श्री चामुंडा माता (चक्रेश्वरी माता) मंदिर ग्राम- खण्डेला सीकर (राज०)
पुजारी : श्री राकेश कुमार शर्मा
पुत्र- पंडित श्री चौथमल जी शर्मा
ब्रह्मपुरी वार्ड न० 20 खंडेला (सीकर) राज०
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नमस्कार मित्रों!
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मित्रो आज मैं आप सभी भक्तजनों को जिस तीर्थ की मानस यात्रा करवाने जा रहा हूँ। उस पावन तीर्थ का नाम है- चामुंडा माता मंदिर, जिसे जैन समाज चक्रेश्वरी माता के नाम से जनता है।
मित्रो यह मंदिर ग्राम खंडेला जिला सीकर (राजस्थान) में है।
श्री चामुंडा माता मंदिर के निर्माण और उद्गम के विषय में बताया जाता है कि सन् 1600 ई० तक यह मंदिर खंडेला ग्राम में मालकेतु पर्वत (जो की अरावली पर्वतमाला का एक भाग है ) की तलहटी के अंतिम छोर में स्थित था।
सन् 1600 ई० के आसपास बताया जाता है की एक रात माताजी के मंदिर के पुजारी को रात्रि में स्वप्न में माताजी ने दर्शन दिए और कहा कि इस मंदिर के नजदीक श्मशान होने से मुझे दुर्गन्ध आती है अतः मेरा मंदिर किसी अन्यत्र स्थान पर स्थापित करो।
पुजारी ने माता जी के चरणों में अपने शब्दों को अर्पित कर कहा कि माता मैं, तो स्वयं आपके द्वारा प्रदत्त भवन में रहता हूं। मुझे अन्यत्र स्थान पर मंदिर का निर्माण किस प्रकार करना होगा और कैसे होगा यह आप मुझे बताए ।
माता ने स्वप्न में पुजारी से कहा तुम प्रातः काल उठकर समस्त ग्राम वासियों को बुलाओ और मेरी पूजा अर्चना के बाद एक सूत की कुकड़ी को हल्दी की गाँठ पर लपेट कर जहां सूर्य अस्त होता है उस दिशा में अर्थात पश्चिम दिशा में फेंक देना । जहां पर यह सूत की कुकडी व् हल्दी की गांठ गिर जाए वहीं पर मेरे मंदिर का निर्माण करना।
अगले दिन माताजी के मंदिर के पुजारी ने समस्त ग्रामवासियों को इकट्ठा किया और माता की पूजा-अर्चना करने के बाद, ठीक वैसे ही किया जैसे माता ने आदेश किया था और सूत की कुकड़ी व हल्दी की गांठ पश्चिम दिशा की तरफ फेंक दी।
उसके बाद सभी ग्रामवासियों ने व पुजारी ने मिलकर पुराने मंदिर की सीध में पश्चिम दिशा की ओर उस हल्दी की गांठ और सूत की कुकड़ी को ढूंढने निकले तो पता चला लगभग 5 किलोमीटर दूर पश्चिम में मंदिर के सामने पहाड़ी की चोटी से कुछ पहले वह हल्दी की गांठ और सूत की कुकड़ी मिली।
अब इसी स्थान पर ग्राम वासियों व पुजारी जी को मंदिर बनाना था पर वहां पानी, मिट्टी और रेत कहां से आएगी और किस प्रकार ये सामन यहा पर पहुचेगा यह एक विकट समस्या बन गयी।
माता की महिमा अपरंपार और अनन्य होती है। सभी ग्रामवासी व पुजारी मिलकर एक परात चुने की और एक मटका पानी का लेकर पहाड़ पर चल दिये। हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर उसी एक परात चूने व् एक मटके के पानी से बना हुआ है। उस दिन माता का चमत्कार हुआ कि चूना जिस मिट्टी से मिला उसे चुना बना दिया व् पानी जिस स्त्रोत में रखा गया उस स्त्रोत में पानी अक्षय हो गया।
इस प्रकार माता चामुंडा देवी के नए मंदिर का निर्माण हुआ और समस्त ग्राम वासियों ने व् पुजारी ने मंदिर में धर्म-कर्म के अनुसार पूजा कर माता की प्रतिमाओं को स्थापित किया।
माता के मंदिर में दाहिनी तरफ महाकाली देवी की प्रतिमा यानी की विग्रह है तथा बाई तरफ महा सरस्वती देवी की प्रतिमा यानी की विग्रह है, ठीक मध्य में चंड और मुंड विनाशिनी मां चामुंडा-ब्रह्माणी एवं रुद्राणी के रूप में विराजमान है।
माता के मंदिर के गर्भ गृह में ही एक शिवलिंग भी है जहां पर भगवान श्री गणेश, कार्तिकेय, मां पार्वती व गंगा माता की प्रतिमा भी स्थापित है।
