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Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

Posted on August 14, 2021August 14, 2021 By Pradeep Sharma

श्रद्धालुओं को लुभाने वाले स्थान लोहार्गल सूर्यक्षेत्र-

Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-

धार्मिक श्रद्धालुओं को लुभाने वाले स्थान लोहार्गल सूर्यक्षेत्र की बड़ी महिमा है। यह स्थान सीकर से 27 किमी. और जयपुरसे लगभग 120 किमी. दूर है। प्रधानतया यह सूर्यक्षेत्र है, परंतु यहाँ दुर्गा-मन्दिर और शिव-मन्दिर भी हैं। यहाँ ब्रह्महद नामक तीर्थ है, जहाँसे सात धाराएँ निकलती हैं। इसी क्षेत्रमें कोटितीर्थ और रावणेश्वर महादेव भी हैं, जहाँ क्रमश कर्कोटक नाग और रावणने शिवाराधना की थी। शाकम्भरी देवीका और गिरिधारीजी का प्राचीन मन्दिर यहाँ है। इस क्षेत्रकी चौबीस कोसी परिक्रमा होती है। लोहार्गल धाम के पवित्र सूर्य-कुण्ड में स्नानकर एवं सूर्यदेव का पूजन कर यह यात्रा प्रारम्भ की जाती है। इस परिक्रमा के लिये कुछ आवश्यक बातें इस प्रकार हैं-Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

लोहार्गल सूर्यक्षेत्र 24 कोसी परिक्रमा कैसे शुरू करें?

How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama?

गोगा नवमी से एकादशी के बीच किसी भी दिन लोहार्गल के सूर्यकुण्ड में पवित्र जलसे स्नान करके परिक्रमा करने का संकल्प लेना चाहिये। तत्पश्चात् सूर्यकुण्ड के पूरबमें स्थित भगवान् सूर्यनारायणके मन्दिरमें पहुंचकर भगवान् सूर्यदेव से परिक्रमा की स्वीकृति लेनी चाहिये। तथा भली-भाँति सुख-शान्तिसे परिक्रमा पूर्ण कराने के लिये प्रार्थना करनी चाहिये। तत्पश्चात् लोहार्गल सूर्यक्षेत्र की (24 कोसी) परिक्रमा शुरू करनी चाहिये।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

सूर्यक्षेत्र लोहार्गल धाम का माहात्म्य-

The greatness of Suryakshetra Lohargal Dham-

अनादिकाल में वर्तमान सूर्यक्षेत्र ब्रह्मक्षेत्रके नामसे विख्यात था। यहाँ २४ कोसमें विस्तृत पवित्र जलका सरोवर था। समुद्र-पुत्र शंखासुर वेदोंकी चोरी करके इस सरोवर के जलमें छुप गया था। भगवान् विष्णुने मत्स्य-अवतार ग्रहण किया और शंखासुर को मारकर वेद एवं सनातन धर्मकी रक्षा की। उसके बाद यह जल-सरोवर इतना पवित्र हो गया कि इसके दर्शनमात्रसे ही मोक्ष होने लग गया। सभी देवतागण चिन्तित होकर ब्रह्माजीकी शरणमें गये और अपनी चिन्ता व्यक्त की। तब ब्रह्माजीने इस सरोवरको ढकनेका निश्चय किया। उन्होंने हिमालयके पुत्र केतु पर्वत को सरोवर ढकनेका आदेश दिया। केतु- पर्वत ने इस पवित्र सरोवरको ढक लिया। इस पर्वत से ब्रह्मह्रद तीर्थकी सात जलधाराएँ निकलीं। ये सभी पवित्र सात धाराएँ लोहार्गल, किरोड़ी, शाकम्भरी, टपकेश्वर, शोभावती और खेरीकुण्ड परिक्रमाके रास्तेमें पड़ती हैं।केतुपर्वतपर श्रीमालकेतुजीका मन्दिर है।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

