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THE HOLY TOUR & TRAVEL OF TEMPLES IN INDIA

Category: Uncategorized

Tourist Places to Visit in Deogarh Jharkhand

Posted on April 27, 2022 By Pradeep Sharma

Places to Visit in Deogarh Jharkhand

  1. बाबा बैद्यनाथ मंदिर

बैद्यनाथ मंदिर एक हिंदू तीर्थ स्थल है जो भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। देवी-देवताओं का निवास देवघर होने का दावा किया जाता है, जिसे बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर एक श्रद्धेय हिंदू स्थलचिह्न और एक प्राचीन मंदिर दोनों है। संपत्ति के अंदर 21 मंदिरों के अलावा बाबा बैद्यनाथ के मुख्य मंदिर में मुख्य लिंग देखा जा सकता है। इस क्षेत्र में बैद्यनाथ के अलावा और भी कई मंदिर हैं।

  1. नौलखा मंदिर

नौलखा मंदिर झारखंड के देवघर में स्थित है। बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के नाम से मशहूर यह मंदिर मुख्य मंदिर से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर है। 146 फुट ऊंचे इस मंदिर का विषय राधा-कृष्ण है। इसे नौलखा (नौ लाख) मंदिर के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसे बनाने में 9 लाख रुपये खर्च हुए थे। यह मंदिर दिखने में बेलूर रामकृष्ण मंदिर जैसा दिखता है। यह मंदिर कोलकाता, पश्चिम बंगाल में पथुरिया घाट राजा वंश की रानी चारुशीला द्वारा बनवाया गया था। संत बालानंद ब्रह्मचारी ने चारुशिला को अपने पति और बच्चे के नुकसान से निपटने में मदद करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करने की सलाह दी।

यह निबंध आपके देखने के लिए 2000 साल पुराने भुवनेश्वर में क्या छिपा है, इसका खुलासा करेगा।

  1. वासुकिनाथ

बासुकीनाथ झारखंड के दुमका जिले में एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थान है, जो देवघर-दुमका राज्य राजमार्ग पर स्थित है। भगवान शिव की पूजा करने के लिए देश भर से हजारों तीर्थयात्री हर साल मंदिर में आते हैं। श्रावण के महीने के दौरान, भव्य मंदिर न केवल स्थानीय और राष्ट्रीय पर्यटकों, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय आगंतुकों को भी आकर्षित करता है। बाबा भोले नाथ का दरबार बासुकीनाथ मंदिर में बताया जाता है। बासुकीनाथ मंदिर के शिव और पार्वती मंदिर एक दूसरे के ठीक सामने हैं। दोनों मंदिरों के कपाट शाम के समय खुलते हैं, जब भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन होता है। परिसर के भीतर विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित और भी मंदिर हैं।

यदि आप अक्टूबर में छुट्टी की योजना बना रहे हैं तो इन सुंदर स्थलों में से एक पर जाने पर विचार करें।

  1. नंदन पहाड़

नंदन पहाड़ झारखंड के देवघर में एक हिलटॉप मनोरंजन पार्क है। यह सभी उम्र के लोगों के लिए गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ एक पिकनिक स्थल के रूप में जाना जाता है। क्षेत्र में, आप आराम की सवारी कर सकते हैं, नौका विहार कर सकते हैं या नंदी मंदिर जा सकते हैं। जब आप नंदन पर्वत से सूर्यास्त देखते हैं, तो आप आनंदित हो जाते हैं। मनोरंजन पार्क के अलावा नंदन पहाड़ में एक बगीचा और एक तालाब भी है। नंदन पहाड़ का प्रबंधन और प्रचार झारखंड राज्य पर्यटन विकास निगम द्वारा किया जाता है। अगर आप इस साल देवघर में हैं तो नंदन पहाड़ जरूर जाएं।

  1. त्रिकुटा पर्वत

त्रिकुटा पर्वत (2,470 फीट ऊंचा) नामक क्षेत्र का भूगोल। त्रिकुटा तीन प्रमुख चोटियों वाली एक पहाड़ी का नाम है। पहाड़ी की चोटी पर देवघर से 10 किलोमीटर के ट्रेक के माध्यम से पहुंचा जाता है, इसके बाद रोपवे की सवारी होती है। देवघर से 24 किलोमीटर पश्चिम में स्थित त्रिकुटा अपने पहाड़ी मंदिरों के लिए जाना जाता है। पूरे पहाड़ी क्षेत्र में बड़े-बड़े शिलाखंड बिखरे पड़े हैं। दाईं ओर, देवी पार्वती को समर्पित एक छोटा मंदिर है।

  1. तपोनाथ महादेव

यहां एक शिव मंदिर है, जो तीर्थयात्रियों के लिए प्रमुख आकर्षण है। शिव के मंदिर को तपोनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। इस पहाड़ी पर कई गुफाएं हैं। शिवलिंग को एक गुफा में रखा गया है जिसके बारे में कहा जाता है कि ऋषि वाल्मीकि तपस्या के लिए आए थे।

  1. बैद्यनाथ धाम

बैद्यनाथ धाम, जिसे बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास माना जाता है। झारखंड के देवघर डिवीजन में स्थित विशाल और भव्य मंदिर परिसर में बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर है, जहां ज्योतिर्लिंग का निर्माण किया गया है, साथ ही इक्कीस अन्य प्रसिद्ध और सुंदर मंदिर भी हैं। श्रावण मेले के दौरान बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं।

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Posted on April 27, 2022April 27, 2022 By Pradeep Sharma

ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर

हम आपको प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के बारे में गहराई से बताने का प्रयास कर रहे हैं, और अब चौथे ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर के बारे में जानने का समय आ गया है। ओंकारेश्वर पवित्र नर्मदा नदी के तट पर मध्य प्रदेश में ज्योतिर्लिंग स्थित है। नर्मदा को दो धाराओं में विभाजित करने से नदी के बीच में एक द्वीप का निर्माण हुआ है। इस द्वीप को मांधाता-पर्वत या शिवपुरी के नाम से जाना जाता है। इस पर्वत की नदी उत्तर और दक्षिण की ओर बहती है, जिसमें एक धारा उत्तर की ओर और दूसरी दक्षिण की ओर जाती है। श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग मंदिर मंधाता-पर्वत पर स्थित है, जिसे मुख्य धारा माना जाता है। इस पर्वत पर महाराज मांधाता की तपस्या से पहले भगवान शिव प्रसन्न हुए थे। परिणामस्वरूप, इस शिखर को मान्धाता-पर्वत दिया गया।

आइए पुराणों से इस ज्योतिर्लिंग के बारे में जानें, जो दो तरह से कहानी सुनाते हैं।

जानें कि ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर में कैसे प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव (निर्माण) हुआ था।

विंध्यपर्वत ने एक बार छह महीने तक भगवान शिव की पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शंकर जी आए। विंध्य को मनचाहा वरदान मिला। विंध्याचल के आशीर्वाद के अवसर पर अनेक ऋषि-मुनि आए। शिव के अनुरोध पर, उन्होंने अपने ओंकारेश्वर लिंग को दो भागों में विभाजित कर दिया। एक थे ओंकारेश्वर और दूसरे थे अमलेश्वर। इस तथ्य के बावजूद कि उनके स्थान और मंदिर अलग-अलग हैं, दोनों लिंगों को एक ही शक्ति और रूप माना जाता है।

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namaskar

Posted on April 26, 2022April 26, 2022 By Pradeep Sharma

namaskar

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Working Capital Management

Posted on December 8, 2021December 8, 2021 By Pradeep Sharma

WORKING CAPITAL MANAGEMENT NOTES

WORKING CAPITAL

The capital of a business which is used in its day-by-day trading operations, calculated as the current assets minus the current liabilities. Working capital is also called operating assets or net current assets.

WC= CA-CL

WORKING CAPITAL MANAGEMENT

Working capital management refers to a company’s managerial accounting strategy designed to monitor and utilize the two components of working capital, current assets and current liabilities, to ensure the most financially efficient operation of the company.

NEED OF WORKING CAPITAL MANAGEMENT

Inventory Receivables Cash Management Management Management

FACTORS AFFECTING WORKING CAPITAL

  1. Nature of business
  2. Production policy
  3. Credit policy
  4. Inventory policy
  5. Abnormal factor
  6. Market conditions
  7. Conditions of supply
  8. Business cycle
  9. Taxation policy
  10. dividend policy
  11. Operating efficiency
  12. Price level changes
  13. Depreciation policy
  14. Availability of raw material

BUSINESS CYCLE

http://www.gridgit.com/postpic/2012/05/economic-business-cycle-stages_13946.jpg

HOW MUCH WC IS NEEDED?

It depends on the following factors-

  • Size of the firm
  • Activities of the firm
  • Availability of credits
  • Attitudes towards profit
  • Attitude toward risks
  • Others

IMPORTANCE OF ADEQUATE WC/ OPTIMUM WC

  1. Smooth running of business
  2. Profitability with manage risk
  3. Growth and development possibility
  4. Smooth payment
  5. Increase in goodwill
  6. Trade relationship better
  7. Others

In managing WC two processes are there-

Forecasting requirement of fund Arrangement of fund

SOME IMPORTANT ISSUES

  1. Monetary level of cash receivable & inventory
    1. Current asset Current liabilities
    2. Current asset

Total asset

    1. Current asset- inventory

Liabilities

    1. Cash +marketable securities

Current asset

  1. To have understanding of percentage of fund in current account
  2. Recording time spent in managing current account

WORKING CAPITAL CYCLE

Working capital cycle:- The determination of WC helps in forecast, control& management of WC. The duration of WC may vary depending upon the nature of business. The duration of operating cycle (WC cycle) for the purpose of estimating WC is equal to the sum of duration of each of above events less the credit period allowed by the supplier For ex.- A co. holds raw material on an average for 60 days, it gets credit firm supplier for 15 days, production process needs15 days, finished products are held 30 days & 30 days is the total WC cycle. So, 60+15+30+30-15=120 days.

VARIOUS COMPONENTS OF OPERATING CYCLE

It may be calculated as follows:

  1. Raw material shortage period =

Average stock of raw material/Average cost of raw material consumed per day

2. WIP holding period =

Average WIP inventory/Average cost of production per day

3. Finished goods storage period =

Estimated production (in units) * direct lab permit 12 months / 360 days

OR Average stock of finished goods Average cost of goods sold per day

4. Debtors collection period =

Average goods debtors /Average credit sale per day

5. Credit period available to suppliers =

Average rate credit /Average credit purchase per day

Operating Cycle = R+W+F+D-C

WORKING CAPITAL POLICY / APPROACHES

It can be explained by two approaches:

Conservative approach

Aggressive approach

Conservative approach: A firm financing its common permanent assets & also with long term financing & less risky so far as insolvency is concerned. However funds may be invested in such investment which fetches small returns to build up liquidity.

Aggressive approach: The firm uses only short term financing. In this approach, the firm finances a part of the permanent assets with short term financing. This approach refers to more risky but may at returns to the assets.

  • Current Assets
  • Aggressive
  • Moderate
  • Conservative
  • Expected profitability

FINANCING OF WORKING CAPITAL

Financing of working capital can be done in two ways:

Long term sources

Short term sources

Long term sources

    1. Share capital
      1. Equity share capital
      2. Preference share capital
    2. Debentures
      1. Convertible debentures
      2. Non-convertible debentures
      3. Redeemable debentures
      4. Non-Redeemable debentures
    3. Bonds
    4. Loans from banks & financial institutions
    5. Retained earnings
    6. Venture capital fund for innovative projects

Short term sources

    1. Bank credit
    2. Transaction credit
    3. Advances from customers
    4. Bank advances
    5. Loans
    6. Overdraft
    7. Bills purchase and discounted
    8. Advance against documents of title of goods
    9. Term loans by bank
    10. Commercial paper
    11. Bank deposits

REGULATION OF BANK FINANCE

Traditionally bank credit:

  • Source of meeting of working capital needs of business firms.
  • In other words, they have been extending credit to industry & trade on the basis of security.
  • RBI has appointed various committees to ensure equitable distribution of bank resources to various sectors of economy. The committees suggest ways & means to make the bank credit & effective instrument of industrialization.

DAHEZA COMMITTEE

In September 1969, Daheza committee of RBI pointed out in his report that in the financing practice of the banks. There was no relationship between the optimum requirement & bank loan.

The committee also pointed out that banks do not give proper attention to financing patterns. So clients move towards double & multiple financing.

The Daheza committee suggested:

    • The heart hole which represents the minimum level of raw material, finished goods & stores which any industrial concerned is required to hold for maintaining certain level of production.
    • The strictly short term components which should be the fluctuating path of the accounting, the path should represents the short term inventory, taxes, dividend, bonus payments.

Conclusion of Daheza committee:

  • Orientation towards project & need based lending.

TONDON COMMITTEE

In July 1974, RBI constituted a study group under the chairpersonship of Mr. P.L Tondon. The study group was asked to give its recommendations on the following matter:

    • What constitutes the working capital requirement of industry and what is end use of credit?
    • How is the quantum of bank advanced to be decided?
    • Can norms be involved of current assets & for debt equity ratio to ensure minimum dependents on bank finance?
    • Can the current manner & stage of lending be imposed?
    • Can an adequate planning assessment & implementation system be involved to ensure a discipline flow of credit to meet genuine production needs & its proper supervision?

The final recommendations for committee were:

  1. Banks finance essentially for meeting working capital needs.
  2. To fill up the working capital gap.
  3. Norms: The borrowing requirement of industrial unit depends on the length of working capital cycle.
  4. Three different methods for calculating the borrowing limit to finance working capital requirements are:
    • First step is to use required fund deposit your money in term deposit, never purchase excessive inventory.
    • The borrower will have to provide a minimum 25% of total current assets from the term fund.
    • To decide the limit as per current assets & current liabilities.
  5. Style of credit
  6. Information system for banks
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The Production Function Analysis in Short Run and in Long Run

Posted on December 7, 2021December 7, 2021 By Pradeep Sharma

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Shakkarbar Shah Dargah, Narhad, Jhunjhunu and Krishna Janmashtami festival

Posted on December 6, 2021December 6, 2021 By Pradeep Sharma

एक एसी दरगाह जहां जन्माष्टमी पर मेला लगता है। जी हां यह है अद्भुत आस्था का केंद्र: शक्करबार शाह की दरगाह, जिसे नरहड की दरगाह भी कहा जाता है।

हमारे राज्य राजस्थान में एक दरगाह भी है जहां श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर मेला लगता है। जहां ठाकुरजी खुद खुश हैं। राजस्थान के झुंझुनू जिले के नरहड  शहर में स्थित, शक्करबार शाह का पवित्र मंदिर राष्ट्रीय या धार्मिक एकता का एक जीवंत उदाहरण है। इस दरगाह की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्म के अनुसार पूजा करने का अधिकार है। राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप में प्राचीन काल से श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर तीन दिवसीय विशाल मेला आयोजित किया जाता है जिसमें हिंदू और मुसलमान पूरी भक्ति के साथ भाग लेते हैं। हजरत हाजीब की कब्र पर तीर्थयात्री चादरें, कपड़े, नारियल, मिठाई और नकदी भी चढ़ाते हैं।

 

कृष्ण जन्माष्टमी की रात को लगने वाला यह ऐतिहासिक मेला और रतजगा  (रात्री जागरण ) सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देश में राष्ट्रीय एकता की अनूठी मिसाल का अद्भुत आस्था केंद्र बनाता है। जहां हर धर्म और पंथ के लोग बाबा के दरबार में हर तरह के भेदभाव और पूजा को भूल जाते हैं। सात सौ साल से चली आ रही साम्प्रदायिक सौहार्द की साक्षी रही दरगाह की खादिम व अंजतिया कमेटी आज भी वार्षिक उर्स की तरह पूरी निष्ठा से चल रही है.

भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की 6 तारीख को शुरू होने वाले इस धार्मिक आयोजन में दूर-दूर से नरहड  आने वाले हिंदू भक्त नवविवाहितों और बच्चों को गांठ बांधकर दरगाह में ले जाते हैं। दरगाह के वयोवृद्ध हाजी अजीजखान पठान का कहना है कि नरहड  में कृष्ण जन्माष्टमी मेले की परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतना कि देश के बंटवारे के बाद और अन्य जगहों पर नरहड  संप्रदाय के नाम पर धर्म . हालांकि स्थिति बिगड़ती गई है, लेकिन नरहड  ने हमेशा हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल कायम की है। वे बताते हैं कि जिस प्रकार कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में रात्रि जागरण होता है, उसी प्रकार अष्टमी के दिन प्रसिद्ध दुलजी राणा परिवार के कलाकार ख्याल (श्री कृष्ण पात्र नृत्य नाटको) द्वारा सभी दरगाह परिसर में रात इन्हें देने की पुरानी परंपरा अर्थात राती जागरण की परम्परा आज भी जीवित है । यह मेला पूरे त्योहार के दौरान कृष्ण जन्माष्टमी और नवमी को चलता है ।

ऐसा माना जाता है कि पहली दरगाह के गुंबद से चीनी की बारिश हो रही थी, इसलिए इस दरगाह को शक्कर बार बाबा के नाम से भी जाना जाता है। शक्करबार शाह अजमेर के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के समकालीन थे और उन्हीं की तरह एक आदर्श व्यक्ति थे। ख्वाजा साहब के 57 साल बाद शक्करबार शाह ने शरीर छोड़ा।

शकर बाबा को राजस्थान और हरियाणा में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है। चाहे विवाह हो, विवाह हो, जन्म हो या मृत्यु हो, बाबा को जरूर याद करना चाहिए। इस क्षेत्र के लोगों की गायों और भैंसों के बछड़ों को जन्म देने के बाद, इसके दूध से जमे हुए दही का प्रसाद सबसे पहले दरगाह पर चढ़ाया जाता है, जिसके बाद घर में जानवर के दूध का उपयोग किया जाता है। हाजीब शक्करबार साहिब की दरगाह के प्रांगण में एक विशाल वृक्ष है, जिस पर श्रद्धालु मन्नतें लगाते हैं। व्रत समाप्त होने पर गांव में एक रात होती है जहां महिलाएं बाबा की स्तुति में गाथा गाती हैं।

नरहड़ गांव कभी राजपूत राजाओं की राजधानी हुआ करता था । उस समय यहां 52 बाजार थे । समाधि तक पहुंचने के लिए यहां आने वाले हर आगंतुक को तीन दरवाजों से गुजरना पड़ता है । पहला दरवाजा है बुलंद दरवाजा, दूसरा है बसंती दरवाजा और तीसरा है बाली दरवाजा । इसके बाद मजार शरीफ और मस्जिद का नंबर आता है ।

ऊंचा द्वार 75 फीट ऊंचा और 48 फीट चौड़ा है। मकबरे का गुंबद मिट्टी का बना है, जिसमें कोई पत्थर नहीं लगाया गया है। कहा जाता है कि इस गुम्बद से शक्कर की वर्षा हो रही थी, इसलिए इसका नाम शक्कर बार पड़ा। घरान वालो के मकबरे के नाम से मशहूर नरहड  के इस जौहर में पीर बाबा के साथियों को दूसरी तरफ दफनाया गया है ।

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Dominancy of the Planets and their impact

Posted on November 30, 2021November 30, 2021 By Pradeep Sharma

ग्रहों का विस्तृत कारक तत्व – Graho ka Prabhav

1. सूर्य – आत्मा, शक्ति, तीक्ष्णता, बल, प्रभाव, गर्मी, अमितत्व, धैर्य, राजाश्रय, कटुता, आक्रामकता, वृद्धावस्था, पशुधन, भूमि, पिता, अभिरूचि, ज्ञान, हड्डी, प्रताप, पाचन शक्ति, उत्साह, वन प्रदेश, आँख, वनश्रमण, राजा, यात्रा, व्यवहार, पित्त, नेत्ररोग, शरीर, लकड़ी, मन की पवित्रता, शासन, रोगनाश, सौराष्ट्र देश, सिर के रोग, गंजापन, लाल कपड़ा, पत्थर, प्रदर्शन की भावना, नदी का किनारा, मूँग, लाल चन्दन, कॉटेदार झाड़ियोँ, उन, पर्वतीय प्रदेश, सोना, तॉबा, शस्त्र प्रयोग, विषदान, दवाई, समुद्र पार की यात्राएँ,
समस्याओं का समाधान, गूढ़ मन्त्रणा आदि का कारक है।

  1. चन्द्रमा – कविता, फूल, खाने के पदार्थ, मणि, चांदी, शंख, मोती आदि समुद्रोत्पन्न पदार्थ, नमकीन पानी, उस्त्राभूषण, स्त्री, घी, तेल, तिल, नींद, बुद्धि, रोग, आलस्य, कफ, प्लीहा, मनोभाव, हृदय, पाप – पुण्य, खटाई, सुख, जलीय पदार्थ, चॉँदी, गन्ना, गेहूँ, सर्दी से
    बुखार, यात्रा, कूऑ आदि स्थान, टी0बी0, सफेद रंग, बेल्ट, तगड़ी, कॉसा, नमक, मन, मनोबल, शरद ऋतु, मुहूर्त्त, मुखशोभा, पेट, शहद, हँसी — मजाक, परिहास कुशलता, तेज चाल, चंचलता, दही, यश, रोजगार लाभ, कन्धे की बीमारियां, राजसी चिन्ह, खून की
    शुद्धता, शरीर विकास, चमकीली चीजें मखमली कोमल कपड़े आदि का कारक है।
  2. मंगल – शूरता, वीरता, पराक्रम, आक्रामकता, युद्ध, शस्त्र उठाना, वीर्य हानि, चोरी, शत्रु, लाल रंग, उद्यानपति होना, शोर, पशुधन, राजयोग, क्रोध, मूर्खता, विदेशयात्रा, धीरज, पालक पिता आदि, अग्नि, मौखिक कलह, चित्त, गर्मी, घाव, राजसेवा, रोग, प्रसिद्धि,
    अंगक्षति, कटुरस, युवावस्था, मिट्टी के पदार्थ, रूकावट, मांस – भक्षण, दोष – दर्शन, शत्रु पर विजय, तीखा भोजन, सोना धातु, गम्भीरता, पुरूषत्व, शील, मूत्र के रोग, जला हुआ प्रदेश, सूखे वन, धन, खून, काम, क्रोध, सेनापतित्व, वृक्ष, भाई, वन विभाग का अधिकारी, ठेकेदारी, कृषि भूमि, दण्डाधिकारी, सॉप, घर, वाहन – सुख, खून बहना, पारा, बेहोशी आदि का कारक है।

4 बुध बुद्धि, विद्या, घोड़ा, खजाना, गणित, वाक्कला, सेवा, लेखन, नया वस्त्र, दःस्वप्न, नपुंसकता, खाल, गीलापन, वैराग्य, सुन्दर भवन, डॉक्टर, गला, गान विद्या, भिक्षु, तिर्यग्‌ दृष्टि, हँसोड़पन, नम्नता, नृत्य, मन का संयम, नाभि, गोत्र वृद्धि, आन्भ्रप्रदेश की भाषा, विष्णु
की भक्ति, शूद्र, पक्षी, बहन, भाषा का चमत्कार, नगरद्वार, धूल, गुप्तांग, व्याकरण, पुराण, साहित्य व वेदान्त विद्या, जौहरी, विद्वता, मामा, मन्त्र, तंत्र, आयुर्वेद, मन्त्रित्व, जुड़वापन, वनस्पति आदि का कारक बुध है।

  1. गुरू – शुभ कर्म, धर्म, गौरव, महत्व, पोषण, शिक्षा, गर्भाधान, नगर, राष्ट्र, वाहन, आसन, पद, सिंहासन, अन्न, गृह- सुख, पुत्र, अध्यापन, कर्तव्य बोध, संचित धन, मीमांसा शास्त्र, दही, बड़ा शरीर, प्रताप, यश, तर्क, ज्योतिष, पुत्र, फौज, उदर रोग, दादा, बड़े मकान, बड़ा भाई, राजा क्रोध, रत्नों का व्यापार, स्वास्थ्य, परोपकार, राजकीय सम्मान, तपस्या, दान, गुरूभक्ति, मध्यम श्रेणी का कपड़ा, गृहसुख, धारणात्मक बुद्धि, सभा चतुरता, बर्तन, सुख, कफ, सुन्दर वाहन आदि का अधिपति वृहस्पति है।
  2. शुक्र – हीरा, मणि, विवाह, प्रेम प्रसंग, दाम्पत्य सुख, आमदनी, स्त्री, मैथुन सुख व शक्ति, खटाई, फूल, यश, जवानी, सुन्दरता, काव्य रचना, वाहन, चाँदी, खुजली, राजसी स्वभाव, सौन्दर्य प्रसाधन का व्यवसाय, गाना, बजाना, आमोद – प्रमोद आदि, तैराकी, विचित्र
    कविता, रसिकता, भाग्य, सौन्‌दर्य, आकर्षक, व्यक्तित्व, ऐश्वर्य, कम खाना, वसन्त ऋतु, वीर्य, जल – क्रीड़ा, नाटक, अभिनय, आसक्ति, राजकीय मुद्रा, कमजोरी, काले बाल, रहस्य की बातें आदि का कारक शुक्र है
  3. शनि – जड़ता, आलस्य, रूकावट, चमड़ा, कष्ट, दु:ख, विपत्ति, विरोध, मृत्यु, दासी, गधा, खच्चर, चांडाल, हीनांग, वनचर, डरावने लोग, स्वामी, आयु, नपुंसकता, पक्षी, दासता, अधार्मिक कार्य, झूठ बोलना, वात रोग, बुढ़ापा, नसें, पैर, परिश्रम, मजदूरी, अवैध सन्तति,
    गन्दे व बुरे पदार्थ व विचार, लंगड़ापन, राख, लोहा, काले धान्य, कृषिजीवी, शस्त्रागार, जाति वहिष्कार, सीसा, शक्ति का दुरूपयोग, तुर्क, पुराना तेल, लकड़ी, तामासी गुण, व्यर्थ घूमना, डर, अटपटे बाल, बकरा, भैंस, सार्वभौम सत्ता, कुत्ता, चोरी, कठोर हृदयता, मूर्ख
    नौकर व दीक्षा का कारक शनि है।
  4. राहु – छत्र, चेंवर, राज्य, संग्रह, कुतर्क, मर्मच्छेदी वचन, शूद्र, पाप, स्त्री, सुसज्जित वाहन, अधार्मिक मनुष्य, गंगा – स्नान, तीर्थ यात्रा, झूठ, भ्रम, मायाचार, कपट, रात की हवाएँ, रेंगने वाले कीड़े – मकोड़े, गुप्त बातें, मृत्यु का समय, वायु का तेज दर्द, सॉस की बीमारी,
    दुर्गापूजा, पशुओं से मैथुन, उर्दू आदि भाषाएँ, कठोर भाषण, अचानक फल देना आदि का कारक राहु है।
  1. केतु -मोक्ष, शिवोपासना, डॉक्टरी, कुत्ता, मुर्गा, ऐश्वर्य, टी0बी0 पीड़ा, ज्वर, ताप, वायु विकार, स्नेह, सम्पत्ति का हस्तान्तरण, पत्थर की चोट, कॉटा, ब्रह्मज्ञान, ऑख का दर्द, अज्ञानता, भाग्य, मौनव्रत, वैराग्य, भूख, उदरशूल, सींगों वाले पशु, ध्वज, शूद्रों की सभा, बन्धन की आज्ञा को रोकना, जमानत आदि का कारक केतु है। बलवान कारक से उससे सम्बन्धित पदार्थों की प्राप्ति होती है। यदि भावेश भाव पदार्थ का कारक या

स्वयं भाव तीनों ही निर्बल या पीडित हों तो उस भाव से सम्बन्धित फल की प्राप्ति नहीं होती है। साधारणत: जो ग्रह जिस भाव का कारक हो उसी स्थान में बैठकर प्रायः भाव की हानि करता है। शनि इसका अपवाद है। अर्थात्‌ अष्टम भाव में शनि आयु नाशक न होकर आयु को प्रदान करता है । भाव, भावेश व कारक ये तीनों बली हों तो भाव का पूरा फल, दो ही बली होने से थोड़ा कम अर्थात्‌ 283 फल होता है। तथा एक बली होने से /3 फल ही प्राप्त होता है।

अन्य प्रकार से कारकत्व – जन्म लग या चन्द्र से ,4,7,0 भावों में जितने ग्रह स्वोच्च व मूल त्रिकोण व स्वराशि में स्थित हों तो वे परस्पर कारक होते हैं, तथा एक दूसरे को बल प्रदान कर शुभप्रद होते है। इनमें भी दशम भावगत ग्रह विशेषतया कारक अर्थात्‌ फलकारक होता है।

अथवा कहीं भी स्वोच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में स्थित ग्रह या स्वोच्चादि नवांशगत ग्रह भी कारक अर्थात्‌ शुभ फल देने वाले होते हैं । अथवा केन्द्र स्थानों में किसी भी राशि में स्थित ग्रह कारक होते हैं।

इस प्रकार कारक ग्रहों की अधिकता होने से जातक साधारण कुलोत्पन्न होकर भी प्रधानता पाता है, तब राजकुल आदि में पैदा होने पर तो विशिष्ट प्रधानता पाता ही है।

कारकों की फल प्राप्ति – सभी कारक ग्रह अपने से सम्बन्धित या समस्त या कुछ शुभ फल यथावसर इन वर्षों में या इसके उपरान्त देते हैं –

सूर्य – 22 वर्ष , मंगल – 28 वर्ष, बुध – 32 वर्ष, गुरू – 6 वर्ष, शुक्र – 25 वर्ष, शनि – 36 वर्ष, राहु केतु के 42 वर्ष भाग्योदय वर्ष होते हैं।


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The Twelve Houses of Kundali Indian Astrology

Posted on November 30, 2021November 30, 2021 By Pradeep Sharma

कुंडली के बारह भावो की जानकारी

भावों का कारकत्व – जिस भाव से जो – जो विचार किया जाता है वह वस्तु या बातें उन भावों का कारकत्व कहलाता है।

1. लग्न भाव – शरीर, शरीरांग, सुख, दुःख, बुढ़ापा, ज्ञान, जन्म – स्थान, कीर्ति, स्वप्न, बल, गौरव, राज्य, नम्नता, स्वभाव, आयु, शान्ति, अवस्था, व्यक्तित्व, स्वाभिमान, कार्य, चोट, निशान, अपमान, त्वचा, वर्ण, त्यागादि का विचार किया जाता है।

2. धन भाव – वित्त, संचित धन, बचत, परिवार, कुटुम्ब, आँख, वाणी, मुख, विद्या, वाचालता, भाषण कला, भोजन का स्वाद, क्रय – विक्रय, दान, धनप्राप्ति का प्रयत्न, आस्तिकता, परिवार का उत्तरदायित्व, नाखून, चलने का ढंग, झूठ बोलना, नाक, जीभ, कपड़े, भोग- विलास, मित्र, नौकर, मृत्यु, विचारधारा, प्रसन्‍नता, धन – धान्य व विनयशीलता , वैराग्य, बदनामी, विद्या, यात्राएँ, मन की स्थिरता, आदि का विचार होता है

3. तृतीय या सहज भाव – भाई, पराक्रम, अनिष्ट, पुरूषार्थ, परिश्रम, कान, मुँह, टोंगें, भुजा,चित्त की वेचैनी, स्वर्ग, पर सन्ताप, स्वप्न, बहादुरी, मित्र, यात्रा, गला, कुभोजन, धन का बंटवारा, आभूषण, गुण, अभिरूचियों , लाभ, शरीर की बढ़ोत्तरी , कुल का स्तर, नौकर, सहयोगी, वाहन, छोटी यात्राएँ महान कार्य, पिता की मृत्यु, छाती, मामा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है।

4. चतुर्थ या सुख स्थान – सुख, सम्पत्ति, वाहन, माता, मित्र वर्ग, प्रसिद्धि, मकान, यात्राएँ, बन्धु – बान्धव, मनोरथ, राजा, खजाना, श्वसुर, पशुधन, प्रेम – प्रसंग, बाह्य सुख, पिता का व्यवसाय, भोजन, निद्रा, सुख, सिंहासन, कन्धे, यश, जन – सम्पर्क, झूठे आरोप, गड़ा धन, गृह त्याग, चोरी गई वस्तु की दिशा का स्थान, धान्य सम्पदा आदि का विचार होता है।

5. पंचम भाव – विद्या, बुद्धि , प्रबन्ध कुशलता, मन्त्रणा शक्ति, गूढ़ तान्त्रिक क्रियाएँ, सन्‍्तान, शिल्प, कला – कौशल, महान्‌ कार्य, पैतृक धन, दूरदर्शिता, रहस्य, नम्नता, लगन, समालोचना शक्ति, धन कमाने का ढंग, परम्परा से प्राप्त मन्त्री पद, गर्भ, पेट, भोजन की मात्रा, लेखन शक्ति आदि का विचार होता है।

6.. षष्ठ या शत्रु भाव – शत्रु, रोग, मामा, युद्ध, सृजन, पागलपन, फुंसी – फोड़े, कंजूसी, परिश्रम, ऋण, गर्मी, जख्म, नेत्ररोग, विषपान, निन्‍्दा, चोरी, विपत्ति, भाइयों से झगड़ा , अंग – भंग, नाभि, कमर, मूत्ररोग, भिक्षावृत्ति आदि का विचार होता है।

7. सप्तम भाव – पत्नी, दाम्पत्य सुख, दैनिक आय, मृत्यु, व्यभिचार, काम शक्ति, स्त्री से शत्रुता, रास्ता भटकना, पौष्टिक भोजन, पान खाना, सुगन्ध प्रयोग, सजने की प्रवृत्ति, भूल, कपड़े प्राप्त करना, वीर्य, पवित्रता, गुप्तांग, दत्तक पुत्र, अन्य देश, अन्य स्त्री से उत्पन्न पुत्रादि व बाबा का विचार सप्तम भाव से होता है।

8. अष्टम्‌ भाव – आयु, मृत्यु का कारण, मृत्यु प्रकार, शवगति, गड़ा धन, वैराग्य, सुख, कष्ट, झगड़ा, मुसीबत, गुप्तरोग, पत्नी का शारीरिक कष्ट, नाश, ऋण, राजकोप, पाप, शरीर कटना, शल्य चिकित्सा, क्रूर कार्य, जीवनरक्षा, मरणोपरान्त गति, गढ़ विजय, चोरी की आदत, वेतन, सूदखोरी, आलस्य आदि अष्टम भाव से देखे जाते है।

9. नवम भाव – दान, धर्म, त्याग, बलिदान, तीर्थयात्रा, तपस्या, गुरूभक्ति, चिकित्सा, मन की शुद्धि, ऐश्वर्य, पुत्र, पुत्री, पैतुक धन, राज्याभिषेक, जॉघ, सभी प्रकार की सफलता आदि का विचार नवम भाव से किया जाता है।

10. दशम भाव – राज्य, आज्ञा, मान – सम्मान, प्रतिष्ठा, राज्यप्राप्ति, राजपद, सवारी, यश, धन रखना, वृद्धजन, कार्य- विस्तार, औषधि, कमर, सफलता, ख्याति, गौरव, नियन्त्रण, प्रशासन, आज्ञा, कृषि, रोजगार, खानदान, संन्यास, आकाश, वायुमार्ग की यात्रा, घुटना, आदि का विचार होता है।

11. एकादश भाव – लाभ, असफलता, सब प्रकार की उपलब्धि, बड़ा भाई, गुलामी, आमदनी, विद्या, धन कमाने की शक्ति, घुटने, पदवी, सुखलाभ, धननाश, प्रेमिका की भेंट, मंत्रीपद, ससुर से लाभ, भाग्योदय, मनोरथ सिद्धि, आशा, कान, माता की आयु, निपुणता, कन्याएँ, पुत्रवधू,, चाचा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है।

12. द्वाइश भाव – सब प्रकार की हानि, नेत्र, धननाश, धन का निवेश, भोग, निद्रा, विस्तर का सुख, विवाह में विलम्ब, पदयात्रा, कर्ज, मोक्ष, जन – विरोध, अंग- भंग, अधिकार नाश,पदावनति, कैद, बन्धन, शरीर हानि, क्रोध, अन्य देश में बसना, पत्नी का नाश, गरीबी, कष्ट, शरीर विकार आदि का विचार द्वादश भाव से होता है।

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What we meant by Zodiac or Rashi ?

