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THE HOLY TOUR & TRAVEL OF TEMPLES IN INDIA

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पिशाच मुक्तेश्वर महादेव मंदिर

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

पिशाच मुक्तेश्वर महादेव मंदिर की कहानी

कलियुग में सोमा नाम का शूद्र हुअ करता था। धनवान होने के साथ ही सोमा नास्तिक था। वह हमेशा वेदों की निंदा करता था। उसको संतान नहीं थी। सोमा हमेशा हिंसावृत्ति में रहकर अपना जीवन व्यतीत करता था। इसी स्वभाव के कारण सोमा कष्ट के साथ मरण को प्राप्त हुआ। इसके बाद सोमा पिशाच्य योनि को प्राप्त हुआ। नग्न शरीर ओर भयावह आकृति वाला पिशाच्य मार्गो पर खड़े होकर लोगो को मारने लगा। एक समय वेद विद्या जानने वाले सदा सत्य बोलने वाले कहीं जा रहे थे, पिशाच्य उनको खाने के लिए दौड़ा। तभी ब्राम्हण को देखकर पिशाच्य रूक गया ओर संज्ञाहीन हो गया। पिशाच्य को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है। ब्राम्हण ने पिशाच्य से पूछा तुम मुझसे घबरा क्यों रहे हो। पिशाच्य ने कहा तुम ब्रम्ह राक्षस हो इसलिए मुझे तुमसे भय लग रहा है। यह सब सुनकर ब्रम्हण हंसने लगे ओर पिशाच्य को पिशाच्य योनि से मुक्त होने का मार्ग बताया। उन्होने कहा द्रव्य हरण करने ओर देवता के द्रव्य को चुराने वाला पिशाच्य योनी को प्राप्त होता है। ब्राम्हण के कटु वचनों को सुनकर पिशाच्य ने मुक्ति का मार्ग पूछा। ब्राम्हण ने बताया कि सब तीर्थो में उत्तम तीर्थ है अवंतिका तीर्थ जो प्रलय में अक्षय रहती है। वंहा पिशाच्य का नाश करने वाले महादेव है। ढूंढेश्वर के दक्षिण में देवताओं से पूजित पिशाचत्व को नाश करने वाले महादेव है। ब्राम्हण के वचनो को सुनकर वह जल्दी से वहां से महाकाल वन की ओर चल दिया। वहां क्षिप्रा के जल से स्नान कर उसने पिशाच मुक्तेश्वर के दर्शन किए। दर्शन मात्र से पिशाच दिव्य देव को प्राप्त हो गया। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पिशाच मुक्तेश्वर महादेव का दर्शन कर पूजन करता है उसे धन ओर पुत्र का वियोग नहीं होता ओर संसार में सभी सुखों को भोगकर अंतकाल में परमगति को प्राप्त करता है।

