राजस्थान) में है।  

श्री चामुंडा माता मंदिर के निर्माण और उद्गम के विषय में बताया जाता है कि सन् 1600 ई०  तक यह मंदिर खंडेला ग्राम में मालकेतु पर्वत (जो की अरावली पर्वतमाला का एक भाग है ) की तलहटी के अंतिम छोर में स्थित था।

सन् 1600 ई० के आसपास बताया जाता है की एक रात माताजी के मंदिर के पुजारी को रात्रि में स्वप्न में माताजी ने दर्शन दिए और कहा कि इस मंदिर के नजदीक श्मशान होने से मुझे दुर्गन्ध आती है अतः मेरा मंदिर किसी अन्यत्र स्थान पर स्थापित करो।  

पुजारी ने माता जी के चरणों में अपने शब्दों को अर्पित कर कहा कि माता मैं, तो स्वयं आपके द्वारा प्रदत्त भवन में रहता हूं।  मुझे अन्यत्र स्थान पर मंदिर का निर्माण किस प्रकार करना होगा और कैसे होगा यह आप मुझे बताए ।

माता ने स्वप्न में पुजारी से कहा तुम प्रातः काल उठकर समस्त ग्राम वासियों को बुलाओ और  मेरी पूजा अर्चना के बाद एक सूत की कुकड़ी को हल्दी की गाँठ पर लपेट कर  जहां सूर्य अस्त होता है उस दिशा में अर्थात पश्चिम दिशा में  फेंक देना ।  जहां पर यह सूत की कुकडी व् हल्दी की गांठ गिर जाए वहीं पर मेरे  मंदिर का  निर्माण करना।

अगले दिन माताजी के मंदिर के पुजारी ने समस्त ग्रामवासियों को इकट्ठा किया और माता की पूजा-अर्चना करने के बाद, ठीक वैसे ही किया जैसे माता ने आदेश किया था और सूत की कुकड़ी व हल्दी की गांठ पश्चिम दिशा की तरफ फेंक दी।

उसके बाद सभी ग्रामवासियों ने व पुजारी ने मिलकर पुराने मंदिर की सीध में पश्चिम दिशा की ओर उस हल्दी की गांठ और सूत की कुकड़ी को ढूंढने निकले तो पता चला लगभग 5 किलोमीटर दूर पश्चिम में मंदिर के सामने पहाड़ी की चोटी से कुछ पहले वह हल्दी की गांठ और सूत की कुकड़ी मिली।

अब इसी स्थान पर ग्राम वासियों व पुजारी जी को मंदिर बनाना था पर वहां पानी, मिट्टी और रेत कहां से आएगी और किस प्रकार ये सामन यहा पर पहुचेगा यह एक विकट समस्या बन गयी।

माता की महिमा अपरंपार और अनन्य होती है।   सभी ग्रामवासी व पुजारी मिलकर एक परात चुने की और  एक मटका पानी का लेकर पहाड़ पर चल दिये।  हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर उसी एक परात चूने व् एक मटके के पानी से बना हुआ है।  उस दिन माता का चमत्कार हुआ कि चूना जिस मिट्टी से मिला उसे चुना बना दिया व् पानी जिस स्त्रोत में  रखा गया उस स्त्रोत में  पानी अक्षय हो गया।  

इस  प्रकार माता चामुंडा देवी के नए मंदिर का निर्माण हुआ और समस्त ग्राम वासियों ने व्  पुजारी ने मंदिर में धर्म-कर्म के अनुसार पूजा कर माता की प्रतिमाओं को स्थापित किया।

माता के मंदिर में दाहिनी तरफ महाकाली देवी की प्रतिमा यानी की विग्रह है तथा बाई तरफ महा सरस्वती देवी की प्रतिमा यानी की विग्रह है, ठीक मध्य में चंड और मुंड विनाशिनी मां चामुंडा-ब्रह्माणी एवं रुद्राणी के रूप में विराजमान है।  

