माता सीता का प्राकट्य दिवस : जानकी नवमी
वैशाख शुक्ल नवमी -21 मई 2021
वैशाख शुक्ल नवमी को सीता नवमी कहते हैं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्यान काल में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ ज्योति हुई भूमि तथा हल्के लोग को भी सीता कहा जाता है. इसलिए बालिका का नाम सीता रखा गया था। अतः इस पर्व को जाने की नवमी भी कहते हैं मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है वह राम सीता का विधि विधान से पूजन करता है उसे 16 महान दानों का फल, पृथ्वी-दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है। इस दिन माता सीता के मंगलमय नाम – श्री सीताजी नमः ओम श्री सीतारामाय नमः का उच्चारण करना लाभदायक रहता है सीता नवमी की पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी धर्मधुरीण ब्राह्मण निवास करते थे उनका नाम देवदत्त था। उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपवती पत्नी थी उनका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षा के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई, अब तो पूरे गांव में उसके इस निकृष्ट कर्म की चर्चाएं होने लगी परंतु उस दुष्टा ने गांव ही जलवा दिया दुष्कर्म में रत रहने वाली वह दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ और पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी। ग्रामवासी ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ट रोग हो गया तथा व्यभिचार कर्म के कारण वह अंधी हो गई। अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनोंदिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश देशांतर में भटकने लगी, एक बार देव-योग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है सीता जानकी माता। नवमी के पावन उत्सव पर भूख प्यास से व्याकुल वह दुखियारी इस प्रकार प्रार्थना करने लगी है सज्जनों मुझ पर कृपा कर कुछ भोजन सामग्री प्रदान करो मैं भूख से मर रही हूं ऐसा कहती हुई वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई उसने उनको पुकार लगाई भैया कोई तो मेरी मदद करो कुछ तो भोजन दे दो, इतने में एक भक्त ने उससे कहा देवी आज तो सीता नवमी है। भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है इसलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा कल पारना करने के समय आना ठाकुर जी का प्रसाद भरपेट मिलेगा। किंतु वह नहीं मानी अधिक कहने पर भक्तों ने उसे तुलसी और जल प्रदान किया। वह पापीनी भूख से मर गई किंतु इसी बहाने अनजाने में उसने सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया, अब तो परम कृपालिनी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंद पूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात वह कामरूप देश के महान राजा जयसिंह की महारानी कामकला के नाम से विख्यात हुई उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाएं जिनमें जानकी रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई अतः सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजा अर्चन करते हैं उनको सभी प्रकार के सुख सौभाग्य प्राप्त होते हैं इस दिन जानकी-स्त्रोत्र रामचंद्र-अष्टकं रामचरितमानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।