मंदिर

SANGAMESHWAR MAHADEV MANDIR UJJAIN

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

संगमेश्वर महादेव मंदिर की कहानी

बहुत पुरानी बात है। कलिंग देश में सुबाहू नाम के राजा हुआ करते थे। उनकी पत्नी दृढधन्वा (कांचीपुरी के राजा) की कन्या विशालाक्षी नाम की थी। दोनो परस्पर प्रेम से रहते थे। राजा को माथे मे दोपहर में रोज पीडा हुआ करती थी। निपुण वैद्यों ने ओषधियां दी किन्तु पीडा दूर नही हुई। रानी ने राजा से पीडा का कारण पूछा। राजा ने रानी को दुखी देखकर कहा, पूर्व जन्म में कर्म से शरीर को सुख-दुख हुआ करता है। इतना सुनने के बाद भी रानी संतुष्ट नही हुई। तब राजा ने कहां में इसका कारण यहां नही कहूंगा। महाकाल वन मे चलों वहां पूरी बात समझा सकूंगा। सुबह होते ही राजा सेना ओर रानी के साथ महाकाल वन अंवतिका नगरी की ओर चल दिए। पाताल में गमन करने वाली गंगा तथा नीलगंगा ओर क्षिप्रा इनका जहां संगम हुआ है वहां ठहरा ओर इनके पास जो महादेव है उनका नाम संगमेश्वर है। राजा ने क्षिप्रा तथा पाताल गंगा का जल लेकर महादेव का पूजन किया। इतना सब देखकर रानी ने फिर पूछा राजन अपने दुख का कारण बताइए। राजा ने हंसते हुए कहा रानी आज तो थक गए है कल बताएगें। सुबह रानी ने फिर पूछा कि अब तो बता दीजीए। तब राजा ने कहा पूर्व जन्म में में नीच शुद्र था। वेदों की निंदा करने के साथ लोगो के साथ विश्वासघात करता था। तुम भी मेरे साथ इस कार्य में भागीदारी निभाती थी। हमसे जो पुत्र उत्पन्न हुआ वह भी पापी हुआ तथा बारह वर्ष तक अनावृष्टि के कारण प्राणी मात्र दुखी हो गए भयभीत रहने लगा। उस समय मुझे वियोग हो गया। मै अकेला रहने लगा। तब मुझे वैराग्य प्राप्त हुआ ओर अंत मे मैने कहा धर्म ही श्रेष्ठ है, पाप करना बुरा है। मैने अंत समय में धर्म की प्रशंसा की थी इसलिए क्षिप्रा जी में मत्स्य बना ओर तुम उसी वन में श्येनी (कबूतनी) बन गई। एक दिन दोपहर को अश्लेषा के सूर्य (श्रावण) में त्रिवेणी से बाहर निकला ओर तुम्हे लेकर संगमेश्वर के पास ले गया। पारधि ने हम दोनो का शिकार कर लिया। हमने अंत समय में संगमेश्वर के दर्शन किये थे, इसलिए पृथ्वी पर जन्म मिला है। सारी बाते बताकर राजा ने कहा रानी अब मै हमेशा संगमेश्वर महादेव के पास रहुगा। रानी यदि तुम्हे जाना हो तो पुनः राजमहल लौट जाओं । रानी ने कहा राजन जैसे शिव बिना पार्वती, कृष्ण बिना राधा ठीक उसी प्राकर में आपके बिना अधूरी हूं। मान्यता है कि पूर्व जन्मों में वियोग से मरे हुए पति पत्नी संगमेश्वर महादेव के दर्शन से मिल जाते है।