माता के मंदिर के गर्भ गृह में ही एक शिवलिंग भी है जहां पर भगवान श्री गणेश, कार्तिकेय, मां पार्वती व गंगा माता की प्रतिमा भी स्थापित है।

माता का मंदिर पहाड़ी पर है और पहाड़ी की तलहटी में श्री भैरवनाथ का मंदिर है। माता के दर्शन के उपरान्त भैरव दर्शन का विधान है।

जिस पहाड़ी पर माता का भव्य मंदिर है उसके दाहिने तरफ एक और पहाड़ी है जिसे खेतर-नाथ बाबा की डूंगरी कहते हैं जिस पर बाबा खेतर-नाथ विराजमान हैं।

माता के भव्य मंदिर के ठीक पीछे मालकेत पर्वत की बड़ी-बड़ी विशालकाय पर्वतीय चोटिया है।  इन्हीं विशालकाय पर्वतीय चोटियों के भीतर शाकंभरी माता का मंदिर भी है।

माता के भव्य मंदिर की पहाड़ी के ठीक सामने एक ऊंची डूंगरी है जिसे बालाजी की डूंगरी अथवा  किला वाले बालाजी भी कहते हैं । बताते हैं किसी समय विशेष में इस डूंगरी पर एक बहुत विशाल दुर्ग हुआ करता था।

श्री चामुंडा माता मंदिर खंडेला ग्राम में जिला सीकर राजस्थान में स्थित है और यह गांव विश्व में इकलौता गांव है जहां एक गांव में 2 राजाओं ने एक समय में राज्य किया।

बड़े राजा के गांव का हिस्सा बड़ा पाना और छोटे राजा के गांव का हिस्सा छोटा पाना कहलाया।

सन् 1600 ई० से लेकर आज तक हर नवरात्रि में माता का भव्य मैला लगता है।  जो भक्त माता से सच्चे मन से कुछ भी मांगता है माता उसकी मनोकामना पूर्ण करती है ।  

यहां माता चामुंडा देवी सात्विक रूप से विराजमान है और यहां माता को भोग प्रसाद के रूप में सात्विक प्रसाद ही अर्पित होता है।  यहां माता को खीर, चूरमा, पूड़ी, हलवा, नारियल, व् मखाने इत्यादि का प्रसाद भोग लगता है।  

माता के पृथ्वी पर प्रकट होने का संक्षिप्त में मैं कारण बताना चाहता हूं!  जब देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तब चंड और मुंड नामक दो राक्षस ब्रह्मा के वरदान पाकर पृथ्वी लोक में उत्पात मचाने लगे।  देवताओं, मानवओ व ऋषि-मुनियों को मारने लगे, जिससे उनका जीना दूभर हो गया।  उसी समय राक्षसों का राजा महिषासुर, ब्रह्मा से वरदान लेता है कि वह ना देवता से मरेगा, ना  मानव से मरेगा, ना दानव से मरेगा ।  और महिषासुर बहुत शक्तिशाली बन गया देवताओं पर आक्रमण करके देवताओं के राजा इंद्र को परास्त कर दिया स्वर्ग के सिंहासन पर अपना आधिपत्य कर लिया । चंड मुंड और महिषासुर सबने मिलकर देवता, मानव को मारना और परेशान करना प्रारंभ किया सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी, विष्णु जी, और भोलेनाथ जी, को अपने इस कष्ट एवं दुःख के बारे में परिचित करवाया।

त्रिदेव ने मिलकर आदिशक्ति का आह्वाहन किया जिसे माता आदिशक्ति मां भवानी चामुंडा माता कहा जाता है मां चामुंडा,  चंड-मुंड व् महिषासुर जैसे राक्षसों के वध के लिए भू-लोक पर अवतरित हुई व् इन राक्षसों का वध करके  ऋषि-मुनियों, देवताओ, व् मानवो का उद्धार किया।  

यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन पाने हेतु आते हैं दर्शन पाकर धन्य हो जाते हैं।  चामुंडा देवी सभी के कष्टों को हरती है।  जो भक्त माता को सच्चे मन से याद करता हुआ मंदिर में शीश झुकाता है माता उसकी हर विपदा का निवारण कर उसे आशीर्वाद देती है।  किसी भी वक्त पर चाहे कैसी भी लौकिक और अलौकिक विपदा हो, माता उसका हरण कर लेती है।  जो माता को आत्मा से ध्याता है, मानता है, उस पर माता की सदैव कृपा और आशीर्वाद रहता है।

माता जी के मंदिर की पूजा अर्चना पुजारी श्री चौथमल जी शर्मा के पूर्वजों के द्वारा होती आ रही है एवं वर्तमान में पुजारी श्री चौथमल जी की देखरेख में माता के मंदिर की पूजा अर्चना होती है वर्तमान रूप से श्री पंडित राकेश कुमार जी मंदिर की पूजा अर्चना का कार्यभार संभालते हैं।

पुजारी :

राकेश कुमार

पुत्र- पंडित श्री चौथमल जी शर्मा

ब्रह्मपुरी वार्ड न० 20

खंडेला (सीकर) राज०

Mobile: +91-9252409087   

+91-7976109030 

मंदिर

BHANDASHAH JAIN MANDIR BIKANER RAJASTHAN

Posted on May 19, 2021May 28, 2021 By Pradeep Sharma

भांडाशाह जैन मंदिर, बीकानेर राजस्थान

डॉ० प्रदीप शर्मा  (बीकानेर) राजस्थान 

बीकानेर शहर की कई खास बातें हैं।  उनमें से एक यहां का प्रसिद्ध मंदिर भांडाशाहजी का मंदिर है।  यह मंदिर बीकानेर के सबसे पुराने मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास स्थित है बीकानेर के बड़ा बाजार में भांडाशाह  नाम के व्यापारी ने सन 1468 में यह जैन मंदिर बनवाना शुरू करवाया और इसे सन 1541 में उनकी पुत्री ने पूरा करवाया था। मंदिर का निर्माण भांडाशाह ओसवालों द्वारा करवाने के कारण इसका नाम भांडाशाह पड़ गया। यह मंदिर धरा तल से 108 फीट ऊंचा है, और यह जैन धर्म के पांच वे तीर्थंकर 15 वीं सदी के सुमतिनाथ को समर्पित मंदिर है।  मंदिर के निर्माण में मोर्टार  (मकान बनाने का मसाला सीमेंट, रेत और पानी का मिश्रण जिससे ईंटों और पत्‍थरों को जोड़ा और जमाया जाता है) के साथ 40000 किलोग्राम शुद्ध देसी घी का इस्तेमाल किया गया था। 

भांडाशाह ओसवाल जी घी के व्यापारी थे।  आज भी तेज गर्मी के दिनों में इस जैन मंदिर की दीवार और फर्श से घी  का रिसाव होता है। इस मंदिर के शिल्पी कार GODDA  थे।  इस मंदिर के निर्माण में लाल बालू पत्थर और सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। 

यह जैन मंदिर तीन मंजिलों में बना हुआ है।  यह मंदिर अपने भित्ति चित्रों और मूर्तियों के लिए भी प्रसिद्ध है।  इसमें मटेरा और उस्ता कला का शानदार काम किया गया है।  मंदिर के फर्श,चीते-खंबे और दीवारें, मूर्तियों और चित्रकारी से सुसज्जित है।  स्थानीय कलाकारों द्वारा की गई चित्रकारी और स्थापत्य कला की मूर्तियां आकर्षित करती है।  मंदिर में बने भित्ति चित्रों में सोने के लगभग 700 वर्ग में लगाये गये  है। 

