विवाह से पूर्व यौन सम्बन्ध एवं व्यभिचार सही या गलत ?
नमस्कार मित्रों! आज का हमारा आर्टिकल विशेष रूप से युवाओं के लिए हैं | खासतौर से उन लोगों के लिए हैं जो विवाह से पूर्व किसी प्रकार के यौनसंपर्क का आनंद ले चुके हैं अथवा विवाह के पश्चात भी अपनी पत्नी या पति के होते हुए किसी अन्य पुरुष या महिला के साथ स्वैच्छिक संभोग कर चुके हैं या इसमें प्रवृत है | इस विषय में उनके मन में एक विशेष प्रकार का संशय बना रहता है, कि कहीं मै अपराध तो नहीं कर रहा हूँ | इस प्रकार का संशय होते हुए भी वे इस प्रकार की गतिविधि में लिप्त होते हैं|
अविवाहित यौनसंपर्क और व्यभिचार दोनों में क्या फर्क है? दोनों किस प्रकार से हमे कर्म के सिद्धांत में बांधते हैं?
जब एक विवाहित व्यक्ति चाहे वह महिला हो या पुरुष हो वह अपने वैध जीवनसाथी को छोड़कर के किसी अन्य महिला या पुरुष के साथ स्वैच्छिक रूप से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर संभोग करता है तो उसे व्यभिचार कहते हैं| ठीक इसी प्रकार से कोई व्यक्ति महिला हो या पुरुष हो विवाह से पूर्व किसी अन्य महिला या पुरुष के साथ अपने शारीरिक संबंधों को स्थापित करता है तो उसे अविवाहित यौनसंपर्क कहते हैं| दोनों ही परिस्थिति में वह अवैध संबंध की श्रेणी में आते हैं| जिसे इंग्लिश में Illicit Sex के नाम से जानते हैं और उर्दू में जिसे जीनाह कहते हैं| आमतौर पर किसी अन्य पुरुष या महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने को ही व्यभिचार कहा जाता है पर इन दोनों के विषय में विभिन्न धर्म और समाज क्या कहते हैं? और हम इसे किस प्रकार देखते है? हमें इसे किस प्रकार से देखना चाहिए? इसमें हम ज्यादा जोर देंगे| इतिहास के एक समय में जहां पर मूसा की व्यवस्था थी और यहूदी रीति रिवाज चला करते थे, वहां पर उन्हीं व्यवस्थाओं के द्वारा और उन्हीं रीति-रिवाजों के द्वारा इन सभी तरह के यौन पापों को मना किया गया था| इन्हें गुनाह की श्रेणी में रखा गया था| इसलिए मित्रों यदि आपने अपने निजी फायदे के लिए, अपने निजी लाभ के लिए, अथवा सुविधा के लिए, या आराम के लिए, बिना हृदय में प्रेम की उपस्थिति के स्वयं की जिंदगी को जीवन के किसी अन्य पहलू (शारीरिक सम्बन्ध) के हवाले कर दिया है, तो निश्चित ही आप व्यभिचार की श्रेणी में चले जाते हैं|
उक्त बात को तीन बार अवश्य पढ़े |
जो सम्बन्ध हमें सीमाओं में बांधे ऐसी कोई भी बेवकूफी से भरा हुआ सम्बन्ध हमारे किसी काम का नहीं होता| इसलिए यह मेरा विचार है कि व्यभिचार बेकार है| जीवन में कोई अच्छा है या बुरा ? किसी सम्बन्ध के बारे में फैसला सुनाने वाला मै कोन होता हूँ ? पर इतना जरूर है कि कोई भी काम या सम्बन्ध हमारे लिए यदि कष्ट पैदा करता है, तो ऐसे सम्बन्ध अथवा काम को त्याग देना ही बेहतर होता है | ऐसे ही सम्बन्ध के आगे घुटने टेक देना बेवकूफी और नासमझी है| वर्तमान में फिलहाल जो सम्बन्ध आपको सबसे अच्छा लग रहा है, कल यही इस बात का एहसास दिलाएगा कि आप कितने बड़े बेवकूफ थे| प्यारे युवा साथियों जीने का यह तरीका बेवकूफी का तरीका कहलाता है और हमें ऐसी नासमझी से बाहर आना चाहिए|