Posted on November 29, 2021November 29, 2021 By Pradeep Sharma

What we meant by Rashi ?

ये राशी का क्या मतलब होता है ?

नक्षत्रो के समूह को राशि कहते है | आकाश में अनेक तारो का समूह हमें दिखाई पड़ता है | उन्ही तारो के समूह को ज्योतिष शास्त्र में राशी का नाम दिया गया जिसमे वह तारो का समूह आकाश में एक आकृति का निर्माण कर रहे होते है |राशियों कि कुल संख्या 12 है | राशी शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है धन |

  1. मेष राशी –
  2. वृष राशि –
  3. मिथुन राशी –
  4. कर्क राशी-
  5. सिंह राशी-
  6. कन्या राशी-
  7. तुला राशी –
  8. वृश्चिक राशी –
  9. धनुराशी –
  10. मकर राशी –
  11. कुम्भ राशी –
  12. मीन राशी –
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What is meant to Kal Purush ये काल पुरुष क्या है ?

Posted on November 29, 2021November 29, 2021 By Pradeep Sharma

 What is meant by Kal-Purush?

ये काल पुरुष क्या है ?

12 राशियों का एक महान विराट स्वरूप ही काल पुरुष कहलाता है जिसमें –

  1. मेष राशी – मस्तक
  2. वृष राशि – मुख
  3. मिथुन राशी – वक्ष स्थल
  4. कर्क राशी- ह्रदय
  5. सिंह राशी- उदर
  6. कन्या राशी- कमर
  7. तुला राशी – वस्ति
  8. वृश्चिक राशी – लिंग  या योनी
  9. धनुराशी -पैरो कि सन्ध
  10. मकर राशी – पैरो कि गांठ
  11. कुम्भ राशी – दोनों जांघ
  12. मीन राशी काल पुरुष कि दोनों पाद स्थानीय होती है |
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Every Student will get 20 Marks By His/her College

Posted on November 29, 2021November 29, 2021 By Pradeep Sharma

अब स्नातक स्केनातकोत्तर के प्रत्येक विध्ह्यार्थी को कॉलेज से मिलेंगे 20 मार्क्स (सेसनल मार्क्स)

शैक्षणिक सत्र 2021-22 से उक्त आदेश अनुपालित होगा | हर विद्यार्थी को बनाने होंगे 3 असाइनमेंट , जिनमे से बेस्ट दो असाइनमेंट के अंक मान्य होंगे |

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Who was more Powerful Rawan or Kans ?

Posted on November 29, 2021November 29, 2021 By Pradeep Sharma

कोन अधिक शक्तिशाली था रावण या कंस ? जाने इस कहानी में

रावण से भी ज्यादा शक्तिशाली था कंस, सवालाख किलो का उठा लिया था धनुष!

रावण को मारने के लिए श्री राम को कई दिन युद्ध करना पड़ा था इस दौरान दो बार राम जी तो 4 बार लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे। करोडो वानरों की भी मृत्यु हो गई थी (हालाँकि उन्हें इंद्र ने पुनः जीवन दान दे दिया था) तब जाकर कंही अंत में रावण का वध हुआ था।

इसपे हनुमान जी और वानरों में भी कई वीरो की सहायता से ही रावण की सेना का संघार हुआ था। भले ही बड़े बड़े राक्षस राम लखन ने मारे थे लेकिन वानर वीरो ने भी कई राक्षस मारे थे।

इन सब को देखते हुए अगर आपको लगता है की कंस तो बड़ा कमजोर था। भगवान कृष्ण जब ग्यारह साल के थे तभी उसे आसानी से मार दिया था तो आप गलत है!

तब पर श्री कृष्णा हो या महाभारत सभी में कृष्ण लीला तो दिखाई है। लेकिन कंस का पराक्रम बहुत कम ही दिखाया गया है। श्री कृष्ण के राज पुरोहित गर्गाचार्य ने जो गर्ग संहिता लिखी है उसमे उन्होंने कंस के बल का वर्णन किया है जिसे जान आप भी कहेंगे की वो रावण से ज्यादा बलशाली था।

जाने उसका बल… वत्सासुर, पूतना, तृणावर्त, अघासुर, बकासुर (पूतना का भाई). अरिष्ठासुर, केशी, व्योमासुर, शकटासुर इन सभी असुरो को भगवान् कृष्ण ने बचपन में ही मार दिया था। लेकिन आप जानकार चौंक जायेंगे की इस सभी को कंस ने अपनी दिग्गविजय यात्रा में परास्त कर अपना गुलाम बना लिया था, तभी प्राण दान दिया इनको नहीं तो ये उसके हाथो भी मारे जाते।

जरासंध का हाथी कुवलयापीड़ जिसमे 1000 हाथियों का बल था जरासंध की दिग्गविजय के समय उसके साथ था, मथुरा नगरी के पास जब उसने शिविर लगाया तो वो हाथी कंस की नगरी में घुस गया। कंस तब मल्ल युद्ध में व्यस्त था तब कंस निहत्था ही उस हाथी से भीड़ गया और उसे उठाकर जरासंध के शिविर में फेंक दिया।

हाथी फिर भी मरा नहीं लेकिन ये पराक्रम देख उसने अपनी दो बेटियों कंस से ब्याहकर उससे संधि कर ली।

परशुराम जी से भी टकरा गया था कंस जाने पूरी कथा….

कंस ने अपने काका देवक की बेटी देवकी के विवाह के पूर्व ही दिग्गविजय की यात्रा शुरू की थी जिस दौरान उसने सभी उपलब्धिया हासिल की थी। इसी दौरान वो महेंद्र पर्वत (वर्तमान ओडिशा में) पहुंचा और उस पर्वत पर परशुराम जी तपस्या कर रहे है, ये जान उसे महेंद्र पर्वत को वैसे ही उठा लिया जैसे रावण ने हिमालय उठा लिया था।

तब परशुराम जी कुपित हो गए तो कंस ने उनकी परिक्रमा कर उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति की और कहा में क्षत्रिय नहीं हूं। तब भी परशुराम का क्रोध शांत नहीं हुआ और उसे भगवान् विष्णु का धनुष दिखाते हुए कहा की ये 120000 किलो का है अगर तुमने उसे उठा लिया तो में तुम्हे माफ़ कर ये धनुष भी तुम्हे दे दूंगा।

कंस ने सहसा उस धनुष को उठा लिया और उसकी प्रत्यंचा भी कर डाली तो परशुराम जी प्रसन्न हुए और उसे वो धनुष दे दिया, साथ ही ये भी कहा की जो ये धनुष तोड़ेगा वो ही तुम्हारा अंत करने में सक्षम होगा।

चाणूर और मुष्टिक कौन थे कैसे बने कंस के सेवक जाने????

कंस मल्ल युद्ध का बड़ा शौकीन था, उसके बराबर मथुरा में कोई पहलवान भी नहीं था, एक दिन उसे पता चला की पड़ौसी देश के राजा जो की पांच भाई थे वो सभी मल्ल्युद्ध में पारंगत थे। कंस उनके राज्य में गया और उन्हें ललकारा और कहा की अगर तुम जीते तो में तुम्हारा सेवक और में जीता तो तुम मेरे सेवक।

तब कंस ने एक एक कर के पांचो भाइयो को मल्ल युद्ध में हरा दिया और उनमे से मुष्टिक और चाणूर को अपने साथ मथुरा ले आया जिनसे बाद में उसने कृष्ण बलराम को मरवाना चाहा था। लेकिन कृष्ण बलराम जब मथुरा आये तो उन्होंने विष्णु धनुष भी तोडा जरासंध के उस हाथी को भी मारा और अंत में इन दो पहलवानो के बाद कंस को भी,जैसे तैराक पानी में ही डूबता है वैसे कंस को भी उसके पसंदीदा मल्ल युद्ध में ही परास्त कर कृष्ण ने उसका संघार किया।

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Free Lecture Notes on International Financial Management for MBA

Posted on November 28, 2021November 28, 2021 By Pradeep Sharma

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An Introduction of Business Economics

Posted on November 28, 2021 By Pradeep Sharma

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What is Marginal Utility, Total Utility, and Average Utility

Posted on November 28, 2021November 28, 2021 By Pradeep Sharma

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An Introduction of Managerial Economics

Posted on November 28, 2021November 28, 2021 By Pradeep Sharma

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What is Production Function Analysis ?

Posted on November 28, 2021November 28, 2021 By Pradeep Sharma

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Meaning and Definition of Business Economics

Posted on November 28, 2021November 28, 2021 By Pradeep Sharma
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INTERNATIONL FINANCIAL MNGEMENT: AN INTRODUCTION

Posted on November 28, 2021November 28, 2021 By Pradeep Sharma
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WHAT IS AN INTERNATIONAL FINANCE MANAGEMENT : INTRODUCTION

Posted on November 28, 2021 By Pradeep Sharma

INTRODUCTION TO INTERNATIONAL FINANCE MANAGEMENT (IFM)

अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन : परिचय

AN OVERVIEW OF INTERNATIONAL FINANCE MANAGEMENT (IFM)

International financial management is also known as “international finance”.

International finance is the set of relations for the creation and using of funds (assets), needed for foreign economic activity of international companies and countries. Assets in the financial aspect are considered not just as money, but money as the capital, i.e., the value that brings added value (profit). Capital is the movement, the constant change of forms in the cycle that passes through three stages: the monetary, the productive, and the commodity. So, finance is the monetary capital, money flow, serving the circulation of capital. If money is the universal equivalent, whereby primarily labor costs are measured, finance is the economic tool.

The definition of international finance is the combination of monetary relations that develop in process of economic agreements – trade, foreign exchange, investment – between residents of the country and residents of foreign countries.

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, विनिमय अथवा विनियोग जो कि एक निवासी देश और अन्य भिन्न देश के बिच संपन्न होता है से सम्बंधित मौद्रिक मामलातों के समूह को अंतर्राष्ट्रीय वित्त के नाम से जाना जा सकता है |

Financial management is mainly concerned with how to optimally make various corporate financial decisions, such as those pertaining to investment, capital structure, dividend policy, and working capital management, with a view to achieving a set of given corporate objectives.

When a firm operates in the domestic market, both for procuring inputs as well as selling its output, it needs to deal only in the domestic currency. When companies try to increase their international trade and establish operations in foreign countries, they start dealing with people and firms in various nations. On this regards, as different nations have different currencies, dealing with the currencies becomes a problem-variability in exchange rates have a profound effect on the cost, sales and profits of the firm.

Globalization of the financial markets results in increased opportunities and risks on account of overseas borrowing and investments by the firm.

TRANSFER PRICING

It is determination of exchange price when different business units within a firm exchange the products and services

Transfer pricing is

  • the process of setting transfer prices between associated enterprises or related parties where at least one of the related parties is a non-resident.
  • the price at which an enterprise transfers goods and services, intangible and intangible assets, services or lending/ borrowing money to associated enterprises.
  • generally decided prior to entering the transaction and they are audited/ reviewed by the auditor after the year finalization.

Methods of Transfer Pricing

  • Variable Cost Method Transfer price = variable cost of selling unit + markup
  • Full Cost Method Transfer price = Variable Cost + allocated fixed cost
  • Market Price Method Transfer price = current price for the selling unit ‘s in the market           Negotiated Price Method

Strategic Factors of Transfer Pricing

  • International Transfer Pricing Consideration
  • Tax Rate- minimize taxes locally as well internationally
  • Exchange Rate
  • Custom Charges Risk of expropriation
  • Currency Restriction
  • Strategic relationship
  • Assist bayside division to grow
  • Gain entrance in the new country
  • Supplier ‘s quality or name

Reason for growth in international business

International business has growth dramatically in recent years because of strategic imperatives and environmental changes.

  • १.      Saturation of Domestic Markets घरेलू बाजारों का पूर्णता को छुना
  • २.      Opportunities in Foreign Markets विदेशी बाजार में अवसर मिलना
  • ३.      Availability of Low-Cost Labor कम लागत के श्रम कि उपलब्धता
  • ४.      Competitive Reasons प्रतियोगी कारण
  • ५.      Increased Demands मांग का बढ़ना
  • ६.      Diversification विभेद करण  
  • ७.      Reduction of Trade Barriers व्यापारिक प्रतिबंधों क कम होना
  • ८.      Development of communications and Technology संचार एवं तकनीक में विकास
  • ९.      Consumer Pressure उपभोक्ता का दबाव
  • १०.   Global Competition वैश्विक प्रतियोगिता

Importance of IFM (अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन: परिचय)

All the major economic functions-consumption, production and investment-are highly globalized. Hence it is essential for financial managers to fully understand vital international dimensions of financial management. Proper management of international finances can help the organization in achieving same efficiency and effectiveness in all markets. Hence without IFM, sustaining in the market can be difficult.

Six aspects provide importance to IFM

  1. Specialization of some goods and services कुछ वस्तुओं और सेवाओं कि अपनी विशिष्टता
  2. Opening of new economies नयी अर्थव्यवस्थाओं का खुलना
  3. Globalization of firms फर्मो का वैश्विकरण
  4. Emergence of new form of business व्यापार के नवीन आयामों का आगाज
  5. Growth of world trade वैश्विक व्यापार का विकास
  6. Development process of Nations राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का विकास

Nature and Scope of International Financial Management

Multinational finance is multidisciplinary in nature. While an understanding of economic theories and principles is necessary to estimate and model financial decisions, financial accounting and management accounting help in decision making in financial management at multinational level.

Because of changing nature of environment at international level, the knowledge of latest changes in forex rates, volatility in capital market, interest rate fluctuations, macro level changes, micro level economic indicators, savings, consumption pattern, interest preference, investment behavior of investors, export and import trends, competition, banking sector performance, inflationary trends, demand and supply conditions etc. is required by the practitioners of international financial management.

Nature of the financial Management

  • IFM is concerned with financial decisions taken in international business.
  • IFM is an extension of corporate finance at international level.
  • IFM set the standard for international tax planning and international accounting
  • IFM includes management of exchange rate risk.
  • IFM includes working capital management of multinational enterprises.

Scope of the financial Management:

Scope of IFM includes

  • Foreign exchange markets, international accounting, exchange rate risk management etc.
  • It also includes management of finance functions of international business.
  • IFM sorts out the issues relating to FDI and foreign portfolio investment.
  • It manages various risks such as inflation risk, interest rate risks, credit risk and exchange rate risk.
  • It manages the changes in the foreign exchange market.
  • It deals with balance of payments in global transactions of nations.
  • Investment and financing across the nations widen the scope of IFM to international accounting standards.
  • It widens the scope of tax laws and taxation strategy of both parent country and host country.
  • It helps in taking decisions related to international business.

International Financial Management Different from Financial Management at Domestic Level The important distinguishing features of international finance from domestic financial management are discussed below:

Foreign exchange risk

An understanding of foreign exchange risk is essential for managers and investors in the modern day environment of unforeseen changes in foreign exchange rates. In a domestic economy this risk is generally ignored because a single national currency serves as the main medium of exchange within a country. Thus, changes in the exchange rates of foreign currencies results in foreign exchange risks.

Political risk

Another risk that firms may encounter in international finance is political risk. Political risk ranges from the risk of loss (or gain) from unforeseen government actions or other events of a political character such as acts of terrorism to outright expropriation of assets held by foreigners. MNCs must assess the political risk not only in countries where it is currently doing business but also where it expects to establish subsidiaries. The extreme form of political risk is when the sovereign country changes the rules of the game ‘and the affected parties have no alternatives open to them.

Expanded opportunity sets

When firms go global, they also tend to benefit from expanded opportunities which are available now. They can raise funds in capital markets where cost of capital is the lowest. In addition, firms can also gain from greater economies of scale when they operate on a global basis.

Market imperfections

The final feature of international finance that distinguishes it from domestic finance is that world markets today are highly imperfect. There are profound differences among nations ‘laws, tax systems, business practices and general cultural environments.

Tax and Legal system

Tax and legal system vary from one country to another country and this leads to complexity in their financial implications and hence give rise to tax and legal risks.

Inflation

Inflation rate differs from country to country. Higher inflation rates in few countries denote inflation risks.

Major Turmoil Influencing International Financial Market

Frictions on International financial market can be in the form of

Government controls

With the help of different controlling procedures, government tries to control international financial flows like maintaining the multiple exchange rates, taxes on international flows and constructs on outflow of funds. These slower the pace of international/foreign investment flows

Different tax laws

Capital gains, interest income, dividend and other financial transactions reduce the post tax returns and thus restrict the scope of international portfolio investment.

Implicit and explicit transaction costs

Trading fees/commission, bid ark speared is a form of Implicit and explicit transaction which affects the International financial market. The transactions costs is less in developed countries compared to newly market economies/countries. Transactions costs per unit decreases when the size of transaction is large. However, small investors are not benefited from this strategy.

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INTERNATIONAL PAYMENT GATWAYS AND EXCHANGE RISK MANAGEMENT

Posted on November 18, 2021November 18, 2021 By Pradeep Sharma
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Utility Analysis- What is Utility and its cardinal & ordinal Approach

Posted on November 9, 2021November 9, 2021 By Pradeep Sharma
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Every kind of Product (commodity) and service has specific power which can satisfy the specific desire of human beings, this particular power is called Utility of that Product or Service.

All above Commodities have a specific Power which can Satisfying our specific wants or desires. All these commodities which holds that particular power it’s called utility of commodity.

What Doctor, Teacher, Engineer or A Pandit ji is selling……?

They Selling Their Services to other people, alright! So all These intellectual persons are also holds a specific power which can fulfil our requirements or our needs or we can say desires.

This power is their Utility… It is the Utility of Their Service.

Utility analysis is one of the consumer behaviours studies how the consumer gives his reaction against to the price of any commodity or against the quality of any commodity or service.

consumer behaviour refers to the phenomenon of the consumer’s reaction reflected in the market through to the instrumentally of price by way of preference and liking.

There are three approaches to study the consumer behaviour

  1. Alfred Marshall’s Cardinal utility approach
  2. Hicks and Allen’s ordinal approach for popularly known as indifference curve approach
  3. Paul Samuelson’s revealed preference theory

MEANING OF UTILITY

Utility is the want satisfying power of a commodity or service. anything that satisfy human wants is said to possess utility for example food has the power to satisfy hunger soft drink to satisfy our thirst. This power considered as the utility of that product 

The following are the important characteristics of the utility

  1. Utility is different from the satisfaction

Utility is related to the good or service but satisfaction is always related to the consumer. Every good or service has the quality of utility, but it is not necessary that the consumer will be ultimately satisfied with the use of that good or service.

  • Satisfaction realised may be more than or less than the utility- The actual satisfaction of the consumer may be more or less than the utility derived from the consumption of the commodity or service.
  • Utility is neutral-
  • Utility is not objective but it is subjective- Utility is always subjective not objective i.e. utility always depends on who is consuming the goods or services.
  • The utility of commodity depends upon attribute and state of mind of consumer and time
  • Measurability of utility– Of course, utility can be measured in many ways.

CONCEPT OF THE TOTAL UTILITY AND MARGINAL UTILITY

 TOTAL UTILITY

The total utility of any quantity of it is some of the utility is derived from the consumption of the successive unit still certain quantity level

 MARGINAL UTILITY

Marginal utility of a commodity is the change in the total utility resulting from the consumption of one more unit of that commodity of other things remain the same marginal utility of the end unit of the commodity consumed is equal to the total utility from the N unit – total utility from the (N -1) unit of the commodity

Basic assumptions of the Cardinal utility analysis

  1.  Rationality of the consumer every consumer is rational and he is willing to maximize his satisfied by maximizing office total utility
  2.  The cardinal measurability of utility
  3.  The hypothesis of the independent utilities
  4.  Marginal utility of money is constant
  5.  Diminishing marginal utility
TIMECUP OF COFFEETOTAL UTILITYMONEY SPENT MARGINAL UTILITYCONSUMER SURPLUSCONSUMER DEFICIT
10:00 AM1ST15₹ 1515****
11:00 AM2ND28₹ 1513**02
12:00 AM3RD35₹ 157**08
01:00 PM4TH40₹ 155**10
02:00 PM5TH42₹ 152**13
03:00 PM6TH42₹ 150**00
04:00 PM7TH40₹ 15-2**-17
05:00 PM8TH37₹ 15-3**-18
06:00 PM9THs32₹ 15-5**-20

Marshallian utility approach can be used for determination of the consumer’s equilibrium in the following manner by explaining two most important laws developed by utility analysis number 

  1. law of diminishing marginal utility 
  2. law of equi marginal utility 

in fact, with the help of these two laws the famous law of demand has been derived now we will explain these two law in details

LAW OF DIMINISHING MARGINAL UTILITY

EXPLANATION OF THE LAW- law of diminishing marginal utility

The law of diminishing marginal utility stats as consumer consumes more and more unit of a commodity the utility from each of the successive unit goes on diminishing

As consumer increases the quantity of accommodate its marginal utility diminishes this mean that marginal utility curve is negatively sloped the marginal utility can be zero and even negative the zero marginal utility implies that if one more unit of commodity is consumed by the consumer the total utility does not increase rather it will decline in other word if the consumer reduces the consumption of 1 unit of commodity the total utility will in infect tries does when total utility is maximum the marginal utility is zero it is the position of the consumer’s equilibrium for maximum satisfaction this position is also called as the point of saturation

EXPLANATION OF THE LAW- law of Equi-Marginal utility

Law of diminishing marginal utility explained the equilibrium of the consumer when consumer is consuming only one commodity whereas the principle of the equal marginal utility explains the equilibrium of the consumer consuming many commodities,

Suppose there are two commodities X and Y on which a consumer has to spend a given income the consumer behaviour will be governed by two factors first the marginal utility of the commodity and second the price of these two commodities suppose the prices of the commodity are given.

Law of equi marginal utility states that the consumer will distribute his income between the commodities in such a manner that the utility of 10 from the last rupee spent on each commodity is equal in other consumer is in equilibrium when the marginal utility of money spent on each commodity is the same. In other word we can say the consumer will behave like a very intelligent actually behaviour and he spend his income among the commodities where he will get maximum satisfaction

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Utility Analysis- What is Utility and its cardinal & ordinal Approach

Posted on November 9, 2021November 9, 2021 By Pradeep Sharma
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The First Temple of Ganpati (Lord Ganesha) in Whole World

Posted on November 7, 2021November 7, 2021 By Pradeep Sharma

संसार का पहला गणेश मंदिर, त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथम्बोर (सवाई माधोपुर) राजस्थान – जहां आते है देश विदेश से परिवार के साथ यात्री

श्री गणपति अर्थात त्रिनेत्र गणेश जी का यह मंदिर कई विशेषताओं में अनूठा और अद्भुत है। इस मंदिर को भारतवर्ष का ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्वधरा का प्रथम गणेश मंदिर का खिताब प्राप्त है। यहां गणेश जी की पहली त्रिनेत्र प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा स्वयं प्रकट है जिसका किसी मानव ने निर्माण नहीं किया है । हमारे देश भारत में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं । हम आपको www.121holyinida.in के माध्यम से इस पवित्र स्थल त्रिनेत्र गणेश मंदिर के और करीब लिए चलते हैं…

अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों के बीच जहां राजा हमीर का गढ़ है वही रहते हैं ये गणेशजी भगवान् गणपति, जी हां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर में स्थित ​प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी गणपति मंदिर की । इसे यंहा लोकल भाषा में रणतभंवर मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर 1579 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में जहां राजा हमीर का गढ़ है वही स्थित है। 

सनातन धर्मं संस्कृति में हर शुभ कार्य श्री गणेश जी को प्रथम निमंत्रण देने से शुरू होता है ! अतः यहाँ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सनातन धर्मं संस्कृति को अनुयायी के किसी के घर में शुभ काम हो तो प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है। इतना ही नहीं परेशानी होने पर उसे दूर करने की अरज, प्रार्थना, अरदास भी भक्त यहां पत्र भेजकर लगाते है। रोजाना हजारों शुभ कार्यो के निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी मुराद पूरी होती है।

तत्कालीन महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध 1299-1301 ईस्वी के बीच रणथम्भौर में हुआ। इस दौरान नौ महीने से भी ज्यादा समय तक यह किला दुश्मनों ने घेरे रखा। दुर्ग में राशन सामग्री समाप्त होने लगी तब गणेशजी ने हमीरदेव चौहान को स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पूजा करने के लिए कहा जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। हमीर देव वहां पहुंचे तो उन्हे वहां स्वयंभू प्रकट गणेशजी की प्रतिमा मिली। हमीर देव ने फिर यहां मंदिर का निर्माण कराया।

भगवान् त्रिनेत्र गणेश जी का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग में भी मिलता है। कहा जाता हैं कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले गणेशजी के इसी रूप का अभिषेक किया था। एक और मान्यता के अनुसार द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था। इस विवाह में वे गणेशजी को बुलाना भूल गए । गणेशजी के वाहन मूषकों ने कृष्ण के रथ के आगे—पीछे सब जगह खोद दिया । कृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया। तब गणेशजी हर मंगल कार्य करने से पहले पूजते है। कृष्ण ने जहां गणेशजी को मनाया वह स्थान रणथंभौर था । यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है । मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे । 

इस मंदिर में भगवान गणपति श्री गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक चिन्ह माना जाता है । पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है। देश में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है । इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है। यहां भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को मेला आयोजित होता है जिसमें लाखों भक्त गणेशजी के दरबार में अपनी हाजिरी लगाते है । इस दौरान यहां पूरा इलाका गजानन के जयकारों से गूंज उठता है । भगवान त्रिनेत्र गणेश की परिक्रमा 7 किलोमीटर के लगभग है। जयपुर से त्रिनेत्र गणेश मंदिर की दूरी 142 किलोमीटर के लगभग है।

रणथंभौर गणेशजी का मंदिर प्रसिद्ध रणथंभौर टाइगर रिजर्व एरिया में स्थित है । यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है । बारिश के दौरान यहां कई जगह झरने फूट पड़ते है और पूरा इलाका रमणीय हो जाता है। यह मंदिर किले में स्थित है और यह किला संरक्षित धरोहर है। जब यहां गणेशजी का मेला आयोजित होता है तो आस्था देखते ही बनती है। आसपास के जिलों से कई किलोमीटर की पैदल यात्रा कर भक्त मंदिर के दर्शन के लिए आते है।

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कामख्या मंदिर, गुवाहाटी असम KAMAKHYA TEMPLE, GUWAHATI ASSAM

Posted on October 25, 2021October 25, 2021 By Pradeep Sharma

कामाख्या मंदिर का यह गुप्त रहस्य जानकार होश उड़ जायेंगे आपके, दुनिया से छुपा था अब तक!!!!!!!!
51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ बहुत ही प्रसिद्ध और चमत्कारी है। कामाख्या देवी का मंदिर अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ माना जाता है।
इस मंदिर में देवी दुर्गा या मां अम्बे की कोई मूर्ति या चित्र आपको दिखाई नहीं देगा। वल्कि मंदिर में एक कुंड बना है जो की हमेशा फूलों से ढ़का रहता है। इस कुंड से हमेशा ही जल निकलता रहतै है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं …
मंदिर धर्म पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया और इस जगह माता की योनी गिरी थी, जोकी आज बहुत ही शक्तिशाली पीठ है। यहां वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन दुर्गा पूजा, पोहान बिया, दुर्गादेऊल, वसंती पूजा, मदानदेऊल, अम्बुवासी और मनासा पूजा पर इस मंदिर का अलग ही महत्व है जिसके कारण इन दिनों में लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुचतें है।
हर साल यहां अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद दर्शन के लिए यहां भक्तों की भीड़ मंदिर में उमड़ पड़ती है।
आपको बता दें की मंदिर में भक्तों को बहुत ही अजीबो गरीब प्रसाद दिया जाता है। दूसरे शक्तिपीठों की अपेक्षा कामाख्या देवी मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है।
कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़ें को अम्बुवाची वस्त्र कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

