कुंडली के बारह भावो की जानकारी
भावों का कारकत्व – जिस भाव से जो – जो विचार किया जाता है वह वस्तु या बातें उन भावों का कारकत्व कहलाता है।
1. लग्न भाव – शरीर, शरीरांग, सुख, दुःख, बुढ़ापा, ज्ञान, जन्म – स्थान, कीर्ति, स्वप्न, बल, गौरव, राज्य, नम्नता, स्वभाव, आयु, शान्ति, अवस्था, व्यक्तित्व, स्वाभिमान, कार्य, चोट, निशान, अपमान, त्वचा, वर्ण, त्यागादि का विचार किया जाता है।
2. धन भाव – वित्त, संचित धन, बचत, परिवार, कुटुम्ब, आँख, वाणी, मुख, विद्या, वाचालता, भाषण कला, भोजन का स्वाद, क्रय – विक्रय, दान, धनप्राप्ति का प्रयत्न, आस्तिकता, परिवार का उत्तरदायित्व, नाखून, चलने का ढंग, झूठ बोलना, नाक, जीभ, कपड़े, भोग- विलास, मित्र, नौकर, मृत्यु, विचारधारा, प्रसन्नता, धन – धान्य व विनयशीलता , वैराग्य, बदनामी, विद्या, यात्राएँ, मन की स्थिरता, आदि का विचार होता है
3. तृतीय या सहज भाव – भाई, पराक्रम, अनिष्ट, पुरूषार्थ, परिश्रम, कान, मुँह, टोंगें, भुजा,चित्त की वेचैनी, स्वर्ग, पर सन्ताप, स्वप्न, बहादुरी, मित्र, यात्रा, गला, कुभोजन, धन का बंटवारा, आभूषण, गुण, अभिरूचियों , लाभ, शरीर की बढ़ोत्तरी , कुल का स्तर, नौकर, सहयोगी, वाहन, छोटी यात्राएँ महान कार्य, पिता की मृत्यु, छाती, मामा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है।
4. चतुर्थ या सुख स्थान – सुख, सम्पत्ति, वाहन, माता, मित्र वर्ग, प्रसिद्धि, मकान, यात्राएँ, बन्धु – बान्धव, मनोरथ, राजा, खजाना, श्वसुर, पशुधन, प्रेम – प्रसंग, बाह्य सुख, पिता का व्यवसाय, भोजन, निद्रा, सुख, सिंहासन, कन्धे, यश, जन – सम्पर्क, झूठे आरोप, गड़ा धन, गृह त्याग, चोरी गई वस्तु की दिशा का स्थान, धान्य सम्पदा आदि का विचार होता है।
5. पंचम भाव – विद्या, बुद्धि , प्रबन्ध कुशलता, मन्त्रणा शक्ति, गूढ़ तान्त्रिक क्रियाएँ, सन््तान, शिल्प, कला – कौशल, महान् कार्य, पैतृक धन, दूरदर्शिता, रहस्य, नम्नता, लगन, समालोचना शक्ति, धन कमाने का ढंग, परम्परा से प्राप्त मन्त्री पद, गर्भ, पेट, भोजन की मात्रा, लेखन शक्ति आदि का विचार होता है।
6.. षष्ठ या शत्रु भाव – शत्रु, रोग, मामा, युद्ध, सृजन, पागलपन, फुंसी – फोड़े, कंजूसी, परिश्रम, ऋण, गर्मी, जख्म, नेत्ररोग, विषपान, निन््दा, चोरी, विपत्ति, भाइयों से झगड़ा , अंग – भंग, नाभि, कमर, मूत्ररोग, भिक्षावृत्ति आदि का विचार होता है।
7. सप्तम भाव – पत्नी, दाम्पत्य सुख, दैनिक आय, मृत्यु, व्यभिचार, काम शक्ति, स्त्री से शत्रुता, रास्ता भटकना, पौष्टिक भोजन, पान खाना, सुगन्ध प्रयोग, सजने की प्रवृत्ति, भूल, कपड़े प्राप्त करना, वीर्य, पवित्रता, गुप्तांग, दत्तक पुत्र, अन्य देश, अन्य स्त्री से उत्पन्न पुत्रादि व बाबा का विचार सप्तम भाव से होता है।
8. अष्टम् भाव – आयु, मृत्यु का कारण, मृत्यु प्रकार, शवगति, गड़ा धन, वैराग्य, सुख, कष्ट, झगड़ा, मुसीबत, गुप्तरोग, पत्नी का शारीरिक कष्ट, नाश, ऋण, राजकोप, पाप, शरीर कटना, शल्य चिकित्सा, क्रूर कार्य, जीवनरक्षा, मरणोपरान्त गति, गढ़ विजय, चोरी की आदत, वेतन, सूदखोरी, आलस्य आदि अष्टम भाव से देखे जाते है।
9. नवम भाव – दान, धर्म, त्याग, बलिदान, तीर्थयात्रा, तपस्या, गुरूभक्ति, चिकित्सा, मन की शुद्धि, ऐश्वर्य, पुत्र, पुत्री, पैतुक धन, राज्याभिषेक, जॉघ, सभी प्रकार की सफलता आदि का विचार नवम भाव से किया जाता है।
10. दशम भाव – राज्य, आज्ञा, मान – सम्मान, प्रतिष्ठा, राज्यप्राप्ति, राजपद, सवारी, यश, धन रखना, वृद्धजन, कार्य- विस्तार, औषधि, कमर, सफलता, ख्याति, गौरव, नियन्त्रण, प्रशासन, आज्ञा, कृषि, रोजगार, खानदान, संन्यास, आकाश, वायुमार्ग की यात्रा, घुटना, आदि का विचार होता है।
11. एकादश भाव – लाभ, असफलता, सब प्रकार की उपलब्धि, बड़ा भाई, गुलामी, आमदनी, विद्या, धन कमाने की शक्ति, घुटने, पदवी, सुखलाभ, धननाश, प्रेमिका की भेंट, मंत्रीपद, ससुर से लाभ, भाग्योदय, मनोरथ सिद्धि, आशा, कान, माता की आयु, निपुणता, कन्याएँ, पुत्रवधू,, चाचा आदि का विचार इस भाव से किया जाता है।
12. द्वाइश भाव – सब प्रकार की हानि, नेत्र, धननाश, धन का निवेश, भोग, निद्रा, विस्तर का सुख, विवाह में विलम्ब, पदयात्रा, कर्ज, मोक्ष, जन – विरोध, अंग- भंग, अधिकार नाश,पदावनति, कैद, बन्धन, शरीर हानि, क्रोध, अन्य देश में बसना, पत्नी का नाश, गरीबी, कष्ट, शरीर विकार आदि का विचार द्वादश भाव से होता है।