अपनी स्थापना के समय इस मंदिर को सात मंजिला का बनाया जाना प्रस्तावित था।  लेकिन कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के पूरा होने से पहले ही भांडाशाह सेठ जी का निधन हो गया बाद में 7 मंजिलों की बजाय 3 मंजिल का मंदिर निर्माण करवा कर इसकी प्रतिष्ठा करवाई गई मंदिर के सबसे ऊंचे गुंबद में 16 चित्र तीर्थंकरों के और जीवन चरित्र की कहानियां दर्शाते हैं। 

मंदिर अब एक राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक है।  मंदिर के 500 वर्ष पूर्ण होने पर डाक विभाग के द्वारा विशेष आवरण एवं विरूपण जारी किया गया था।  मंदिर दिन में खुला रहता है।  मंदिर की स्थापना से अब तक पूजा-अर्चना जारी है। 

भांडाशाह जैन मंदिर बीकानेर (राजस्थान)
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मंदिर

Pashupati Nath Mandir, Manjhwas (Nagaur) Rajasthan

Posted on May 18, 2021May 27, 2021 By Pradeep Sharma

मन्झवास, नागौर -पशुपति नाथ मंदिर

डॉ प्रदीप शर्मा

पशुपतिनाथ मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के मंझवास गांव में स्थित है यह विश्वास किया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1982 में योगी गणेश नाथ के द्वारा किया गया था यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है यह मंदिर नेपाल के प्रसिद्ध पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर बना हुआ है 

शिवरात्रि और श्रावण में यहां श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं मंदिर में स्थापित मूर्ति अष्टधातु की बनी है और यह मूर्ति का वजन 16 क्विंटल तथा 60 किलोग्राम है 

मंदिर

SANDAN KALI MATA MANDIR, CHURU RAJASTHAN

Posted on May 18, 2021May 27, 2021 By Pradeep Sharma

सांडण काली माताजी मंदिर ग्राम-सांडण चुरू (राज)

सालासर से लगभग 20 किलोमीटर दूर सालासर रतनगढ़ रोड पे खारी खुड़ी गांव से अंदर 3 किलोमीटर दूर (सांडन) गांव में मां (सांडन) काली माता का मंदिर है. मंदिर की वास्तुकला एवं कलात्मक खंबे यह साफ बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना या उससे भी पुराना है. यह मां काली का मंदिर है और कहा जाता है कि यह महाभारत कालीन मंदिर है हजारों वर्ष पूर्व यहां भी काफी आक्रमण हुए थे मंदिर को भी काफी नुकसान पहुंचाया गया था. मंदिर की पहाड़ियों पर काफी बड़े-बड़े पत्थर भी है जिन्हें देखकर लगता है कि यह सजाए गए हैं लेकिन वह सारे पत्थर नेचुरल है. अब हम बात करते हैं काफी सालों पूर्व पांडवों ने यहां अपना अज्ञातवास काटा था। बताया जाता है कि भगवान भीम यहां पत्थरों से खेला करते थे। यहां मां काली की दो विशाल मूर्तियां विराजमान है यहां की प्राकृतिक छटा देखते ही बनता है चारों तरफ जैसी पहाड़ियां है लाखों भक्तों का आना जाना जात (जडुले) करना यहां पर पत्थरों की बड़ी-बड़ी चट्टानें ऐसे पड़ी है जैसे मानो कि यहां किसी ने उनको सजाया गया हो इतना सुंदर मां काली का यहां दरबार है।कहा जाता है कि यहां पर चोर गुफा चोरों के रुकने की जगह पत्थरों के बीच गुफाओं में बनाई हुई है जहां पर काफी प्राचीन चोर रुका करते थे। यहां पर काफी भक्तों की संख्या में लोग चोर गुफा के दर्शन के लिए भी आते हैं 2 बड़े पत्थरों के बीच एक एक रास्ता जाता है जो कि चोर गुफा के दर्शन करवाता है यह एक बहुत ही खूबसूरत भ्रमणीय स्थल है भक्तों के लिए ठहरने के लिए यहां उत्तम व्यवस्थाएं हैं. मंदिर का जीणओ द्वार निर्माण हुआ है वह भी बहुत देखने योग्य है काफी हस्तकला मुरतिया बनाई गई है मंदिर के दो प्रवेश द्वार बनाए गए हैं जहां से सीडियो के द्वारा भक्त माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मां सांडन हमारी कुलदेवी माता भी है।