  1. मनोकामना पूरी करने के लिए यहां कन्या पूजन व भंडारा कराया जाता है। इसके साथ ही यहां पर पशुओं की बलि दी जाती ही हैं। लेकिन यहां मादा जानवरों की बलि नहीं दी जाती है।
  2. काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है।
    3.मंदिर परिसर में जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है।
  3. माना जाता है कि यहां के तांत्रिक बुरी शक्तियों को दूर करने में भी समर्थ होते हैं। हालांकि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल काफी सोच-विचार कर करते हैं। कामाख्या के तांत्रिक और साधू चमत्कार करने में सक्षम होते हैं। कई लोग विवाह, बच्चे, धन और दूसरी इच्छाओं की पूर्ति के लिए कामाख्या की तीर्थयात्रा पर जाते हैं।
  4. कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनो तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।
  5. इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता ह। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है।
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BABA HARIRAM KI JANM STHALI

Posted on October 25, 2021October 25, 2021 By Pradeep Sharma

बाबा हरिराम की जन्‍म स्‍थली

जिला मुख्‍यालय से 30 कि.मी. उतर में स्थित झोरड़ा गांव बाबा हरिराम की जन्‍म स्‍थली है। यह गांव विक्रम संवत 1695 में अमरसिंह राठौर ने सुन्‍दरदास चारण को जागीर में दिया था। बाबा हरीराम का जन्‍म विक्रम संवत 1959 तथा परलोक गमण विक्रम संवत 2000 में हुआ। दाधीच ब्राह्मण परिवार में जन्‍में बाबा आजीवन ब्रह्मचारी रहे वे मात्र झाड़ा लगाकर सांप बिच्‍छू के दंश का जहर उतार देते थे। प्रति वर्ष भाद्रपद की चतुर्थी व पंचमी को गांव में मेला भरता हैं, जिसमें डेढ़ लाख लोग राजस्‍थान, उतरप्रदेश, हरियाणा, दिल्‍ली तथा पंजाब से आते है। राजस्‍थानी के लोकप्रिय कवि कानदान कल्पित इसी गांव के है, जिन्‍होने अपने गांव की वन्‍दना इस प्रकार करी है। मखमल बालू रेत, रमें हरीराम जठे, मरूधर म्‍हारो देश, झोरड़ो गांव जठे।

इनके पिता का नाम राय नारायण व माता का नाम चंदणी देवी था । हरिराम बाबा सर्पदंश का इलाज करते थे । सुजानगढ़-नगौर मार्ग पर झोरड़ा (नागौर) गाँव में हरिराम जी का मंदिर है । हरिराम जी के मंदिर में साँप की बांबी एवं बाबा के प्रतीक के रूप में चरण कमल है । सांप काटने एवं अन्य रोगों पर इनके नाम की तांती बांधने अथवा भस्म लगाने की परम्परा चली आ रही है झौरड़ा गाँव में प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल चौथ तथा भाद्रपद शुक्ल पंचम को दो बड़े मेले लगते है ।

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An Uncomplete Journey of Shimla

Posted on October 20, 2021October 20, 2021 By Pradeep Sharma

अधूरे सफ़र की दास्तां: मेरी शिमला यात्रा

अधूरे सफ़र की दास्तां

मेरी शिमला यात्रा

जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर, हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया |

2020

भीमराज कुमावत

सूची

  1. शीतकालीन अवकाश 2
  2. दिल्ली में मॉर्निंग वॉक 5
  3. वादियों का सफ़र 9
  4. क्रिसमस की रात 13
  5. जाखू के वीर हनुमान 18
  6. सफ़र अधुरा सबक पूरा 24

शीतकालीन अवकाश

“निकल गया क्या कॉलेज से, कितना टाइम और लगेगा तुझे”, कॉल उठाते ही हेल्लो की जगह यही यही बोला मनीष ने, “नहीं यार वो अभी छुट्टीयों को लेकर प्रिंसिपल ऑफिस में मीटिंग चल रही है, देखो ऊंट किस करवट बैठे, शायद अच्छी ख़बर आएगी, करता हूँ मैं थोड़ी देर में कॉल तुझे, तू अपनी तैयारी रख”, ये कहकर फ़ोन काटते हुए मैं स्टाफ रूम में चला गया | सबके चहरे पर एक अजीब सी उलझन साफ छलक रही थी | “भई सुन लो सभी, नोटिस आ गया है 31 दिसम्बर तक शीतकाल अवकाश रहेगा कॉलेज में”, कहते हुए बाईजी स्टाफ रूम में आई | हम सबके चहरे खुशी से चमक उठे | “ये अच्छी ख़बर सुनाई बाईजी आपने, हैप्पी न्यू इयर”, “चलो महेश बाबु, अब देर मत करो यार” मेरे रूममेट और कलीग महेश की तरफ देखते हुए कहा | जल्दी ही कॉलेज से फ्री हो बाइक से रूम की तरफ चल निकले हम | “अरे मनीष, छुट्टी आ गयी हमारी, अब आराम से घूमेंगे दोनों, रूम पर जा रहा हूँ, मिलते हैं जयपुर रेलवे स्टेशन पर, आ जाना टाइम पर |”

मानों कोई गढ़ ही जीत लिया आज तो, इतनी ख़ुशी कई सालों बाद महसूस हुई, आख़िर तीन साल हो गये शिमला जाने की योजना बनाते हुए, हर साल दिसम्बर की छुट्टियों में शिमला जाने का प्लान बनता हूँ और कभी जा नहीं पाता | पिछली बार 2017 में गया था और तब ही ये सोच लिया था कि मुझे दुबारा आना है यहाँ | मेरी आखों में विशाल हिमालय और उसकी घनी वादियों का अक्ष तैरने लगा | अपना तो काउंटडाउन शुरू हो गया यार |

“लो भई, आ गया रूम, उतरो”, कहते हुए महेश जी ने बाइक रोक दी | मैं जल्दी ही रूम में आया, हाथ पैर धोकर कपड़े बदले और रसोई में खाना बनाने के लिए चला गया | पहले चाय बनाकर पी, बाद में रोटी – सब्जी बनाने में जुट गया | इधर महेश बाबु अपनी पैकिंग करके घर को जाने के लिए तैयार हैं, “ठीक है ब्रो, जा रहा हूँ मैं, शिमला यात्रा शुभ हो आपकी”, कहते हुए महेश चला गया | वैसे तो मैंने सारी पैकिंग रात को ही कर ली थी, बस टिफ़िन पैक करके बैग में रखना है | बमुश्किल आधे घंटे में खाना तैयार करके टिफ़िन पैक हो गया अपना | कमरे में आया और तुरंत तैयार हुआ, बैग उठाया, इअर फोन गले में डाले, शूज़ पहने और मन ही मन इष्ट को याद करते हुए रूम लॉक किया और बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा

आज तो किस्मत भी महरबान है, स्टैंड पर पहुँचते ही जयपुर के लिए बस भी मिल गयी, लेकिन ख्चाख्च्च भरी हुई थी, खड़े खड़े ही जाना पड़ेगा | ये शिमला जाने की ख़ुशी ही थी कि थर्मल और उस पर भारी – भरकम कोट पहनने के बावजूद भी मेरा ध्यान गर्मी पर नहीं जा रहा था | मन में तो हिलोरे उठ रही है कि कल तो इस समय शिमला की मॉल रोड पर घूम रहा हूँगा, वाह ! क्या नज़ारे होंगे, मानो मेरी दिवाली आने वाली है | अभी जयपुर की आधी दूरी ही तय हुई थी, मनीष का कॉल आया, “कहाँ है तू, मैं रेलवे स्टेशन पहुँच गया हूँ, कितना टाइम और लगेगा”, “बस मान ले 40 मिनट और लगेंगे, पहुँचता हूँ मैं भी, तब तक तू घूम ले आस पास (हहह्हहाहा)”|

मेरे से ज्यादा उसको जल्दी है शिमला जाने की, इतना उत्साह है कि जयपुर में रहते हुए भी डेढ़ घंटे पहले स्टेशन पर आ गया | एक महीने से शिमला जाने की तैयारी चल रही थी हमारी, रोज शाम इस पर चर्चा होना सामान्य हो गया था |

ट्रेन की टिकट्स की बुकिंग को लेकर काफी असमंजस में रहा बीते दिनों, और हो भी क्यों नहीं राजधानी में किसान आन्दोलन जो चल रहा था | रोज अख़बार में इस आंदोंलन की ख़बरें पढना मेरी दिनचर्या का खास हिस्सा बन गया था | इन सबके चलते तीन दिन का शिमला घुमने का कार्यक्रम आख़िर बना ही लिया | अचानक बस रुकी तो धक्का लगा, मैं विचारों से बाहर आया | पास की सीट खाली हो गयी और मैं बैठ गया, और फिर दुबारा विचारों की लहरों में बह निकला | कहीं इस किसान आन्दोलन की वजह से यातायात न बंद हो जाए, कहीं फंस गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे, ये मनीष भी न घर पर किसी को बिना बताये हुए शिमला जा तो रहा है, अगर पता चल गया इसके पापा को, तो मुसीबत बढ़ जाएगी, मेरे विचार अब मुझे डराने लगे थे | खैर हम बतायेंगे नहीं तो पता कैसे चलेगा | इस तरह असमंजस में हमारी शिमला यात्रा शुरू हुई|

 

लो आ गया जयपुर, मैं तुरंत रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ा, वो क्या उस दुकान पर ताज़ा आगरे के पेठे, वाह !, हम दोनों को पेठे बहुत पसंद है जब भी मनीष के पास जयपुर आता हूँ खाने के बाद पेठे जरुर लेते हैं | मैंने पेठे के साथ थोड़ी नमकीन भी ले ली और पहुँच गया रेलवे स्टेशन | “अरे वाह, तू तो एकदम शिमला वाले लुक में आया है ब्रो, सर्दी का पूरा जाब्ता करके, वाह बेटे”, ये कहते हुए मनीष ने मेरा अभिवादन किया | “सही है ब्रो, मांगे हुए कोट में हम दोनों ही डैशिंग लगते हैं”, मेरे इतना कहते ही हम दोनों ठहाके लगा के हँसने लगे | फिर दोनों ने साइड में बैठकर अपना दस्तर – खान जमाया और भोजन करना शुरू किया जो टिफ़िन मैं बनाकर लाया था | “गजब यार, तू तो शेफ हो गया आजकल, खाना भी बनाकर लाने लगा वो भी मेरे टिफ़िन वाले भैया से बढ़िया” मनीष ने खाने की तारीफ़ में कहा | “अब बन्दा रूम पर रहेगा तो खाना भी बनाना सीख ही जायेगा न”, मैंने कहते हुए निवाला मुहं में रख लिया | आगरे के पेठे की पेशकश ने खाने की लज्ज़त को और बढ़ा दिया |

अभी ट्रेन के आने में काफी समय था तो हम भी साइड में बैठकर टाइम पास करने लगे | पूरा रेलवे स्टेशन खाली पड़ा था, केवल वो ही लोग दिख रहे हैं जिनको स्टेशन पर कोई काम हो | कोरोना का असर देखा जा सकता है, वरना इस जयपुर के स्टेशन पर तो बहुत भीड़ हुआ करती है | “ले बीस मिनट और बची है ट्रेन आने में, चल ले प्लेटफार्म पर चलते हैं, वैसे भी कोरोना चल रहा है क्या पता टाइम लग जाये किसी काम में”, मैंने जुते पहनते हुए मनीष को कहा और फिर दोनों प्लेटफार्म की तरफ चल पड़े | बैग को सेनिताईज करवाया और फिर प्लेटफार्म और जाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गये | कोरोना महामारी में लॉकडाउन के चलते रेलवे स्टेशन की साफ़ सफाई को देखकर दंग रह गया, जयपुर रेलवे स्टेशन इतना खूबसूरत आज पता चला | जैसा कि हमारे यहाँ रिवाज़ है ट्रेनों के देरी से आने का बस उसी का अनुसरण करते हुए केवल तीन मिनट देरी से हमारी ट्रेन आ पहुंची प्लेटफार्म पर और हमेशा की तरह इस बार भी मैंने विंडो सीट ही बुक करवा रखी थी | हम जाकर अपनी सीट पर बैठ गये | सर्दी चाहे कितनी भी हो, विंडो चाहे खोलनी भी न हो फिर भी विंडो सीट पर ट्रैवल करने का मजा अलग ही है |

ट्रेन चल पड़ी और धीरे – धीरे अपनी रफ़्तार को बढ़ाते हुए सरपट दौड़ने लगी | हम दोनों का उत्साह इतना परवान था कि आसपास बैठे यात्रियों को भी हमारी बातों से पता चल रहा था कि हम शिमला जा रहे हैं | यकीन नहीं हो रहा है कि हम वाकई में शिमला जा रहे हैं, एक सपने की तरह लग रहा है सब कुछ | सब कुछ कितना अच्छा हो रहा है न, हम दोनों अपनी इन्हीं बातों में मशरूफ थे | पिछली रणथम्भोर यात्रा का अनुभव बताते हुए मैंने कहा कि भई अपने सामान का जरुर ध्यान रखना | लगभग तीन घंटे हो गये ऐसे ही बाते करते करते अब सो जाना चाहिए अभी तो कल भी ट्रेन में ही सफ़र करना है | लेकिन क्या करें ख़ुशी के मारे नींद भी तो नहीं आ रही है | फिर पुरे डिब्बे में घूमकर देखा कि कहीं सोने के लिए अपर बर्थ मिल जाये तो आराम से कट जायेगा सफ़र, और फिर दोनों को अलग – अलग जगह बर्थ मिल गये और हम सोने की कोशिश करने लगे | गाने सुनना बंद किया मैंने, और मन में शिमला के बारे में सोचने लगा और प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान बर्फबारी करवा देना, बर्फ देखने के लिए ही तो दुबारा शिमला आया हूँ |

ट्रेन अपनी रफ़्तार से दिल्ली की ओर बढ़ रही थी | रात के सन्नाटे में ट्रेन के चलने की आवाज़े एकदम सुनाई दे रही थी | मन में शिमला की वादियों के नजारे लिए धीरे – धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया |

दिल्ली में मॉर्निंग वॉक

“यहाँ नींद नहीं आई पुरे सफ़र में और ये बन्दा आराम से सो रहा है, चल अब उठ जा दिल्ली आ गयी”, मनीष की जोरदार आवाज़ सुनकर नींद खुली मेरी, “अगर मैं नहीं होता तो तू सोता ही रह जाता ट्रेन में ब्रो, इतना बेफिक्र सोता है क्या कोई सफ़र में”, कहते हुए उसने बात पूरी की | “यार क्या करूं जब नींद आती है तो आती ही है, और फिर रात भी थी तो सो गया, तुझे नहीं आई क्या ?” जानते हुए भी मैंने उससे पूछा | उठकर मुहं धोया और ट्रेन के दरवाजे पर जाकर खड़े हो गये दोनों | अभी सुबह के चार बजने वाले थे, अपने तय समय पर, ट्रेन दिल्ली प्लेटफार्म पर पहुंच गयी | यहाँ से हमे नई दिल्ली जाना होगा, कालका के लिए वहीं से ट्रेन मिलनी थी | “चल यार बाहर चलकर चाय – पानी पीते हैं, फिर सोचेंगे कैसे नई दिल्ली पहुंचा जाए”, मनीष से मैंने कहा और हम प्लेटफार्म से बाहर निकल आये | बाहर निकलकर देखा तो ऐसा लग ही नही रहा था कि अभी चार बजे होंगे, मानों यहाँ रात होती ही नहीं होगी | बाहर ऑटो वालों की लाइन लगी हुई है और इधर उधर घूमते लोग भी खूब दिख रहें है | वाकई में मेट्रो शहर में जीवन बहुत प्रतिस्पर्धा में गुजरता है | ये पौ फटने वाला मंजर सिर्फ गाँवों में देखने को मिलता है, शहरों में कहाँ ये सब |

बाहर दुकान वाले से गरमा – गर्म चाय ली | “भैया मेट्रो कब चलती है सुबह”, चाय की चुस्की लेते हुए मैंने चाय वाले भैया से पूछा | “भैया साढ़े पांच बजे से चलेगी पहली मेट्रो” चाय के बर्तन को घुमाते हुए वो बोला | हमारी ट्रेन साढ़े सात बजे के बाद है, जिसमे अभी काफी टाइम पड़ा था हमारे पास | हमने मन बनाया कि क्यों न पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली पैदल ही चला जाये, वैसे पास में ही तो है और इतना तो हम गाँवों में अपने खेतों में पैदल जाते ही है | फिर क्या चाय खत्म करके गूगल मैप निकला और चल पड़े नई दिल्ली की ओर | कंपकपा देने वाली दिल्ली की सर्दी ने मजबूर कर दिया दस्ताने पहनने को, जितनी मजेदार हमारी मंजिल होने वाली है उतना ही खूबसूरत सफ़र भी चल रहा था हमारा |

वो सुबह और पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली तक पैदल यात्रा का अहसास आज भी तरोताजा है, ये दिल्ली की खाली सड़के, कड़कती सर्दी और जिगरी हमसफ़र, ऐसे संयोग हमेशा नहीं बनते | सर्दी में लिपटी कुछ सड़के खाली पड़ी थी तो कुछ सरपट दौड़ती दो – चार गाड़ियों की हल्की गर्मी पर इतरा रही थी | जितना सुना था पुरानी दिल्ली के बारे में आज वो सामने था, ये तंग गलियाँ और धूल चढ़ी हुई इमारतें, कहीं ट्रक से सामान उतारने की आवाजें तो कहीं डेयरी की दुकानों पर हल्की चहल – पहल पुरानी दिल्ली के इस बाज़ार के सन्नाटे में दख़ल अंदाजी कर रही थी | जब कहीं ये रास्ते सुनसान और तंग थे उन रास्तों से खुद-ब-खुद हमारे कदम जल्दी उठ रहे थे, शायद बड़े शहर की आबो – हवा में ही ऐसा असर था कि हमारे मन में कुछ गलत हो जाने की शंका उत्पन्न हुई | ये लो हमारी मोर्निंग वॉक भी हो गयी और हम पहुँच गये नई दिल्ली | कहाँ सुनसान पुरानी दिल्ली और कहाँ चकाचौंध से भरी नई दिल्ली, राजधानी के दो पहलु है पुरानी और नई दिल्ली |

“वाह, आमलेट की खुशबु, चल क्यों ना थोड़ी सर्दी कम कर ली जाए”, एक ठेले की तरफ इशारा करते हुए मैंने मनीष से कहा | हमेशा की तरह वो तैयार था | सुबह – सुबह आमलेट खाने का मेरा पहला अनुभव था | यहाँ से निपट कर हम अंदर रेलवे स्टेशन चले गये | कोरोना और लॉकडाउन के दौर का एक फायदा तो साफ़ नजर आ रहा था कि रेलवे स्टेशन चमकने लगे, चाहे कहीं भी चद्दर डाल कर सो जाओ | नित्य क्रिया से निवर्त होकर हम प्रतीक्षालय की तरफ आकर बैठ गये | “यार अभी ट्रेन चलने में तो काफी टाइम है, चल लेटकर थोडा आराम कर लेते हैं, तू भी सो जा”, ये कहते हुए मैंने बैग से चद्दर निकालकर फर्श पर बिछा दी | बैग को सिरहाने लगाकर दोनों लेट गये और दूसरी चद्दर जो उसके बैग में थी उसको ओढ़ लिया | ट्रेनों के आने – जाने की एनाउंसमेंट हो रहे थे और ऐसे माहौल में भी मैं सोने की कोशिश कर रहा था | लेकिन मनीष मुझे बातों में उलझाने की कोशिश में था क्योंकि उसको तो नींद आने वाली थी नहीं | थोड़ी देर में मुझे नींद आ गयी |

“अरे उठ यार, सोता ही रहेगा क्या जब देखो, सुन ये अपनी ट्रेन की एनाउंसमेंट है ना”, मेरे हाथ को हिलाते हुए मनीष ने जगाया मुझे | मैंने ध्यान से सुना, “हाँ यार ये तो अपनी ही कालका वाली ट्रेन है !” माथे पर शिकन लाते हुए मैंने पुष्ठी की | “सोते ही रह जायेंगे यहीं, फटाफट चल, दिल्ली का रेलवे स्टेशन है ये, अभी तो प्लेटफार्म भी ढूँढना है”, मुझे डांटते हुए मनीष बोला | हम जल्दी से चद्दर समेटकर यहाँ से पैक-उप करके प्लेटफार्म की तरफ दौड़े | पांच – सात मिनट में हम प्लेटफार्म पर पहुँच गये, जहाँ कालका शताब्दी स्पेशल ट्रेन हमारे इंतजार में खड़ी थी |

हमने C7 कोच ढूंढा और तपाक से अंदर घुस गये | “अरे यार गजब की ट्रेन बुक करवाई है तुमने तो, ऐसे लगता है कि अपन लोग वी आई पी हो गये है, क्या गजब की लक्ज़री ट्रेन है”, अंदर घुसते ही मनीष बोला | “अभी तो सीट देख अपनी, विंडो वाली है, सफ़र का मजा और बढ़ जायेगा”, इतराते हुए मैंने कहा | “वो रही अपनी सीट, आ जा और हाँ विंडो तो भाई की ही होगी तू बाजु में बैठेगा”, कहते हुए वो लपक के सीट पर बैठ गया | मैंने दोनों बैग ऊपर रख दिए और अपना छोटे वाला ट्रैवेल बैग निकाल कर अपनी सीट पर बैठ गया | अब इतनी शानदार ट्रेन में दोनों पहली बार बैठे हैं तो सेल्फियों के दौर का शुरू होना तो लाज़िमी था |

ट्रेन ने हॉर्न बजा दिया और धीरे – धीरे कालका की तरफ़ बढने लगी | कोच में अधिकतर यात्री शिमला और चंडीगढ़ घुमने वाले ही थे | कुछ परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने जा रहे थे तो कुछ नवविवाहित जोड़े अपनी जिंदगी में और एक हसीं लम्हें को जोड़ने हिमालय की वादियों में जा रहे थे | इनको देखकर किंचित मेरा मन भी भाव विभोर हो रहा था कि शायद मेरे हिस्से भी ये लम्हें आयेंगे कभी, बहरहाल अभी तो हम दोनों ही श्रेणी के यात्री नहीं थे, मैं अपनी शिमला जाने की जिद्द पर आया हूँ तो वो अपनी आबो – हवा बदलने के लिए | हमारी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था | सफ़र इतना सुहाना लग रहा है कि बस ये जिंदगी यूँ ही सफ़र में चलती रहे, इस हसीं सफ़र का सिलसिला कभी खत्म न हो | बस एक प्रार्थना कर रहा था इश्वर से कि कालका – शिमला वाली टॉय ट्रेन की टिकट कन्फर्म हो जाये जो वेटिंग में चल रही थी, पता नहीं क्यों मुझे उम्मीद थी कि ऐसा हो जायेगा |

हमारी हँसी – ठिठोली चल रही थी फिर मैंने बैग से मेरे बेस्ट फ्रेंड JBL ब्लूटूथ स्पीकर को निकाल कर सामने रख लिया और थोड़े बिस्किट – सनैक्स भी निकाले | सामने अंग्रेजी अख़बार पड़ा दिखा, तो उसमे सुडूको देखा और उसको भरने लगा | इअर फ़ोन का एक स्पीकर मेरे कान में तो दूसरा मनीष के कान में लगा था और दोनों गानों का लुफ्त उठा रहे थे | “ये देख कोई मेसेज आया है ट्रेन से सम्बन्धित”, मोबाइल में हाथ में थमाते हुए मनीष बोला | “अरे यार ये तो चमत्कार हो गया, ये कालका – शिमला वाली ट्रेन की टिकट के कन्फर्मेशन का लगता है”, मैं खुश होते हुए बोला | “तो क्या अपनी टिकट कन्फर्म हो गयी आगे की !” उत्सुकतापूर्वक मनीष ने पूछा | हम दोनों को ही ट्रेन के बारे में कोई विशेष ज्ञान नहीं था तो दोनों ही इस असमंजस में थे कि क्या हमारी टिकट कन्फर्म हो गयी | मैंने एक दोस्त को कॉल करके अपनी दुविधा साझा की और उसने कहा “बधाई हो भाई, टिकट कन्फर्म हो गयी आपकी, आराम से घुमियों शिमले की वादियों में |” इतना सुनकर हम दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, आज तो ईश्वर ने प्रार्थना स्वीकार कर ली | शायद नियति को भी ये ही मंजूर था की हमारा ये सफ़र एक यादगार लम्हा बन जाये जिंदगी का ताकि जब भी कभी अतीत के पन्नों में झांककर देखे, तो खुशियों के ये मंजर दृष्टिपटल पर जीवित हो उठे | हम दोनों एकदूसरे को ऐसे बधाई दे रहे थे मानो हमने UPSC में सलेक्शन ले लिया हो रहा | किस्मत का ऐसा साथ देखकर अब मन में बिलकुल भी मलाल नहीं था कि मनीष बिना घर पर बताये शिमला जा रहा है |

चंडीगढ़ आया तो मैंने विंडो से इशारा करते हुए मनीष को चंडीगढ़ का रेलवे स्टेशन दिखाया और बताया कि मैं दो बार आ चूका हूँ यहाँ, बहुत खूबसूरत शहर है | “एक बात बताउं भाई, मेरा चंडीगढ़ घुमने का भी बहुत मन कर रहा है”, उत्सुकतापूर्वक मनीष बोला | “हाँ आते वक़्त समय रहा तो जरुर ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी ब्रो, बस अब थोड़ी देर में कालका स्टेशन आ आने वाला है”, मुस्कुराते हुए मैंने कहा |

लगभग आधे घंटे में कालका रेलवे स्टेशन पहुँच गये, हम तुरंत हमारी टॉय ट्रेन की तरफ दौड़े, उसकी रवानगी का समय हो रहा था | ट्रेन के पास छोटी – छोटी दो कतारें लगी थी, सबका तापमान चेक करके ट्रेन में बैठाया जा रहा था | हमारी बारी आई और फिर हम ट्रेन में आकर बैठ गये, देखा ट्रेन सारी खाली पड़ी है | सस्ती टिकट होने के चक्कर में लोग यात्रा रद्द हो जाने पर भी अपनी टिकट कैंसल नही करवाते, ये तो गलत बात है, आप नहीं जा रहे तो प्रतीक्षा में लगे हुए लोगों को मौका दो भाई, आख़िर हमें भी तो ऐसे ही मौका मिला है मेरी सपनों की ट्रेन में बैठने का | टॉय ट्रेन शिमला का एक प्रमुख आकर्षण है जो आपकी यात्रा को और भी खुबसूरत बना देती है | हमने ट्रेन के पास बहुत सारी फ़ोटो खींची, कभी सेल्फी तो कभी पोट्रेट | टॉय ट्रेन में बैठकर शिमला जाना मानों सपने के सच होने जैसा था | कोच खाली होने का ये फायदा था की दोनों को ही विंडो सीट मिल गयी | यहाँ से हमारा वादियों का सफ़र शुरू होने वाला है, अब शिमला दूर नहीं है, “हम आ रहे हैं शिमला |”

वादियों का सफ़र

“अरे अभी तो सफ़र काफ़ी लम्बा पड़ा है, आगे खिंच लेना और फोटो, ऊर्जा बचा के रख देख गाड़ी चलने वाली है अंदर आजा”, खिड़की से झांकते हुए मैंने मनीष को आवाज़ लगाई, बड़े उत्साहपूर्वक कालका स्टेशन के मंजर को मोबाइल में कैद करने में लगा हुआ था | “आया ब्रो, गाड़ी को रोककर रखना तू”, कहते हुए वापस अपनी धुन में लग गया | “ब्रो गाड़ी चलने लग गयी है, और तू सिमरन भी नहीं है कि चलती ट्रेन में मैं तेरा हाथ पकड़कर चढा लूँगा, आजा फटाफट”, मजाक करते हुए मैंने बोला | ट्रेन ने लम्बा हॉर्न दिया और मनीष ब्रो तुरंत गाड़ी में आ गया | “देख मैं गाड़ी चलने के विपरीत दिशा में नहीं बैठूँगा, इसलिए सामने वाली विंडो सीट पर तू बैठ जा और खिड़की से वादियों का लुफ्त उठा”, मैनें सीट की तरफ इशारा करते हुए उसको कहा | “भाई इस सीट पर तो हमारी बैग ही बैठेगी, हम तो दरवाजे में खड़े होकर वादियों को निहारने वाले हैं”, अपनी बैग रखते हुए मनीष बोला | थोड़ी देर बाद वैसे मुझे भी दरवाज़े पर ही जाना था बस गाड़ी थोड़ी चढाई में आ जाए | जैसे ही गाड़ी स्टेशन से चली पीछे वाले कोच में बैठे दिल्ली से आया पांच – सात दोस्तों एक ग्रुप जोर से चिल्लाते हुए सफ़र का आगाज़ करने लगा | ख़ुशी ज़ाहिर करने का अपना तरीका है भई, वैसे भी जब हिमालय में आप आये हो तो इस दुनियादारी को भुलाकर नादानियों का दामन थाम लेना आपकी ख़ुशी में चार चाँद लगा देता है |

मैंने भी इअर फ़ोन लगाए और मोबाइल में अपनी स्पेशल प्लेलिस्ट जो की मैंने दस पहले ही बना ली थी, को शुरू कर दिया, “वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाँहें” शिमला की वादियों का सफ़र और उस पर शहंशाह – ए – तरन्नुम मोहम्मद रफ़ी की तिलिस्मी आवाज़, मेरे सफ़र को और सुहाना बना रही थी | मंजिल और भी खुबसुरत हो जाती है जब सफ़र को हसीं बना दिया जाये | पिछली बार शिमला आया था तब कई बातें अधूरी रह गयी थी वो सब इस बार पूरी कर दूंगा, यही ख्याल लेकर दुबारा शिमला आया हूँ | पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि मेरा कोई तो राबता है हिमालय के आँचल में बसे इन गाँवों से, क्यों मुझे से बरबस अपनी और खिंचते हैं | “तू कहीं और भी तो जा सकता हूँ फिर दुबारा शिमला ही क्यों !” मनीष के इस सवाल के जवाब में केवल इतना ही कह पाया कि बस मेरा दिल भरा नहीं अभी शिमले से, ये वादियाँ मुझे अपने घर जैसी लगती हैं, मानों ये मुझसे कह रही है कि आख़िर घर आ गया तू |

बात ही कुछ ऐसी है हिमालय की रानी शिमला की, ब्रिटिश हुकुमत में गौरों ने भी गर्मी के दिनों का ठिकाना शिमला को ही बना रखा था | ये रेलवे ट्रेक भी ब्रिटिशराज की दास्तां को अपने में समेटे हुए आज भी हिमालय की वादियों में अपनी बाहें फैलाये सैलानियों की सैर को बेहतरीन बना रहा है | यूनेस्को ने इस ट्रेक को विश्व धरोहर में शामिल करके इसकी शान को और बढ़ा दिया है | ख्वाहिश तो ये भी थी कि बर्फबारी में हिमालय जब सफेद चद्दर ओढ़ ले और मैं इस गाड़ी से बस उसको निहारता जाऊं लेकिन अभी मेरी ये ख्वाहिश ख्यालों तक ही सिमित रह गयी | अक्सर जनवरी के शुरुआत में आप इस नायाब सपने को हकीक़त में जीने का लुफ़्त उठा सकते हो, मैं थोडा जल्दी ही आ गया |

गाड़ी अब चढाई में आ गयी यहाँ से नज़ारों का भरपूर आनन्द लिया जाना चाहिए और मुझे भी अब दरवाज़े पर जाना होगा | “थोड़ी जगह दे दे मुझे, तेरे पास खड़ा हो जाऊं मैं”, गुनगुनाते हुए मैं मनीष के पास जाकर गाड़ी के दरवाजे में खड़ा हो गया | ट्रेन के समान्तर घुमावदार सड़क पर दौड़ती गाड़ियाँ, अनन्त तक फैला विशाल हिमालय ही हिमालय, रास्ते में गाड़ी को देखकर टाटा करते हुए बच्चे यकायक ध्यान को आकर्षित कर लेते हैं | गाड़ी को देखकर उन बच्चों के चहरे की उस मासूम ख़ुशी को भुला देना सहज नहीं, वो नि:स्वार्थ, निश्छल मुस्कान आज भी मेरे ध्यान को उन वादियों में बरबस खींच ले जाती है |