माता का मंदिर पहाड़ी पर है और पहाड़ी की तलहटी में श्री भैरवनाथ का मंदिर है। माता के दर्शन के उपरान्त भैरव दर्शन का विधान है।
जिस पहाड़ी पर माता का भव्य मंदिर है उसके दाहिने तरफ एक और पहाड़ी है जिसे खेतर-नाथ बाबा की डूंगरी कहते हैं जिस पर बाबा खेतर-नाथ विराजमान हैं।
माता के भव्य मंदिर के ठीक पीछे मालकेत पर्वत की बड़ी-बड़ी विशालकाय पर्वतीय चोटिया है। इन्हीं विशालकाय पर्वतीय चोटियों के भीतर शाकंभरी माता का मंदिर भी है।
माता के भव्य मंदिर की पहाड़ी के ठीक सामने एक ऊंची डूंगरी है जिसे बालाजी की डूंगरी अथवा किला वाले बालाजी भी कहते हैं । बताते हैं किसी समय विशेष में इस डूंगरी पर एक बहुत विशाल दुर्ग हुआ करता था।
श्री चामुंडा माता मंदिर खंडेला ग्राम में जिला सीकर राजस्थान में स्थित है और यह गांव विश्व में इकलौता गांव है जहां एक गांव में 2 राजाओं ने एक समय में राज्य किया।
बड़े राजा के गांव का हिस्सा बड़ा पाना और छोटे राजा के गांव का हिस्सा छोटा पाना कहलाया।
सन् 1600 ई० से लेकर आज तक हर नवरात्रि में माता का भव्य मैला लगता है। जो भक्त माता से सच्चे मन से कुछ भी मांगता है माता उसकी मनोकामना पूर्ण करती है ।
यहां माता चामुंडा देवी सात्विक रूप से विराजमान है और यहां माता को भोग प्रसाद के रूप में सात्विक प्रसाद ही अर्पित होता है। यहां माता को खीर, चूरमा, पूड़ी, हलवा, नारियल, व् मखाने इत्यादि का प्रसाद भोग लगता है।
माता के पृथ्वी पर प्रकट होने का संक्षिप्त में मैं कारण बताना चाहता हूं! जब देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था तब चंड और मुंड नामक दो राक्षस ब्रह्मा के वरदान पाकर पृथ्वी लोक में उत्पात मचाने लगे। देवताओं, मानवओ व ऋषि-मुनियों को मारने लगे, जिससे उनका जीना दूभर हो गया। उसी समय राक्षसों का राजा महिषासुर, ब्रह्मा से वरदान लेता है कि वह ना देवता से मरेगा, ना मानव से मरेगा, ना दानव से मरेगा । और महिषासुर बहुत शक्तिशाली बन गया देवताओं पर आक्रमण करके देवताओं के राजा इंद्र को परास्त कर दिया स्वर्ग के सिंहासन पर अपना आधिपत्य कर लिया । चंड मुंड और महिषासुर सबने मिलकर देवता, मानव को मारना और परेशान करना प्रारंभ किया सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी, विष्णु जी, और भोलेनाथ जी, को अपने इस कष्ट एवं दुःख के बारे में परिचित करवाया।
त्रिदेव ने मिलकर आदिशक्ति का आह्वाहन किया जिसे माता आदिशक्ति मां भवानी चामुंडा माता कहा जाता है मां चामुंडा, चंड-मुंड व् महिषासुर जैसे राक्षसों के वध के लिए भू-लोक पर अवतरित हुई व् इन राक्षसों का वध करके ऋषि-मुनियों, देवताओ, व् मानवो का उद्धार किया।
यहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन पाने हेतु आते हैं दर्शन पाकर धन्य हो जाते हैं। चामुंडा देवी सभी के कष्टों को हरती है। जो भक्त माता को सच्चे मन से याद करता हुआ मंदिर में शीश झुकाता है माता उसकी हर विपदा का निवारण कर उसे आशीर्वाद देती है। किसी भी वक्त पर चाहे कैसी भी लौकिक और अलौकिक विपदा हो, माता उसका हरण कर लेती है। जो माता को आत्मा से ध्याता है, मानता है, उस पर माता की सदैव कृपा और आशीर्वाद रहता है।
माता जी के मंदिर की पूजा अर्चना पुजारी श्री चौथमल जी शर्मा के पूर्वजों के द्वारा होती आ रही है एवं वर्तमान में पुजारी श्री चौथमल जी की देखरेख में माता के मंदिर की पूजा अर्चना होती है वर्तमान रूप से श्री पंडित राकेश कुमार जी मंदिर की पूजा अर्चना का कार्यभार संभालते हैं।
पुजारी :
राकेश कुमार
पुत्र- पंडित श्री चौथमल जी शर्मा
ब्रह्मपुरी वार्ड न० 20
खंडेला (सीकर) राज०
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