भैरव पूजा एवं उपासना
पूजा अर्चना एवं उपासना के अंतर्गत भैरव को तमस का देवता माना जाता है भैरव को बलि भी अर्पित की जाती है | किंतु जहां बलि प्रथा समाप्त कर दी गई है वहां आम जन समुदाय नारियल फोड़कर अथवा किसी अन्य वस्तु को प्रतीक के रूप में अर्पित करके इस प्रथा को संपन्न करता है | भैरव तामस के देवता होने के कारण तंत्रशास्त्र में इनकी आराधना को प्रधान महत्व प्राप्त होता है | शैव धर्म में भैरव शिव के विनाश से जुड़ा हुआ एक उग्र रूप है | भैरव अर्थात जो देखने में भयंकर हो या जिसे देख कर के भी भय उत्पन्न होता है | भैरव को दंडपाणी भी कहा जाता है अर्थात जिसके हाथ में दंड विधान हो | भैरव की उपासना न केवल भारत बल्कि श्रीलंका नेपाल एवं तिब्बत में भी की जाती है | भैरव की पूजा अर्चना एवं उपासना न केवल हिंदू बल्कि जैन एवं बौद्ध धर्म में भी की जाती है | भैरव विविध रोगों एवं आपत्तियों को दूर करने के लिए अधिदेवता भी हैं | शिव पुराण के अनुसार भैरव की उत्पत्ति शिव के अंश से ही है| मृत्यु के भय के निवारण हेतु भी समाज में काल भैरव की उपासना की जाती है | आदिसमय से भैरव की पूजा अर्चना की दो अलग-अलग शाखाएं है बटुक भैरव उपासना एवं काल भैरव उपासना |

हर्षनाथ भैरव एवं शिव मंदिर
हर्षनाथ भैरव एवं शिव मंदिर राजस्थान राज्य में सीकर शहर के पास स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर है। सीकर से करीब 12 किलोमीटर दक्षिण पूर्व दिशा में हर्षगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ एक गाँव है जिसका नाम हर्षनाथ है |
हर्ष गाँव के पास हर्षगिरि नामक पहाड़ी है, जिसकी उंचाई 3,000 फुट के लगभग है | इस पहाड़ी पर लगभग 900 वर्ष से अधिक प्राचीन भैरव नाथ एवं शिव जी का मंदिर हैं। यहाँ एक काले पत्थर पर उत्कीर्ण लेख भी है, जो शिवस्तुति से प्रारम्भ होता है और जो पौराणिक कथा के रूप में लिखा गया है। लेख में हर्षगिरि अर्थात हर्ष पहाड़ और मन्दिर का वर्णन है और इसमें बताया गया है कि मन्दिर के निर्माण का कार्य आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, सोमवार 1030 विक्रम सम्वत् (956 ई.) को प्रारम्भ होकर विग्रहराज चौहान के समय में 1030 विक्रम सम्वत (973 ई.) को पूरा हुआ था। यह लेख संस्कृत में है और इसे रामचन्द्र नामक कवि ने लेखबद्ध किया था। मंदिर के भग्नावशेषों में अनेक सुंदर कलापूर्ण मूर्तियाँ तथा स्तंभ आदि प्राप्त हुए हैं, जिनमें से अधिकांश सीकर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
शिव एवं हर्षनाथ भैरव का यह मंदिर चौहान शासकों के कुल देवता बताये जाते हैं | हर्ष पहाड़ी पर मुख्य रूप से 3 मंदिर हैं, एक मंदिर भगवान श्री भैरवनाथ जिन्हें हर्ष भैरव नाथ कहते हैं का है | वही दूसरा एक मंदिर पौराणिक मंदिर है किंतु उस मंदिर को विदेशी आक्रांताओ ने अपने आक्रमण से ध्वस्त कर दिया था | अतः उसके ठीक नजदीक में एक अन्य मंदिर है जो भगवान शिव को अर्पित है | ये मंदिर महामेरु शैली में निर्मित मंदिर है। मन्दिर में एक गर्भगृह, अंतराल, कक्षासन युक्त रंग मंडप एवं अर्द्धमंडप के साथ एक अलग नंदी मंडप भी है। अपनी मौलिक अवस्था में यह मन्दिर एक शिखर से परिपूर्ण था जो अब विदेशी अक्रान्ताओ के आक्रमण से खंडित हो चुका है। वर्तमान खंडित अवस्था में भी यह मन्दिर अपनी स्थापत्य विशिष्टताओं एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाओं सहित नर्तकों, संगीतज्ञों, योद्धाओं व कीर्तिमुख के प्रारूप वाली सजावटी दृश्यावलियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल हेतु उल्लेखनीय है। इस मन्दिर से संलग्न एक ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित दूसरा मन्दिर उत्तर मध्यकालीन है, तथा शिव को समर्पित है। कुछ दूरी पर स्थित एक अन्य मन्दिर भैरव को समर्पित है।

हर्षनाथ भैरव मंदिर की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा-
हर्षनाथ भैरव मंदिर की स्थापना को लेकर एक पौराणिक कथा है जिसमें बताया जाता है कि हर्ष और जीण नाम से दो भाई बहन थे एवं हर्ष कि एक पत्नी थी |
हर्ष की पत्नी अर्थात जीण की भाभी जीण के साथ तालाब से पानी लेने जाती है | पानी भरते समय जीण और हर्ष की पत्नी (जीण की भाभी) में एक विवाद शुरू हो जाता है कि जब वह पानी लेकर घर पहुंचेंगे तो घर पर हर्ष सबसे पहले जिसका मटका उतारेगा यह माना जाएगा कि हर्ष उससे अधिक प्रेम और स्नेह करता है | इस निश्चय के होने के बाद जीण और जीण की भाभी दोनों मटका लेकर घर पहुंची परंतु जैसे ही वे दोनों घर पहुंचते हैं हर्ष ने अपनी पत्नी के सिर से पानी का मटका पहले उतार लिया | इस बात को देख हर्ष की बहन जीण नाराज हो गई और वह अरावली की एक पर्वत माला जिसे काजल शिखर कहते हैं, पर पहुंच गई और वहां रुष्ट होकर तपस्या करने लगी | हर्ष जो कि जीण का भाई था, उसे इस विवाद के विषय में कोई जानकारी नहीं थी | बाद में जब हर्ष को इस बात का पता चला तो वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने के लिए, उसे मनाने के लिए काजल शिखर पर पहुंचा हर्ष ने अपना पूरा जतन किया और अपनी बहन को घर ले जाने के लिए राजी करने का प्रयास किया | किंतु जीण ने घर वापस जाने से मना कर दिया हर्ष इस बात से आहत हुआ और हर्ष ने समीप एक दूसरी पहाड़ी पर जिसे हर्ष गिरी पहाड़ी कहते हैं पर जाकर भैरव की तपस्या करने लग गया |
जीण बहन ने जिस शक्ति कि उपासना कि कालांतर में वह उस शक्ति में ही समा गयी | आगे चलकर वहा पर माँ जगदम्बा का एक शक्तिपीठ स्थापित हो गया जिसे आज हम सभी जीण माताजी के नाम से जानते है |
वही दूसरी और हर्ष नाम से भाई ने एक दुसरे पर्वत पर भैरव एवं महादेव कि उपासना की | वह पर्वत आज हर्ष पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है | जहा भगवान् श्री शंकर अपने भैरव रूप के साथ विराजमान है |