सैंकड़ो छोटी बड़ी अँधेरी सुरंगों से निकलकर, पहाड़ों की वादियों में अपने हौर्न का नाद करते हुए गाड़ी जैसे – जैसे आगे बढ़ रही थी मेरा मन बस पहाड़ों की इन वादियों में रमता जा रहा था | यकायक एक बड़ा ही हास्यास्पद मंजर देखने को मिला, बाहर एक आदमी गाड़ी के आगे हाथ का इशारा करता है और चलती गाड़ी में हमारे वाले कोच जो कि पहला कोच ही था गाड़ी का, दरवाजे पर लगे डंडे के सहारे चढ़ आया इस नज़ारे को देखकर हम दोनों की हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि अब तक तो सोशल मिडिया पर ऐसे “मीम” ही देखें थे कि लोग चलती ट्रेन के आगे हाथ देकर चढ़ जाते हैं, यहाँ तो सारी घटना साक्षात् देखने को मिल गयी | आज भी जब इस बात को याद करता हूँ तो हँसने लगता हूँ | जब कभी भी मनीष से फ़ोन पर बात होती है और शिमला का जिक्र हो तो इस फलसफे का जिक्र हुए बिना नहीं रहता |

इस दौरान सफ़र को तस्वीरों के रूप में मोबाइल में कैद कर लिया | रास्ते में कई सारे छोटे – बड़े स्टेशनों से गुजर कर गाड़ी बरोग (बड़ोग) स्टेशन पर आ पहुंची | गाड़ी को रोककर चालक बंदु भी उतर आया | “भैया कितनी देर रुकेगी यहाँ”, आवाज़ लगते हुए मैं गाड़ी से उतर आया | “चाय – नाश्ता कर लो आराम से, पन्द्रह – बीस मिनट यहीं रुकेंगे”, बड़े ही सहज भाव से उन्होंने कहा | इन पहाड़ियों के लहजे की सरलता और बोली में मिठास को महसूस किया मैंने | “क्या बोला, कितनी देर रुकेगी यहाँ”, पूछता हुआ मनीष भी पास आ गया | “ब्रो खायेंगे, पियेंगे और मौज उड़ायेंगे इस स्टेशन पर, इतनी देर रुकेगी, चल पहले कुछ फोटो ले ली जाए फिर थोड़ी पेट – पूजा करेंगे”, ये कहते हुए मैंने मोबाइल का केमरा चालू कर लिया | ये स्टेशन पुरे सफ़र का सबसे खूबसूरत स्टेशन लगा मुझे, यहाँ के स्टेशनों पर ब्रिटिशकाल की झलक आसानी से देखी जा सकती है | प्रकृति के आँचल में बने ये अनोखे और खूबसूरत स्थानों पर घुमने का मजा तो इस गाड़ी से ही लिया जा सकता है | ये गाड़ी यहाँ का सबसे सस्ता और खूबसूरत साधन है जो आपके सफ़र को मज़ेदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती | यहाँ लगभग आधे घंटे तक ये गाड़ी रुकी, इस बीच हमने हल्का नाश्ता भी कर लिया और खूब सारी फोटो भी इकट्ठी कर ली | दोपहर का शाम से मिलन हो रहा है और सर्दी भी लगने लगी, तो सर पर मफ़लर बांध लिया, क्योंकि जुकाम को न्योता देकर मैं अपने सफ़र के मजे को किरकरा नहीं करना चाहता था | अभी यहाँ से लगभग दो से अढाई घन्टे और लगने थे शिमला पहुँचने में |

साढ़े तीन होते – होते गाड़ी कंडाघाट स्टेशन पर पहुंची, यहाँ पर भी काफ़ी समय रुकी गाड़ी फिर आगे बढ़ी | धीरे – धीरे सूरज ढल रहा है और आसमान में लालिमा छाने लगी | ऊँचे देवदारों के पेड़ों के बीच से सूरज की आती स्वर्ण किरणें इस शाम की ख़ूबसूरती को सूफ़ियाना बना रही है | दिन अब शाम के आग़ोश से निकलकर रात के आँचल में जाने को अग्रसर है, आसमान में पंछी अपने घोंसलों की ओर लौट रहें हैं, रास्ते में छोटे – छोटे समूहों में अपने घरों को प्रस्थान करते लोग |

घुमावदार रास्तों से नाद करती हुई हमारी गाड़ी अब मंजिल के करीब आ पहुंची है | पहाड़ो की ढलानों में बने घर रौशनी से जगमगाने लगे हैं, मानों दिवाली आ गयी हो और दूर तक दीयों की तरह टिमटिमाती रौशनी दिखाई देने लगी | धीरे – धीरे अँधेरा घाटियों से उतरकर घनी वादियों को अपने आग़ोश में भरने लगा है | मैं सीट पर बैठा खिड़की में अपने हाथ पर ठुडी को समाये इस मंजर को अपनी आँखों में उतार रहा हूँ | अब केवल घरों में जलते बल्ब और अँधेरा ही दिखाई पड़ रहा है और ट्रेन की चलने की आवाज़ें ऊँची होने लगी है मानों अब ये मुझे अलविदा कह रही है और बता रही है कि तुम्हारे जैसे ऱोज कितने ही लोग अपने सपनों को जीने मेरे साथ सफ़र करते हुए मुझे अपनी यादों में बसाकर आगे चले जाते हैं, ऱोज सैंकड़ो मुसाफ़िरों की हमसफ़र बनती हूँ और शाम होते – होते फिर तन्हां रह जाती हूँ इस उम्मीद में कि कल कोई और आयेगा अपनी ख्वाहिशों को जीने, और अगले दिन फिर उसी जोश के साथ बन जाती हूँ फिर किसी की हमसफ़र | ढ़लती शाम और अँधेरे के बीच हम पहुँच गये शिमला और आज तो क्रिसमस की रात है, इस रात को यादगार बनाने का सफ़र अब शुरू होता है |

क्रिसमस की रात

गाड़ी शिमला के रेलवे स्टेशन पर पहुँच गयी सभी यात्री उतरकर प्लेटफार्म से बाहर जा रहें हैं लेकिन हमें जल्दी नहीं है बाहर जाने कि और वैसे भी हमने कोई होटल भी तो बुक नहीं करवा रखा था, अभी तो उसके लिए भी ख़ूब भटकना पड़ेगा, क्रिसमस का सीजन जो चल रहा है, होटल के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी हमें | बिना इस बात की परवाह किये हम दोनों प्लेटफार्म पर लगी रेलिंग के पास खड़े थे और वहां से हिमालय की रानी शिमला के उन नयनाभिराम मनोरम दृश्यों से, बरसों से इस मंजर की प्यासी आँखों की प्यास को बुझा रहें थे |

“घरों में जलती लाइट को देख कर ऐसा लगता है कि मानों दिवाली है आज, देख कैसे जगमगा रहा है हिमालय”, आँखों में एक चमक लिए इस मंजर को निहारते हुए मैंने मनीष से कहा | “भाई मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं शिमला में हूँ इस वक्त, मेरे लिए तो ये एक सपने जैसा है”, मुस्कुराते हुए उसने मुझसे कहा | हम दोनों इस खूबसूरत मंजर को देखने में व्यस्त थे कि एक ट्रेन प्लेटफार्म पर धीमी गति से गुजर रही थी फिर क्या था बचपन के दिन याद आ गये और हम दोनों दौड़कर उस गाड़ी में चढ़ गये मनीष पहले दरवाजे में चढ़ गया और बन गया मनीष से राज और मेरी तरफ़ हाथ बढ़ाकर चिल्लाने लगा “भाग सिमरन भाग, बाबूजी आ जायेंगे”, हहाहहहा अगर कोई तीसरा होता तो आज क्या कमाल क्या शानदार स्लो मोशन वीडियो बनता | हम दोनों धीरे – धीरे चलती उस गाड़ी बचपन की तरह नादानियोँ कर रहे थे कि किसी अफ़सर को आते देख उतर गये और चल पड़े निकास की तरफ़ |

“ट्रेन में तो मजे ले लिए बस अब जल्दी से कोई कमरा मिल जाये तो मॉल रोड पर जाना है ब्रो, आज की रात हाथ से निकलनी नहीं चाहिए”, मनीष से रास्ते में चलते हुए बतिया रहा था | अब दोनों इधर – उधर भटक रहें हैं कि कोई होटल-कमरा कुछ मिल जाए, आसान नहीं है इस सीजन में तो पहले से ही बुकिंग करवानी पड़ती है | तकरीबन 20 मिनट हो गये ऐसे भटकते हुए, कभी ऊपर चढ़ो – कभी नीचे उतरों, पहाड़ों के ढलानों वाले रास्ते हमे थकाने लगे | “चल यार मनीष चाय पीते हैं उस दुकान, उसी से पूछते है कोई डोरमेट्री मिल जाएगी शायद”, एक दुकान की तरफ़ इशारा करते हुए मैंने कहा | “भाई साब लो चाय पिला दो, काफी ठण्ड हो गयी, बर्फ पड़ने की सम्भावना है क्या ?”, वार्तालाप को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने चाय वाले भाई से कहा | “दो चाय बनाना, हाँ वैसे ऊपर वाले इलाके में थोड़ी – थोड़ी होने लगी है तो यहाँ भी होने की सम्भावना है, चाय के साथ और कुछ लोगे ?”, बड़ी सहजता से उन्होंने पूछा | “चाय ही पिला दो, वैसे भी खाने का टाइम हो गया, कोई होटल या डोरमेट्री मिल जाए तो बात बन जाये, है क्या आपकी नजर में कोई ?” बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा | उन्होंने कॉल करके एक डोरमेट्री वाले बन्दे को बुला दिया, फिर वहां से चाय पीकर और एक पानी की बोतल भरवाकर हम डोरमेट्री देखने चल पड़े जो की थोड़ी नीचे की तरफ थी |

“देखो बाबूजी ये है अपनी छोटी – सी जगह, दस बिस्तर है अपने पास, अभी एक भी बुक नहीं हुआ है, सीजन चल रहा है दो घंटे तक सारे बुक हो जायेंगे, आपको किसी तरह की समस्या नहीं होगी यहाँ, ओढने के लिए कम्बल मिल जाएगी नहाने के लिए गर्म पानी”, एक ही बार में अपनी बात खत्म करते हुए अंकल ने हमसे कहा | हमने भी सोचा चलो वैसे भी केवल रैन-बसेरा ही तो करना है, बाकि दिन में तो बाहर ही घूमना है | डोरमेट्री को बुक करवाकर हम खाने के लिए वापस ऊपर आ गये |

पहले का अनुभव था इसलिए हल्के खाने के तौर पर दाल – रोटी और दही ही लिया खाने में ताकि शरीर का संतुलन बना रहे | फिर यहाँ से सीधे निकल पड़े मॉल रोड के लिए कोविड की वजह से देर रात तक घूमने पर भी मनाही थी | मॉल रोड पर पहुंचे तो वहां की रंगत देखकर रस्ते की सारी थकान भूल गये | “गजब ब्रो क्या मस्त जगह है यार कसम से मज़ा आ गया”, कहते हुए मनीष का चेहरा खिलखिला उठा | वहां पहुँच कर सबसे पहले तो उस जगह फोटो खिंचवायी जहाँ पिछली बार आइसक्रीम खाते हुए खींची थी | बहुत ही दिलकश नज़ारा था यहाँ का, मेरा मन पिछली बार जो देखा उसको आज से तुलना करने लगा कि क्या कुछ बदला | रात को यहाँ से पहाड़ों का दृश्य अद्भुत और अनुपम है | ये मनुष्य की इच्छाशक्ति और प्रकृति के असीम स्नेह का एक ख़ूबसूरत संयोग है कि इन दुर्गम पहाड़ों में भी जीवन सामान्य की भांति फल – फूल रहा है |

क्रिसमस की रात के साथ – साथ आज भारत माँ के बेटे श्री अटल जी की जयंती भी है आज, यहाँ पर वाजपेयी जी की मूर्ति बनी हुई है जहाँ पर कई लोग इक्कठे हो रखे हैं | बहुत हर्षोल्लास के साथ वाजपेयी जी का जन्मदिन मनाया जा रहा है, फूलों और रंग बिरंगी लाइट की सजावट हर किसी के लिए फोटो पॉइंट बना हुआ था | रेलिंग को फूलों की माला से से सजाया हुआ था जहाँ पर लोग इंतजार कर रहे थे फोटो खिचवाने के लिए अपनी बारी का, जिनमे हम भी एक थे | दिसम्बर महीना अंतिम चरण पर था इसलिए सर्दी भी अपने चरम की और अग्रसर थी | सर्दी का पूरी तरह से बन्दोबस्त किया हुआ था हम दोनों ने | “एक काम तुमने बहुत बढ़िया किया है ब्रो, ये स्क्रीन टच वाले दस्ताने ला कर, नहीं तो इतनी ठंड में फोटो खींचने के लिए बार – बार इनको उतराने में बड़ी दिक्कत होती”, उसकी फोटो खींचते हुए मैंने मजाक में बोला | “अरे ब्रो, मुझे मालूम था पहले से ही की इनकी बहुत जरूरत पड़ेगी”, अब इतराना तो उसका लाज़िमी था ही | यहाँ से आगे बढ़े यहाँ के मशहूर क्राइस्ट चर्च की ओर जहाँ पर सबसे ज्यादा भीड़ लगी हुई थी |

चर्च को दुल्हन की तरह सजाया हुआ था, लेकिन कोरोना की वजह से अंदर जाने की अनुमति नहीं थी | सभी लोग बाहर से ही यहाँ का लुफ्त उठा रहे हैं, अब तो हम भी भीड़ का एक हिस्सा हैं | कभी खुद को तो कभी चर्च को हम मोबाइल में कैद करने लगे | यहाँ पर काफी समय बिताया | यहाँ की फ़ोटोबाज़ी खत्म करके हम चर्च के बाजु से ऊपर की तरफ चले गये जहाँ से पूरी मॉल रोड का नज़ारा देखा जा सकता है | शान से हिमालय की वादियों में लहराता देश का तिरंगा मॉल रोड की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है |

देर रात तक यहाँ रुकने की अनुमति नहीं होने के कारण अब यहाँ से लौटने का समय होने लगा था | हम दोनों मजे करते हुए वापस लौट रहे थे की अचानक पान की दुकान पर नज़र पड़ी, पान की पेशकश बहुत ही अच्छे ढंग से की जा रही थी | “क्यों न एक – एक पान खाया जाए”, मनीष ने प्रस्ताव दिया | पान इतना स्वादिष्ट था कि फिर हमने एक की जगह दो – दो पान खाये | पान मुहँ में रखकर हम वापस नीचे की तरफ लौट आये | दाद देनी पड़ेगी मनीष की यादास्त की वाकई में वो जिस रस्ते से एक बार गुजर जाता है उसको भूलता नहीं और एक मैं हूँ जो दूसरी बार यहाँ आ रहा हूँ फिर भी रस्ते याद नहीं रहते, इसी बात पर हँसी – ठिठोली करते हुए हम अपनी डोरमेट्री पर पहुँच गये |

“घूम आये बाबूजी मॉल रोड, कैसी लगी”, कमरे में हमारा अभिवादन किया डोरमेट्री वाले चाचा ने |

“बहुत अच्छी जगह है अंकल जी, सारे बेड बुक हो गये आपके”, बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा |

“हां जी सर, सीजन का टाइम है तो हो ही जाते है, बाकि रोज – रोज तो ऐसा होता नहीं”, बड़ी शालीनता से, बीड़ी का सुट्टा लगाते हुए अंकल ने कहा |

“अच्छा अंकल जी, यहाँ बर्फ कब पड़ने के आसार है, कोई सम्भावना है क्या ?” मैंने उत्सुकता से पूछा |

“बाबूजी ऊपर की तरफ तो पड़ने लगी थोड़ी – थोड़ी, यहाँ भी

3-4 रोज में पड़ने लग जाएगी, पिछली साल बहुत बर्फ थी यहाँ भी, मोबाइल में दिखाता हूँ आपको |”

हमने मोबाइल में पिछली साल की कई तस्वीर देखी, जिनको देखकर मैंने मनीष से कहा कि यार काश कल ऐसा ही देखने को मिले हमें भी |

“तो बाबूजी कल कहाँ घुमने का विचार है आपका, यहीं आसपास ही या कहीं दूर ?”,अंकल ने पूछा ताकि वो ये पहचान सके कि कल भी यहाँ रुकेंगे ये लोग या चले जायेंगे |

“पिछली बार आया था तो दूर – दूर घूम लिया था केवल शिमला ही बाकि रह गया था इसलिए इस बार तो शिमला में ही घुमने का विचार है अंकल जी, सोच तो रहे हैं कि कल जाखू टेम्पल और लकड़बाजार घुमा लिया जाए |”, अब तक मैं अपनी रजाई में पहुँच चूका और वहीँ से वार्तालाप चल रहा था |

ऐसे ही बातें करते – करते मैं और मनीष फिर मोबाइल में आज खींची गयी सारी तस्वीरें देखने में व्यस्त हो गये | कल सुबह जाखू के बजरंग बली के दर्शन की योजना बनाकर हम अपने अपने मोबाइल में खो गये | दिनभर सफ़र की थकान थी लेकिन उत्साह ऐसा कि अभी नींद भी नहीं आ रही | मोबाइल में सुबह का अलार्म लगा कर सोने की कोशिश करने लगा, कल के प्लान को सोचने लगा और धीरे – धीरे पता नहीं चला कब आँख लग गयी |

जाखू के वीर हनुमान

अलार्म बजा, नींद टूटी आदतन अलार्म काटकर फिर से सोने लगा, और वापस सपने को याद करने लगा | कितना अच्छा सपना था, जब भी घर से इतनी दूरी होती है, माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है | “कितना सोयेगा यार, अलार्म भी बज गया, उठ जा अब तो”, मनीष बडबडाया | वो अपने मोबाइल में लगा हुआ था, काफी जल्दी उठ गया था | “क्या आधी आँख खोलकर देख रहा है, अभी वाशरूम खाली है, हो आ तू चलना भी तो है फिर”, डांटते हुए उसने कहा | “लो बाबूजी गर्म पानी, दूसरी बाल्टी में खाली करके ये बाल्टी वापस दे दो ताकि इसमें और हो जाये गर्म पानी”, हाथ में बाल्टी लटकाए हुए अंकल आये अंर | डोरमेट्री के अपने संघर्ष हैं |

तकरीबन साढ़े नौ बजे हम यहाँ से निकल गये | आज केवल जाखू मन्दिर और लकड़बाज़ार ही घूमना है तो समय काफी था हमारे पास, इसलिए हमने तय किया कि पैदल ही चलेंगे जाखू | चाय पीने और शुक्रिया अदा करने वापस उसी दुकान पर आये जहाँ से कल रात हमें ये डोरमेट्री मिली थी | चाय पीकर ऊपर माल रोड की तरफ बढ़े, सीढियों में लगे बाज़ार और छोटी – छोटी दुकानों के खुलने का समय हो रहा था, कुछ पर ग्राहक थे तो कई अभी खोली जा रही थी | एक घड़ी – चश्में की दूकान पर हम रुक गये और एक चश्मा खरीद लिया जो कि आगे फोटोशूट में बड़ा काम आने वाला था | यहाँ से आगे बढ़े तो और एक दुकान पर मास्क देखकर रुक गये, “मास्क लेते हैं यार, N-95 से परेशान हो गया” हम दोनों अपनी राजस्थानी भाषा में बाते कर रहे थे कि दुकान वाले भाई साब बोले, “आप, शेखावाटी से आये हो क्या ?”

“हाँ भाई साब, आपको मारवाड़ी आती है !”, मुस्काते हुए मैंने कहा |

“शेखावाटी में कहाँ से आये हो, नीमकाथाना जानते हो क्या”, वो बोले

“हाँ जानते हैं, पास ही है, आप कैसे जानते हो”, ताजुब करते हुए मपूछा मैंने

“फिर तो खंडेला भी जानते होंगे, मैं वही का ही हूँ”, मुस्काते हुए वो बोले

हंसते हुए कहा मैंन, “खंडेला वाली भाषा बोलकर बताओ, आप तो हिंदी बोल रहे हो”

मुस्कुराते हुए वो बोले, “बठ्या को ही छुं मैं” (और हम तीनों हँसने लगे)

“मेरा गाँव और इसका ननिहाल खंडेला ही है”, मनीष बोला

उनसे काफी देर बात हुई हमारी, उन्होंने चाय-पानी के लिए कहा और बोला कि रूम आदि की समस्या हो तो बताये दूसरे की व्यवस्था कर देंगे | उनको साधुवाद कर शाम को आते वक़्त मिलने का कहकर आगे चल पड़े | अच्छा लगा जब बाहर देश में अपने गाँव का कोई मिलता है तो, साथ ही में हँसी मजाक के लिए एक टॉपिक भी मिल गया | “भाई शिमला में तुझे मामा और मुझे काका मिल गया”, मजाक करते हुए मनीष बोला और हम दोनों जोर से ठहाके लगाने लगे |

शिमला के बाज़ार को देखकर लग रहा था कि जैसे मेले में आ गया हूँ | कई छोटी – बड़ी दुकाने ज्यादातर कपड़ों की थी | बाज़ार की उन गलियों में हम एक दुसरे की फोटो क्लिक करते हुए और स्थानीय लोगों से जाखू मन्दिर का रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ रहे थे | देखा कि सामने से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपनी पीठ पर बहुत सारी प्लास्टिक की केरेट को लादे हुए बहुत ही आराम से आ रहा था, इस नजारे को देखकर हम दंग रह गये कि इनती उम्र का आदमी और इतना वजन उठा रहा है, हम लोग तो इसका चौथा हिस्सा भी उठाये तो पसीने छूट जाए | वाकई में पहाड़ी लोग बहुत मेहनती होते हैं इसका उदाहरण मिल गया था मुझे और ये तो अभी शुरुआत थी आगे भी ऐसे कई लोग दिखे, सलाम है इनको |

रास्ते में जहाँ भी अच्छी जगह दिखी वहां पर इत्मीनान से तस्वीरें खींची आख़िर पैदल आने का मकसद भी तो यही था जिसका कि हम भरपूर लाभ उठा रहे थे | रास्ते में एक अच्छा मकान देखकर रुक गये, मनीष तपाक से अंदर चला गया | “अरे क्या कर रहा है”, ताजुब करते हुए मैंने पूछा | “भाई फोटो खींच ले मेरी इसकी सीढियों से उतरते हुए की, ताकि मैं ये कह सकू की इस होटल में रुके थे हम, डोरमेट्री के बारे में थोड़ी ना लोगों को बतायेंगे”, हंसते हुए वो बोला |

फिर क्या था अंदर का फोटोग्राफ़र और बच्चा दोनों जग गये | उस मकान के सामने हमने तस्वीरें खींची | रास्ते में कई जगह हमने खूब सारी तस्वीरें खींची कभी मकानों के आगे तो कभी किसी की कार के आगे, कभी बंदरो के साथ तो कभी सड़क से लगी रेलिंग के सहारे | बस ऐसे ही हंसते – खेलते हम जाखू मन्दिर के पास पहुँच गये | सामने चाय वाली दूकान को देखकर चाय की तलब लगी साथ ही में आलू – टिकिया का भी आनन्द उठाया | थोड़ी दूर नज़र घुमाई तो एक पाईप से पानी गिरता दिखा शायद टू – वेल का पाईप था, हाथ – मुंह धोने चले गये | वहां जाकर देखा तो शानदार जगह लगी, फिर क्या था आधे घंटे तक तस्वीरों और स्लो – मोशन का सिलसला चलता रहा |

फिर यहाँ से निपटकर मन्दिर की सुध ली | सीढियों से होते हुए हम मन्दिर के परिसर में आ गये | दूर से दिखाई पड़ने वाली हिमालय की वादियों में बनी हनुमान जी की ये मूर्ति लगभग 100 फीट की जान पडती है | मन्दिर परिसर में कई लोग घूम रहे थे, हर कोई अपनों के साथ इस भव्य मंदिर में अपने जीवन के पलों का आनन्द लेने में व्यस्त था | स्थानीय मान्यता है कि जब हनुमान जी हिमालय से संजीवन बूटी लेने आये थे तब यहाँ विश्राम किया था | अगर आप शिमला आओ तो जाखू मन्दिर जरुर आना, मन को शांत करने वाला यहाँ का वातावारण आपको मन्त्र मुग्ध कर देगा | हमने मंदिर परिसर में कई तस्वीरें खींची जैसा कि हम करते आ रहे थे अब तक, कभी हनुमान जी की तो कभी वादियों की |

पिछली बार मेरा शिमला आकर भी जाखू मंदिर नहीं आने का मलाल इस बार सबसे पहले यहीं आकर दूर हो गया और मन ही मन हनुमान जी से जल्दी ही दुबारा मुलाकात का वादा भी कर आया | यहाँ काफी समय बिताया हम लोगो ने अब लौटने का समय हो गया | यहाँ से हमे अब लकड़बाज़ार जाना था | लकड़बाज़ार शिमला की एक बेहतरीन जगह है जहाँ पर घुमने और खरीददारी करने लगभग सभी सैलानी आते हैं |

हम मन्दिर से नीचे उतर आये और शाम होते-होते लकड़बाज़ार पहुँच गये | जैसा कि नाम से ही पता चल रहा इस बाज़ार में हस्तशिल्प की वस्तुएं बहुत मिलती है | हमने भी निशानी के तौर पर कुछ की-चैन और की-होल्डर खरीद लिए जो कि आसानी से हमारी बैग में रखे जा सकते थे | बड़े इत्मिनान से बाज़ार में घुमे | धीरे – धीरे शाम ढलने लगी और अँधेरा होने लगा, फिर से दिवाली की तरह हिमालय की वादियाँ जगमग हो उठी |

बाज़ार से निकल कर हम मॉल रोड आ गये, यहाँ से नीचे उतरने लगे | नीचे लगा बाज़ार भी अब धीरे – धीरे मंगल हो रहा था | मैंने बाज़ार से कुछ कपड़े और स्वेटर खरीदे, शाम का समय था तो थोड़ी बारगेनिंग भी हो रही थी | वैसे तो मेरा सबके लिए कुछ न कुछ खरीदने का मन था फिर भी सोचा कि कल भी इधर आना होगा, इसलिए थोडा बहुत कल के लिए छोड़ देते हैं | हम बाज़ार से निकल कर नीचे आ गये | हम दोनों नया कमरा देखने के लिए इधर – उधर घुमने लग गये | इसी सिलसले में एक बंदु से मुलाकात हुई जो कमरा दिखाने नीचे ले आया | उसी डोरमेट्री के थोडा आगे आ गये जहाँ हम रुके हुए थे | हमे एक होटल में कमरा दिखाया गया लेकिन हमने अब इरादा बदल दिया था | हम अपनी डोरमेट्री चले आये जहाँ पर बैग में खरीदा हुआ सामान रखा और वापस ऊपर लौट आये खाना खाने के लिए |

कल की तरह दाल – रोटी और दही के रूप में हल्का खाना खाकर सैर – सपाटा करते हुए डोरमेट्री लौट आये | बड़ा हो- हल्ला हो रहा है यहाँ क्या बात है ..! हम दोनों ही अचम्भित थे | हरियाणा से आये हुए 6 – 7 दोस्तों का एक ग्रुप यहाँ ठहरा हुआ था | अंकल की तो निकल पड़ी, एक साथ ही सारे बेड बुक हो गये आज तो | रात काफी हो जाने के बावजूद भी इनका हो – हल्ला अभी रुका नहीं था | आसपास सभी बेड वाले परेशान थे लेकिन येलोग अपनी अभद्रता और असभ्यता का परिचय बार – बार दे रहें थे | दो व्यक्ति तो उनमे से सरकारी शिक्षक भी थे, ये पता चलने के बाद तो और भीर अखरने लगे वो लोग | वैसे भी मन विचलित हो रहा था पता नहीं क्यों ऊपर से इनकी हरकतें | मना करने के बावजूद भी बाज़ नहीं आये | विवशता ऐसी कि कुछ कर भी नहीं सकते सिवा नींद आने के इंतजार के | आख़िर देर रात ही सही आँख लग गयी |

सफ़र अधुरा सबक पूरा

“भाई, ओ भाई, उठ ना, माँ (दादी) खत्म हो गयी” मनीष की धीमी लेकिन गम्भीर आवाज़ ने मुझे जगाया |

“सुबह – सुबह मज़ाक मत कर यार, वैसे भी रात को ढंग से नींद नहीं आई” आधी नींद में ही मैंने बोला |

“ये देख अभी पापा का कॉल आया है”, मोबाइल में दिखाते हुए वो बोला |

अब मेरी नींद उड़ गयी थी, “कब हुआ ये सब, तुमने मामा से क्या कहा…!”, मैंने पूछा |

मनीष – “आज सुबह लगभग 5 बजे के आस पास, मैंने तो बोला कि मैं जयपुर हूँ”

मैं – “अच्छा, फिर थोड़ी देर बाद वो दुबारा नहीं पूछेंगे कि कहा तक पहुँच गया तब क्या बोलेगा …!”

मनीष – “फिर अब क्या करें”

मैं – “अभी कॉल कर उनको, और बोल कि मैं तो शिमला हूँ”

पांच – सात मिनट के वार्तालाप के बाद हम डोरमेट्री से बाहर आ गये, बाहर आकर मनीष ने अपने पापा यानि मेरे मामा को कॉल किया, पता था कि अब बहुत डाट पड़ने वाली है | लेकिन जिसकी माँ का अभी – अभी देहान्त हुआ हो और अभी दाह – संस्कार भी नहीं किये हो, उस व्यक्ति की मानसिक हालत क्या होगी, ऐसी विषम परिस्थिति में भी खुद को संतुलित रखना कितना मुश्किल है | मामा ने फोन पर बस थोड़ा ही कहा और कॉल कट कर दिया, शायद यही परिपक्वता होती है | लेकिन अब मनीष की चिंता और बढ़ गयी, बोला कि पापा ने उम्मीद से कम डांटा, ये तूफ़ान से पहले की शांति है यार |

हम अंदर आ गये, और वापस लौटने के लिए बस आदि ऑनलाइन सर्च करने लगे | “मेरी वजह से तेरा ट्यूर और खराब हो गया, यही सोच रहा होगा न कि किस को साथ ले आया यार”, मनीष ने ग्लानी के भाव से अपनी व्यथा सुनाई | “ऐसा कुछ नहीं है, होनी थी और हो गयी”, मैंने कहा | हम जल्दी ही घर पहुंचना चाहते थे लेकिन इतनी दूर से सम्भव नहीं था कि दाह – संस्कार से पहले पहुँच जाए | तुरंत हाथ – मुँह धोकर डोरमेट्री से निकले और चंडीगढ़ की बस पकड़ी | उल्टियाँ होने के डर से पहाड़ों में बस का सफ़र बिलकुल नहीं करना था, इसलिए कुछ भी बिना खाए बस में बैठा |

“पापा से सब पूछेंगे कि सारे रिश्तेदार आ गये, मनीष तो जयपुर ही था फिर क्यों नहीं आया, दादी के पास सभी पोते – पोतियाँ हैं, केवल मैं ही नहीं हूँ, अच्छे बदनाम हो गये रिश्तेदारों में, पहले से ही सी. ए. की परीक्षा पास नहीं होने के कारण खूब ताने मारते हैं, अब तो जीने नहीं देंगे, मम्मी – पापा को मेरी वजह से ये सब सुनना पड़ेगा”, मनीष ने अपनी चिंता जाहिर की | “मेरे साथ भी तो यही होगा यार, ननिहाल में मुझे कम ही लोग जानते हैं, अब तक तो वायरल हो गया हूँगा मैं, कि रामेश्वरी जीजी का बेटा गया है साथ में”, हम दोनों अपनी चिंताए जता रहें थे |

बस थोड़ी दूर ही चली थी कि मेरा जी ख़राब होने लगा, पेट में कुछ था नहीं फिर भी उल्टी होने लगी, बस खाली थी तो दूसरी सीट पर खिड़की की तरफ बैठ गया और सोने की कोशिश करने लगा | लेकिन विचारों में तो नानी का अक्ष छाने लगा | सोचा था कि शिमला से आकर सीधा उनके पास जाऊंगा, कई दिन हो गये मिले हुए | माँ तो पहले ही गुजर चुकी थी, आज ऊपरवाले ने नानी को भी बुला लिया, मेरी मांओं के पीछे ही क्यों पड़ा है ये ! रह – रह के नानी की बातें याद आ रही थी, उनकी डांट, उनका प्यार उनके एक हाथ के वो दो अंगूठे जो मेरे बचपन में सबसे बड़ा सवाल था, सब आँखों में तैरने लगे | दिल भरना लाज़िमी था, आँखें आंसुओ को और नहीं रोक पाई, अश्रु – धारा गालों पर लुढक आई | आँखे जलने लगी अब तो सिसकियों के साथ रोने लगा | कैसा मंजर है ये, मेरे कंधों को उनकी अर्थी भी नसीब नहीं हुई | कम से कम मुझे फ़ोन पर तो बात कर ही लेनी चाहिए थी एक बार, रह – रह की यही बात चुभ रही थी | नानी को यादों में लिए शिमला से चंडीगढ़ आ पहुंचा |

सबसे पहले रात को जहाँ से बस मिलनी थी उसी के पास के होटल में कमरा बुक करवाया | उल्टी होने के कारण भूख भी लगी हुई थी, चंडीगढ़ के आई. एस. बी. टी. बस डिपो पर नजरें दौड़ाई तो एक होटल दिखा, अब तक का सबसे घटिया बर्गर और चाय पी वहां | फिर बाहर निकले यहाँ से तो सड़क के किनारे छोले – कुलचे वाला दिखा तो रहा नहीं गया, पेट भरके खाए और होटल की और निकल गये |

मैं – “तुझे चंडीगढ़ देखने की इच्छा थी न ब्रो, देख हम चंडीगढ़ में हैं, लेकिन दिल में दोनों के ही ख़ुशी नहीं है, सोचा था क्या इस हालात में चंडीगढ़ आयेंगे”

मनीष – “भाई, काश में चंडीगढ़ देखने की इच्छा ही न रखता तो शायद ऐसा नहीं होता न…!”

