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आज मैं आप सभी को मेरे ब्लॉग में सनातन धर्मं संस्कृति के तीसरे ज्योतिर्लिंग कि मानस यात्रा का वर्णन करने जा रहा हूँ आशा करता हूँ आप सभी को यह मानस यात्रा खूब पसंद आएगी और आप सभी जन मानस पुण्य के भागी बंगेंगे |महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पापनाशिनी परम दिव्या कथा:
भारतवर्ष में अवंतिका नाम से एक प्रसिध्ध नगरी है जिसे वर्त्तमान में उज्जैन के नाम से जाना जाता है यह रमणीय धरा देहधारियो को मोक्ष प्रदान करने वाली है | यह वो धरा है जो भगवान् शिव को अत्यंत प्रिय है | इस नगरी में एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहा करते थे जो कि चारो वेदों के ज्ञाता एवं शुभकर्म परायण वादी थे| वे ब्राह्मण देवता सदैव मिटटी से शिव लिंग बनाकर सदा घर में हवन किया करते थे और भगवान् शिव कि पूजा और अर्चना तल्लीनता से करते थे | आगे चलकर उन ब्राह्मण संत के ०४ चार तेजस्वी पुत्र हुए वो भी माता पिता से सद्गुणों में कम नहीं थे |- 1. देवप्रिय 2. प्रियमेधा 3. सुकृत और 4. सुव्रत
उसी समय रत्न-माल पर्वत पर दूषण नामक एक असुर ने ब्रह्मा जी से वर प्राप्त करके धर्म और धर्मात्माओ पर आक्रमण क्र दिया | अंत में उस राक्षस कुल के कुमार दूषण ने अपनी सेना लेकर अवंतिका नगरी पर आक्रमण कर दिया |
मित्रो यहां एक खास बात है आप और हम अक्सर उज्जैन नगरी में महाकाल के दर्शन हेतु जाते है | वह हम देखते है कि चारो और सभी जगह भगवान् शिव शिवलिंग के रूपमे स्थापित है , महकलेश्वेअर भगवान् शिव के साथ साथ अनेक रूपों में अनेक शिवलिंग वह प्रतिष्ठित है आखिर ऐसा क्यों ? इतने शिवलिंग क्यों ?इस उक्त प्रश्न का उत्तर इसी शिवपुराण कि कहानी में मिलता है –
जब उस राक्षष दूषण ने अवंतिका नगरी पर अपनी सेना लेकर आक्रमण कर दिया तब सभी नगरवासी उन चार वेद्ग् ज्ञाता धर्म परायण परम शिव भक्त ब्राह्मण कुमारो १. देवप्रिय २. प्रियमेधा ३. सुकृत और ४. सुव्रतके पास जाते है और इस भयंकर समस्या का समाधान पूछते है तब :
चारों ब्राह्मण कुमार समस्त अवन्तिका नगर वासिओ को आश्वस्त करते है और कहते है कि सभी नगर वासी भगवान् शिव का ध्यान लगाये और भगवान् शिव का आह्वाहन करे | ऐसा जानकार सभी नगर वासी भगवान् शिव का ध्यान लगाते है |
और चारों ब्राह्मण कुमार भगवान् शिव की पूजा और आराधन में हर दिन कि व्यस्त हो जाते है | इतने में ही सेनासहित दूषण वहाँ आ जाता है और अपनी सेना से कहता है कि इन्हें मार डालो पर वेदप्रिय ब्राह्मण कुमार भयभीत नहीं होते क्योंकि वे भगवान् शंभु के ध्यान् मार्ग में स्थित थे |
उस दुष्ट आत्मा दूषण ने जेसे ही उन ब्राह्मणों को मारने कि इच्छा कि , त्यों ही उनके द्वारा निर्मित मिटटी के शिवलिंग के स्थान में बड़ी भारी आवाज के साथ एक गड्ढा प्रकट हो गया उसी गड्ढे से तत्काल विशाल रूपधारी भगवान् शिव प्रकट हुए | जो महाकाल नाम से विख्यात हुए इसी समय अवंतिका नगरी के नगर वासियो ने अवंतिका नगरी में जहां जहां भगवान् शिव का ध्यान लगाया और शिव का आह्वाहन किया वहाँ वहाँ भगवान् शिव उनकी रक्षार्थ प्रकट हुये | इस प्रकार सम्पूर्ण अवंतिका नगरी में भगवान् शिव ने स्वयम नगरवासियों और ब्राह्मण कुमारो कि रक्षा की|जैसे सूर्य के प्रकट होने पर सम्पूर्ण अन्धकार लुप्त हो जाता है ठीक वैसे ही भगवान् शिव के महाकाल रूप में प्रकट होने पर सम्पूर्ण राक्षस सेना अदृश्य हो जाती है| महाकाल महेश्वर शिव ने ब्राह्मण कुमारों से कहा कि तुम लोग वर मांगो – ब्राह्मण कुमारो ने हाथ जोड़ भक्ति भाव से प्रणाम करके नतमस्तक होकर बोले : महाकाल ! महादेव! दुष्टों को दंड देंनेवाले प्रभो ! हे शंभू नाथ आप हमें इस संसार सागर से मोक्ष प्रदान करे | आप जन साधारण कि रक्षा के लिए सदा यही निवास करे | प्रभो ! शम्भो ! अपना दर्शन करने वाले मनुष्य का आप सदा ही उद्धार करे| ब्राह्मण कुमारो के ऐसा कहने पर उन्हें भगवान् सद्गति प्रदान कर मोक्ष दे देते है और हमेशा हमेशा के लिए उस परमसुन्दर गड्ढे में लीन होकर निवास करने लगते है |यह स्थान पर भगवान् शिव महाकालेश्वर के नाम से विख्यात हुए | वे ब्राहमण मोक्ष पा जाते है वहाँ चारो और की एक एक कोस भूमि लिंगरुपी भगवान् शिव का स्थल बन गयी और जहा कही भी नगरवासियों ने भगवान् शिव का आह्वाहन किया वह स्थल भी लिंगरुपी भगवान् शिव का स्थल बन जाता है |मित्रो हाल ही में मेने भगवान् महाकालेश्वर कि यात्रा कि है वह मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि एक ही नगर में भला इतने सारे शिवलिंग क्यों? तब मेने शिवपुराण कि इस कहानी को पढ़ा जिससे मुझे संतोषकारक जानकारी मिली जिसे मैं सभी से साझा करने जा रहा हूँ आशा करता हु आप सभी को यह कहानी सुनकर पढ़कर मानस पुण्य कि प्राप्ति अवश्य ही हुयी होगी |
जय महाकाल