मोहिनी एकादशी

आज मोहिनी एकादशी व्रत है।  मित्रों आज भगवान श्री विष्णु की मोहिनी स्वरूप की पूजा अर्चना होने के कारण आज एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं।  सनातन धर्म संस्कृति में एकादशी का महत्व बहुत अधिक होने से आज के दिन की महत्वता और भी अधिक बढ़ जाती है। भगवान श्री विष्णु के मोहिनी अवतार से संबंधित एक पौराणिक कथा है, चलिए दोस्तों हम उस पौराणिक कथा को थोड़ा आगे जानते हैं तो यह बात है समुद्र मंथन के समय की, जब देवताओं ने और दानवों ने मिलकर के समुद्र मंथन की प्रक्रिया को करने के लिए आगे बढ़े तो समुद्र मंथन के दौरान अनेकों चीजें निकली बहुत से रत्न निकले, विष निकला जिसका पान भगवान श्री भोलेनाथ ने किया।  और साथ ही साथ कई आभूषण निकले कई प्रकार की विद्या निकली वर्तमान समय में हम जो भी संसाधन आज देख रहे हैं ऐसा प्राय तौर पर माना जाता है कि यह मूल रूप से समुद्र मंथन से ही प्राप्त हुए हैं।  तो वार्ता कुछ इस प्रकार से है कि  अंततोगत्वा समुद्र मंथन से अमृत का एक कलश निकला, और उस अमृत को पाने की इच्छा देवताओं में भी थी और दानवों में भी थी। अमृत पान करने से प्रत्येक जीव अजर अमर हो जाता है तो दानवों ने भी चाहा कि हमें यह अमृतपान मिले और हम अजर अमर हो जाएं।  लेकिन ईश्वर का विधान है ईश्वर सदैव धर्म के साथ है, ईश्वर सदैव सच्चाई के साथ है, तो सभी देवताओं में यह हड़कंप मच गया और सभी देवताओं ने सोचा इस प्रकार से दानव यदि अमृत पान करेंगे तो सृष्टि में केवल दानवता हि खेलेगी और देवताओं के दिव्य गुण फैलने में बड़ी मुश्किल होगी तो सभी देवता मिलकर भगवान श्री विष्णु के पास गए और इस समस्या का एक हल मांगने का प्रयास किया भगवान श्री विष्णु ने सभी देवताओं को इस समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया।  तभी समुद्र मंथन से निकला अमृत कभी देवता छीन रहे थे तो कभी दानव छीन रहे थे।  इस बीच एक मनोरम स्त्री उनके बीच में आती है।  उसके रूप और उसके सौंदर्य को देखकर देवता और दानव आपस में झगड़ा भूल जाते हैं।  जो देवता थे वह इस बात से परिचित थे कि यह सुंदर स्त्री भगवान श्री विष्णु की योग माया की शक्ति है।  भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण किया है यह कोई सामान्य स्त्री नहीं है। और इसे कोई वश में नहीं कर सकता तब देवताओं ने इस युक्ति को समझ कर उस सुंदर स्त्री की बातें मानने के लिए राजी हो गए।  तो दानव उस सुंदर स्त्री के पास जाते हैं और कहते हैं कि है स्त्री तुम इतनी सुंदर हो कितनी मनमोहक हो और तुम्हारी सुंदरता से हम कायल हैं।  हमारे बीच यह जो झगड़ा है इसे तुम मिटा दो तुम न्याय के अनुसार निष्पक्ष भाव से इस अमृत को हम में बांट दो।  जिससे हम लोगों में और अधिक झगड़ा ना हो।  ऐसा देत्यो ने प्रस्ताव रखा उस सुंदर स्त्री के सामने अब क्योंकि वह सुंदर स्त्री कोई और नहीं बल्कि भगवान श्री विष्णु का मोहिनी अवतार ही थी वह भगवान श्री विष्णु की योगमाया शक्ति से सृजित है । सुंदर स्त्री ने देत्यो  से कहा कि ऐसा न्याय करने का भार मुझे क्यों दे रहे हो? तुम बुद्धिमान पुरुष को स्वेच्छाचारी स्त्रियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। भगवान श्री विष्णु की मोहिनी अवतार के रूप में इस देवी की परिहास भरी वाणी को सुनकर के देत्यो को और अधिक आश्वासन हो गया और देत्यो एवं दानवों ने  ने वह अमृत का कलश सुंदर स्त्री मोहिनी को थमा दिया।  सुंदर स्त्री ने कहा कि अब न्याय मेरे अनुसार होगा और मैं किस प्रकार से अमृत बाटूंगी यह सब मुझ पर निर्भर करता है। तुम्हें सबको मेरी बात माननी होगी। इस प्रस्ताव के लिए सभी देत्य सहमत हो गए तो मोहिनी ने सभी को अमृत पान कराने के लिए युक्ति संगत हल धुंद लिया और दानवों से कहा की मै कल सभी को अमृत का पान करवाउंगी आप आज सभी जाए और कल स्नान करके लौटे। उसके बाद मोहिनी ने सभी देवताओ को  बिठा दिया।  मोहिनी अवतार में भगवान श्री विष्णु स्त्री रूप में मनमोहक थे उनकी नासिका कपूर मुखारविंद मनोरम थे और भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी अवतार में देवताओं को अमृत पान कराया और देत्यो के साथ छल किया इस बात का ज्ञान जब भगवान श्री शिव को हुआ, उन्हें पता चला कि श्री हरि ने दानवो  को मोहित करके देवताओं को अमृत पिला कर के छल किया है तब भगवान श्री हरि की स्तुति वंदना भोलेनाथ ने की।