होटल पहुँचकर पहले गीजर में पानी गर्म किया और मैं नहाने चला गया | बाथरूम से नहाकर बाहर आया तो मनीष बोला, “पता है मुझे आठ – दस दिन पहले एक सपना आया था कि हम दोनों चंडीगढ़ में किसी होटल में हैं, और मैं नहाकर आ रहा हूँ और तू बोल रहा है कि थर्मल पहन ले, ठण्ड बहुत है, ये सपना अब हकीक़त बन गया भाई”

मैं – “तुमने मुझे तब क्यों नहीं बताया इस बारे में, ये इशारा था कि नानी बीमार है और तुम लोग मत जाओ”

मनीष – “मुझे क्या पता था कि ऐसा होगा, तब बताता तो कौनसा प्रोग्राम कैंसिल कर देता”

मैं – “तभी अपने साथ सब ठीक हो रहा था, वेटिंग टिकटे क्नर्फ्र्म हो रही है, आसानी से बजट में डोरमेट्री मिल रही है, हम इसको अच्छी किस्मत मान रहे थे, और ये सब तो हमारी बुरी किस्मत का कमाल था”

मनीष – “बुरा वक्त आता है तो पहले सब ठीक होने लगता है फिर एक जोरदार झटका देता है और सब खत्म”

नहा – धोकर दोनों ने थोड़ा आराम किया, थोड़ी देर बाद आँख लग गयी | शाम को उठकर बाहर जाकर थोडा हल्का – फुल्का खाना खा आये, बस का समय हो गया, होटल से चेक – आउट करके बस में आकर बैठ गये | जितना उत्साह आते समय था उससे कहीं जाता दुःख और उदासी लौटते समय हो रही थी | रेल की सारी टिकट कैंसिल करवाकर बस में यूँ जाना पड़ेगा सोचा ही नहीं था | हम दोनों के संवाद मानो जैसे खत्म से हो गये हो, बस केवल औपचारिकता जैसा ही रह गया | मायूसी दोनों के चहरों पर साफ दिखाई पड़ रही थी | बस हवा से बातें कर रही थी, रह – रहकर नींद टूट रही थी और बेचैनी बरकरार थी |

जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं और फिर केवल पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | जीवन तो ऐसा सफ़र है जिसकी कोई टिकट नहीं है, केवल मंजिल को पाने के लिए हम लोग सफ़र का लुफ्त उठाना भूल जाते हैं | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया | मेरे अधूरे सफ़र की दास्तां एक मुक्क्मल सीख पर खत्म करता हूँ |

धन्यवाद

अधूरे सफ़र की दास्तां

मेरी शिमला यात्रा

जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर, हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया |

2020

भीमराज कुमावत

 

 

 

 

 

 

 

 

सूची

शीतकालीन अवकाश 2
दिल्ली में मॉर्निंग वॉक 5
वादियों का सफ़र 9
क्रिसमस की रात 13
जाखू के वीर हनुमान 18
सफ़र अधुरा सबक पूरा 24

शीतकालीन अवकाश

“निकल गया क्या कॉलेज से, कितना टाइम और लगेगा तुझे”, कॉल उठाते ही हेल्लो की जगह यही यही बोला मनीष ने, “नहीं यार वो अभी छुट्टीयों को लेकर प्रिंसिपल ऑफिस में मीटिंग चल रही है, देखो ऊंट किस करवट बैठे, शायद अच्छी ख़बर आएगी, करता हूँ मैं थोड़ी देर में कॉल तुझे, तू अपनी तैयारी रख”, ये कहकर फ़ोन काटते हुए मैं स्टाफ रूम में चला गया | सबके चहरे पर एक अजीब सी उलझन साफ छलक रही थी | “भई सुन लो सभी, नोटिस आ गया है 31 दिसम्बर तक शीतकाल अवकाश रहेगा कॉलेज में”, कहते हुए बाईजी स्टाफ रूम में आई | हम सबके चहरे खुशी से चमक उठे | “ये अच्छी ख़बर सुनाई बाईजी आपने, हैप्पी न्यू इयर”, “चलो महेश बाबु, अब देर मत करो यार” मेरे रूममेट और कलीग महेश की तरफ देखते हुए कहा | जल्दी ही कॉलेज से फ्री हो बाइक से रूम की तरफ चल निकले हम | “अरे मनीष, छुट्टी आ गयी हमारी, अब आराम से घूमेंगे दोनों, रूम पर जा रहा हूँ, मिलते हैं जयपुर रेलवे स्टेशन पर, आ जाना टाइम पर |”

मानों कोई गढ़ ही जीत लिया आज तो, इतनी ख़ुशी कई सालों बाद महसूस हुई, आख़िर तीन साल हो गये शिमला जाने की योजना बनाते हुए, हर साल दिसम्बर की छुट्टियों में शिमला जाने का प्लान बनता हूँ और कभी जा नहीं पाता | पिछली बार 2017 में गया था और तब ही ये सोच लिया था कि मुझे दुबारा आना है यहाँ | मेरी आखों में विशाल हिमालय और उसकी घनी वादियों का अक्ष तैरने लगा | अपना तो काउंटडाउन शुरू हो गया यार |

“लो भई, आ गया रूम, उतरो”, कहते हुए महेश जी ने बाइक रोक दी | मैं जल्दी ही रूम में आया, हाथ पैर धोकर कपड़े बदले और रसोई में खाना बनाने के लिए चला गया | पहले चाय बनाकर पी, बाद में रोटी – सब्जी बनाने में जुट गया | इधर महेश बाबु अपनी पैकिंग करके घर को जाने के लिए तैयार हैं, “ठीक है ब्रो, जा रहा हूँ मैं, शिमला यात्रा शुभ हो आपकी”, कहते हुए महेश चला गया | वैसे तो मैंने सारी पैकिंग रात को ही कर ली थी, बस टिफ़िन पैक करके बैग में रखना है | बमुश्किल आधे घंटे में खाना तैयार करके टिफ़िन पैक हो गया अपना | कमरे में आया और तुरंत तैयार हुआ, बैग उठाया, इअर फोन गले में डाले, शूज़ पहने और मन ही मन इष्ट को याद करते हुए रूम लॉक किया और बस स्टैंड की तरफ़ चल पड़ा

आज तो किस्मत भी महरबान है, स्टैंड पर पहुँचते ही जयपुर के लिए बस भी मिल गयी, लेकिन ख्चाख्च्च भरी हुई थी, खड़े खड़े ही जाना पड़ेगा | ये शिमला जाने की ख़ुशी ही थी कि थर्मल और उस पर भारी – भरकम कोट पहनने के बावजूद भी मेरा ध्यान गर्मी पर नहीं जा रहा था | मन में तो हिलोरे उठ रही है कि कल तो इस समय शिमला की मॉल रोड पर घूम रहा हूँगा, वाह ! क्या नज़ारे होंगे, मानो मेरी दिवाली आने वाली है | अभी जयपुर की आधी दूरी ही तय हुई थी, मनीष का कॉल आया, “कहाँ है तू, मैं रेलवे स्टेशन पहुँच गया हूँ, कितना टाइम और लगेगा”, “बस मान ले 40 मिनट और लगेंगे, पहुँचता हूँ मैं भी, तब तक तू घूम ले आस पास (हहह्हहाहा)”|

मेरे से ज्यादा उसको जल्दी है शिमला जाने की, इतना उत्साह है कि जयपुर में रहते हुए भी डेढ़ घंटे पहले स्टेशन पर आ गया | एक महीने से शिमला जाने की तैयारी चल रही थी हमारी, रोज शाम इस पर चर्चा होना सामान्य हो गया था |

ट्रेन की टिकट्स की बुकिंग को लेकर काफी असमंजस में रहा बीते दिनों, और हो भी क्यों नहीं राजधानी में किसान आन्दोलन जो चल रहा था | रोज अख़बार में इस आंदोंलन की ख़बरें पढना मेरी दिनचर्या का खास हिस्सा बन गया था | इन सबके चलते तीन दिन का शिमला घुमने का कार्यक्रम आख़िर बना ही लिया | अचानक बस रुकी तो धक्का लगा, मैं विचारों से बाहर आया | पास की सीट खाली हो गयी और मैं बैठ गया, और फिर दुबारा विचारों की लहरों में बह निकला | कहीं इस किसान आन्दोलन की वजह से यातायात न बंद हो जाए, कहीं फंस गये तो लेने के देने पड़ जायेंगे, ये मनीष भी न घर पर किसी को बिना बताये हुए शिमला जा तो रहा है, अगर पता चल गया इसके पापा को, तो मुसीबत बढ़ जाएगी, मेरे विचार अब मुझे डराने लगे थे | खैर हम बतायेंगे नहीं तो पता कैसे चलेगा | इस तरह असमंजस में हमारी शिमला यात्रा शुरू हुई|

लो आ गया जयपुर, मैं तुरंत रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ा, वो क्या उस दुकान पर ताज़ा आगरे के पेठे, वाह !, हम दोनों को पेठे बहुत पसंद है जब भी मनीष के पास जयपुर आता हूँ खाने के बाद पेठे जरुर लेते हैं | मैंने पेठे के साथ थोड़ी नमकीन भी ले ली और पहुँच गया रेलवे स्टेशन | “अरे वाह, तू तो एकदम शिमला वाले लुक में आया है ब्रो, सर्दी का पूरा जाब्ता करके, वाह बेटे”, ये कहते हुए मनीष ने मेरा अभिवादन किया | “सही है ब्रो, मांगे हुए कोट में हम दोनों ही डैशिंग लगते हैं”, मेरे इतना कहते ही हम दोनों ठहाके लगा के हँसने लगे | फिर दोनों ने साइड में बैठकर अपना दस्तर – खान जमाया और भोजन करना शुरू किया जो टिफ़िन मैं बनाकर लाया था | “गजब यार, तू तो शेफ हो गया आजकल, खाना भी बनाकर लाने लगा वो भी मेरे टिफ़िन वाले भैया से बढ़िया” मनीष ने खाने की तारीफ़ में कहा | “अब बन्दा रूम पर रहेगा तो खाना भी बनाना सीख ही जायेगा न”, मैंने कहते हुए निवाला मुहं में रख लिया | आगरे के पेठे की पेशकश ने खाने की लज्ज़त को और बढ़ा दिया |

अभी ट्रेन के आने में काफी समय था तो हम भी साइड में बैठकर टाइम पास करने लगे | पूरा रेलवे स्टेशन खाली पड़ा था, केवल वो ही लोग दिख रहे हैं जिनको स्टेशन पर कोई काम हो | कोरोना का असर देखा जा सकता है, वरना इस जयपुर के स्टेशन पर तो बहुत भीड़ हुआ करती है | “ले बीस मिनट और बची है ट्रेन आने में, चल ले प्लेटफार्म पर चलते हैं, वैसे भी कोरोना चल रहा है क्या पता टाइम लग जाये किसी काम में”, मैंने जुते पहनते हुए मनीष को कहा और फिर दोनों प्लेटफार्म की तरफ चल पड़े | बैग को सेनिताईज करवाया और फिर प्लेटफार्म और जाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गये | कोरोना महामारी में लॉकडाउन के चलते रेलवे स्टेशन की साफ़ सफाई को देखकर दंग रह गया, जयपुर रेलवे स्टेशन इतना खूबसूरत आज पता चला | जैसा कि हमारे यहाँ रिवाज़ है ट्रेनों के देरी से आने का बस उसी का अनुसरण करते हुए केवल तीन मिनट देरी से हमारी ट्रेन आ पहुंची प्लेटफार्म पर और हमेशा की तरह इस बार भी मैंने विंडो सीट ही बुक करवा रखी थी | हम जाकर अपनी सीट पर बैठ गये | सर्दी चाहे कितनी भी हो, विंडो चाहे खोलनी भी न हो फिर भी विंडो सीट पर ट्रैवल करने का मजा अलग ही है |

ट्रेन चल पड़ी और धीरे – धीरे अपनी रफ़्तार को बढ़ाते हुए सरपट दौड़ने लगी | हम दोनों का उत्साह इतना परवान था कि आसपास बैठे यात्रियों को भी हमारी बातों से पता चल रहा था कि हम शिमला जा रहे हैं | यकीन नहीं हो रहा है कि हम वाकई में शिमला जा रहे हैं, एक सपने की तरह लग रहा है सब कुछ | सब कुछ कितना अच्छा हो रहा है न, हम दोनों अपनी इन्हीं बातों में मशरूफ थे | पिछली रणथम्भोर यात्रा का अनुभव बताते हुए मैंने कहा कि भई अपने सामान का जरुर ध्यान रखना | लगभग तीन घंटे हो गये ऐसे ही बाते करते करते अब सो जाना चाहिए अभी तो कल भी ट्रेन में ही सफ़र करना है | लेकिन क्या करें ख़ुशी के मारे नींद भी तो नहीं आ रही है | फिर पुरे डिब्बे में घूमकर देखा कि कहीं सोने के लिए अपर बर्थ मिल जाये तो आराम से कट जायेगा सफ़र, और फिर दोनों को अलग – अलग जगह बर्थ मिल गये और हम सोने की कोशिश करने लगे | गाने सुनना बंद किया मैंने, और मन में शिमला के बारे में सोचने लगा और प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान बर्फबारी करवा देना, बर्फ देखने के लिए ही तो दुबारा शिमला आया हूँ |

ट्रेन अपनी रफ़्तार से दिल्ली की ओर बढ़ रही थी | रात के सन्नाटे में ट्रेन के चलने की आवाज़े एकदम सुनाई दे रही थी | मन में शिमला की वादियों के नजारे लिए धीरे – धीरे मैं नींद के आगोश में चला गया |

दिल्ली में मॉर्निंग वॉक

“यहाँ नींद नहीं आई पुरे सफ़र में और ये बन्दा आराम से सो रहा है, चल अब उठ जा दिल्ली आ गयी”, मनीष की जोरदार आवाज़ सुनकर नींद खुली मेरी, “अगर मैं नहीं होता तो तू सोता ही रह जाता ट्रेन में ब्रो, इतना बेफिक्र सोता है क्या कोई सफ़र में”, कहते हुए उसने बात पूरी की | “यार क्या करूं जब नींद आती है तो आती ही है, और फिर रात भी थी तो सो गया, तुझे नहीं आई क्या ?” जानते हुए भी मैंने उससे पूछा | उठकर मुहं धोया और ट्रेन के दरवाजे पर जाकर खड़े हो गये दोनों | अभी सुबह के चार बजने वाले थे, अपने तय समय पर, ट्रेन दिल्ली प्लेटफार्म पर पहुंच गयी | यहाँ से हमे नई दिल्ली जाना होगा, कालका के लिए वहीं से ट्रेन मिलनी थी | “चल यार बाहर चलकर चाय – पानी पीते हैं, फिर सोचेंगे कैसे नई दिल्ली पहुंचा जाए”, मनीष से मैंने कहा और हम प्लेटफार्म से बाहर निकल आये | बाहर निकलकर देखा तो ऐसा लग ही नही रहा था कि अभी चार बजे होंगे, मानों यहाँ रात होती ही नहीं होगी | बाहर ऑटो वालों की लाइन लगी हुई है और इधर उधर घूमते लोग भी खूब दिख रहें है | वाकई में मेट्रो शहर में जीवन बहुत प्रतिस्पर्धा में गुजरता है | ये पौ फटने वाला मंजर सिर्फ गाँवों में देखने को मिलता है, शहरों में कहाँ ये सब |

बाहर दुकान वाले से गरमा – गर्म चाय ली | “भैया मेट्रो कब चलती है सुबह”, चाय की चुस्की लेते हुए मैंने चाय वाले भैया से पूछा | “भैया साढ़े पांच बजे से चलेगी पहली मेट्रो” चाय के बर्तन को घुमाते हुए वो बोला | हमारी ट्रेन साढ़े सात बजे के बाद है, जिसमे अभी काफी टाइम पड़ा था हमारे पास | हमने मन बनाया कि क्यों न पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली पैदल ही चला जाये, वैसे पास में ही तो है और इतना तो हम गाँवों में अपने खेतों में पैदल जाते ही है | फिर क्या चाय खत्म करके गूगल मैप निकला और चल पड़े नई दिल्ली की ओर | कंपकपा देने वाली दिल्ली की सर्दी ने मजबूर कर दिया दस्ताने पहनने को, जितनी मजेदार हमारी मंजिल होने वाली है उतना ही खूबसूरत सफ़र भी चल रहा था हमारा |

वो सुबह और पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली तक पैदल यात्रा का अहसास आज भी तरोताजा है, ये दिल्ली की खाली सड़के, कड़कती सर्दी और जिगरी हमसफ़र, ऐसे संयोग हमेशा नहीं बनते | सर्दी में लिपटी कुछ सड़के खाली पड़ी थी तो कुछ सरपट दौड़ती दो – चार गाड़ियों की हल्की गर्मी पर इतरा रही थी | जितना सुना था पुरानी दिल्ली के बारे में आज वो सामने था, ये तंग गलियाँ और धूल चढ़ी हुई इमारतें, कहीं ट्रक से सामान उतारने की आवाजें तो कहीं डेयरी की दुकानों पर हल्की चहल – पहल पुरानी दिल्ली के इस बाज़ार के सन्नाटे में दख़ल अंदाजी कर रही थी | जब कहीं ये रास्ते सुनसान और तंग थे उन रास्तों से खुद-ब-खुद हमारे कदम जल्दी उठ रहे थे, शायद बड़े शहर की आबो – हवा में ही ऐसा असर था कि हमारे मन में कुछ गलत हो जाने की शंका उत्पन्न हुई | ये लो हमारी मोर्निंग वॉक भी हो गयी और हम पहुँच गये नई दिल्ली | कहाँ सुनसान पुरानी दिल्ली और कहाँ चकाचौंध से भरी नई दिल्ली, राजधानी के दो पहलु है पुरानी और नई दिल्ली |

“वाह, आमलेट की खुशबु, चल क्यों ना थोड़ी सर्दी कम कर ली जाए”, एक ठेले की तरफ इशारा करते हुए मैंने मनीष से कहा | हमेशा की तरह वो तैयार था | सुबह – सुबह आमलेट खाने का मेरा पहला अनुभव था | यहाँ से निपट कर हम अंदर रेलवे स्टेशन चले गये | कोरोना और लॉकडाउन के दौर का एक फायदा तो साफ़ नजर आ रहा था कि रेलवे स्टेशन चमकने लगे, चाहे कहीं भी चद्दर डाल कर सो जाओ | नित्य क्रिया से निवर्त होकर हम प्रतीक्षालय की तरफ आकर बैठ गये | “यार अभी ट्रेन चलने में तो काफी टाइम है, चल लेटकर थोडा आराम कर लेते हैं, तू भी सो जा”, ये कहते हुए मैंने बैग से चद्दर निकालकर फर्श पर बिछा दी | बैग को सिरहाने लगाकर दोनों लेट गये और दूसरी चद्दर जो उसके बैग में थी उसको ओढ़ लिया | ट्रेनों के आने – जाने की एनाउंसमेंट हो रहे थे और ऐसे माहौल में भी मैं सोने की कोशिश कर रहा था | लेकिन मनीष मुझे बातों में उलझाने की कोशिश में था क्योंकि उसको तो नींद आने वाली थी नहीं | थोड़ी देर में मुझे नींद आ गयी |

“अरे उठ यार, सोता ही रहेगा क्या जब देखो, सुन ये अपनी ट्रेन की एनाउंसमेंट है ना”, मेरे हाथ को हिलाते हुए मनीष ने जगाया मुझे | मैंने ध्यान से सुना, “हाँ यार ये तो अपनी ही कालका वाली ट्रेन है !” माथे पर शिकन लाते हुए मैंने पुष्ठी की | “सोते ही रह जायेंगे यहीं, फटाफट चल, दिल्ली का रेलवे स्टेशन है ये, अभी तो प्लेटफार्म भी ढूँढना है”, मुझे डांटते हुए मनीष बोला | हम जल्दी से चद्दर समेटकर यहाँ से पैक-उप करके प्लेटफार्म की तरफ दौड़े | पांच – सात मिनट में हम प्लेटफार्म पर पहुँच गये, जहाँ कालका शताब्दी स्पेशल ट्रेन हमारे इंतजार में खड़ी थी |

हमने C7 कोच ढूंढा और तपाक से अंदर घुस गये | “अरे यार गजब की ट्रेन बुक करवाई है तुमने तो, ऐसे लगता है कि अपन लोग वी आई पी हो गये है, क्या गजब की लक्ज़री ट्रेन है”, अंदर घुसते ही मनीष बोला | “अभी तो सीट देख अपनी, विंडो वाली है, सफ़र का मजा और बढ़ जायेगा”, इतराते हुए मैंने कहा | “वो रही अपनी सीट, आ जा और हाँ विंडो तो भाई की ही होगी तू बाजु में बैठेगा”, कहते हुए वो लपक के सीट पर बैठ गया | मैंने दोनों बैग ऊपर रख दिए और अपना छोटे वाला ट्रैवेल बैग निकाल कर अपनी सीट पर बैठ गया | अब इतनी शानदार ट्रेन में दोनों पहली बार बैठे हैं तो सेल्फियों के दौर का शुरू होना तो लाज़िमी था |

ट्रेन ने हॉर्न बजा दिया और धीरे – धीरे कालका की तरफ़ बढने लगी | कोच में अधिकतर यात्री शिमला और चंडीगढ़ घुमने वाले ही थे | कुछ परिवार के साथ छुट्टियाँ मनाने जा रहे थे तो कुछ नवविवाहित जोड़े अपनी जिंदगी में और एक हसीं लम्हें को जोड़ने हिमालय की वादियों में जा रहे थे | इनको देखकर किंचित मेरा मन भी भाव विभोर हो रहा था कि शायद मेरे हिस्से भी ये लम्हें आयेंगे कभी, बहरहाल अभी तो हम दोनों ही श्रेणी के यात्री नहीं थे, मैं अपनी शिमला जाने की जिद्द पर आया हूँ तो वो अपनी आबो – हवा बदलने के लिए | हमारी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था | सफ़र इतना सुहाना लग रहा है कि बस ये जिंदगी यूँ ही सफ़र में चलती रहे, इस हसीं सफ़र का सिलसिला कभी खत्म न हो | बस एक प्रार्थना कर रहा था इश्वर से कि कालका – शिमला वाली टॉय ट्रेन की टिकट कन्फर्म हो जाये जो वेटिंग में चल रही थी, पता नहीं क्यों मुझे उम्मीद थी कि ऐसा हो जायेगा |

हमारी हँसी – ठिठोली चल रही थी फिर मैंने बैग से मेरे बेस्ट फ्रेंड JBL ब्लूटूथ स्पीकर को निकाल कर सामने रख लिया और थोड़े बिस्किट – सनैक्स भी निकाले | सामने अंग्रेजी अख़बार पड़ा दिखा, तो उसमे सुडूको देखा और उसको भरने लगा | इअर फ़ोन का एक स्पीकर मेरे कान में तो दूसरा मनीष के कान में लगा था और दोनों गानों का लुफ्त उठा रहे थे | “ये देख कोई मेसेज आया है ट्रेन से सम्बन्धित”, मोबाइल में हाथ में थमाते हुए मनीष बोला | “अरे यार ये तो चमत्कार हो गया, ये कालका – शिमला वाली ट्रेन की टिकट के कन्फर्मेशन का लगता है”, मैं खुश होते हुए बोला | “तो क्या अपनी टिकट कन्फर्म हो गयी आगे की !” उत्सुकतापूर्वक मनीष ने पूछा | हम दोनों को ही ट्रेन के बारे में कोई विशेष ज्ञान नहीं था तो दोनों ही इस असमंजस में थे कि क्या हमारी टिकट कन्फर्म हो गयी | मैंने एक दोस्त को कॉल करके अपनी दुविधा साझा की और उसने कहा “बधाई हो भाई, टिकट कन्फर्म हो गयी आपकी, आराम से घुमियों शिमले की वादियों में |” इतना सुनकर हम दोनों ख़ुशी से उछल पड़े, आज तो ईश्वर ने प्रार्थना स्वीकार कर ली | शायद नियति को भी ये ही मंजूर था की हमारा ये सफ़र एक यादगार लम्हा बन जाये जिंदगी का ताकि जब भी कभी अतीत के पन्नों में झांककर देखे, तो खुशियों के ये मंजर दृष्टिपटल पर जीवित हो उठे | हम दोनों एकदूसरे को ऐसे बधाई दे रहे थे मानो हमने UPSC में सलेक्शन ले लिया हो रहा | किस्मत का ऐसा साथ देखकर अब मन में बिलकुल भी मलाल नहीं था कि मनीष बिना घर पर बताये शिमला जा रहा है |

चंडीगढ़ आया तो मैंने विंडो से इशारा करते हुए मनीष को चंडीगढ़ का रेलवे स्टेशन दिखाया और बताया कि मैं दो बार आ चूका हूँ यहाँ, बहुत खूबसूरत शहर है | “एक बात बताउं भाई, मेरा चंडीगढ़ घुमने का भी बहुत मन कर रहा है”, उत्सुकतापूर्वक मनीष बोला | “हाँ आते वक़्त समय रहा तो जरुर ये इच्छा भी पूरी हो जाएगी ब्रो, बस अब थोड़ी देर में कालका स्टेशन आ आने वाला है”, मुस्कुराते हुए मैंने कहा |

लगभग आधे घंटे में कालका रेलवे स्टेशन पहुँच गये, हम तुरंत हमारी टॉय ट्रेन की तरफ दौड़े, उसकी रवानगी का समय हो रहा था | ट्रेन के पास छोटी – छोटी दो कतारें लगी थी, सबका तापमान चेक करके ट्रेन में बैठाया जा रहा था | हमारी बारी आई और फिर हम ट्रेन में आकर बैठ गये, देखा ट्रेन सारी खाली पड़ी है | सस्ती टिकट होने के चक्कर में लोग यात्रा रद्द हो जाने पर भी अपनी टिकट कैंसल नही करवाते, ये तो गलत बात है, आप नहीं जा रहे तो प्रतीक्षा में लगे हुए लोगों को मौका दो भाई, आख़िर हमें भी तो ऐसे ही मौका मिला है मेरी सपनों की ट्रेन में बैठने का | टॉय ट्रेन शिमला का एक प्रमुख आकर्षण है जो आपकी यात्रा को और भी खुबसूरत बना देती है | हमने ट्रेन के पास बहुत सारी फ़ोटो खींची, कभी सेल्फी तो कभी पोट्रेट | टॉय ट्रेन में बैठकर शिमला जाना मानों सपने के सच होने जैसा था | कोच खाली होने का ये फायदा था की दोनों को ही विंडो सीट मिल गयी | यहाँ से हमारा वादियों का सफ़र शुरू होने वाला है, अब शिमला दूर नहीं है, “हम आ रहे हैं शिमला |”

वादियों का सफ़र

“अरे अभी तो सफ़र काफ़ी लम्बा पड़ा है, आगे खिंच लेना और फोटो, ऊर्जा बचा के रख देख गाड़ी चलने वाली है अंदर आजा”, खिड़की से झांकते हुए मैंने मनीष को आवाज़ लगाई, बड़े उत्साहपूर्वक कालका स्टेशन के मंजर को मोबाइल में कैद करने में लगा हुआ था | “आया ब्रो, गाड़ी को रोककर रखना तू”, कहते हुए वापस अपनी धुन में लग गया | “ब्रो गाड़ी चलने लग गयी है, और तू सिमरन भी नहीं है कि चलती ट्रेन में मैं तेरा हाथ पकड़कर चढा लूँगा, आजा फटाफट”, मजाक करते हुए मैंने बोला | ट्रेन ने लम्बा हॉर्न दिया और मनीष ब्रो तुरंत गाड़ी में आ गया | “देख मैं गाड़ी चलने के विपरीत दिशा में नहीं बैठूँगा, इसलिए सामने वाली विंडो सीट पर तू बैठ जा और खिड़की से वादियों का लुफ्त उठा”, मैनें सीट की तरफ इशारा करते हुए उसको कहा | “भाई इस सीट पर तो हमारी बैग ही बैठेगी, हम तो दरवाजे में खड़े होकर वादियों को निहारने वाले हैं”, अपनी बैग रखते हुए मनीष बोला | थोड़ी देर बाद वैसे मुझे भी दरवाज़े पर ही जाना था बस गाड़ी थोड़ी चढाई में आ जाए | जैसे ही गाड़ी स्टेशन से चली पीछे वाले कोच में बैठे दिल्ली से आया पांच – सात दोस्तों एक ग्रुप जोर से चिल्लाते हुए सफ़र का आगाज़ करने लगा | ख़ुशी ज़ाहिर करने का अपना तरीका है भई, वैसे भी जब हिमालय में आप आये हो तो इस दुनियादारी को भुलाकर नादानियों का दामन थाम लेना आपकी ख़ुशी में चार चाँद लगा देता है |

मैंने भी इअर फ़ोन लगाए और मोबाइल में अपनी स्पेशल प्लेलिस्ट जो की मैंने दस पहले ही बना ली थी, को शुरू कर दिया, “वादियाँ मेरा दामन, रास्ते मेरी बाँहें” शिमला की वादियों का सफ़र और उस पर शहंशाह – ए – तरन्नुम मोहम्मद रफ़ी की तिलिस्मी आवाज़, मेरे सफ़र को और सुहाना बना रही थी | मंजिल और भी खुबसुरत हो जाती है जब सफ़र को हसीं बना दिया जाये | पिछली बार शिमला आया था तब कई बातें अधूरी रह गयी थी वो सब इस बार पूरी कर दूंगा, यही ख्याल लेकर दुबारा शिमला आया हूँ | पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि मेरा कोई तो राबता है हिमालय के आँचल में बसे इन गाँवों से, क्यों मुझे से बरबस अपनी और खिंचते हैं | “तू कहीं और भी तो जा सकता हूँ फिर दुबारा शिमला ही क्यों !” मनीष के इस सवाल के जवाब में केवल इतना ही कह पाया कि बस मेरा दिल भरा नहीं अभी शिमले से, ये वादियाँ मुझे अपने घर जैसी लगती हैं, मानों ये मुझसे कह रही है कि आख़िर घर आ गया तू |