कोई भी संबंध जो अवैध है अर्थात जिसे आम समाज में आम सामाजिक नियमों में या आम समाज के रीति-रिवाजों में स्वीकार नहीं किया जा सके और जिसे प्रदर्शित नहीं किया जा सके| वह सारे रिश्ते अवैध ही माने जाते हैं और ऐसे रिश्तो के बीच होने वाले सभी यौनसंपर्क व्यभिचार की श्रेणी में आते हैं| परंतु यदि कोई व्यक्ति आम जन समुदाय के रीति-रिवाजों को मानते हुए और समाज में खुले मन से एक से अधिक विवाह भी कर ले और अन्य महिलाओं के साथ संबंध स्थापित करता है और उनके साथ संपूर्ण जीवन की गुजर-बसर करता है तो ऐसे संबंध कभी भी व्यभिचार की श्रेणी में नहीं आते| क्योंकि उन्होंने ऐसे संबंधों को सरेआम समाज की स्वीकृति से स्थापित किया है| और इनमें समाज की रजामंदी के साथ-साथ उनकी स्वयं की मर्यादा भी लागू होती है| इनमें अधिकार की प्राप्ति होती है और कर्तव्य की स्थापना भी होती है|
यह बात ध्यान आकर्षित करने योग्य है कि वर्तमान परिस्थिति में एक से अधीक विवाह valid नहीं है| अतः केवल और केवल शारीरिक सम्बन्ध मात्र के लिए किये गए विवाह भी व्यभिचार में ही आते है | हम और आप इसे मानी नहीं कर सकते|
जब एक व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ विवाह के बंधन में बंधता है तो अधिकार एवं कर्तव्य दोनों का निर्माण होता है| किंतु व्यभिचार में कोई प्रकार का अधिकार और कर्तव्य स्थापित नहीं होता| व्यभिचारी मनुष्य या ऐसा कोई अवैध संबंध जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के लिए उत्तरदाई होता है ना दूसरा व्यक्ति पहले व्यक्ति के लिए किसी प्रकार का कोई अधिकारी होता है| किंतु वैध संबंध मैं अधिकार एवं कर्तव्य की उपस्थिति होती है| आम जन समुदाय में अथवा किसी भी धर्म से संबंधित हो इस्लाम धर्म से संबंधित हो, या इसाई धर्म से संबंधित हो, या हिंदू धर्म से संबंधित हो, या अन्य किसी धर्म, से संबंधित हो जब विवाह के बंधन में बंधता है, वह विवाह उसका प्रथम विवाह हो द्वितीय विवाह हो या तृतीय विवाह हो यह कोई मायने नहीं रखता किंतु विवाह के बंधन में बंधने के समय आम जन समुदाय की उपस्थिति होती है| आम जन समुदाय के बीच अधिकार और कर्तव्य की स्थापना की जाती है| फिर विवाह के बंधन में वह बनता है तो इस प्रकार से उस दो व्यक्तियों के बीच स्थापित होने वाले यौन संबंधों को व्यभिचार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता| यह संबंध अवैध नहीं है बल्कि यह वैध संबंध कहलाते हैं| अवैध संबंध ही व्यभिचार की श्रेणी में आते हैं|
क्या व्यभिचार अभाव-ग्रस्तता का परिणाम है ?
व्यभिचार के विषय में आगे पढ़ने से पहले हमें समझना होगा कि क्या व्यभिचार अभावता कि स्थिति के कारण उत्पन्न होता है ? या अन्य किसी और कारण से उत्पन्न होता है ?
