मन और आत्मा के सुख-दुख की अनुभूति के संबंध में-
मन बुद्धि आत्मा और शरीर का संबंध
नमस्कार मित्रों हमारा शरीर एक रथ है। और उस रथ में हमारी आत्मा एक रथी के रूप में है। हमारी आत्मा एक रथी के रूप में होने पर हमारा मन उस रथ का अर्थात उस शरीर रूपी रथ का एक घोड़े का काम करता है। और उस घोड़े पर लगाम के रूप में हमारी बुद्धि काम करती है। ऐसा प्राय तौर पर शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। हमारी आत्मा हमारे शरीर रूपी रथ के माध्यम से समस्त जगत में विचरण करती है। और जीवन के सुख और दुख की अनुभूति शरीर रूपी रथ को करवाती है। जिसका अनुभव आत्मा स्वयं भी करती है। दोस्तों आपको बता दें कि हमारा मन कई प्रकार के संकल्प और विकल्प लेता है। तो उन संकल्प और उन विकल्पों में क्या श्रेष्ठ है और क्या श्रेष्ठ नहीं है ऐसा बुद्धि के द्वारा जांचा और परखा जाता है। बुद्धि सदा आत्मा के अधीन होती है। और आत्मा बुद्धि के माध्यम से घोड़े पर लगाम लगाती है। इसी प्रकार हमारे मन में अनेकों प्रकार के विचार आने पर भी हम कुछ विचारों को संपादित करते हैं और कुछ विचारों को संपादित नहीं करते, क्योंकि हमारी बुद्धि हमारे मन को यह ज्ञात करवाती है कि किन विचारों पर हमें आगे बढ़ना है और किन विचारों पर हमें आगे नहीं बढ़ना, परंतु कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारा मन हमारी बुद्धि का उल्लंघन करता है। और हमारा मन बुद्धि के उल्लंघन के साथ ही हमारे आत्मा का भी उल्लंघन करता है इससे हमारा मन रूपी घोड़ा हर कहीं विचरण करने के लिए चला जाता है जिस पर कोई लगाम नहीं होती है। तो ऐसी स्थिति में मन को कुछ भी निकृष्ट परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। और निकृष्ट परिस्थितियों का सामना करने पर मन को आघात भी लग सकता है, और मन दुखी भी हो सकता है हमारा विषय है कि हमारा मन दुखी क्यों होता है? हमें मन को तकलीफ क्यों होती हैं? हमारा विषय है कि हमारे जीवन में दुख प्राय तौर पर क्यों आते हैं? तो इसका सीधा-सीधा अगर उत्तर हम ढूंढे तो वह होगा हमारा मन जब जब हम हमारे मन को बुद्धि के नियंत्रण से मुक्त कर देते हैं तब तक मन उन्मादी हो जाता है। और मन हर कहीं भटकने लगता है और भटकता हुआ वह इस शरीर को और आत्मा को दोनों को निकृष्ट परिस्थितियों में ले जाता है। और निकृष्ट परिस्थितियों में जाने के बाद यह परिणाम आत्मा के लिए और शरीर के लिए दोनों के लिए कष्टदायक होते हैं। मित्रों आपने अपने जीवन में अनुभव किया होगा कि कई बार हमें ऐसा लगता है कि काश मैं यहां नहीं आया होता तो कितना अच्छा होता? ऐसा तभी लगता है क्योंकि उस वक्त आप का मन उन्मादी हो गया था। और आपका मन आपकी बुद्धि के नियंत्रण से मुक्त हो करके और वहां आपको और आपकी आत्मा को मतलब आपके शरीर को और आपकी आत्मा को दोनों को वहां ले गया। और वहां कोई अनहोनी हो जाने पर किसी से झगड़ा फसाद हो जाने पर, आपका मन पश्चाताप करता है कि काश मैं यहां नहीं आया होता? तो दोस्तों सदा अपने मन को अपनी बुद्धि और अपनी आत्मा के अधीन रखो आपकी बुद्धि और आपकी आत्मा, आपके मन को जो आदेश जो निर्देश दे उसी का पालन करो