बात ही कुछ ऐसी है हिमालय की रानी शिमला की, ब्रिटिश हुकुमत में गौरों ने भी गर्मी के दिनों का ठिकाना शिमला को ही बना रखा था | ये रेलवे ट्रेक भी ब्रिटिशराज की दास्तां को अपने में समेटे हुए आज भी हिमालय की वादियों में अपनी बाहें फैलाये सैलानियों की सैर को बेहतरीन बना रहा है | यूनेस्को ने इस ट्रेक को विश्व धरोहर में शामिल करके इसकी शान को और बढ़ा दिया है | ख्वाहिश तो ये भी थी कि बर्फबारी में हिमालय जब सफेद चद्दर ओढ़ ले और मैं इस गाड़ी से बस उसको निहारता जाऊं लेकिन अभी मेरी ये ख्वाहिश ख्यालों तक ही सिमित रह गयी | अक्सर जनवरी के शुरुआत में आप इस नायाब सपने को हकीक़त में जीने का लुफ़्त उठा सकते हो, मैं थोडा जल्दी ही आ गया |

गाड़ी अब चढाई में आ गयी यहाँ से नज़ारों का भरपूर आनन्द लिया जाना चाहिए और मुझे भी अब दरवाज़े पर जाना होगा | “थोड़ी जगह दे दे मुझे, तेरे पास खड़ा हो जाऊं मैं”, गुनगुनाते हुए मैं मनीष के पास जाकर गाड़ी के दरवाजे में खड़ा हो गया | ट्रेन के समान्तर घुमावदार सड़क पर दौड़ती गाड़ियाँ, अनन्त तक फैला विशाल हिमालय ही हिमालय, रास्ते में गाड़ी को देखकर टाटा करते हुए बच्चे यकायक ध्यान को आकर्षित कर लेते हैं | गाड़ी को देखकर उन बच्चों के चहरे की उस मासूम ख़ुशी को भुला देना सहज नहीं, वो नि:स्वार्थ, निश्छल मुस्कान आज भी मेरे ध्यान को उन वादियों में बरबस खींच ले जाती है |

सैंकड़ो छोटी बड़ी अँधेरी सुरंगों से निकलकर, पहाड़ों की वादियों में अपने हौर्न का नाद करते हुए गाड़ी जैसे – जैसे आगे बढ़ रही थी मेरा मन बस पहाड़ों की इन वादियों में रमता जा रहा था | यकायक एक बड़ा ही हास्यास्पद मंजर देखने को मिला, बाहर एक आदमी गाड़ी के आगे हाथ का इशारा करता है और चलती गाड़ी में हमारे वाले कोच जो कि पहला कोच ही था गाड़ी का, दरवाजे पर लगे डंडे के सहारे चढ़ आया इस नज़ारे को देखकर हम दोनों की हँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी कि अब तक तो सोशल मिडिया पर ऐसे “मीम” ही देखें थे कि लोग चलती ट्रेन के आगे हाथ देकर चढ़ जाते हैं, यहाँ तो सारी घटना साक्षात् देखने को मिल गयी | आज भी जब इस बात को याद करता हूँ तो हँसने लगता हूँ | जब कभी भी मनीष से फ़ोन पर बात होती है और शिमला का जिक्र हो तो इस फलसफे का जिक्र हुए बिना नहीं रहता |

इस दौरान सफ़र को तस्वीरों के रूप में मोबाइल में कैद कर लिया | रास्ते में कई सारे छोटे – बड़े स्टेशनों से गुजर कर गाड़ी बरोग (बड़ोग) स्टेशन पर आ पहुंची | गाड़ी को रोककर चालक बंदु भी उतर आया | “भैया कितनी देर रुकेगी यहाँ”, आवाज़ लगते हुए मैं गाड़ी से उतर आया | “चाय – नाश्ता कर लो आराम से, पन्द्रह – बीस मिनट यहीं रुकेंगे”, बड़े ही सहज भाव से उन्होंने कहा | इन पहाड़ियों के लहजे की सरलता और बोली में मिठास को महसूस किया मैंने | “क्या बोला, कितनी देर रुकेगी यहाँ”, पूछता हुआ मनीष भी पास आ गया | “ब्रो खायेंगे, पियेंगे और मौज उड़ायेंगे इस स्टेशन पर, इतनी देर रुकेगी, चल पहले कुछ फोटो ले ली जाए फिर थोड़ी पेट – पूजा करेंगे”, ये कहते हुए मैंने मोबाइल का केमरा चालू कर लिया | ये स्टेशन पुरे सफ़र का सबसे खूबसूरत स्टेशन लगा मुझे, यहाँ के स्टेशनों पर ब्रिटिशकाल की झलक आसानी से देखी जा सकती है | प्रकृति के आँचल में बने ये अनोखे और खूबसूरत स्थानों पर घुमने का मजा तो इस गाड़ी से ही लिया जा सकता है | ये गाड़ी यहाँ का सबसे सस्ता और खूबसूरत साधन है जो आपके सफ़र को मज़ेदार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती | यहाँ लगभग आधे घंटे तक ये गाड़ी रुकी, इस बीच हमने हल्का नाश्ता भी कर लिया और खूब सारी फोटो भी इकट्ठी कर ली | दोपहर का शाम से मिलन हो रहा है और सर्दी भी लगने लगी, तो सर पर मफ़लर बांध लिया, क्योंकि जुकाम को न्योता देकर मैं अपने सफ़र के मजे को किरकरा नहीं करना चाहता था | अभी यहाँ से लगभग दो से अढाई घन्टे और लगने थे शिमला पहुँचने में |

साढ़े तीन होते – होते गाड़ी कंडाघाट स्टेशन पर पहुंची, यहाँ पर भी काफ़ी समय रुकी गाड़ी फिर आगे बढ़ी | धीरे – धीरे सूरज ढल रहा है और आसमान में लालिमा छाने लगी | ऊँचे देवदारों के पेड़ों के बीच से सूरज की आती स्वर्ण किरणें इस शाम की ख़ूबसूरती को सूफ़ियाना बना रही है | दिन अब शाम के आग़ोश से निकलकर रात के आँचल में जाने को अग्रसर है, आसमान में पंछी अपने घोंसलों की ओर लौट रहें हैं, रास्ते में छोटे – छोटे समूहों में अपने घरों को प्रस्थान करते लोग |

घुमावदार रास्तों से नाद करती हुई हमारी गाड़ी अब मंजिल के करीब आ पहुंची है | पहाड़ो की ढलानों में बने घर रौशनी से जगमगाने लगे हैं, मानों दिवाली आ गयी हो और दूर तक दीयों की तरह टिमटिमाती रौशनी दिखाई देने लगी | धीरे – धीरे अँधेरा घाटियों से उतरकर घनी वादियों को अपने आग़ोश में भरने लगा है | मैं सीट पर बैठा खिड़की में अपने हाथ पर ठुडी को समाये इस मंजर को अपनी आँखों में उतार रहा हूँ | अब केवल घरों में जलते बल्ब और अँधेरा ही दिखाई पड़ रहा है और ट्रेन की चलने की आवाज़ें ऊँची होने लगी है मानों अब ये मुझे अलविदा कह रही है और बता रही है कि तुम्हारे जैसे ऱोज कितने ही लोग अपने सपनों को जीने मेरे साथ सफ़र करते हुए मुझे अपनी यादों में बसाकर आगे चले जाते हैं, ऱोज सैंकड़ो मुसाफ़िरों की हमसफ़र बनती हूँ और शाम होते – होते फिर तन्हां रह जाती हूँ इस उम्मीद में कि कल कोई और आयेगा अपनी ख्वाहिशों को जीने, और अगले दिन फिर उसी जोश के साथ बन जाती हूँ फिर किसी की हमसफ़र | ढ़लती शाम और अँधेरे के बीच हम पहुँच गये शिमला और आज तो क्रिसमस की रात है, इस रात को यादगार बनाने का सफ़र अब शुरू होता है |

क्रिसमस की रात

गाड़ी शिमला के रेलवे स्टेशन पर पहुँच गयी सभी यात्री उतरकर प्लेटफार्म से बाहर जा रहें हैं लेकिन हमें जल्दी नहीं है बाहर जाने कि और वैसे भी हमने कोई होटल भी तो बुक नहीं करवा रखा था, अभी तो उसके लिए भी ख़ूब भटकना पड़ेगा, क्रिसमस का सीजन जो चल रहा है, होटल के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी हमें | बिना इस बात की परवाह किये हम दोनों प्लेटफार्म पर लगी रेलिंग के पास खड़े थे और वहां से हिमालय की रानी शिमला के उन नयनाभिराम मनोरम दृश्यों से, बरसों से इस मंजर की प्यासी आँखों की प्यास को बुझा रहें थे |

“घरों में जलती लाइट को देख कर ऐसा लगता है कि मानों दिवाली है आज, देख कैसे जगमगा रहा है हिमालय”, आँखों में एक चमक लिए इस मंजर को निहारते हुए मैंने मनीष से कहा | “भाई मुझे तो अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि मैं शिमला में हूँ इस वक्त, मेरे लिए तो ये एक सपने जैसा है”, मुस्कुराते हुए उसने मुझसे कहा | हम दोनों इस खूबसूरत मंजर को देखने में व्यस्त थे कि एक ट्रेन प्लेटफार्म पर धीमी गति से गुजर रही थी फिर क्या था बचपन के दिन याद आ गये और हम दोनों दौड़कर उस गाड़ी में चढ़ गये मनीष पहले दरवाजे में चढ़ गया और बन गया मनीष से राज और मेरी तरफ़ हाथ बढ़ाकर चिल्लाने लगा “भाग सिमरन भाग, बाबूजी आ जायेंगे”, हहाहहहा अगर कोई तीसरा होता तो आज क्या कमाल क्या शानदार स्लो मोशन वीडियो बनता | हम दोनों धीरे – धीरे चलती उस गाड़ी बचपन की तरह नादानियोँ कर रहे थे कि किसी अफ़सर को आते देख उतर गये और चल पड़े निकास की तरफ़ |

“ट्रेन में तो मजे ले लिए बस अब जल्दी से कोई कमरा मिल जाये तो मॉल रोड पर जाना है ब्रो, आज की रात हाथ से निकलनी नहीं चाहिए”, मनीष से रास्ते में चलते हुए बतिया रहा था | अब दोनों इधर – उधर भटक रहें हैं कि कोई होटल-कमरा कुछ मिल जाए, आसान नहीं है इस सीजन में तो पहले से ही बुकिंग करवानी पड़ती है | तकरीबन 20 मिनट हो गये ऐसे भटकते हुए, कभी ऊपर चढ़ो – कभी नीचे उतरों, पहाड़ों के ढलानों वाले रास्ते हमे थकाने लगे | “चल यार मनीष चाय पीते हैं उस दुकान, उसी से पूछते है कोई डोरमेट्री मिल जाएगी शायद”, एक दुकान की तरफ़ इशारा करते हुए मैंने कहा | “भाई साब लो चाय पिला दो, काफी ठण्ड हो गयी, बर्फ पड़ने की सम्भावना है क्या ?”, वार्तालाप को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने चाय वाले भाई से कहा | “दो चाय बनाना, हाँ वैसे ऊपर वाले इलाके में थोड़ी – थोड़ी होने लगी है तो यहाँ भी होने की सम्भावना है, चाय के साथ और कुछ लोगे ?”, बड़ी सहजता से उन्होंने पूछा | “चाय ही पिला दो, वैसे भी खाने का टाइम हो गया, कोई होटल या डोरमेट्री मिल जाए तो बात बन जाये, है क्या आपकी नजर में कोई ?” बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा | उन्होंने कॉल करके एक डोरमेट्री वाले बन्दे को बुला दिया, फिर वहां से चाय पीकर और एक पानी की बोतल भरवाकर हम डोरमेट्री देखने चल पड़े जो की थोड़ी नीचे की तरफ थी |

“देखो बाबूजी ये है अपनी छोटी – सी जगह, दस बिस्तर है अपने पास, अभी एक भी बुक नहीं हुआ है, सीजन चल रहा है दो घंटे तक सारे बुक हो जायेंगे, आपको किसी तरह की समस्या नहीं होगी यहाँ, ओढने के लिए कम्बल मिल जाएगी नहाने के लिए गर्म पानी”, एक ही बार में अपनी बात खत्म करते हुए अंकल ने हमसे कहा | हमने भी सोचा चलो वैसे भी केवल रैन-बसेरा ही तो करना है, बाकि दिन में तो बाहर ही घूमना है | डोरमेट्री को बुक करवाकर हम खाने के लिए वापस ऊपर आ गये |

पहले का अनुभव था इसलिए हल्के खाने के तौर पर दाल – रोटी और दही ही लिया खाने में ताकि शरीर का संतुलन बना रहे | फिर यहाँ से सीधे निकल पड़े मॉल रोड के लिए कोविड की वजह से देर रात तक घूमने पर भी मनाही थी | मॉल रोड पर पहुंचे तो वहां की रंगत देखकर रस्ते की सारी थकान भूल गये | “गजब ब्रो क्या मस्त जगह है यार कसम से मज़ा आ गया”, कहते हुए मनीष का चेहरा खिलखिला उठा | वहां पहुँच कर सबसे पहले तो उस जगह फोटो खिंचवायी जहाँ पिछली बार आइसक्रीम खाते हुए खींची थी | बहुत ही दिलकश नज़ारा था यहाँ का, मेरा मन पिछली बार जो देखा उसको आज से तुलना करने लगा कि क्या कुछ बदला | रात को यहाँ से पहाड़ों का दृश्य अद्भुत और अनुपम है | ये मनुष्य की इच्छाशक्ति और प्रकृति के असीम स्नेह का एक ख़ूबसूरत संयोग है कि इन दुर्गम पहाड़ों में भी जीवन सामान्य की भांति फल – फूल रहा है |

क्रिसमस की रात के साथ – साथ आज भारत माँ के बेटे श्री अटल जी की जयंती भी है आज, यहाँ पर वाजपेयी जी की मूर्ति बनी हुई है जहाँ पर कई लोग इक्कठे हो रखे हैं | बहुत हर्षोल्लास के साथ वाजपेयी जी का जन्मदिन मनाया जा रहा है, फूलों और रंग बिरंगी लाइट की सजावट हर किसी के लिए फोटो पॉइंट बना हुआ था | रेलिंग को फूलों की माला से से सजाया हुआ था जहाँ पर लोग इंतजार कर रहे थे फोटो खिचवाने के लिए अपनी बारी का, जिनमे हम भी एक थे | दिसम्बर महीना अंतिम चरण पर था इसलिए सर्दी भी अपने चरम की और अग्रसर थी | सर्दी का पूरी तरह से बन्दोबस्त किया हुआ था हम दोनों ने | “एक काम तुमने बहुत बढ़िया किया है ब्रो, ये स्क्रीन टच वाले दस्ताने ला कर, नहीं तो इतनी ठंड में फोटो खींचने के लिए बार – बार इनको उतराने में बड़ी दिक्कत होती”, उसकी फोटो खींचते हुए मैंने मजाक में बोला | “अरे ब्रो, मुझे मालूम था पहले से ही की इनकी बहुत जरूरत पड़ेगी”, अब इतराना तो उसका लाज़िमी था ही | यहाँ से आगे बढ़े यहाँ के मशहूर क्राइस्ट चर्च की ओर जहाँ पर सबसे ज्यादा भीड़ लगी हुई थी |

चर्च को दुल्हन की तरह सजाया हुआ था, लेकिन कोरोना की वजह से अंदर जाने की अनुमति नहीं थी | सभी लोग बाहर से ही यहाँ का लुफ्त उठा रहे हैं, अब तो हम भी भीड़ का एक हिस्सा हैं | कभी खुद को तो कभी चर्च को हम मोबाइल में कैद करने लगे | यहाँ पर काफी समय बिताया | यहाँ की फ़ोटोबाज़ी खत्म करके हम चर्च के बाजु से ऊपर की तरफ चले गये जहाँ से पूरी मॉल रोड का नज़ारा देखा जा सकता है | शान से हिमालय की वादियों में लहराता देश का तिरंगा मॉल रोड की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा रहा है |

  • देर रात तक यहाँ रुकने की अनुमति नहीं होने के कारण अब यहाँ से लौटने का समय होने लगा था | हम दोनों मजे करते हुए वापस लौट रहे थे की अचानक पान की दुकान पर नज़र पड़ी, पान की पेशकश बहुत ही अच्छे ढंग से की जा रही थी | “क्यों न एक – एक पान खाया जाए”, मनीष ने प्रस्ताव दिया | पान इतना स्वादिष्ट था कि फिर हमने एक की जगह दो – दो पान खाये | पान मुहँ में रखकर हम वापस नीचे की तरफ लौट आये | दाद देनी पड़ेगी मनीष की यादास्त की वाकई में वो जिस रस्ते से एक बार गुजर जाता है उसको भूलता नहीं और एक मैं हूँ जो दूसरी बार यहाँ आ रहा हूँ फिर भी रस्ते याद नहीं रहते, इसी बात पर हँसी – ठिठोली करते हुए हम अपनी डोरमेट्री पर पहुँच गये |

“घूम आये बाबूजी मॉल रोड, कैसी लगी”, कमरे में हमारा अभिवादन किया डोरमेट्री वाले चाचा ने |

“बहुत अच्छी जगह है अंकल जी, सारे बेड बुक हो गये आपके”, बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कहा |

“हां जी सर, सीजन का टाइम है तो हो ही जाते है, बाकि रोज – रोज तो ऐसा होता नहीं”, बड़ी शालीनता से, बीड़ी का सुट्टा लगाते हुए अंकल ने कहा |

“अच्छा अंकल जी, यहाँ बर्फ कब पड़ने के आसार है, कोई सम्भावना है क्या ?” मैंने उत्सुकता से पूछा |

“बाबूजी ऊपर की तरफ तो पड़ने लगी थोड़ी – थोड़ी, यहाँ भी

3-4 रोज में पड़ने लग जाएगी, पिछली साल बहुत बर्फ थी यहाँ भी, मोबाइल में दिखाता हूँ आपको |”

हमने मोबाइल में पिछली साल की कई तस्वीर देखी, जिनको देखकर मैंने मनीष से कहा कि यार काश कल ऐसा ही देखने को मिले हमें भी |

“तो बाबूजी कल कहाँ घुमने का विचार है आपका, यहीं आसपास ही या कहीं दूर ?”,अंकल ने पूछा ताकि वो ये पहचान सके कि कल भी यहाँ रुकेंगे ये लोग या चले जायेंगे |

“पिछली बार आया था तो दूर – दूर घूम लिया था केवल शिमला ही बाकि रह गया था इसलिए इस बार तो शिमला में ही घुमने का विचार है अंकल जी, सोच तो रहे हैं कि कल जाखू टेम्पल और लकड़बाजार घुमा लिया जाए |”, अब तक मैं अपनी रजाई में पहुँच चूका और वहीँ से वार्तालाप चल रहा था |

ऐसे ही बातें करते – करते मैं और मनीष फिर मोबाइल में आज खींची गयी सारी तस्वीरें देखने में व्यस्त हो गये | कल सुबह जाखू के बजरंग बली के दर्शन की योजना बनाकर हम अपने अपने मोबाइल में खो गये | दिनभर सफ़र की थकान थी लेकिन उत्साह ऐसा कि अभी नींद भी नहीं आ रही | मोबाइल में सुबह का अलार्म लगा कर सोने की कोशिश करने लगा, कल के प्लान को सोचने लगा और धीरे – धीरे पता नहीं चला कब आँख लग गयी |

जाखू के वीर हनुमान

अलार्म बजा, नींद टूटी आदतन अलार्म काटकर फिर से सोने लगा, और वापस सपने को याद करने लगा | कितना अच्छा सपना था, जब भी घर से इतनी दूरी होती है, माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है | “कितना सोयेगा यार, अलार्म भी बज गया, उठ जा अब तो”, मनीष बडबडाया | वो अपने मोबाइल में लगा हुआ था, काफी जल्दी उठ गया था | “क्या आधी आँख खोलकर देख रहा है, अभी वाशरूम खाली है, हो आ तू चलना भी तो है फिर”, डांटते हुए उसने कहा | “लो बाबूजी गर्म पानी, दूसरी बाल्टी में खाली करके ये बाल्टी वापस दे दो ताकि इसमें और हो जाये गर्म पानी”, हाथ में बाल्टी लटकाए हुए अंकल आये अंर | डोरमेट्री के अपने संघर्ष हैं |

तकरीबन साढ़े नौ बजे हम यहाँ से निकल गये | आज केवल जाखू मन्दिर और लकड़बाज़ार ही घूमना है तो समय काफी था हमारे पास, इसलिए हमने तय किया कि पैदल ही चलेंगे जाखू | चाय पीने और शुक्रिया अदा करने वापस उसी दुकान पर आये जहाँ से कल रात हमें ये डोरमेट्री मिली थी | चाय पीकर ऊपर माल रोड की तरफ बढ़े, सीढियों में लगे बाज़ार और छोटी – छोटी दुकानों के खुलने का समय हो रहा था, कुछ पर ग्राहक थे तो कई अभी खोली जा रही थी | एक घड़ी – चश्में की दूकान पर हम रुक गये और एक चश्मा खरीद लिया जो कि आगे फोटोशूट में बड़ा काम आने वाला था | यहाँ से आगे बढ़े तो और एक दुकान पर मास्क देखकर रुक गये, “मास्क लेते हैं यार, N-95 से परेशान हो गया” हम दोनों अपनी राजस्थानी भाषा में बाते कर रहे थे कि दुकान वाले भाई साब बोले, “आप, शेखावाटी से आये हो क्या ?”

“हाँ भाई साब, आपको मारवाड़ी आती है !”, मुस्काते हुए मैंने कहा |

“शेखावाटी में कहाँ से आये हो, नीमकाथाना जानते हो क्या”, वो बोले

“हाँ जानते हैं, पास ही है, आप कैसे जानते हो”, ताजुब करते हुए मपूछा मैंने

“फिर तो खंडेला भी जानते होंगे, मैं वही का ही हूँ”, मुस्काते हुए वो बोले

हंसते हुए कहा मैंन, “खंडेला वाली भाषा बोलकर बताओ, आप तो हिंदी बोल रहे हो”

मुस्कुराते हुए वो बोले, “बठ्या को ही छुं मैं” (और हम तीनों हँसने लगे)

“मेरा गाँव और इसका ननिहाल खंडेला ही है”, मनीष बोला

उनसे काफी देर बात हुई हमारी, उन्होंने चाय-पानी के लिए कहा और बोला कि रूम आदि की समस्या हो तो बताये दूसरे की व्यवस्था कर देंगे | उनको साधुवाद कर शाम को आते वक़्त मिलने का कहकर आगे चल पड़े | अच्छा लगा जब बाहर देश में अपने गाँव का कोई मिलता है तो, साथ ही में हँसी मजाक के लिए एक टॉपिक भी मिल गया | “भाई शिमला में तुझे मामा और मुझे काका मिल गया”, मजाक करते हुए मनीष बोला और हम दोनों जोर से ठहाके लगाने लगे |

शिमला के बाज़ार को देखकर लग रहा था कि जैसे मेले में आ गया हूँ | कई छोटी – बड़ी दुकाने ज्यादातर कपड़ों की थी | बाज़ार की उन गलियों में हम एक दुसरे की फोटो क्लिक करते हुए और स्थानीय लोगों से जाखू मन्दिर का रास्ता पूछते हुए आगे बढ़ रहे थे | देखा कि सामने से एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपनी पीठ पर बहुत सारी प्लास्टिक की केरेट को लादे हुए बहुत ही आराम से आ रहा था, इस नजारे को देखकर हम दंग रह गये कि इनती उम्र का आदमी और इतना वजन उठा रहा है, हम लोग तो इसका चौथा हिस्सा भी उठाये तो पसीने छूट जाए | वाकई में पहाड़ी लोग बहुत मेहनती होते हैं इसका उदाहरण मिल गया था मुझे और ये तो अभी शुरुआत थी आगे भी ऐसे कई लोग दिखे, सलाम है इनको |

रास्ते में जहाँ भी अच्छी जगह दिखी वहां पर इत्मीनान से तस्वीरें खींची आख़िर पैदल आने का मकसद भी तो यही था जिसका कि हम भरपूर लाभ उठा रहे थे | रास्ते में एक अच्छा मकान देखकर रुक गये, मनीष तपाक से अंदर चला गया | “अरे क्या कर रहा है”, ताजुब करते हुए मैंने पूछा | “भाई फोटो खींच ले मेरी इसकी सीढियों से उतरते हुए की, ताकि मैं ये कह सकू की इस होटल में रुके थे हम, डोरमेट्री के बारे में थोड़ी ना लोगों को बतायेंगे”, हंसते हुए वो बोला |

फिर क्या था अंदर का फोटोग्राफ़र और बच्चा दोनों जग गये | उस मकान के सामने हमने तस्वीरें खींची | रास्ते में कई जगह हमने खूब सारी तस्वीरें खींची कभी मकानों के आगे तो कभी किसी की कार के आगे, कभी बंदरो के साथ तो कभी सड़क से लगी रेलिंग के सहारे | बस ऐसे ही हंसते – खेलते हम जाखू मन्दिर के पास पहुँच गये | सामने चाय वाली दूकान को देखकर चाय की तलब लगी साथ ही में आलू – टिकिया का भी आनन्द उठाया | थोड़ी दूर नज़र घुमाई तो एक पाईप से पानी गिरता दिखा शायद टू – वेल का पाईप था, हाथ – मुंह धोने चले गये | वहां जाकर देखा तो शानदार जगह लगी, फिर क्या था आधे घंटे तक तस्वीरों और स्लो – मोशन का सिलसला चलता रहा |

फिर यहाँ से निपटकर मन्दिर की सुध ली | सीढियों से होते हुए हम मन्दिर के परिसर में आ गये | दूर से दिखाई पड़ने वाली हिमालय की वादियों में बनी हनुमान जी की ये मूर्ति लगभग 100 फीट की जान पडती है | मन्दिर परिसर में कई लोग घूम रहे थे, हर कोई अपनों के साथ इस भव्य मंदिर में अपने जीवन के पलों का आनन्द लेने में व्यस्त था | स्थानीय मान्यता है कि जब हनुमान जी हिमालय से संजीवन बूटी लेने आये थे तब यहाँ विश्राम किया था | अगर आप शिमला आओ तो जाखू मन्दिर जरुर आना, मन को शांत करने वाला यहाँ का वातावारण आपको मन्त्र मुग्ध कर देगा | हमने मंदिर परिसर में कई तस्वीरें खींची जैसा कि हम करते आ रहे थे अब तक, कभी हनुमान जी की तो कभी वादियों की |

पिछली बार मेरा शिमला आकर भी जाखू मंदिर नहीं आने का मलाल इस बार सबसे पहले यहीं आकर दूर हो गया और मन ही मन हनुमान जी से जल्दी ही दुबारा मुलाकात का वादा भी कर आया | यहाँ काफी समय बिताया हम लोगो ने अब लौटने का समय हो गया | यहाँ से हमे अब लकड़बाज़ार जाना था | लकड़बाज़ार शिमला की एक बेहतरीन जगह है जहाँ पर घुमने और खरीददारी करने लगभग सभी सैलानी आते हैं |

हम मन्दिर से नीचे उतर आये और शाम होते-होते लकड़बाज़ार पहुँच गये | जैसा कि नाम से ही पता चल रहा इस बाज़ार में हस्तशिल्प की वस्तुएं बहुत मिलती है | हमने भी निशानी के तौर पर कुछ की-चैन और की-होल्डर खरीद लिए जो कि आसानी से हमारी बैग में रखे जा सकते थे | बड़े इत्मिनान से बाज़ार में घुमे | धीरे – धीरे शाम ढलने लगी और अँधेरा होने लगा, फिर से दिवाली की तरह हिमालय की वादियाँ जगमग हो उठी |

बाज़ार से निकल कर हम मॉल रोड आ गये, यहाँ से नीचे उतरने लगे | नीचे लगा बाज़ार भी अब धीरे – धीरे मंगल हो रहा था | मैंने बाज़ार से कुछ कपड़े और स्वेटर खरीदे, शाम का समय था तो थोड़ी बारगेनिंग भी हो रही थी | वैसे तो मेरा सबके लिए कुछ न कुछ खरीदने का मन था फिर भी सोचा कि कल भी इधर आना होगा, इसलिए थोडा बहुत कल के लिए छोड़ देते हैं | हम बाज़ार से निकल कर नीचे आ गये | हम दोनों नया कमरा देखने के लिए इधर – उधर घुमने लग गये | इसी सिलसले में एक बंदु से मुलाकात हुई जो कमरा दिखाने नीचे ले आया | उसी डोरमेट्री के थोडा आगे आ गये जहाँ हम रुके हुए थे | हमे एक होटल में कमरा दिखाया गया लेकिन हमने अब इरादा बदल दिया था | हम अपनी डोरमेट्री चले आये जहाँ पर बैग में खरीदा हुआ सामान रखा और वापस ऊपर लौट आये खाना खाने के लिए |

कल की तरह दाल – रोटी और दही के रूप में हल्का खाना खाकर सैर – सपाटा करते हुए डोरमेट्री लौट आये | बड़ा हो- हल्ला हो रहा है यहाँ क्या बात है ..! हम दोनों ही अचम्भित थे | हरियाणा से आये हुए 6 – 7 दोस्तों का एक ग्रुप यहाँ ठहरा हुआ था | अंकल की तो निकल पड़ी, एक साथ ही सारे बेड बुक हो गये आज तो | रात काफी हो जाने के बावजूद भी इनका हो – हल्ला अभी रुका नहीं था | आसपास सभी बेड वाले परेशान थे लेकिन येलोग अपनी अभद्रता और असभ्यता का परिचय बार – बार दे रहें थे | दो व्यक्ति तो उनमे से सरकारी शिक्षक भी थे, ये पता चलने के बाद तो और भीर अखरने लगे वो लोग | वैसे भी मन विचलित हो रहा था पता नहीं क्यों ऊपर से इनकी हरकतें | मना करने के बावजूद भी बाज़ नहीं आये | विवशता ऐसी कि कुछ कर भी नहीं सकते सिवा नींद आने के इंतजार के | आख़िर देर रात ही सही आँख लग गयी |

सफ़र अधुरा सबक पूरा

“भाई, ओ भाई, उठ ना, माँ (दादी) खत्म हो गयी” मनीष की धीमी लेकिन गम्भीर आवाज़ ने मुझे जगाया |

“सुबह – सुबह मज़ाक मत कर यार, वैसे भी रात को ढंग से नींद नहीं आई” आधी नींद में ही मैंने बोला |

“ये देख अभी पापा का कॉल आया है”, मोबाइल में दिखाते हुए वो बोला |

अब मेरी नींद उड़ गयी थी, “कब हुआ ये सब, तुमने मामा से क्या कहा…!”, मैंने पूछा |

मनीष – “आज सुबह लगभग 5 बजे के आस पास, मैंने तो बोला कि मैं जयपुर हूँ”

मैं – “अच्छा, फिर थोड़ी देर बाद वो दुबारा नहीं पूछेंगे कि कहा तक पहुँच गया तब क्या बोलेगा …!”

