दधिमती माता मंदिर
गोठ - मांगलोद, जायल तहसील, नागौर, (राजस्थान)
दधिमती माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के गोठ व मांगलोद गांव के बीच में स्थित है । यह नागौर से 37 किलोमीटर दूर है । यह उत्तरी भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह चौथी शताब्दी में बनवाया गया था। दधिमती माता लक्ष्मी जी का अवतार है । यह मंदिर 2000 साल पुराना है । दधिमती माता दाधीच ब्राह्मणों व् दाहिमा राजपूतो की कुलदेवी है । इस मंदिर का निर्माण गुप्त संवत 289 को हुआ था । इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि इस मंदिर के गुंबद पर हाथ से पूरी रामायण उकेरी गई है। इस गुंबद का निर्माण 1300 साल पहले हुआ था ।
भगवान श्री राम, माता सीता व लक्ष्मण के साथ वनवास हेतु प्रस्थान के लिए जब अयोध्या से चले और वनवास में उन्होंने किस प्रकार से अपना गुजर-बसर किया तथा रावण से युद्ध किया व सेतु बनाने तथा विशेष घटनाओं से संबंधित चित्रों को इस मंदिर में दर्शाया गया है ।
ब्राह्मण जाट व अन्य जातियों के अलावा दाहिमा एवं पुंडीर राजपूत दधिमती माता को अपनी कुलदेवी मानते हुए इसकी उपासना करते है । इतिहास की दृष्टि से देखें तो दाहिमा राजपूतों का इतिहास दधिमती माता मंदिर के साथ काफी लंबे अरसे से जुड़ा हुआ है । किंतु मानस यात्रा में हम हमारे मन व चित्त को दधिमती माता मंदिर की यात्रा में लगाना उचित समझते हैं अतः हम माता के विषय में अधिक से अधिक जान पाए ऐसा हम प्रयास करेंगे ।
यह कहा जाता है कि दधिमती माता ऋषि दाधीच की बहन हैं । इनका जन्म माघ महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था । माता दधिमती ने दैत्य विकटासुर का वध भी किया था। यह कहा जाता है कि अयोध्या के राजा मांधाता ने यहाँ यज्ञ किया था, जिसके लिए चार हवन कुंड बनाए गए थे । राजा ने आह्वान कर के चारों कून्डो में 4 नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा का जल उत्पन्न किया था। इन कुंडों के पानी का स्वाद अलग ही जान पड़ता है ।
यह धाम कपाल पीठ के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि माता की प्रतिमा का केवल कपाल भाग ही मूर्ति से निकला हुआ है । माता के मंदिर में एक अधर स्तंभ है । जो भूमि से उठा हुआ है । इस अधर स्तंभ पर लोग मन्नत मांग कर मौली बांधते हैं। विजय शंकर श्रीवास्तव के मतानुसार यह मंदिर प्रतिहार कालीन (महामारू शैली) स्थापत्य का सुंदर उदाहरण है । तथा उस युग की कला के उत्कृष्ट स्वरूप को व्यक्त करता है ।
मंदिर के सामने हनुमान जी और भगवान शिव का मंदिर स्थित है। मंदिर के आसपास का प्रदेश प्राचीन काल में दधिमती (दाहिमा क्षेत्र) कहलाता था । इस क्षेत्र से निकले हुए विभिन्न जातियों के लोग यहां ब्राह्मण, राजपूत, जाट आदि दाहिमा ब्राह्मण, दाहिमा राजपूत दाहिमा जाट कहलाए । यह मंदिर सफेद संगमरमर से निर्मित है । बताया जाता है। कि मुगल काल में औरंगजेब ने मंदिर पर हमला किया तब यहां गुंबद पर मौजूद मधुमक्खियों ने औरंगजेब की सेना पर हमला बोल दिया जिससे सैनिक वापस भाग गए थे ।
यह कहां जाता है कि देवताओं ने दधिसागर का मंथन किया था तब दधिमती माता की उत्पत्ति हुई थी । कई किवदंतियों में ऐसा भी जानने को मिला है कि यह मंदिर स्वत ही भूगर्भ से उत्पन्न मंदिर है । जो कपाल पीठनाम से प्रसिद्ध है। मंदिर के पास स्थित कुंड को कपाल कुंड कहा जाता है । चैत्र व अश्विन के नवरात्रों में यहां विशाल मेला भरता है । दाधीच ब्राह्मण तथा निकटस्थ गांव के सर्व जातीय लोग और दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं । नवरात्र की सप्तमी को माता दधिमती की विशाल झांकी निकलती है । जो दर्शनीय होती है । इस झांकी में मां दधिमती जी की शोभायात्रा होती है । और दधिमती माता को पाताल कुंड में स्नान कराया जाता है ।
वर्तमान समय में मंदिर की संपूर्ण व्यवस्था मंदिर ट्रस्ट के द्वारा तथा अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण महासभा के द्वारा की जाती है।यहां विशाल चबूतरो का निर्माण और रहने के लिए कक्ष का निर्माण व अन्य प्रकार की व्यवस्थाओं का व्यवस्थापन अखिल भारतीय दाधीच ब्राह्मण महासभा व मंदिर ट्रस्ट की द्वारा की जाती है । दाधीच ब्राह्मण कुमारों का चूड़ाकरण संस्कार दधिमती माता मंदिर परिसर में करने का रिवाज है । दाधीच ब्राह्मणों की कुलदेवी को समर्पित यह देव भवन भारतीय स्थापत्य एवं मूर्तिकला का गौरव है । चार बड़े चौक वाला यह मंदिर भव्य एवं अत्यंत विशाल है ।