ग्रहों का विस्तृत कारक तत्व – Graho ka Prabhav
1. सूर्य – आत्मा, शक्ति, तीक्ष्णता, बल, प्रभाव, गर्मी, अमितत्व, धैर्य, राजाश्रय, कटुता, आक्रामकता, वृद्धावस्था, पशुधन, भूमि, पिता, अभिरूचि, ज्ञान, हड्डी, प्रताप, पाचन शक्ति, उत्साह, वन प्रदेश, आँख, वनश्रमण, राजा, यात्रा, व्यवहार, पित्त, नेत्ररोग, शरीर, लकड़ी, मन की पवित्रता, शासन, रोगनाश, सौराष्ट्र देश, सिर के रोग, गंजापन, लाल कपड़ा, पत्थर, प्रदर्शन की भावना, नदी का किनारा, मूँग, लाल चन्दन, कॉटेदार झाड़ियोँ, उन, पर्वतीय प्रदेश, सोना, तॉबा, शस्त्र प्रयोग, विषदान, दवाई, समुद्र पार की यात्राएँ,
समस्याओं का समाधान, गूढ़ मन्त्रणा आदि का कारक है।
- चन्द्रमा – कविता, फूल, खाने के पदार्थ, मणि, चांदी, शंख, मोती आदि समुद्रोत्पन्न पदार्थ, नमकीन पानी, उस्त्राभूषण, स्त्री, घी, तेल, तिल, नींद, बुद्धि, रोग, आलस्य, कफ, प्लीहा, मनोभाव, हृदय, पाप – पुण्य, खटाई, सुख, जलीय पदार्थ, चॉँदी, गन्ना, गेहूँ, सर्दी से
बुखार, यात्रा, कूऑ आदि स्थान, टी0बी0, सफेद रंग, बेल्ट, तगड़ी, कॉसा, नमक, मन, मनोबल, शरद ऋतु, मुहूर्त्त, मुखशोभा, पेट, शहद, हँसी — मजाक, परिहास कुशलता, तेज चाल, चंचलता, दही, यश, रोजगार लाभ, कन्धे की बीमारियां, राजसी चिन्ह, खून की
शुद्धता, शरीर विकास, चमकीली चीजें मखमली कोमल कपड़े आदि का कारक है। - मंगल – शूरता, वीरता, पराक्रम, आक्रामकता, युद्ध, शस्त्र उठाना, वीर्य हानि, चोरी, शत्रु, लाल रंग, उद्यानपति होना, शोर, पशुधन, राजयोग, क्रोध, मूर्खता, विदेशयात्रा, धीरज, पालक पिता आदि, अग्नि, मौखिक कलह, चित्त, गर्मी, घाव, राजसेवा, रोग, प्रसिद्धि,
अंगक्षति, कटुरस, युवावस्था, मिट्टी के पदार्थ, रूकावट, मांस – भक्षण, दोष – दर्शन, शत्रु पर विजय, तीखा भोजन, सोना धातु, गम्भीरता, पुरूषत्व, शील, मूत्र के रोग, जला हुआ प्रदेश, सूखे वन, धन, खून, काम, क्रोध, सेनापतित्व, वृक्ष, भाई, वन विभाग का अधिकारी, ठेकेदारी, कृषि भूमि, दण्डाधिकारी, सॉप, घर, वाहन – सुख, खून बहना, पारा, बेहोशी आदि का कारक है।
4 बुध बुद्धि, विद्या, घोड़ा, खजाना, गणित, वाक्कला, सेवा, लेखन, नया वस्त्र, दःस्वप्न, नपुंसकता, खाल, गीलापन, वैराग्य, सुन्दर भवन, डॉक्टर, गला, गान विद्या, भिक्षु, तिर्यग् दृष्टि, हँसोड़पन, नम्नता, नृत्य, मन का संयम, नाभि, गोत्र वृद्धि, आन्भ्रप्रदेश की भाषा, विष्णु
की भक्ति, शूद्र, पक्षी, बहन, भाषा का चमत्कार, नगरद्वार, धूल, गुप्तांग, व्याकरण, पुराण, साहित्य व वेदान्त विद्या, जौहरी, विद्वता, मामा, मन्त्र, तंत्र, आयुर्वेद, मन्त्रित्व, जुड़वापन, वनस्पति आदि का कारक बुध है।
- गुरू – शुभ कर्म, धर्म, गौरव, महत्व, पोषण, शिक्षा, गर्भाधान, नगर, राष्ट्र, वाहन, आसन, पद, सिंहासन, अन्न, गृह- सुख, पुत्र, अध्यापन, कर्तव्य बोध, संचित धन, मीमांसा शास्त्र, दही, बड़ा शरीर, प्रताप, यश, तर्क, ज्योतिष, पुत्र, फौज, उदर रोग, दादा, बड़े मकान, बड़ा भाई, राजा क्रोध, रत्नों का व्यापार, स्वास्थ्य, परोपकार, राजकीय सम्मान, तपस्या, दान, गुरूभक्ति, मध्यम श्रेणी का कपड़ा, गृहसुख, धारणात्मक बुद्धि, सभा चतुरता, बर्तन, सुख, कफ, सुन्दर वाहन आदि का अधिपति वृहस्पति है।
- शुक्र – हीरा, मणि, विवाह, प्रेम प्रसंग, दाम्पत्य सुख, आमदनी, स्त्री, मैथुन सुख व शक्ति, खटाई, फूल, यश, जवानी, सुन्दरता, काव्य रचना, वाहन, चाँदी, खुजली, राजसी स्वभाव, सौन्दर्य प्रसाधन का व्यवसाय, गाना, बजाना, आमोद – प्रमोद आदि, तैराकी, विचित्र