मनीष – “फिर अब क्या करें”

मैं – “अभी कॉल कर उनको, और बोल कि मैं तो शिमला हूँ”

पांच – सात मिनट के वार्तालाप के बाद हम डोरमेट्री से बाहर आ गये, बाहर आकर मनीष ने अपने पापा यानि मेरे मामा को कॉल किया, पता था कि अब बहुत डाट पड़ने वाली है | लेकिन जिसकी माँ का अभी – अभी देहान्त हुआ हो और अभी दाह – संस्कार भी नहीं किये हो, उस व्यक्ति की मानसिक हालत क्या होगी, ऐसी विषम परिस्थिति में भी खुद को संतुलित रखना कितना मुश्किल है | मामा ने फोन पर बस थोड़ा ही कहा और कॉल कट कर दिया, शायद यही परिपक्वता होती है | लेकिन अब मनीष की चिंता और बढ़ गयी, बोला कि पापा ने उम्मीद से कम डांटा, ये तूफ़ान से पहले की शांति है यार |

हम अंदर आ गये, और वापस लौटने के लिए बस आदि ऑनलाइन सर्च करने लगे | “मेरी वजह से तेरा ट्यूर और खराब हो गया, यही सोच रहा होगा न कि किस को साथ ले आया यार”, मनीष ने ग्लानी के भाव से अपनी व्यथा सुनाई | “ऐसा कुछ नहीं है, होनी थी और हो गयी”, मैंने कहा | हम जल्दी ही घर पहुंचना चाहते थे लेकिन इतनी दूर से सम्भव नहीं था कि दाह – संस्कार से पहले पहुँच जाए | तुरंत हाथ – मुँह धोकर डोरमेट्री से निकले और चंडीगढ़ की बस पकड़ी | उल्टियाँ होने के डर से पहाड़ों में बस का सफ़र बिलकुल नहीं करना था, इसलिए कुछ भी बिना खाए बस में बैठा |

“पापा से सब पूछेंगे कि सारे रिश्तेदार आ गये, मनीष तो जयपुर ही था फिर क्यों नहीं आया, दादी के पास सभी पोते – पोतियाँ हैं, केवल मैं ही नहीं हूँ, अच्छे बदनाम हो गये रिश्तेदारों में, पहले से ही सी. ए. की परीक्षा पास नहीं होने के कारण खूब ताने मारते हैं, अब तो जीने नहीं देंगे, मम्मी – पापा को मेरी वजह से ये सब सुनना पड़ेगा”, मनीष ने अपनी चिंता जाहिर की | “मेरे साथ भी तो यही होगा यार, ननिहाल में मुझे कम ही लोग जानते हैं, अब तक तो वायरल हो गया हूँगा मैं, कि रामेश्वरी जीजी का बेटा गया है साथ में”, हम दोनों अपनी चिंताए जता रहें थे |

बस थोड़ी दूर ही चली थी कि मेरा जी ख़राब होने लगा, पेट में कुछ था नहीं फिर भी उल्टी होने लगी, बस खाली थी तो दूसरी सीट पर खिड़की की तरफ बैठ गया और सोने की कोशिश करने लगा | लेकिन विचारों में तो नानी का अक्ष छाने लगा | सोचा था कि शिमला से आकर सीधा उनके पास जाऊंगा, कई दिन हो गये मिले हुए | माँ तो पहले ही गुजर चुकी थी, आज ऊपरवाले ने नानी को भी बुला लिया, मेरी मांओं के पीछे ही क्यों पड़ा है ये ! रह – रह के नानी की बातें याद आ रही थी, उनकी डांट, उनका प्यार उनके एक हाथ के वो दो अंगूठे जो मेरे बचपन में सबसे बड़ा सवाल था, सब आँखों में तैरने लगे | दिल भरना लाज़िमी था, आँखें आंसुओ को और नहीं रोक पाई, अश्रु – धारा गालों पर लुढक आई | आँखे जलने लगी अब तो सिसकियों के साथ रोने लगा | कैसा मंजर है ये, मेरे कंधों को उनकी अर्थी भी नसीब नहीं हुई | कम से कम मुझे फ़ोन पर तो बात कर ही लेनी चाहिए थी एक बार, रह – रह की यही बात चुभ रही थी | नानी को यादों में लिए शिमला से चंडीगढ़ आ पहुंचा |

सबसे पहले रात को जहाँ से बस मिलनी थी उसी के पास के होटल में कमरा बुक करवाया | उल्टी होने के कारण भूख भी लगी हुई थी, चंडीगढ़ के आई. एस. बी. टी. बस डिपो पर नजरें दौड़ाई तो एक होटल दिखा, अब तक का सबसे घटिया बर्गर और चाय पी वहां | फिर बाहर निकले यहाँ से तो सड़क के किनारे छोले – कुलचे वाला दिखा तो रहा नहीं गया, पेट भरके खाए और होटल की और निकल गये |

मैं – “तुझे चंडीगढ़ देखने की इच्छा थी न ब्रो, देख हम चंडीगढ़ में हैं, लेकिन दिल में दोनों के ही ख़ुशी नहीं है, सोचा था क्या इस हालात में चंडीगढ़ आयेंगे”

मनीष – “भाई, काश में चंडीगढ़ देखने की इच्छा ही न रखता तो शायद ऐसा नहीं होता न…!”

होटल पहुँचकर पहले गीजर में पानी गर्म किया और मैं नहाने चला गया | बाथरूम से नहाकर बाहर आया तो मनीष बोला, “पता है मुझे आठ – दस दिन पहले एक सपना आया था कि हम दोनों चंडीगढ़ में किसी होटल में हैं, और मैं नहाकर आ रहा हूँ और तू बोल रहा है कि थर्मल पहन ले, ठण्ड बहुत है, ये सपना अब हकीक़त बन गया भाई”

मैं – “तुमने मुझे तब क्यों नहीं बताया इस बारे में, ये इशारा था कि नानी बीमार है और तुम लोग मत जाओ”

मनीष – “मुझे क्या पता था कि ऐसा होगा, तब बताता तो कौनसा प्रोग्राम कैंसिल कर देता”

मैं – “तभी अपने साथ सब ठीक हो रहा था, वेटिंग टिकटे क्नर्फ्र्म हो रही है, आसानी से बजट में डोरमेट्री मिल रही है, हम इसको अच्छी किस्मत मान रहे थे, और ये सब तो हमारी बुरी किस्मत का कमाल था”

मनीष – “बुरा वक्त आता है तो पहले सब ठीक होने लगता है फिर एक जोरदार झटका देता है और सब खत्म”

नहा – धोकर दोनों ने थोड़ा आराम किया, थोड़ी देर बाद आँख लग गयी | शाम को उठकर बाहर जाकर थोडा हल्का – फुल्का खाना खा आये, बस का समय हो गया, होटल से चेक – आउट करके बस में आकर बैठ गये | जितना उत्साह आते समय था उससे कहीं जाता दुःख और उदासी लौटते समय हो रही थी | रेल की सारी टिकट कैंसिल करवाकर बस में यूँ जाना पड़ेगा सोचा ही नहीं था | हम दोनों के संवाद मानो जैसे खत्म से हो गये हो, बस केवल औपचारिकता जैसा ही रह गया | मायूसी दोनों के चहरों पर साफ दिखाई पड़ रही थी | बस हवा से बातें कर रही थी, रह – रहकर नींद टूट रही थी और बेचैनी बरकरार थी |

जिन्दगी का यही फलसफ़ा है, यहाँ पर कुछ भी स्थायी नहीं है | अक्सर कई बाते भविष्य पर टालकर हम वर्तमान को जीना भूल जाते हैं और फिर केवल पछतावे के कुछ हाथ नहीं लगता | शिमला की मेरी ये अधूरी यात्रा मुझे यही कहती है कि जितना वर्तमान में मिलता है उसका भरपूर आनन्द लो, आख़िर जिन्दगी का सफ़र भी तो कुछ ऐसा ही है, सब कुछ अपने मुताबिक नहीं चलेगा, पता नहीं कब, कौनसा मोड़ जीवन के सफ़र का आख़िर मोड़ हो | जीवन तो ऐसा सफ़र है जिसकी कोई टिकट नहीं है, केवल मंजिल को पाने के लिए हम लोग सफ़र का लुफ्त उठाना भूल जाते हैं | शिमला का मेरा ये सफ़र भले ही अधुरा रह गया हो लेकिन सबक, पूरा दे गया | मेरे अधूरे सफ़र की दास्तां एक मुक्क्मल सीख पर खत्म करता हूँ |

धन्यवाद

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B.com Part First Indian Banking and Financial System Syllabus 2020-21

Posted on October 9, 2021October 9, 2021 By Pradeep Sharma
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B.Com Part First Business Economics Syllabus 2020-21

Posted on October 9, 2021October 9, 2021 By Pradeep Sharma
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GANESH JI KI AARTI

Posted on September 10, 2021September 10, 2021 By Pradeep Sharma

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जांकी पार्वती पिता महादेवा
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी
मस्तक पर सिन्दूर सोहे मुषै की सवारी
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जांकी पार्वती पिता महादेवा
अंधन को आंख देत कोढिन को काया
बाझंन को पुत्र देत निर्धन को माया
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जांकी पार्वती पिता महादेवा
हार चढे पुष्प चढे और चढे मेवा
लडवन का भौग लगे संत करी सेवा
सुर श्याम शरण आवे सफल कीजै सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जांकी पार्वती पिता महादेवा
दीनन की लाज राखो शंभु सुत वारि
कामना को पूरी करो जग बलिहारी
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जांकी पार्वती पिता महादेवा
ऊॅ एकदंताय विदमहे वक्रतुण्डाय धीः महि तन्नो दन्तीः प्रचोदयात्
।।ऊॅ महागणाधिपतयै नमः ।।

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A lady warrior in Taliban

Posted on August 18, 2021August 18, 2021 By Pradeep Sharma

आप जानते हैं कि किस तरह से तालिबान ने अफगानिस्तान में अफरा-तफरी और अपना तांडव मचा रखा है ऐसे में सभी जगह दर्दनाक मंजर और दुख भरी दास्तां नजर आने के सिवा कुछ दिखाई नहीं पड़ता इतना कुछ होते हुए भी अफगानिस्तान की पहली महिला गवर्नर में से एक सलीमा माजरी जो सीना ताने है तालिबानियों के खिलाफ खड़ी है ।
जहां एक और अफगानिस्तान के सभी पॉलीटिकल लीडर अफगानिस्तान छोड़ छोड़ करके भाग रहे थे वही सलीमा माजरी एकमात्र ऐसी महिला है जो तालिबान की सेना से लोहा लेते हुए डटी हुई रही।

अफगानिस्तान में मुख्य महिला नेतृत्व प्रतिनिधियों में से एक, सलीमा माजरी, जिसने तालिबान से लड़ने के लिए युद्ध छेड़ा था, को कथित तौर पर पकड़ा गया है। जो भी हो, उसकी वर्तमान स्थिति पर कोई शब्द नहीं है।

उस समय जब कई अफगान राजनीतिक अग्रदूत देश से भाग गए थे, सलीमा माजरी बल्ख क्षेत्र की स्वीकृति तक बनी रही, जब उसका चाहर किंट का क्षेत्र तालिबान के हाथ में आ गया।

रिपोर्टों में कहा गया है कि गुरिल्लाओं द्वारा पूरे देश की निगरानी करने के बाद महिला प्रमुख को तालिबान ने पकड़ लिया है और राष्ट्रपति अशरफ गनी सहित अफगान पहल देश से भाग निकली है।

कुछ साल पहले, सलीमा माजरी किसी भी समय अफगानिस्तान में केवल तीन महिला प्रमुख प्रतिनिधियों में से एक बन गई थी। जबकि एक टन अफगान क्षेत्र एक बहुत ही उल्लेखनीय लड़ाई के बिना विघटित हो गए, सलीमा ने बल्ख क्षेत्र में चाहर किंट को ठोस रखने के लिए हर चीज पर वार किया।

सलीमा मजारी के प्रमुख के रूप में चाहर किंट क्षेत्र ने तालिबान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण लड़ाई की स्थापना की। उसकी आत्मा उसके क्षेत्र पर हावी हो गई और समकक्ष ने उनके खिलाफ लड़ाई में प्रदर्शित किया, अभी भी हवा में ऊपर की तरह अपने अमीरात को बहाल करने के लिए पहले कभी नहीं।

आखिरी संघर्ष तक, चाहर किंट एक अकेला जिला था जो एक महिला से काफी प्रभावित था, जो इस क्षेत्र में किसी भी डर के दायरे में नहीं आता था। जैसा कि द गेटकीपर ने संकेत दिया था, सलीमा माजरी ने पिछले साल 100 तालिबान योद्धाओं की स्वीकृति की प्रभावी व्यवस्था की।

हाल के वर्षों में, सलीमा माजरी ने अफगानिस्तान में एक महिला प्रमुख होने के नाते बहुत वाह-वाही और सम्मान प्राप्त किया था। अफगानिस्तान को पकड़ने में सबसे हालिया तालिबान आक्रमण की शुरुआत की ओर सैनिको को संबोधित करते हुए, सलीमा माजरी ने अपने परिजनों की भलाई के बारे में चिंता व्यक्त की थी।

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What US President Joe Biden said on the Afghanistan emergency?

Posted on August 17, 2021August 17, 2021 By Pradeep Sharma

अफगानिस्तान आपातकाल पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने क्या कहा ?

What US President Joe Biden said on the Afghanistan emergency?

अफगानिस्तान आपातकाल पर अमेरिकी राष्ट्रपति “जो बाइडेन” ने कहा कि- वह अब तक स्वीकार करते हैं कि अफगानिस्तान में अमेरिका का उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ युद्ध लड़ना होना चाहिए न कि किसी देश को इकट्ठा करना या उस देश का निर्माण करना । वह अब तक यही मानता है कि अफगानिस्तान या दुनिया में कहीं और अमेरिका का उद्देश्य देश निर्माण से नहीं बल्कि आतंकवाद से लड़ना होना चाहिए।

What US President Joe Biden said on the Afghanistan emergency?

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने लिखा, ‘मैं लंबे समय से कह रहा हूं कि हमारा मुख्य लक्ष्य आतंकवाद से लड़ना होना चाहिए। कंट्री बिल्डिंग नहीं। वीडियो में बाइडेन कहते हैं कि अमेरिका को आज 2021 के खतरों पर ध्यान देना चाहिए, न कि उन लोगों पर जो पहले खतरे में थे। उन्होंने आगे कहा कि अब आतंकवाद युद्ध का खतरा अफगानिस्तान से अलग कई जगहों से है. वह कहते हैं, ‘सुमालिया में अल शबाब, अरब में अल कायदा, सीरिया में अल नुसरा, इराक में आईएसआईएस, हमें ऐसे खतरों पर ध्यान देने की जरूरत है, हमें अपनी संपत्ति का योगदान करने की जरूरत है।’ बाइडेन ने आगे कहा कि अमेरिका कई देशों में आतंकवाद को खत्म करने के लिए काम करता है, लेकिन उसकी सेना हमेशा के लिए नहीं रहती. अफगानिस्तान में भी ऐसा ही होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति वीडियो संदेश में कहते हैं कि ऐसे में अमेरिका की नजर उन खतरों पर होगी जो उनके लिए तत्काल खतरा हैं। ऐसे में जिस आतंकवादी उत्पीड़क संघ से अमेरिका कमजोर होगा, उस पर जल्द ही और ठोस कदम उठाया जा सकता है।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी अफगानिस्तान से अमेरिकी शक्तियों को बाहर निकालने के विकल्प को बचा लिया था। उन्होंने कहा कि अफगान प्रशासन ने बिना किसी विवाद के तालिबान को क्षमता सौंप दी। उन्होंने तालिबान को आगाह किया कि अगर अमेरिका के अमेरिकी कर्मचारियों पर हमला किया या देश में उनकी गतिविधियों को बाधित किया तो अमेरिका जवाबी कार्रवाई करेगा।
What US President Joe Biden said on the Afghanistan emergency?

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The Complete Story of Taliban (Afganistan)

Posted on August 16, 2021August 16, 2021 By Pradeep Sharma

तालिबान के उदय की सम्पूर्ण कहानी

तालिबान क्या है ?

तालिबान को तालेबान भी कहा जा सकता है | यह एक आन्दोलन है जो की सुन्नी इस्लामिक विचारधारा को सपोर्ट करता है | सन 1994 लगभग के आसपास इस विचारधारा को जिसे तालिबान के नाम से जाना जाता है, को बढ़ावा मिलने लगा | पश्तो भाषा में तालिबान शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी, या विद्यार्थी या छात्र भी कह सकते है | इस संगठन को पाकिस्तान, सऊदी अरब, और संयुक्त अरब अमीरात के द्वारा मान्यता मिल रखी है |

आज अफगानिस्तान में जो भी अफरा तफरी फैली है उसका एकमात्र कारण है तालिबान | जी हां दोस्तों तालिबान | अब आप सभी के मन में यह सवाल घर रहा होगा की जिस तालिबान के कारण अफगानिस्तान में मानवता शर्मसार हो रही है आखिर इसका उदय केसे हुआ ?The Complete Story of Taliban (Afganistan)

केसे इस संगठन (तालिबान) को जन्म मिला है ? आओ जानते है —–

तालिबान का उदय केसे हुआ ?

तालिबान की सुरुआत करीब करीब सन 1990 के आसपास बताई जा सकती है | ये वो समय था जब सोवियत संघ रूस की सेना अफगानिस्तान को छोडकर वापस लोट रही थी | उसी समय में एक कबीलाई जाती है जिसका नाम है पश्तून वो अपनी जडे मजबूत कर रही थी या आप एसा बोल सकते है की पश्तून जाती के नाम पर तालिबान अपनी जड़े जमा रहा था |

1996 तक आते आते प्राय तालिबान सम्पूर्ण अफगानिस्तान पर अपना कब्जा जमा चूका था | लेकिन 2001 तक आते आते तालिबान और नाटो की सेना के बिच युध्द सुरु हो गया | इस युद्ध में तालिबान की अल कायदा ने भरपूर मदद भी की |

इस युद्ध का मकसद था की जल्द से जल्द पुरे अफगानिस्तान से तालिबान को खदेड़ कर यह लोकतंत्र स्थापित करना | और यहाँ के इस्लामिक चरमपंथियों को खत्म करना | इस युद्ध का वेसे मुख्य कारण 2001 में अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुवा हमला ही था |जिसका मुख्य अभियुक अल कायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन था |

इस हमले के बाद यूनाइटेड स्टेट अमेरिका ने तालिबान सरकार से ओसामा बिन लादेन की मांग की पर तालिबान ने यह कहते हुए अमेरिका की इस जायज मांग को ठुकरा दिया की पहले अमेरिका इस बात का सबूत पेश करे की वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर पर जो हमला हुआ है उसमे ओसामा बिन लादेन है |The Complete Story of Taliban (Afganistan)

उस समय यूनाइटेड अमेरिका के राष्ट्रपति जोर्ज विलियम बुश थे | फिर क्या था इस बात से खिन्न अमेरिका युद्ध का ऐलान कर देता है वही अमरीकी राष्ट्रपति जोर्ज विलियम बुश अमेरिका की संसद जिसे कांग्रेस हॉल कहते है वहा अपने भाषण में कहते है की अब यह युद्ध तब तक ख़त्म नहीं होगा तब तक की पकिस्तान और अफगानिस्तान में से पूरी तरह से इस्लामिक कट्टरवाद और आतंकवाद खत्म नही हो जाता | फिर अन्ततोगत्वा तालिबान का पूर्ण खात्मा भी हुआ | फिर वहा नयी सरकार (अफगानिस्तान की सरकार ) का निर्माण हुआ |The Complete Story of Taliban (Afganistan)

लेकिन दोस्तों कुत्ते की दूम कहा सीधी होती है ?

साल 2004 के बाद से ये संगठन फिर से अपनी गतिविधिया सुरु करता है अबकी बार ये अपना काम काज दक्षिणी अफगानिस्तान और पश्चिमी पकिस्तान से करता है –The Complete Story of Taliban (Afganistan)

फरवरी 2009 में यह संगठन पकिस्तान की सरकार से एक समझोता करता है कि ये लोगो को नहीं मारेंगे और शरियत के मुताबिक काम करेंगे |

तालिबान पश्तून लोगो से अस्तित्व में आया था और इस संगठन ने पश्तून लोगो को अपने विश्वाश में ले लिया था और उन्हें यकींन दिलाया की उनकी सरकार बनती है तो इस्लाम के शरिया कानून को लागू करेंगे |

फिर क्या था समय बीतता गया तालिबान की जड़ मजबूत और मजबूत होती चली गयी –

इसी तालिबान के शासन में महिलाओं पर कई तरह से पाबंदिया लग गयी –

  • शरिया कानून के मुताबिक तालिबान ने अफगान पुरुषों के लिए दाढ़ी बढ़ाने और महिलाओं को बुर्का पहनने का फरमान जारी किया था।The Complete Story of Taliban (Afganistan)
  • टीवी, संगीत, सिनेमा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। दस साल की उम्र के बाद लड़कियों का स्कूल जाना मना था।
  • 1996 में सत्ता में आने के बाद तालिबान ने लिंग के आधार पर सख्त कानून बनाए। इन कानूनों ने महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
  • अफगान महिलाओं को काम करने की अनुमति नहीं थी।
  • लड़कियों के लिए सभी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के दरवाजे बंद कर दिए गए।
  • एक महिला का बहिष्कार तब किया जाता है जब वह पुरुष रिश्तेदार के बिना घर छोड़ती है।
  • पुरुष चिकित्सक द्वारा चेकअप के लिए महिला व बालिका का बहिष्कार किया जाएगा। इसके साथ ही महिलाओं के नर्स और डॉक्टर बनने पर रोक लगा दी गई थी।
  • तालिबान के किसी भी आदेश का उल्लंघन करने पर महिलाओं को बेरहमी से पीटा और मार डाला जाएगा।

दोस्तों ये तो था तालिबान का पिछले दो या तिन दशको (1990-2021) तक का चिठ्ठा | पर यह यह जानना जरुरी है की सन 1990 के आसपास तालिबान वापस पश्तूनो के सहारे क्यों लौटा ? और पश्तूनो ने क्यों तालिबान का सपोर्ट किया ?

ये पश्तून कोन है ? इन पश्तूनो ने तालिबान को सहारा क्यों दिया ?

तो चलिए आप और हम इसे भी इतिहास के पन्नो में टटोलते है –The Complete Story of Taliban (Afganistan)

दोस्तों यह बात करीब करीब 1978 की है | जब सोवियत संघ रूस ने अपनी एक विशाल सेना अफगानिस्तान में उतार दी थी | अफगानिस्तान मैं अपनी जबरदस्त सैन्य क्षमता के बलबूते पर अफगानिस्तान के एक बहुत बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था | किंतु सोवियत संघ रूस की प्रतिद्वंदी सेना यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका ने पाकिस्तान का सहारा लेकर एक संगठन का निर्माण किया | जिसे तालिबान नाम का संगठन कहा गया क्योंकि यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका सोवियत संघ रूस की सेना को अफगानिस्तान में खदेड़ना चाहता था | किंतु अमेरिका सीधे सीधे तौर पर सोवियत संघ रूस से युद्ध नहीं करना चाहता था | इसलिए अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद ली और पाकिस्तान जो कि आप अच्छे से परिचित है कि यह एक आतंकवाद की फैक्ट्री है | पाकिस्तान वह देश है जो आतंकवाद को पैदा करता है और आतंकवाद का निर्यात करता है | तो इस आतंकवाद का सबसे बड़ा आयातक और पहला आयातक देश अमेरिका था | अमेरिका ने पाकिस्तान से आतंकवाद को आयात करके अफगानिस्तान में सोवियत संघ रूस के खिलाफ लड़ाई में इस्तेमाल किया इसे तालिबानी संगठन में पाकिस्तानी सेना के कई अधिकारी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को जिहादी शिक्षा देकर भर्ती किया गया था | इन सभी को एक ही उद्देश्य दिया गया था | कि आपको सोवियत सेना से लड़ना है | अफगानिस्तान युद्ध भूमि है और अफगानिस्तान में सोवियत सेना से लड़ते रहना है तालिबान जैसे आक्रामक संगठन को मदद के लिए अरब के कई अमीर देश भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामने आए सोवियत हमले को अफगानिस्तान पर हमले की जगह इस्लाम पर हमले जैसा माहौल बना दिया गया | और मुस्लिम देशों के लोग सोवियत सेनाओं से लोहा लेने अफगानिस्तान पहुंच गए अमेरिका के द्वारा उपलब्ध कराए गए हथियारों से सोवियत सेना को बहुत बड़ा नुकसान हुआ और आर्थिक स्थिति बिगड़ने के कारण सोवियत सेना ने निर्णय किया कि अब हम यहां से वापस जाएंगे, और सोवियत सेना ने अपनी सेना को वापस रवानगी की | सोवियत सेना की इस हार के कारण अफगानिस्तान में तालिबान, अलकायदा और ओसामा बिन लादेन इत्यादि आतंकवादियों को बड़ा हौसला मिला युद्ध के कारण अफगानिस्तान में तत्कालीन सरकार गिर गइ और दोबारा चुनाव किए जाते लेकिन तालिबान ने देश की सत्ता अपने हाथ में लेकर पूरे देश में इस्लामिक धार्मिक कानून शरिया कानून लागू कर दिया | जिसका समर्थन सऊदी अरब ने भी किया |

फिर क्या था अफगानिस्तान में तालिबान का शासन चल पडा और तालिबान ही इस देश की सरकार बन गयी |

सोवियत संघ रूस की सेना के अफगानिस्तान छोड़ते ही पीछे से अफगानिस्तान को पूरी तरह से तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया | तालिबान जो कि एक ऐसा संगठन था जिसमें पश्तून कबीलाई के लोग भी शामिल थे और यह वही लोग थे जिनको यूनाइटेड स्टेट अमेरिका के द्वारा आगे भेजा गया था और यूनाइटेड स्टेट अमेरिका ही व्यक्तिगत रूप से चाहता था कि सोवियत संघ रूस को पीछे खदेडा जाए | सोवियत संघ रूस को पीछे खदेड़ने के लिए पश्तूनो का सहारा लेकर अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान को सहारा दिया | आगे चल कर यही आतंकवादी संगठन अफगानिस्तान में अपनी हुकूमत कायम करता है | और शरीयत के हिसाब से यहां कानून लागू करता है | मानवता को शर्मसार करते हुए, मानवता को कुचलते हुए, शासन चलाया जाता है |The Complete Story of Taliban (Afganistan)

तालिबान ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पश्चिमी इलाकों में वादा किया था कि वह सत्ता में आएंगे तो निश्चित ही शांति और सुरक्षा के साथ में शरिया कानून लागू करेंगे | और इस्लामिक शरिया कानून को लागू करने के वादे के साथ कुछ ही समय के भीतर तालिबान के लोगों ने शरिया कानून लागू कर दिया | बाद में वहां के लोगों के लिए यह शरिया कानून सिरदर्द साबित हुआ | महिलाओं का शोषण होने लगा, दमन होने लगा, और महिलाएं प्रताड़ित होने लगी, सजा देने के कई डरावने तरीकों के कारण अफगानी समाज में इसका विरोध भी होने लगा साथ ही कई ऐसी पाबंदियां लगा दी गई-

तालिबान ने शरिया कानून के अनुसार पुरुषों के लिए कानून बनाया कि सबको बढ़ी हुई दाढ़ी रखनी पड़ेगी, सभी महिलाओं को आदेश दे दिया गया कि बिना बुर्के के वह घर से नहीं निकल सकती और बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ वह अकेली बाजार में नहीं जा सकती और साथ ही साथ तालिबान में टीवी, म्यूजिक, सिनेमा, आदि पर प्रतिबंध लगा दिया गया और यहां तक प्रतिबंध लगा दिया कि कोई भी महिला किसी पुरुष डॉक्टर के द्वारा चेकअप नहीं करवा सकती और कोई भी महिला स्वयं नर्स या डॉक्टर का काम नहीं कर सकती | इन तमाम मानवता को कुचलने वाले कानूनों के कारण तालिबान का चेहरा साफ हो गया | और लोगों को समझ में आ गया कि तालिबान कौन सा और किस प्रकार का संगठन है |

जब सोवियत संघ रूस की सेना ने अफगानिस्तान की जमीन को छोड़ दिया था | और यू-एस अमेरिका ने तालिबान जैसे संगठन की स्थापना कर दी थी | तो तालिबान जैसे संगठन को सपोर्ट करने के लिए अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठन भी सामने आए थे | और अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के सहयोग से ही तालिबान जैसी संस्था ने संपूर्ण तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना कब्जा किया | समय बीतने के बाद एक समय ऐसा आता है जब 11 सितंबर 2001 को मंगलवार की सुबह के दिन कैलिफोर्निया जाने वाले चार व्यापारिक एयरलाइंस जिन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका से तीन अलग-अलग हवाई अड्डे से उड़ान भरी थी उसे अलकायदा के 19 आतंकवादियों ने उड़ान के बीच ही अपहरण कर लिया और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, पेंटागन और वाईट हाउस पर हमले कर दिएThe Complete Story of Taliban (Afganistan)

आप सभी को बता दें कि यह हमले 11 सितंबर 2001 को जो कि आज से करीब करीब 19 साल पहले हुए थे जिसमें वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पेंटागन और अमेरिका की राजधानी वाइट हाउस भवन को उड़ाने का तालिबान का अपराध शामिल है जिसमें एयरक्राफ्ट को हाईजैक करके और वहां सुसाइड अटैक किया गया, मास मर्डर किया गया और इस्लामिक टेररिज्म किया गया जिसमें 2996 लोग मारे गए और 25000 लोगों के करीब करीब जख्मी हुए जिसकी जिम्मेदारी ओसामा बिन लादेन ले ली जो कि अलकायदा आतंकवादी संगठन का सरगना था

यह अल कायदा आतंकवादी संगठन वही संगठन है जिसने तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन को जमने फलने और फुलने में मदद की थी |The Complete Story of Taliban (Afganistan)

इसी कारण ही अमेरिका ने निर्णय लिया और तय किया की अफगानिस्तान और पकिस्तान की सर-जमीन पर पनप रहे आतंकवाद को मिटाना होगा | अमेरिका ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार से अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को माँगा पर तालिबान ने अमेरिका की इस मांग को ठुकरा दिया |

उस समय यूनाइटेड अमेरिका के राष्ट्रपति जोर्ज विलियम बुश थे | फिर क्या था इस बात से खिन्न अमेरिका युद्ध का ऐलान कर देता है वही राष्ट्रपति जोर्ज विलियम बुश अमेरिका की संसद जिसे कांग्रेस हॉल कहते है वहा अपने भाषण में कहते है की अब यह युद्ध तब तक ख़त्म नहीं होगा तब तक की पकिस्तान और अफगानिस्तान में से पूरी तरह से इस्लामिक कट्टरवाद और आतंकवाद खत्म नही हो जाता | और फिर अन्ततोगत्वा तालिबान का पूर्ण खात्मा भी हुआ | फिर वहा नयी सरकार (अफगानिस्तान की सरकार ) का निर्माण हुआ |

एक समय के बाद अमेरिका की सेना भी अफगानिस्तान से लौट गयी लेकिन इस देश ने जो झेला वो भला कोई केसे समझ सकता है |

यह मानवता सर्मसार हुई – महिलाओं का दमन हुआ – धर्म के नाम पर नर संहार हुआ –

दंड के वीभत्स तरीके अपनाये गए –The Complete Story of Taliban (Afganistan)

फ़रवरी 2009 से आज तक वापस यही तालिबान अपने को कायम करने में लगा हुआ था जिसकी भरपूर मदद मुश्लिम राष्ट्रों से मिल रही थी साथ ही साथ पकिस्तान के माध्यम से आतिबान को पोषण मिलने लगा –

और आज वो काला दिन है जब –The Complete Story of Taliban (Afganistan)

काबुल में तबाही का मंजर है उड़ते फ्लाइट के पहियों पर लटके तीन लोग गिर रहे हैं | काबुल में शांति बड़ी तनावपूर्ण सी नजर आ रही है | हर व्यक्ति अपने घर में दुबका हुआ है | तालिबान ने प्रमुख चौराहों पर लड़ाके तैनात कर दिए गए हैं आज संपूर्ण अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा कायम हो चुका है | यह आम जनता के लिए और मानवता के लिए रोंगटे खड़े कर देने वाली खबर है | हर आदमी काबुल छोड़कर किसी अन्य देश में जाना चाहता है |The Complete Story of Taliban (Afganistan)

तालिबान ने कई सौ अपराधियों को जेल से रिहा कर दिया | आम जनता में डर और अराजकता का माहौल है | आम जनता को तालिबान के क्रूर शासन के वापस आने की आशंका सता रही है | बड़ी संख्या में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे काबूल पर भीड़ जमा हो गई है | अफगानिस्तान का हर व्यक्ति देश छोड़कर किसी अन्य देश में जाना चाहता है |The Complete Story of Taliban (Afganistan)

अफगानिस्तान के वर्तमान हालातों को देखकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस बात का समर्थन करते हुए दिखाई पड़ते हैं | कहते हैं कि तालिबान के द्वारा अफगानिस्तान पर जो कब्जा किया गया है इससे अफगानिस्तान ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ा है —–

बीज बोये बबूल का तो आम कहा से होये —

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Aaj ka panchang 16 august 2021

Posted on August 16, 2021August 16, 2021 By Pradeep Sharma

🙏🙏जय श्री गंगा जी की 🙏🙏
आज का पंचांग 🙏🙏
दिनांक – 16अग़स्त 2021
दिन – सोमवार
विक्रम संवत् – 2078
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल पक्ष
तिथि – अष्टमी 07:45 तक तदुपरांत नवमी
नक्षत्र – अनुराधा
योग – इन्द्र
दिशाशूल – पूर्व, दक्षिण पूर्व
सूर्योदय – 05:45
सूर्यास्त – 18:58
राहुकाल – 07:30 से 09:00 तक
आज का विचार – विश्वास करने वाले से ज्यादा बेवकूफ विश्वास तोडने वाला होता हैं क्योंकि वह अपने छोटे से स्वार्थ के लिए एक अच्छे इंसान को खो देता है।
🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹

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How to do Aarati and pooja

Posted on August 16, 2021August 16, 2021 By Pradeep Sharma

आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ‘ॐ’ की आकृति बन सके। आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। आरती के पश्चात् थाल में रखे हुए फूल देने चाहिए और कुंकुम का तिलक लगाना चाहिए।
बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन किए केवल आरती नहीं की जा सकती है। सदैव किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति के बाद ही आरती करना अच्छा होता है।

आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है। अगर दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी होना चाहिए। साथ ही पूजा-थाल में फूल और कुंकुम भी जरूर रखें।बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन किए केवल आरती नहीं की जा सकती है। सदैव किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति के बाद ही आरती करना अच्छा होता है।

आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंककर रखें। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के बीच भाग पर लगाएं। कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श न करें।

सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मंत्रों के उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता है। जप का विधान प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। मंत्रों में शक्ति का अपार भंडार भरा हुआ है। पूर्ण श्रद्धा से उसकी साधना विधिवत करने से उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में 36 कोटी देवी-देवता हैं और मंत्र भी अलग-अलग हैं। जिनका अपना-अपना महत्व है। धर्मग्रंथों के मतानुसार भोलेनाथ ऐसे देवता हैं, जो भक्तों को मनभावन लाभ व सुख देते हैं। शिव स्वयं काल के स्वामी हैं। शिव पूजन चाहे घर में करें या मंदिर में जब भी आरती करें उसके बाद शिव मंत्र ‘कर्पूरगौरं’ का जाप अवश्य करें, तभी मिलेगा पुण्य लाभ।

‘कर्पूरगौरं’ मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

मंत्र का अर्थ
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम्- जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।

मंत्र का पूरा अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

मंत्र का महत्व: मान्यता है की जब भगवान शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, उस समय श्री हरिविष्णु ने इस स्तुति का गुणगान किया था। मृत्युलोक में रहने वाले जितने भी जीव हैं उन सभी के अधिपति भोले बाबा हैं। उनसे विनय की जाती है की वह हमारे मन में वास करें और मृत्यु के भय को दूर करें। जिससे हमारा जीवन कल्याणकारी और सुखमय व्यतित हो।

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What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

Posted on August 15, 2021August 15, 2021 By Pradeep Sharma

शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए?

शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए?

किस प्रकार के लक्षणों वाला शिवलिंग का निर्माण करें वह उसकी पूजा किस प्रकार से करनी चाहिए किस द्रव्य से उसका निर्माण होना चाहिए?

शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग का निर्माण सदैव ऐसी जगह होना चाहिए जहां किसी पवित्र जल की भी व्यवस्था हो और जहां भगवान शिव के अभिषेक की उत्तम व्यवस्था के साथ पूजा अर्चना की जा सके।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

यदि भगवान शिव की चलप्रतिष्ठा करनी हो तो इसके लिए छोटा सा शिवलिंग अथवा विग्रह श्रेष्ठ माना जाता है। और यदि अचल प्रतिष्ठा करनी हो तो स्कूल शिवलिंग अथवा विग्रह अच्छा माना गया है।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

यहां चल प्रतिष्ठा का अभिप्राय होता है कि ऐसी प्रतिमा जिसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थान परिवर्तित किया जा सकता हो तथा अचल प्रतिष्ठा का अभिप्राय होता है ऐसे विग्रह अथवा ऐसी प्रतिमा जिसका स्थान परिवर्तन निषेध है जिसे एक स्थान से अन्य स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

शिवलिंग के निर्माण के संबंध में शिव पुराण में यह वृत्तांत है कि लिंग की लंबाई निर्माण-करता या स्थापना करने वाले यजमान के 12 अंगुल के बराबर होनी चाहिए। ऐसे ही शिवलिंग को सदैव उत्तम शिवलिंग कहा जाता है। इससे कम लंबाई हो तो फलों में कमी आ जाती हैं और अधिक हो तो कोई दोष की बात नहीं होती।

चल प्रतिष्ठा वाले चर-लिंग में भी वैसा ही नियम है उसकी लंबाई कम से कम कर्ता के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए। उससे छोटा होने पर अल्प फल मिलता है, किंतु उससे अधिक होना दोस्त की बात नहीं है।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

प्रत्येक सनातनीयों के घरों में जो भगवान शिव के प्रतीक के रूप में शिवलिंग होता है वह चल शिवलिंग ही कहलाता है। जिसे स्थान परिवर्तित किया जा सकता है। जिसे चल शिवलिंग अथवा चर शिवलिंग कहते हैं। जो कि न्यूनतम रूप से एक अंगुल के बराबर होना आवश्यक है उसके ऊपर की आकृति भी श्रेष्ठ ही है।

दिन के समय के कितने भाग होते हैं?

दिन के समय के तीन विभाग होते हैं सुबह को प्रातः काल दोपहर को मध्यान्ह काल वह संध्या समय को सायंकाल कहते हैं। इन तीनों में क्रमशः एक एक प्रकार के कर्म का संपादन किया जाता है। प्रातः काल को शास्त्र विहित नित्य कर्म के अनुष्ठान का समय जानना चाहिए मध्यान्ह काल को सकाम कर्म के लिए उपयोगी है वह सायंकाल शांति कर्म के लिए उपयुक्त है ऐसा जानना चाहिए।

शिव पुराण के अनुसार वृक्ष, लता आदि को स्थावर लिंग कहते हैं और भूमिगत रहने वाले कर्मी किट आदि को जंगम लिंग कहते हैं। स्थावर लिंग की सींचने आदि से सेवा करनी चाहिए। जंगम लिंग को आहार एवं जल आदि देकर तृप्त करना उचित है। स्थावर व जंगम जीवो को सुख पहुंचाने में लिप्त होने से भगवान शिव को प्रसन्नता होती है, इसी प्रकार चराचर जीवो को ही भगवान शंकर के प्रत्तीक मानकर उनका पूजन करना चाहिए।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

हमारा यह ब्रह्मांड शिवलिंग की ही भांति दिखाई पड़ता है या यूं कहें कि शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

जो लिंग काले रंग की आकृति में अंडाकार प्रारूप में होता है या यूं कहें कि उल्कापिंड की तरह दिखाई पड़ता है इस तरह के शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग कहते हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

भारतवर्ष की इस पवित्र पावन धरा पर जिन शिवलिंग की स्थापना देवताओं के द्वारा या अन्य प्राणियों के द्वारा की गई थी उन्हें हम देव लिंग के नाम से जानते हैं। असुरों के द्वारा भगवान शिवलिंग की प्रतिमा की स्थापना की गई थी उन्हें आसुर लिंग नाम दिया जाता है।

वही प्राचीन काल में संतों एवं मुनियों के द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा की जाती थी उन्हें अर्थ लिंग जाना जाता है वह ऐसे लिंक जिन की स्थापना पुराण के समय से हैं या पौराणिक काल के व्यक्तियों के द्वारा जिन शिवलिंग की स्थापना की गई थी उन्हें पुराण लिंग कहते हैं हमारे देश में ऐतिहासिक रूप से महापुरुषों ने या बड़े-बड़े राजाओं ने जिन शिवलिंग की स्थापना की उन्हें मनुष्य शिवलिंग कहा गया है साथ ही ऐसे शिवलिंग जो किसी कारणवश स्वयं ही प्रकट हो गए उन्हें भगवान शिव के स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है।

आप, मै और हम सभी भक्त लोग भगवान शिव के विग्रह प्रतिक शिवलिंग को अपनीक्षमता और  श्रद्धाअनुसार अलग अलग तरीके से बनाकर उनकी पूजा अर्चना कर सकते है । भगवान प्रभु श्री राम ने भी एक शिवलिंग रामेश्वरम में बनाया था। कहावत हैं कि यह एक विशेष प्रकार की समुद्री रेत का था जिसने बाद में ठोस रूप ले लिया था।सनातन धर्म परम्परा में शिवलिंग के निम्न प्रकारों के अलावा भी स्फटिक, आंवलें, कपूर आदि से बने शिवलिंग की पूजा भी होती है। सभी का अलग अलग महत्व है।

1.पारद शिवलिंग:- शिव लिंग का यह विग्रह (पारद शिवलिंग) आमतौर पर घर, ऑफिस, दूकान आदि स्थानों पर रखा जाता है। इस शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुखशांति और सौभाग्य प्राप्त होता हैं। What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

2.मिश्री शिवलिंग:- यह शिवलिंग चीनी या मिश्री से बनाया जाता  हैं। परंपरा में कहावत हैं कि इस की पूजा करने से शरीर के रोगों का नाश होकर पीड़ा से मुक्ति मिलती हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

3.जौं और चावल से निर्मित शिवलिंग:- पारिवारिक समृद्धि के लिए इसका पूजना होता हैं। जो दम्पति संतानसुख से वंचित हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।

4.भस्म शिवलिंग:- अक्सर अघोरी सम्प्रदाय के लोग यज्ञ की भस्म से बनाए गए इस शिवलिंग कि पूजा  सिद्धियों के लिए करते है ।

5.गुड़ शिवलिंग:- सनातन धर्म परंपरा में गुड़ और अन्न से मिल कर भी शिवलिंग के विग्रह कि रचना कि जाती है और इनकी पूजा करने से कृषि और अन्न उत्पादन में वृद्धि होती हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

6.:फल-फूल के शिवलिंग:- फूल से बने शिवलिंग की पूजा करने से भूमि-भवन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता हैं। वहीं, फल से बने शिवलिंग की पूजा करने से घर में अन्न-जल आदि में बरकत बनी रहती।

7.स्वर्ण-रजत से बने शिवलिंग:- सोने और चांदी की धातु से बने शिवलिंग से सुख-समृद्धि तथा धन वैभव की प्राप्ति होती हैं।

8.बिबर मिटटी के शिवलिंग:- बिबर की मिटटी से बने शिवलिंग की पूजा करने से विषैले प्राणी जैसे सर्प-बिच्छू आदि के भय से मुक्ति मिलती हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

9.दही से बने शिवलिंग:- दही को कपड़े में बांध कर बनाया गया शिवलिंग सुख, समृद्धि और धन संपत्ति की प्राप्ति के लिए होता हैं।

10.लहसुनिया शिवलिंग:- लहसुनिया से बने शिवलिंग की पूजा से हमें हमारे शत्रु पर विजय प्राप्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

Posted on August 14, 2021August 14, 2021 By Pradeep Sharma

श्रद्धालुओं को लुभाने वाले स्थान लोहार्गल सूर्यक्षेत्र-

Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-

धार्मिक श्रद्धालुओं को लुभाने वाले स्थान लोहार्गल सूर्यक्षेत्र की बड़ी महिमा है। यह स्थान सीकर से 27 किमी. और जयपुरसे लगभग 120 किमी. दूर है। प्रधानतया यह सूर्यक्षेत्र है, परंतु यहाँ दुर्गा-मन्दिर और शिव-मन्दिर भी हैं। यहाँ ब्रह्महद नामक तीर्थ है, जहाँसे सात धाराएँ निकलती हैं। इसी क्षेत्रमें कोटितीर्थ और रावणेश्वर महादेव भी हैं, जहाँ क्रमश कर्कोटक नाग और रावणने शिवाराधना की थी। शाकम्भरी देवीका और गिरिधारीजी का प्राचीन मन्दिर यहाँ है। इस क्षेत्रकी चौबीस कोसी परिक्रमा होती है। लोहार्गल धाम के पवित्र सूर्य-कुण्ड में स्नानकर एवं सूर्यदेव का पूजन कर यह यात्रा प्रारम्भ की जाती है। इस परिक्रमा के लिये कुछ आवश्यक बातें इस प्रकार हैं-Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

लोहार्गल सूर्यक्षेत्र 24 कोसी परिक्रमा कैसे शुरू करें?

How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama?

गोगा नवमी से एकादशी के बीच किसी भी दिन लोहार्गल के सूर्यकुण्ड में पवित्र जलसे स्नान करके परिक्रमा करने का संकल्प लेना चाहिये। तत्पश्चात् सूर्यकुण्ड के पूरबमें स्थित भगवान् सूर्यनारायणके मन्दिरमें पहुंचकर भगवान् सूर्यदेव से परिक्रमा की स्वीकृति लेनी चाहिये। तथा भली-भाँति सुख-शान्तिसे परिक्रमा पूर्ण कराने के लिये प्रार्थना करनी चाहिये। तत्पश्चात् लोहार्गल सूर्यक्षेत्र की (24 कोसी) परिक्रमा शुरू करनी चाहिये।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

सूर्यक्षेत्र लोहार्गल धाम का माहात्म्य-

The greatness of Suryakshetra Lohargal Dham-

अनादिकाल में वर्तमान सूर्यक्षेत्र ब्रह्मक्षेत्रके नामसे विख्यात था। यहाँ २४ कोसमें विस्तृत पवित्र जलका सरोवर था। समुद्र-पुत्र शंखासुर वेदोंकी चोरी करके इस सरोवर के जलमें छुप गया था। भगवान् विष्णुने मत्स्य-अवतार ग्रहण किया और शंखासुर को मारकर वेद एवं सनातन धर्मकी रक्षा की। उसके बाद यह जल-सरोवर इतना पवित्र हो गया कि इसके दर्शनमात्रसे ही मोक्ष होने लग गया। सभी देवतागण चिन्तित होकर ब्रह्माजीकी शरणमें गये और अपनी चिन्ता व्यक्त की। तब ब्रह्माजीने इस सरोवरको ढकनेका निश्चय किया। उन्होंने हिमालयके पुत्र केतु पर्वत को सरोवर ढकनेका आदेश दिया। केतु- पर्वत ने इस पवित्र सरोवरको ढक लिया। इस पर्वत से ब्रह्मह्रद तीर्थकी सात जलधाराएँ निकलीं। ये सभी पवित्र सात धाराएँ लोहार्गल, किरोड़ी, शाकम्भरी, टपकेश्वर, शोभावती और खेरीकुण्ड परिक्रमाके रास्तेमें पड़ती हैं।केतुपर्वतपर श्रीमालकेतुजीका मन्दिर है।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

कैसे बना लोहार्गल सूर्यक्षेत्र

How Lohargal Suryakshetra was made

त्रेतायुग के प्रारम्भ में भगवान् परशुराम जी ने क्षत्रियों के संहार जनित पाप से निवृत्ति के लिये प्रायश्चित्त यज्ञ किया। जिस स्थान पर यज्ञवेदी बनायी गयी, वहाँ वर्तमान में सूर्यकुण्ड है। जहाँ भी यज्ञवेदी बनायी जाती है, वहाँ पूर्व का स्थान सूर्यका स्थान होता है तथा पश्चिम दिशा में भगवान् शंकर विराजमान होते हैं। यज्ञ पूर्ण होनेके बादसूर्यदेवको यह स्थान मनभावन लगा। उन्होंने सपत्नीक भगवान् विष्णुकी आराधना की और यह स्थान वरदान में माँग लिया। भगवान् विष्णुने सहर्ष यह स्थान भगवान्सूर्यदेव को दे दिया। तबसे इस क्षेत्र में भगवान् सूर्य नारायण सपत्नीक विराजमान हैं और इस क्षेत्रको सूर्यक्षेत्र के नामसे जाना जाता हैLohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

कैसे पड़ा लोहार्गल नाम-

How did the name Lohargal get-

महाभारत के महासंहार के पश्चात् पाण्डवों ने अपने गोत्र हत्या जनित पाप से मुक्ति पाने के लिये कई स्थानों पर भ्रमण किया। इस क्षेत्रमें उनके लोहे के अस्त्र-शस्त्र गल गये तथा इस पवित्र सरोवर में स्नान करनेसे उनकी पापसे मुक्ति हुई। यहाँके पवित्र जलसे लोहे के अस्त्र-शस्त्र गल गये, जिससे इस स्थानका नाम लोहार्गल पड़ा। श्रद्धालुजन यहाँ अस्थि-विसर्जनके लिये आते हैं। आश्चर्य है कि यहाँ के जलमें कुछ ही घंटोंमें अस्थियाँ जलरूप हो जाती हैं।

शाकम्भरी- Shakambhari-

प्राचीन समयकी बात है, दुर्गम नाम का एक महान् दैत्य था। उसकी आकृति बड़ी ही भयंकर थी। उसका जन्म हिरण्याक्ष के वंशमें हुआ था तथा उसके पिता का नाम रुरु था। ब्रह्माजी के वरदान से दुर्गम महाबली हो गया था। अपनी तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उसने चारों वेदों को अपने हाथ में कर लियाऔर भूमण्डल पर अनेक उत्पात शुरू कर दिये। वेदों के अदृश्य हो जाने पर सारी धार्मिक क्रियाएँ नष्ट हो गयीं,सभी यज्ञ-यागादि बन्द हो गये तथा देवताओं को यज्ञभाग मिलना बन्द हो गया। मन्त्र-शक्तिके अभाव में ब्राह्मण भी अपने पथ से च्युत हो गये। नियम, धर्म, जप,तप, सन्ध्या, पूजन तथा देवकार्य एवं पितृकर्म-सभी कुछ लुप्त-से हो गये। धर्म-मर्यादाएँ विशृंखलित हो गयीं। न कहीं दान होता था, न यज्ञ होता था। इसकापरिणाम यह हुआ कि पृथ्वी पर सौ वर्षों तक के लिये वर्षा बन्द हो गयी। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सब लोग दुखी हो गये। सबको भूख-प्यास का महान् कष्ट सताने लगा। कुआँ, बावली, सरोवर, सरिताएँ और समुद्र भी जलसे रहित हो गये। समस्त वृक्ष और लताएँ भी सूख गयीं। समस्त प्राणियोंको भूख-प्यासका महान् कष्ट सताने लगा। वे भूख-प्याससे बेचैन होकर मृत्युकोप्राप्त होने लगे।देवताओं तथा भूमण्डलके प्राणियोंकी ऐसी दशा देखकर दुर्गम बहुत खुश था, परंतु इतनेपर भी उसे चैनन था। उसने अमरावती पर अपना अधिकार जमा लिया। देवता उसके भयसे भाग खड़े हुए, पर जायँ कहाँ, सब ओर तो दुर्गम का उत्पात मचा हुआ था। तब उन्हें शक्ति भूता सनातनी भगवती महेश्वरीका स्मरण आया-Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति।

वे सभी हिमालय पर्वत पर स्थित महेश्वरी योगमाया की शरण में पहुँचे। ब्राह्मण लोग भी जगत्-कल्याणार्थ देवी की उपासना तथा प्रार्थना करनेके लिये उनकी शरणमें आ गये। देवता कहने लगे—महामाये! अपनी सारी प्रजाकीरक्षा करो, रक्षा करो। माँ! जैसे शुम्भ-निशुम्भ, धूम्राक्ष,चण्ड-मुण्ड, मधु-कैटभ तथा महिषासुरका वध कर संसार की रक्षा की है, देवताओं का कल्याण किया है, उसी प्रकार जगदम्बिके! इस दुर्गम नामक दुष्ट दैत्य से हम सबकी रक्षा करो। माँ! घोर अकाल पड़ गया है, हम आपकी शरणमें हैं। हे देवि! आप कोई लीला दिखायें, नहीं तो यह सारा ब्रह्माण्ड विनष्ट हो जायगा। शाकम्भरी, आप शरणागतों की रक्षा करनेवाली हैं, भक्तवत्सला हैं, समस्त जगत्की माता हैं। माँ! आप मेंअपार करुणा है, आपके एक ही कृपा-कटाक्ष से प्रलय हो जाता है, आपके पुत्र महान् कष्ट पा रहे हैं, फिर हे मातेश्वरि! आज आप क्यों विलम्ब कर रही हैं,Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

हमें -दर्शन दें। ऐसी ही प्रार्थना ब्राह्मणोंने भी की। अपने पुत्रोंकी यह दशा माँ से देखी न गयी। भला, पुत्र कष्टमें हो तो माँ को कैसे सहन हो सकता है। फिर =देवी तो जगदम्बा हैं। माताओं की भी माता हैं। उनके ।कारुण्य की क्या सीमा करुणा से उनका हृदय भर आया। वे तत्क्षण ही वहाँ प्रकट हो गयीं। उस समय त्रिलोकी की ऐसी व्याकुलता भरी स्थिति देखकर कृपामयी माँ की आँखों से आँसू छलछला आये। भला, दो आँखों से हृदयका दुःख कैसे प्रकट होता, माँ ने सैकड़ों नेत्र बना लिये, इसीलिये आप शताक्षी (शत+अक्षी) कहलायीं। नीली-नीली कमल-जैसी दिव्य आँखोंमें माँकी ममता आँसू बनकर उमड़ आयी। इसी रूप में माताने सबकोअपने दर्शन कराये। उनका मुखारविन्द अत्यन्त मनोरम था, वे अपने चारों हाथोंमें कमल पुष्प तथा नाना प्रकारके फल-मूल लिये थीं। करुण हृदया भगवती भुवनेश्वरी प्रजा का कष्ट देखकर लगातार नौ दिन और नौ रात रोती रहीं। उन्होंने अपने सैकड़ों नेत्रों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएँ प्रवाहित हुईं, उनसे नौ दिनोंतक त्रिलोकीमें महान् वृष्टि होती रही। इस अथाह जलसे पृथ्वी तृप्त हो गयी। सरिताओं और समुद्रमें अगाध जल भर गया। सम्पूर्ण औषधियाँ भी तृप्त हो गयीं। उस समय भगवतीने अनेक प्रकारके शाक तथा स्वादिष्ट फलदेवताओं तथा अन्य सभीको अपने हाथसे बाँटे तथा खानेके लिये दिये और भाँति-भाँतिके अन्न सामने उपस्थित कर दिये। उन्होंने गौओं के लिये सुन्दर हरी-हरी घास और दूसरे प्राणियों के लिये उनके योग्य भोजन दिया। अपने शरीरसे उत्पन्न हुए शाकों (भोज्य-सामग्रियों)-द्वारा उस समय देवीने समस्त लोकों का भरण-पोषण किया, इसलिये देवी का शाकम्भरी यहनाम विख्यात हुआ। लोहार्गल क्षेत्रके अन्तर्गत कोटनामक गाँव में शाकम्भरी देवीका प्राचीन मन्दिर है। वहीं शर्करा नदी है। परिक्रमा के समय लोग शाकम्भरी मन्दिरमें रात्रि विश्राम करते हैं।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

आगे केरुकुण्ड तथा रावणेश्वर शिवमन्दिर है। उसके आगे नागकुण्ड है।शाकम्भरी से उत्तरकी तरफ पाँच किलोमीटर की दूरी पर काला खेत है, काला खेत के बीचों-बीच सड़क से तीन किलोमीटर पहाड़ियों के मध्य टपकेश्वर महादेव हैं । टपकेश्वर महादेव के ऊपर साक्षात् विष्णु सेवा दे रहे हैं, उसको दर्शनार्थी पारस पिपली बोलते हैं,उसकी जड़में से पवित्र जल निकलता है, जो पहले भगवान् शंकरका जलाभिषेक करता है एवं आने-जानेवाले यात्रियों के स्नान करने, पीने तथा रसोई बनाने के काम आता है, उसके पास में एक बरगद का पेड़ है, जिसका तना बाहर आये दर्शनार्थी को पता नहीं चलता है, उसके ऊपर काले मुँह के बन्दर झूलते रहते हैं। उसके बराबर में स्नान करने का कुण्ड बनाया हुआ है, उसी स्थान पर बालाजी एवं कई देवी-देवताओंकी प्राण-प्रतिष्ठा की गयी है। परिक्रमा करने वालों के लिये वहाँ पर रात्रि विश्राम की व्यवस्था है। टपकेश्वर महादेव के नीचे आने पर सड़क के किनारे टेण्ट की व्यवस्था होती है, जिसमें चाय, गन्ना का जूस, पकौड़ी-कचौड़ी शुल्क देकर या निःशुल्कश्रद्धालु प्राप्त कर सकते हैं। वहीं पर यात्रियों के विश्राम करने एवं सोनेकी व्यवस्था है। परिक्रमा के विश्राम करने एवं सोनेकी व्यवस्था है। परिक्रमाकेअन्तिम दिन रघुनाथगढ़ से आगे खेरी कुण्ड तक पहुँचना होता है। यह वाराह तीर्थ है। यहाँसे भीमेश्वर होते हुए पुनः लोहार्गल पहुँच जाते हैं। भगवान् सूर्यदेव की प्रार्थना से शुरू की गयी चौबीस कोसी परिक्रमा का समापन करने के लिये श्रद्धालु वापस आकर अमावस्या के दिन सूर्यकुण्ड में स्नान करते हैं। तत्पश्चात् भगवान् सूर्यदेवके मन्दिर में उनका दर्शन करते हैं। उसके बाद पापों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिये भगवान् सूर्यदेव से प्रार्थना करते हैं। तत्पश्चात् कुण्डके पश्चिम में स्थित भगवान् शंकर का दर्शन कर पहाड़ी पर स्थित मालकेतु मन्दिर, बरखण्डी बाबा,केदारनाथ मन्दिर सहित क्षेत्र के विभिन्न मन्दिरों में दर्शन करते हुए गन्तव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

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Schools and colleges will open soon in Rajasthan on 12 August 2021

Posted on August 12, 2021August 12, 2021 By Pradeep Sharma

Schools and colleges will open soon in Rajasthan on 12 August 2021.

Some special things regarding the opening of educational institutions for schools and colleges, whose decision has been taken by the Government of Rajasthan late in the evening. Will open with capacity. At least one dose of covid vaccine of teaching or non-educational staff will be required. Both the doses will be mandatory for the coaching center. The coaching center will have to upload the information of its meeting arrangements and staff vaccination on the portal. The activities of classes 1 to 8 online will be regular and it will be encouraged. Offline classes will not be held yet.

Schools and colleges will open soon in Rajasthan on 12 August 2021

Students of classes 9 to 12 who do not want to come or do not have parental consent, will not be forced to attend and will be motivated to study through online medium. There will be a complete ban on the activities of prayer meeting and gathering at one place. Education A separate detailed program and SOP will be issued soon by the department.

Let us tell you that in many states of the country, preparations were going on to open the school in the first week of August. Despite this, the first week of August has passed, yet schools were not yet open in many states including Rajasthan. Earlier it was decided in Rajasthan that schools and colleges will be opened on 2nd August but in Rajasthan also this decision has been postponed till 15th August.

Friends, let us tell you that schools have opened in many states of our country. Where classes have also been started in the school premises for most of the students up to 9th and 12th. In view of such circumstances, complete preparations are going on to open the school in Rajasthan also. Keeping this in mind, the demand for opening of schools on behalf of school operators and parents is increasing day by day in the state. Keeping this in mind, on Saturday, the Kovid-19 Management Committee held a meeting with CM Gehlot and apprised him of the current situation. And the decision has been taken by the Rajasthan government late in the evening. As soon as more information is added regarding this, you will let everyone know about it.

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Schools and colleges will open soon in Rajasthan on 12 August 2021.

Posted on August 12, 2021August 12, 2021 By Pradeep Sharma

राजस्थान में जल्द ही खुलेंगे स्कूल और कॉलेज 12 अगस्त 2021. 

शिक्षण संस्थाओं स्कूल एवं कॉलेज हेतु  खोलने के सम्बंध में कुछ खास बातें जिनका निर्णय आज देर शाम राजस्थान सरकार द्वारा लिया गया है |जिसमे निर्णय लिया गया कि सितम्बर से सभी सरकारी एवम निजी महाविद्यालय, विद्यालय (कक्षा 9 से 12) एवम कोचिंग संस्थान 50 प्रतिशत क्षमता के साथ खुलेंगे।शक्षणिक अथवा गैर शैक्षणिक स्टाफ के कोविड वैक्सीन की कम से कम एक डोज़ आवश्यक रूप से लगी होगी। कोचिंग सेंटर के लिए दोनों डोज़ अनिवार्य होगी।कोचिंग सेंटर को अपनी बैठक व्यवस्था एवम स्टाफ वैक्सीनशन की सूचना पोर्टल पर अपलोड करनी होगी।कक्षा 1 से 8 की गतिविधिया ऑनलाइन रूप से नियमित सुचारू रहेंगी एवम इसे प्रोत्साहित किया जाएगा। ऑफलाइन कक्षाएं अभी नही लगेगी।

कक्षा 9 से 12 के जो विद्यार्थी नही आना चाहते अथवा अभिभावक सहमति नही है उन्हें उपस्थिति के लिए बाध्य नही किया जाकर ऑनलाइन माध्यम से पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाएगा |प्रार्थना सभा एवम अन्य एक स्थान पर एकत्र होने की गतिविधियों पर पूर्ण रोक रहेगी।शिक्षा विभाग द्वारा शीघ्र ही अलग से विस्तृत कार्यक्रम एवम SOP जारी की जाएगी

सितम्बर से सभी सरकारी एवम निजी महाविद्यालय, विद्यालय (कक्षा 9 से 12) एवम कोचिंग संस्थान 50 प्रतिशत क्षमता के साथ खुलेंगे।

आप को बता दे कि देश के कई राज्यों में अगस्त माह के पहले सप्ताह में स्कूल खोलने की तैयारियां चल रही थी | बावजूद इसके अगस्त का पहला सप्ताह बीत चुका है फिर भी राजस्थान समेत बहुत से राज्यों में स्कूल अभी तक खुले नहीं थे | राजस्थान में पहले निर्णय लिया गया था कि 2 अगस्त को स्कूल और कॉलेज खोले जाएंगे लेकिन राजस्थान में भी यह निर्णय 15 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया है|

मित्रों आपको बता दें कि हमारे देश के कई राज्यों में स्कूल खुल चुके हैं| जहां ज्यादातर 9वी और 12वीं तक के विद्यार्थियों के लिए स्कूल परिसर में कक्षाएं भी शुरू कर दी गई है| ऐसी परिस्थितियों को देखते हुए राजस्थान में भी स्कूल खोलने की पूरी पूरी तैयारियां चल रही है| इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश में स्कूल संचालक और अभिभावकों की तरफ से स्कूल खोले जाने की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं| इसको ध्यान में रखते हुए शनिवार को कोविड-19 प्रबंधन कमेटी ने सीएम गहलोत से मीटिंग की और  वर्तमान परिस्थितियों को अवगत करवाया| और राजस्थान सरकार द्वारा आज देर शाम निर्णय लिया गया है | जैसे ही इस सम्बन्ध और अधिक जानकारी मिलाती है आप सभी को इससे अवगत करवाएंगे |

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