माँ गंगा के जन्म की कथा - गंगा शप्तमी
हिन्दू संस्कृति की आस्था की आधार स्वरूपा माँ गंगा की उत्पति के बारे में अनेक मान्यताये हैं। हिन्दूओ की आस्था का केंद्र गंगा एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल से माँ गंगा का जन्म हुआ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार गंगा श्री विष्णु जी के चरणों से अवतरित हुई। जिसका पृथ्वी पर अवतरण राजा सगर के साठ हजार पुत्रो का उद्दार करने के लिए इनके वंशज राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हुए। राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजो का उद्धार करने के लिए पहले माँ गंगा को प्रसन्न किया उसके बाद भगवान शंकर की कठोर आराधना कर नदियों में श्रेष्ठ गंगा को पृथ्वी पर उतरा व व अंत में माँ गंगा भागीरथ के पीछे – पीछे कपिल मुनि के आश्रम में गई एवं देवनदी गंगा का स्पर्श होते ही भागीरथ के पूर्वजो [ राजा सगर के साठ हजार पुत्रो ] का उद्धार हुआ।
एक अन्य कथा श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्धानुसार राजा बलि ने तिन पग पृथ्वी नापने के समय भगवान वामन का बायाँ चरण ब्रह्मांड के ऊपर चला गया। वहाँ ब्रह्माजी के द्वारा भगवान के चरण धोने के बाद जों जलधारा थी , वह उनके चरणों को स्पर्श करती हुई चार भागो में विभक्त हो गई।
सीता👉 पूर्व दिशा अलकनंदा👉 दक्षिण चक्षु👉 पश्चिम भद्रा👉 उत्तर
विन्ध्यगिरी के उत्तरी भागो में इसे भागीरथी गंगा के नाम से जाना जाता हैं। भारतीय साहित्य में देवनदी गंगा के उत्पत्ति की दो तिथिया बताई जाती हैं।
प्रथम👉 बैशाख मास शुक्ल पक्ष तृतीया
द्वितीय👉 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की गंगा दशमी इनमे से प्रथम वैशाख मास शुक्ल पक्ष का शुभ पर्व आज है।
गंगा जल का स्पर्श होते ही सारे पाप क्षण भर में धुल जाते हैं। देवनदी गंगा जिनके दर्शन मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं क्यों की गंगा जी भगवान के उन चरण कमलो से निकली हैं जिनके शरण में जाने से सारे क्लेश मिट जाते हैं।