कैसे बना लोहार्गल सूर्यक्षेत्र

How Lohargal Suryakshetra was made

त्रेतायुग के प्रारम्भ में भगवान् परशुराम जी ने क्षत्रियों के संहार जनित पाप से निवृत्ति के लिये प्रायश्चित्त यज्ञ किया। जिस स्थान पर यज्ञवेदी बनायी गयी, वहाँ वर्तमान में सूर्यकुण्ड है। जहाँ भी यज्ञवेदी बनायी जाती है, वहाँ पूर्व का स्थान सूर्यका स्थान होता है तथा पश्चिम दिशा में भगवान् शंकर विराजमान होते हैं। यज्ञ पूर्ण होनेके बादसूर्यदेवको यह स्थान मनभावन लगा। उन्होंने सपत्नीक भगवान् विष्णुकी आराधना की और यह स्थान वरदान में माँग लिया। भगवान् विष्णुने सहर्ष यह स्थान भगवान्सूर्यदेव को दे दिया। तबसे इस क्षेत्र में भगवान् सूर्य नारायण सपत्नीक विराजमान हैं और इस क्षेत्रको सूर्यक्षेत्र के नामसे जाना जाता हैLohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

कैसे पड़ा लोहार्गल नाम-

How did the name Lohargal get-

महाभारत के महासंहार के पश्चात् पाण्डवों ने अपने गोत्र हत्या जनित पाप से मुक्ति पाने के लिये कई स्थानों पर भ्रमण किया। इस क्षेत्रमें उनके लोहे के अस्त्र-शस्त्र गल गये तथा इस पवित्र सरोवर में स्नान करनेसे उनकी पापसे मुक्ति हुई। यहाँके पवित्र जलसे लोहे के अस्त्र-शस्त्र गल गये, जिससे इस स्थानका नाम लोहार्गल पड़ा। श्रद्धालुजन यहाँ अस्थि-विसर्जनके लिये आते हैं। आश्चर्य है कि यहाँ के जलमें कुछ ही घंटोंमें अस्थियाँ जलरूप हो जाती हैं।

शाकम्भरी- Shakambhari-

प्राचीन समयकी बात है, दुर्गम नाम का एक महान् दैत्य था। उसकी आकृति बड़ी ही भयंकर थी। उसका जन्म हिरण्याक्ष के वंशमें हुआ था तथा उसके पिता का नाम रुरु था। ब्रह्माजी के वरदान से दुर्गम महाबली हो गया था। अपनी तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उसने चारों वेदों को अपने हाथ में कर लियाऔर भूमण्डल पर अनेक उत्पात शुरू कर दिये। वेदों के अदृश्य हो जाने पर सारी धार्मिक क्रियाएँ नष्ट हो गयीं,सभी यज्ञ-यागादि बन्द हो गये तथा देवताओं को यज्ञभाग मिलना बन्द हो गया। मन्त्र-शक्तिके अभाव में ब्राह्मण भी अपने पथ से च्युत हो गये। नियम, धर्म, जप,तप, सन्ध्या, पूजन तथा देवकार्य एवं पितृकर्म-सभी कुछ लुप्त-से हो गये। धर्म-मर्यादाएँ विशृंखलित हो गयीं। न कहीं दान होता था, न यज्ञ होता था। इसकापरिणाम यह हुआ कि पृथ्वी पर सौ वर्षों तक के लिये वर्षा बन्द हो गयी। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सब लोग दुखी हो गये। सबको भूख-प्यास का महान् कष्ट सताने लगा। कुआँ, बावली, सरोवर, सरिताएँ और समुद्र भी जलसे रहित हो गये। समस्त वृक्ष और लताएँ भी सूख गयीं। समस्त प्राणियोंको भूख-प्यासका महान् कष्ट सताने लगा। वे भूख-प्याससे बेचैन होकर मृत्युकोप्राप्त होने लगे।देवताओं तथा भूमण्डलके प्राणियोंकी ऐसी दशा देखकर दुर्गम बहुत खुश था, परंतु इतनेपर भी उसे चैनन था। उसने अमरावती पर अपना अधिकार जमा लिया। देवता उसके भयसे भाग खड़े हुए, पर जायँ कहाँ, सब ओर तो दुर्गम का उत्पात मचा हुआ था। तब उन्हें शक्ति भूता सनातनी भगवती महेश्वरीका स्मरण आया-Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति।