कविता, रसिकता, भाग्य, सौन्दर्य, आकर्षक, व्यक्तित्व, ऐश्वर्य, कम खाना, वसन्त ऋतु, वीर्य, जल – क्रीड़ा, नाटक, अभिनय, आसक्ति, राजकीय मुद्रा, कमजोरी, काले बाल, रहस्य की बातें आदि का कारक शुक्र है - शनि – जड़ता, आलस्य, रूकावट, चमड़ा, कष्ट, दु:ख, विपत्ति, विरोध, मृत्यु, दासी, गधा, खच्चर, चांडाल, हीनांग, वनचर, डरावने लोग, स्वामी, आयु, नपुंसकता, पक्षी, दासता, अधार्मिक कार्य, झूठ बोलना, वात रोग, बुढ़ापा, नसें, पैर, परिश्रम, मजदूरी, अवैध सन्तति,
गन्दे व बुरे पदार्थ व विचार, लंगड़ापन, राख, लोहा, काले धान्य, कृषिजीवी, शस्त्रागार, जाति वहिष्कार, सीसा, शक्ति का दुरूपयोग, तुर्क, पुराना तेल, लकड़ी, तामासी गुण, व्यर्थ घूमना, डर, अटपटे बाल, बकरा, भैंस, सार्वभौम सत्ता, कुत्ता, चोरी, कठोर हृदयता, मूर्ख
नौकर व दीक्षा का कारक शनि है। - राहु – छत्र, चेंवर, राज्य, संग्रह, कुतर्क, मर्मच्छेदी वचन, शूद्र, पाप, स्त्री, सुसज्जित वाहन, अधार्मिक मनुष्य, गंगा – स्नान, तीर्थ यात्रा, झूठ, भ्रम, मायाचार, कपट, रात की हवाएँ, रेंगने वाले कीड़े – मकोड़े, गुप्त बातें, मृत्यु का समय, वायु का तेज दर्द, सॉस की बीमारी,
दुर्गापूजा, पशुओं से मैथुन, उर्दू आदि भाषाएँ, कठोर भाषण, अचानक फल देना आदि का कारक राहु है।
- केतु -मोक्ष, शिवोपासना, डॉक्टरी, कुत्ता, मुर्गा, ऐश्वर्य, टी0बी0 पीड़ा, ज्वर, ताप, वायु विकार, स्नेह, सम्पत्ति का हस्तान्तरण, पत्थर की चोट, कॉटा, ब्रह्मज्ञान, ऑख का दर्द, अज्ञानता, भाग्य, मौनव्रत, वैराग्य, भूख, उदरशूल, सींगों वाले पशु, ध्वज, शूद्रों की सभा, बन्धन की आज्ञा को रोकना, जमानत आदि का कारक केतु है। बलवान कारक से उससे सम्बन्धित पदार्थों की प्राप्ति होती है। यदि भावेश भाव पदार्थ का कारक या
स्वयं भाव तीनों ही निर्बल या पीडित हों तो उस भाव से सम्बन्धित फल की प्राप्ति नहीं होती है। साधारणत: जो ग्रह जिस भाव का कारक हो उसी स्थान में बैठकर प्रायः भाव की हानि करता है। शनि इसका अपवाद है। अर्थात् अष्टम भाव में शनि आयु नाशक न होकर आयु को प्रदान करता है । भाव, भावेश व कारक ये तीनों बली हों तो भाव का पूरा फल, दो ही बली होने से थोड़ा कम अर्थात् 283 फल होता है। तथा एक बली होने से /3 फल ही प्राप्त होता है।
अन्य प्रकार से कारकत्व – जन्म लग या चन्द्र से ,4,7,0 भावों में जितने ग्रह स्वोच्च व मूल त्रिकोण व स्वराशि में स्थित हों तो वे परस्पर कारक होते हैं, तथा एक दूसरे को बल प्रदान कर शुभप्रद होते है। इनमें भी दशम भावगत ग्रह विशेषतया कारक अर्थात् फलकारक होता है।
अथवा कहीं भी स्वोच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में स्थित ग्रह या स्वोच्चादि नवांशगत ग्रह भी कारक अर्थात् शुभ फल देने वाले होते हैं । अथवा केन्द्र स्थानों में किसी भी राशि में स्थित ग्रह कारक होते हैं।
इस प्रकार कारक ग्रहों की अधिकता होने से जातक साधारण कुलोत्पन्न होकर भी प्रधानता पाता है, तब राजकुल आदि में पैदा होने पर तो विशिष्ट प्रधानता पाता ही है।
कारकों की फल प्राप्ति – सभी कारक ग्रह अपने से सम्बन्धित या समस्त या कुछ शुभ फल यथावसर इन वर्षों में या इसके उपरान्त देते हैं –
सूर्य – 22 वर्ष , मंगल – 28 वर्ष, बुध – 32 वर्ष, गुरू – 6 वर्ष, शुक्र – 25 वर्ष, शनि – 36 वर्ष, राहु केतु के 42 वर्ष भाग्योदय वर्ष होते हैं।