पहले मै भी यही समझता था कि अभावता के कारण कोई महिला या पुरुष व्यभिचार की ओर अग्रसर होते होंगे | पर मेरा यह तर्क गलत निकला | मेने पाया कि समाज में ऐसे अनेक पुरुष एवं महिलाये है जिनके पास भोतिक सुख-सुविधा के सभी साधन सामग्री है| उनके पास अच्छा घर है| उनके पास अच्छी जमीन है| उनके पास आधुनिक गाड़ी है| उनके पास सब-कुछ है| उनके पास अच्छा जीवन साथी भी है| तो फिर उनकी ऐसी कोन सी वजह होती है कि वो व्यभिचार की और अग्रसर हो जाते है| जिस सम्बन्ध को ये लोग प्रेम के रूप में परिभाषित करते है और उसके बाद इस प्रकार के सम्बन्ध कि आड़ में अपनी जिस्मानी इच्छा कि पूर्ति करते है| फिर अचानक ऐसा क्या हो जाता है? कि एक निश्चित दिन के बाद् उनका यह जिस्मानी सम्बन्ध भी अपना अस्तित्व खो देता है| उनके इस व्यवहार को हम और आप सही केसे ठहरा सकते है ? उन दो लोगो के बिच के संबंधो का उनके बच्चो पर, समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? उत्तर यह होगा कि ऐसे लोग अपने जीवन में जिस्मानी पहलू को ज्यादा मह्त्व देते है| इस प्रकार के व्यक्ति, पुरुष हो या महिला पशु समान ही समझे जा सकते है|
अधिकांश लोग व्यभिचार को यह तर्क देकर के जायज ठहराते हैं कि यह तो नैसर्गिक और प्राकृतिक है हर व्यक्ति के लिए सेक्स करना (जिसे आप शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करना कह सकते है) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है इसलिए वह व्यभिचार को जायज ठहरा देते हैं| और व्यभिचार को जस्टिफाई करते हैं पर उन सभी के लिए मेरे पास एक सटीक उत्तर यह है कि जिस प्रकार से इंसान को लैट्रिन आना, थूक आना पसीना आना नैसर्गिक है प्राकृतिक है| इसके बावजूद क्या हम हर कहीं पर थूकते हैं? क्या हम हर कहीं पर पेशाब करते हैं? क्या हम हर कहीं पर लैट्रिन जाते हैं? क्या हमने इनके लिए कोई मर्यादा निश्चित नहीं की? क्या हम मर्यादित तरीके से लैट्रिन जाना, पेशाब करना नहीं करते? क्या हम हमारे बच्चों को यह शिक्षा नहीं देते कि किस प्रकार से पाखाना जाना है? और किस प्रकार से हमें उत्सर्जन क्रिया को करना है? कब करना है? क्या हमने इसका समय और स्थान सुनिश्चित नहीं किया? हमने बिल्कुल इन सारी चीजों को सुनिश्चित किया है तभी हम पशुओं से भिन्न है| तभी हम मानव प्रजाति पशुओं से भिन्न कहलाते हैं| वरना पशु भी यह नैसर्गिक क्रिया करता है पर पशु की यह नैसर्गिक क्रिया हर कहीं और हर किसी समय पर हो सकती है| परंतु मनुष्य पर यह बात लागू नहीं होती मनुष्य अपने को मर्यादा में रखता है और अपने आप को मनुष्य होने का परिचय देता है| ठीक वैसे ही सेक्स करना भी एक नैसर्गिक प्रक्रिया है पर कब करना है? किसके साथ करना है? और कैसे करना है? इसे मर्यादित होना आवश्यक है| इसके मर्यादित होने में ही समाज का और मनुष्यता का भला है| यदि यह मर्यादित नहीं होता है तो अमर्यादित सेक्स ही व्यभिचार का कारण बनता है|
व्यभिचार के अपराध के कई कारण हो सकते है- तो मेरे विचार इस सन्दर्भ में यह है कि यह स्वयम के लोभ के कारण और शारीरिक इच्छा पूर्ति कि लालच इसको आधार देती है ना कि किसी प्रकार कि अभावता |
प्रत्येक पुरुष अथवा महिला किसी न किसी प्रकार की वस्तु के लिए अभावग्रस्त था की स्थिति में होता ही है अभाव ग्रस्त उतरा हमें यह कारण नहीं देती कि हम कोई व्यभिचार की प्रक्रिया में लिप्त हो किंतु कोई भी व्यक्ति फिर भी व्यभिचार में लिप्त होता है तो यह उसका स्वयं का जिस्मानी पहलू है उसके स्वयं का जिस्मानी पहलू उसके अन्य पहलुओं पर अधिक हावी हैं इसीलिए वह व्यभिचार के इस प्रपंच में पड़ता है कहने का अभिप्राय यह है कि यदि वह अपने जिस्मानी पहलू को अधिक महत्व देता है तो यह उसका उसका निजी मसला है पर यहां यह बात स्वयं सिद्ध है कि जब भी वह अपने निजी मसले के कारण किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई संबंध स्थापित करता है तो ऐसे स्थापित किए गए संबंध को अवैध संबंध करार नहीं दिया जाता