मंदिर

GABBAR TEMPLE, AMBAJI-GUJARAT

Posted on May 18, 2021May 28, 2021 By Pradeep Sharma

गब्बर पर्वत तीर्थ ,अम्बाजी तहसील-दांता गुजरात

  • अंबाजी मंदिर से महज 5 किमी दूर, गब्बर का प्रसिद्ध पर्वत गुजरात और राजस्थान राज्य की सीमा पर स्थित है, जो प्रसिद्ध वैदिक कुंवारी नदी SARASWATI के उद्गम के निकट, दक्षिण में दक्षिण की ओर जंगल में, अरासुर की पहाड़ियों पर स्थित है। अरवल्ली की प्राचीन पहाड़ियों के पश्चिम की ओर, 480 मीटर की ऊँचाई पर, समुद्र तल से लगभग 1600 फीट की ऊँचाई पर, कुल मिलाकर 33 वर्ग किमी (5 वर्ग मील) क्षेत्र में है, और यह वास्तव में एक है। फिफ्टी वन (51) प्रसिद्ध प्राचीन (पौरणिक) शक्ति पिठ्ठू – भारत की ब्रह्मांडीय शक्ति का केंद्र और यह माता अम्बाजी का मूल पवित्र स्थान है, जहाँ देवी सती के मृत शरीर का हृदयरूपी टुकड़ा सबसे ऊपर गिर गया था “तंत्र चूड़ामणि” में वर्णित कथा के अनुसार गब्बर की पवित्र पहाड़ी। इस स्थान से जुडी और अधिक रोचक कहानी जानने के लिए संपर्क करेINFO@121HOLYINDIA.IN
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SHREE ARASURI AMBAJI MATA MANDIR, AMBAJI, TEH- DANTA GUJARAT

Posted on May 18, 2021August 10, 2021 By Pradeep Sharma
SHREE ARASURI AMBAJI MATA MANDIR, AMBAJI, TEH- DANTA GUJARAT

श्री आरासुरी अंबाजी माता मंदिर

श्री आरासुरी अंबाजी माता मंदिर, एक तीर्थ स्थल के रूप में पूरे भारत में प्रसिद्ध है, गुजरात राज्य में बनासकांठा जिले के दाता तहसील में स्थित है। जो एक पौराणिक शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। लाखों श्रद्धालु अपनी धर्म यात्रा अम्बाजी तीर्थ में करने आते हैं। उनकी खुशी और सुविधाओं को बनाए रखने के साथ-साथ मन की शांति और शक्ति प्राप्त करने के लिए, राज्य सरकार ने मंदिर के पुनर्निर्माण और शिखर के काम को  पूरा करने के लिए एक ठोस प्रयास किया है और इसे एक सुनहरा स्थान बनाया है। यह 358 स्वर्ण कलश के साथ भारत का एकमात्र शक्ति पीठ है। 51 शक्तिपीठों में से हृदयस्वरुप अंबाजी लाखों भक्तों के लिए आस्था  का केंद्र है। अरावली पर्वतमाला का एक पवित्र तीर्थस्थल अंबाजी, समुद्रतल से 1600 फीट की ऊंचाई पर 240-20 यू अक्षांश और 720-51 देशांतर पर स्थित है। आसपास के गांवों की आबादी लगभग 20,000 है।

मंदिर

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