वे सभी हिमालय पर्वत पर स्थित महेश्वरी योगमाया की शरण में पहुँचे। ब्राह्मण लोग भी जगत्-कल्याणार्थ देवी की उपासना तथा प्रार्थना करनेके लिये उनकी शरणमें आ गये। देवता कहने लगे—महामाये! अपनी सारी प्रजाकीरक्षा करो, रक्षा करो। माँ! जैसे शुम्भ-निशुम्भ, धूम्राक्ष,चण्ड-मुण्ड, मधु-कैटभ तथा महिषासुरका वध कर संसार की रक्षा की है, देवताओं का कल्याण किया है, उसी प्रकार जगदम्बिके! इस दुर्गम नामक दुष्ट दैत्य से हम सबकी रक्षा करो। माँ! घोर अकाल पड़ गया है, हम आपकी शरणमें हैं। हे देवि! आप कोई लीला दिखायें, नहीं तो यह सारा ब्रह्माण्ड विनष्ट हो जायगा। शाकम्भरी, आप शरणागतों की रक्षा करनेवाली हैं, भक्तवत्सला हैं, समस्त जगत्की माता हैं। माँ! आप मेंअपार करुणा है, आपके एक ही कृपा-कटाक्ष से प्रलय हो जाता है, आपके पुत्र महान् कष्ट पा रहे हैं, फिर हे मातेश्वरि! आज आप क्यों विलम्ब कर रही हैं,Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

हमें -दर्शन दें। ऐसी ही प्रार्थना ब्राह्मणोंने भी की। अपने पुत्रोंकी यह दशा माँ से देखी न गयी। भला, पुत्र कष्टमें हो तो माँ को कैसे सहन हो सकता है। फिर =देवी तो जगदम्बा हैं। माताओं की भी माता हैं। उनके ।कारुण्य की क्या सीमा करुणा से उनका हृदय भर आया। वे तत्क्षण ही वहाँ प्रकट हो गयीं। उस समय त्रिलोकी की ऐसी व्याकुलता भरी स्थिति देखकर कृपामयी माँ की आँखों से आँसू छलछला आये। भला, दो आँखों से हृदयका दुःख कैसे प्रकट होता, माँ ने सैकड़ों नेत्र बना लिये, इसीलिये आप शताक्षी (शत+अक्षी) कहलायीं। नीली-नीली कमल-जैसी दिव्य आँखोंमें माँकी ममता आँसू बनकर उमड़ आयी। इसी रूप में माताने सबकोअपने दर्शन कराये। उनका मुखारविन्द अत्यन्त मनोरम था, वे अपने चारों हाथोंमें कमल पुष्प तथा नाना प्रकारके फल-मूल लिये थीं। करुण हृदया भगवती भुवनेश्वरी प्रजा का कष्ट देखकर लगातार नौ दिन और नौ रात रोती रहीं। उन्होंने अपने सैकड़ों नेत्रों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएँ प्रवाहित हुईं, उनसे नौ दिनोंतक त्रिलोकीमें महान् वृष्टि होती रही। इस अथाह जलसे पृथ्वी तृप्त हो गयी। सरिताओं और समुद्रमें अगाध जल भर गया। सम्पूर्ण औषधियाँ भी तृप्त हो गयीं। उस समय भगवतीने अनेक प्रकारके शाक तथा स्वादिष्ट फलदेवताओं तथा अन्य सभीको अपने हाथसे बाँटे तथा खानेके लिये दिये और भाँति-भाँतिके अन्न सामने उपस्थित कर दिये। उन्होंने गौओं के लिये सुन्दर हरी-हरी घास और दूसरे प्राणियों के लिये उनके योग्य भोजन दिया। अपने शरीरसे उत्पन्न हुए शाकों (भोज्य-सामग्रियों)-द्वारा उस समय देवीने समस्त लोकों का भरण-पोषण किया, इसलिये देवी का शाकम्भरी यहनाम विख्यात हुआ। लोहार्गल क्षेत्रके अन्तर्गत कोटनामक गाँव में शाकम्भरी देवीका प्राचीन मन्दिर है। वहीं शर्करा नदी है। परिक्रमा के समय लोग शाकम्भरी मन्दिरमें रात्रि विश्राम करते हैं।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

