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Malasi Bhaironji, Riktiya Bhairav ji Malasi, Sujangarh, Churu, Rajasthan

Posted on June 25, 2021June 27, 2021 By Pradeep Sharma

लोकदेवता मालासी भैरू जी

(Malasi Bhaironji, Malasi, Sujangarh, Churu, Rajasthan)

राजस्थान में लोकदेवता मालासी भैरू जी की बहुत मान्यता है, खासकर बीकानेर, चुरु, जयपुर, और झुंझुनू में । भैरुजी की पूजा  उनके जन्मस्थान और ससुराल वालो दोनों पक्षों में की जाती है।  इन भैरूजी की पूजा उनके जन्म स्थान और ससुराल दोनों जगह पूजा होती है। उनके देवरे कई जगह है जहां जात—जडूले करने उनके भक्त पहुंचते है। रिक्त्या भैरू उनका असली नाम है। जन्म स्थान राजस्थान के झुंझुनू जिले की नवलगढ़ पंचायत समिति के खिरोड़ गांव में है।जन्मस्थान में पूजा करने के लिए हर साल हजारों परिवार आते हैं। उनके वंशज गोरुरम भींचड, सतीश भींचड, जगदीश भींचड  इत्यादि के इस गांव में रहते हैं।

रिक्त्या नाम के जाट समुदाय के एक व्यक्ति का विवाह चुरू जिले के मालासी गांव में जाट समुदाय के दहिया माला राम की बेटी से हुआ था ऐसी जानकारी मालासी गांव वासी बताते हैं कि यह गांव माला राम ने ही विकसित किया था। और जंवाई के रूप में रिक्तियां हंसी मजाक के स्वभाव का व्यक्ति था। और वह अपनी पत्नी को लेने के लिए ससुराल आए हुए थे। संध्या कालीन समय में गांव में आमतौर पर औरतें गीत गाने लगती हैं। तभी सालियों और सालों को मजाक करने का मन हुआ वह अपने जीजा श्री रिक्तया  को लेकर नजदीक खेत में कुए पर गए। और उन्हें उल्टा लटका दिया। जिससे वह भयभीत हो जाए। उनको भयभीत करने के इस मजाक में हाथ छूट गए। और वह जंवाई कुए में जा गिरे। इस घटना में रिक्तियां के जीवन की लीला समाप्त हो गई। देखते ही देखते गांव के लोग इकट्ठे होना शुरू हो गए सरपंच और पंच वहां इकट्ठे हो गए। तभी सरपंच और पंच मिलकर के साले और सालियों को दंडित करने हेतु फैसला सुनाते हैं परंतु ऐसी परिस्थिति में साले और सानिया घबरा जाते हैं और वह रिकत्या की आत्मा से प्रार्थना करते हैं। निवेदन करते हैं, और माफीनामा करते हैं। ये अपनी आत्मा से अपने इस कृत्य को स्वीकार कर क्षमा याचना करते हैं। तभी अचानक जैसे ही सब पंच और सरपंच अपना फैसला सुनाने लगते हैं उसी वक्त एक चमत्कार होता है वहां मौजूद कुछ बच्चे जिनको बोलना नहीं आता है वह बोल पड़ते हैं। और कुछ बच्चे जो स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं होते वह ठीक हो जाते हैं। इस चमत्कार के हो जाने के बाद पंच और सरपंच अपना निर्णय अगले दिन के लिए छोड़ देते हैं। और वो सभी इस खुशी को सब मिलकर मनाते हैं अगले दिन फिर से पंच-सरपंच और ग्रामवासी इकट्ठे होते हैं।अपना फैसला सुनाने के लिए आगे बढ़ते है क्योंकि ग्रामवासी पंच और सरपंच की नजरों में यह अपराध ही था परंतु यह अपराध जानबूझकर हत्या करने की दृष्टि से नहीं किया गया था। जो रिक्त्या जो कि अब भैरव योनी में जा चूका था वह इन्हें क्षमा कर देता है। और समस्त ग्रामवासी पर तथा वहां के छोटे बच्चों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। ऐसे में तब यह निर्णय लिया गया कि इनकी मृत्यु कोई सोची-समझी हत्या नहीं थी, बल्कि इनकी मृत्यु प्रेम के प्रतीक के रूप में हुई। इनके प्राणों का बलिदान हुआ तब यहां के सभी लोगों ने इन्हें लोक देवता मानकर इनको सम्मान दिया। तब से  यहां पर क्या भेरू के नाम से पूजने लगे ठीक उसी कुए पर उनका मंदिर बना हुआ है। कुछ परिवारों में कहावत है कि जन्म स्थान को विशेष महत्व दिया जाए तो कुछ रिक्तिया के ससुराल स्थान को विशेष महत्व देते हैं। किंतु चैत्र और आश्विन नवरात्र और विशेष दिवसों पर यहां मेला आयोजित होता है। और दोनों ही जगह महत्व मिलता है। हरियाणा पंजाब आसाम गुजरात मध्य प्रदेश दूर-दूर से यहां भक्तजन आते हैं।

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