अवैध संबंधों की स्थापना हमेशा लोग और लालच के वशीभूत ही होती है और लोग और लालच के वशीभूत स्थापित किए गए सभी संबंध भविष्य में एक निरर्थक परिणाम को जन्म देते हैं इसे धर्म के चश्मे से देखने की बजाय इसे सामाजिक दर्शन से देखेंगे तो ज्यादा समझ पाएंगे कि सही और गलत क्या है कौन सी ऐसी चीज है जो मनुष्य को मनुष्यता का परिचय कराती है और पशुता से भिन्न करती है तो वह होती है मर्यादा जी हां मित्रों मनुष्य ने सदैव ही अपने आप को मर्यादित करना सीखा है और मनुष्य ने मर्यादित करना सिखा इसीलिए मनुष्य की मनुष्यता जीवित है जो मनुष्य अपनी मर्यादा से बाहर चले जाते हैं वे सदैव अपराध की ओर ही अग्रसर होते हैं सही और गलत का परिचय मर्यादा से ही स्थापित किया जाता है जैसे-जैसे नवजात शिशु बड़ा होता है मर्यादा की सीमा भी बढ़ती जाती हैं और वह मनुष्यता के विकास के क्रम में आगे बढ़ता चला जाता
हम कोई भी व्यवहार करते हैं तो उसे व्यवहार से संबंधित एक निश्चित ऊर्जा खर्च होती है और वह ऊर्जा हमारे दिमाग के किसी एक हिस्से में स्थित होती है ऐसा बायो लॉजिकल अवधारणा है
तो उसे व्यवहार विशेष से संबंधित ऊर्जा की मात्रा औसत से अधिक हो जाती है तो यह मुश्किल हो जाता है कि उस निश्चित व्यवहार को करने से हम रोके और हम बाध्य हो जाते हैं उस व्यवहार को करने के लिए और वह व्यवहार सोते ही एग्जीक्यूट हो जाता है
जब हम किसी व्यक्ति को जोर जबरदस्ती एक स्थान पर बिठा देते हैं तो एक निश्चित समय के अंतराल के बाद उसे जब पेशाब लगता है तो पेशाब लगना उसका एक मानवीय नैसर्गिक व्यवहार है और इस व्यवहार से संबंधित एक निश्चित ऊर्जा होती है जो उसके मस्तिष्क में एक जगह इकट्ठे होती है यह ऊर्जा के बढ़ते बढ़ते ही वह इस व्यवहार को करने के लिए बाध्य हो जाता है
ित्रों जहां हमारा शरीर एक रथ के समान होता है तो उस रथ में जो रति है वह हमारी आत्मा है और इस रथ के जो घोड़े हैं जो इस मनुष्य शरीर रूपी रथ को आगे ले जा रहे हैं वह हमारे मन है किंतु हमारा मन स्वतंत्र नहीं है कि वह हर कहीं चला जाए और हर कहीं की यात्रा कर लें इसके लिए आत्मा रूपी रथी सदैव मन को विवेक व बुद्धि रूपी लगाम से नियंत्रित करता है किंतु कभी-कभी हमारे मन पर बुद्धि व विवेक की लगाम कार्य करना बंद कर देती है इससे हमारा मन मदिरालय पहुंच जाता है मंदिर में पहुंचकर के तो किसी अमुक व्यवहार के प्रति हमारे मस्तिष्क में किस प्रकार की ऊर्जा का निर्माण होगा और उस उर्जा के निर्माण से ही उसे व्यवहार का संपादन होगा यह हमारे मन रुपए घोड़ों पर निर्भर करता है मन रूपी घोड़ों में संकल्प और विकल्पों उत्पन्न होते हैं किंतु हमारी आत्मा तय करती है बुद्धि व विवेक रूपी लगा हमसे कि इन विचारों को संपादित किया जाए या नहीं किया जाए जब विवेक व बुद्धि निष्क्रिय सिद्ध हो जाते हैं तो मन भी निष्क्रिय सिद्ध हो जाता है और हम हर किसी विचार पर जो कि निरर्थक हैं उस पर ऊर्जा निर्मित करना शुरू कर देते हैं
दोस्तों शादी से पहले सेक्स और एडल्टरी से जुड़ी मेरी जानकारी के अनुसार मैंने आपके साथ अपने विचार साझा किए, आप मेरे विचारों से कितना सहमत हैं और कितना असहमत हैं, आप मुझे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं, उस उम्मीद में कुछ अच्छा हम सोचेंगे और कुछ अच्छा लिखेंगे।
धन्यवाद!