आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ‘ॐ’ की आकृति बन सके। आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। आरती के पश्चात् थाल में रखे हुए फूल देने चाहिए और कुंकुम का तिलक लगाना चाहिए।
बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन किए केवल आरती नहीं की जा सकती है। सदैव किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति के बाद ही आरती करना अच्छा होता है।
आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है। अगर दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी होना चाहिए। साथ ही पूजा-थाल में फूल और कुंकुम भी जरूर रखें।बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन किए केवल आरती नहीं की जा सकती है। सदैव किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति के बाद ही आरती करना अच्छा होता है।
आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंककर रखें। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के बीच भाग पर लगाएं। कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श न करें।
सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान मंत्रों के उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता है। जप का विधान प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण रहा है। मंत्रों में शक्ति का अपार भंडार भरा हुआ है। पूर्ण श्रद्धा से उसकी साधना विधिवत करने से उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म में 36 कोटी देवी-देवता हैं और मंत्र भी अलग-अलग हैं। जिनका अपना-अपना महत्व है। धर्मग्रंथों के मतानुसार भोलेनाथ ऐसे देवता हैं, जो भक्तों को मनभावन लाभ व सुख देते हैं। शिव स्वयं काल के स्वामी हैं। शिव पूजन चाहे घर में करें या मंदिर में जब भी आरती करें उसके बाद शिव मंत्र ‘कर्पूरगौरं’ का जाप अवश्य करें, तभी मिलेगा पुण्य लाभ।
‘कर्पूरगौरं’ मंत्र
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।
मंत्र का अर्थ
कर्पूरगौरं- कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं- करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं- समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम्- जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि- जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।
मंत्र का पूरा अर्थ: जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
मंत्र का महत्व: मान्यता है की जब भगवान शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, उस समय श्री हरिविष्णु ने इस स्तुति का गुणगान किया था। मृत्युलोक में रहने वाले जितने भी जीव हैं उन सभी के अधिपति भोले बाबा हैं। उनसे विनय की जाती है की वह हमारे मन में वास करें और मृत्यु के भय को दूर करें। जिससे हमारा जीवन कल्याणकारी और सुखमय व्यतित हो।