आगे केरुकुण्ड तथा रावणेश्वर शिवमन्दिर है। उसके आगे नागकुण्ड है।शाकम्भरी से उत्तरकी तरफ पाँच किलोमीटर की दूरी पर काला खेत है, काला खेत के बीचों-बीच सड़क से तीन किलोमीटर पहाड़ियों के मध्य टपकेश्वर महादेव हैं । टपकेश्वर महादेव के ऊपर साक्षात् विष्णु सेवा दे रहे हैं, उसको दर्शनार्थी पारस पिपली बोलते हैं,उसकी जड़में से पवित्र जल निकलता है, जो पहले भगवान् शंकरका जलाभिषेक करता है एवं आने-जानेवाले यात्रियों के स्नान करने, पीने तथा रसोई बनाने के काम आता है, उसके पास में एक बरगद का पेड़ है, जिसका तना बाहर आये दर्शनार्थी को पता नहीं चलता है, उसके ऊपर काले मुँह के बन्दर झूलते रहते हैं। उसके बराबर में स्नान करने का कुण्ड बनाया हुआ है, उसी स्थान पर बालाजी एवं कई देवी-देवताओंकी प्राण-प्रतिष्ठा की गयी है। परिक्रमा करने वालों के लिये वहाँ पर रात्रि विश्राम की व्यवस्था है। टपकेश्वर महादेव के नीचे आने पर सड़क के किनारे टेण्ट की व्यवस्था होती है, जिसमें चाय, गन्ना का जूस, पकौड़ी-कचौड़ी शुल्क देकर या निःशुल्कश्रद्धालु प्राप्त कर सकते हैं। वहीं पर यात्रियों के विश्राम करने एवं सोनेकी व्यवस्था है। परिक्रमा के विश्राम करने एवं सोनेकी व्यवस्था है। परिक्रमाकेअन्तिम दिन रघुनाथगढ़ से आगे खेरी कुण्ड तक पहुँचना होता है। यह वाराह तीर्थ है। यहाँसे भीमेश्वर होते हुए पुनः लोहार्गल पहुँच जाते हैं। भगवान् सूर्यदेव की प्रार्थना से शुरू की गयी चौबीस कोसी परिक्रमा का समापन करने के लिये श्रद्धालु वापस आकर अमावस्या के दिन सूर्यकुण्ड में स्नान करते हैं। तत्पश्चात् भगवान् सूर्यदेवके मन्दिर में उनका दर्शन करते हैं। उसके बाद पापों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्ति के लिये भगवान् सूर्यदेव से प्रार्थना करते हैं। तत्पश्चात् कुण्डके पश्चिम में स्थित भगवान् शंकर का दर्शन कर पहाड़ी पर स्थित मालकेतु मन्दिर, बरखण्डी बाबा,केदारनाथ मन्दिर सहित क्षेत्र के विभिन्न मन्दिरों में दर्शन करते हुए गन्तव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।Lohargal Suryakshetra places to entice devotees-How to start Lohargal Suryakshetra 24 Kosi Parikrama? How Lohargal Suryakshetra was made?

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