मंदिर

SHREE PRAYAGESHWAR MANDIR, UJJAIN

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

श्री प्रयागेश्वर महादेव, मंदिर की कहानी  

काफी समय पहले एक राजा थे शांतनु। धर्मात्मा ओर वेदों को जानने वाले राजा एक दिन सेना के साथ शिकार करने लिए वन में गए। वहा एक स्त्री को देखा। राजा ने उससे परिचय पूछा तो स्त्री ने कहा कि राजन आप मेरा परिचय न पूछें, आप जो चाहते है उसके लिए वह तैयार है। इसके लिए उसने एक शर्त रखी की वह रानी बनने के बाद जो भी करें राजा कभी उससे उस बारे में कुछ नही पुछेगा। राजा ने स्वीकृति दी ओर स्त्री से विवाह के कर लिया। विवाह के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया और तुरंत नदी में प्रवाहित कर दिया। वचन के कारण राजा रानी से प्रश्न न पूछ सका। आठवें पुत्र को रानी नदी में प्रावाहित करने जा रही थी, तभी राजा ने रानी को रोका और कहा कि तुम इस पुत्र को नदी में प्रवाहित मत करों। रानी ने कहा कि आपको पुत्र चाहिए मै आपको पुत्र सौपती हूं और वचन को तोडने के कारण मै आपका त्याग करती हूं। मै जन्हू की कन्या गंगा हूं और देवताओं के कार्य सिद्ध करने के लिए मैने आपसे विवाह किया था। यह आठ वसु है जो वश्ष्ठि ऋषि के श्राप के कारण मनुष्य योनि में आए थे। गंगा वहां से आगे जाकर पुत्र हत्या के पाप के कारण रूदन करने लगी। गंगा के रूदन को सुनकर नारद मुनि आए और रूदन का कारण पूछा। गंगा ने कहा महर्षि मैने पुत्रो की हत्या की है। मुझे इस पापकर्म से मुक्ति कैसे मिलेगी। नारद मुनि ने कहा गंगा तुम अवंतिका नगरी में जाओं जहां तुम्हारी सखी क्षिप्रा रहती है । वहां दुर्धेश्वर महादेव के दक्षिण में स्थित महादेव का पूजन करों, जिससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगें। गंगा अवंतिका नगरी आई ओर सखी क्षिप्रा के साथ मिलकर भगवान शिव का पूजन किया। फिर वहां सूर्य की पुत्री यमुना ओर फिर सरस्वती भी आ मिली। इस बीच इंद्र ने नारद मुनि से पूछा कि मुनिवर प्रयाग नजर नही आ रहा तो नारद ने कहा कि वह महाकाल वन में गया होगा, जहां चार नदियों का मिलन हो रहा है। प्रयाग के बाद इन चार नदियों के मिलन के कारण शिवलिंग प्रयागेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए। मान्यता है कि जो भी मनुष्य प्रयागेश्वर महोदव के दर्शन कर पूजन करता है उसके सभी पापों का नाश होता है ओर मोक्ष को प्राप्त करता है।

मंदिर

SHREE PUSHPDANTESHWAR MANDIR STORY, UJAAIN

Posted on July 26, 2021July 30, 2021 By Pradeep Sharma

श्री पुष्पदन्तेश्वर महादेव, मंदिर की कहानी –

काफी समय पहले एक ब्राम्हण था तिमि। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसने कई प्रकार से भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की । शिव के प्रसन्न न होने पर उसने और भी अधिक कठोर तप प्रांरभ कर दिया, इस प्राकर बारह वर्ष बीत गए। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शंकर को कहा कि यह तिमि नामक ब्राम्हण कई वर्षो से आपकी आराधना कर रहा है। उसके तेज से पर्वत प्रकाशमान है ओर समुद्र सूख रहा है। आप उसकी कामना की पूर्ति करें। पार्वती की बात मानकर शिव ने अपने गणो को बुलया ओर कहा कि तुम मे से कोई एक ब्राम्हण के यहां पुत्र रूप में जन्म लो। इस पर शिव के एक गण पुष्पदंत ने कहा कि प्रभु कहां पृथ्वी पर जन्म लेकर दुख भोगेगे हम आपके पास कुशल से है। शिव ने क्रोध में कहा कि तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी अब तुम पृथ्वी जाओं। शिव के श्राप के कारण पुष्पदंत पृथ्वी पर गिर पड़ा। शिव ने दूसरे गण वीरक से का वीरक तुम ब्राम्हण के घर जन्म लो, मै तुम्हारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करूगा। पुत्र पाकर ब्राम्हण प्रसन्न हुआ। दूसरी ओर पुष्पदंत रूदन करेन लगा ओर कहा कि उसने शिव की आज्ञा नहीं मानी। तब पार्वती ले उससे कहां कि पुष्पदंत तुम महाकाल वन के उत्तर में महादेव है उकना पूजन करों। शिव ने भी पुप्पदंत को शिवलिंग की उपासना करने की आज्ञा दी। पुष्पदंत महाकाल वन गया ओर वहां शिवलिंग के दर्शन कर पूजन किया। उसके पूजन से शिव प्रसन्न हुए ओर अपनी गोद में बैठाया। उसे उत्तम स्थान दिया। पुष्पदंत के पूजन करने के कारण शिवलिंग पुष्पदंतेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पुष्पदंतेश्वर के दर्शन करेगा उसके कुल में सात कुलो का उद्धार होगा ओर अंतकाल में शिवलोक को प्राप्त करेगा।

मंदिर

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