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What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

Posted on August 15, 2021August 15, 2021 By Pradeep Sharma

शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए?

शिवलिंग की स्थापना कैसे करनी चाहिए?

किस प्रकार के लक्षणों वाला शिवलिंग का निर्माण करें वह उसकी पूजा किस प्रकार से करनी चाहिए किस द्रव्य से उसका निर्माण होना चाहिए?

शिव पुराण के अनुसार शिवलिंग का निर्माण सदैव ऐसी जगह होना चाहिए जहां किसी पवित्र जल की भी व्यवस्था हो और जहां भगवान शिव के अभिषेक की उत्तम व्यवस्था के साथ पूजा अर्चना की जा सके।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

यदि भगवान शिव की चलप्रतिष्ठा करनी हो तो इसके लिए छोटा सा शिवलिंग अथवा विग्रह श्रेष्ठ माना जाता है। और यदि अचल प्रतिष्ठा करनी हो तो स्कूल शिवलिंग अथवा विग्रह अच्छा माना गया है।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

यहां चल प्रतिष्ठा का अभिप्राय होता है कि ऐसी प्रतिमा जिसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थान परिवर्तित किया जा सकता हो तथा अचल प्रतिष्ठा का अभिप्राय होता है ऐसे विग्रह अथवा ऐसी प्रतिमा जिसका स्थान परिवर्तन निषेध है जिसे एक स्थान से अन्य स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

शिवलिंग के निर्माण के संबंध में शिव पुराण में यह वृत्तांत है कि लिंग की लंबाई निर्माण-करता या स्थापना करने वाले यजमान के 12 अंगुल के बराबर होनी चाहिए। ऐसे ही शिवलिंग को सदैव उत्तम शिवलिंग कहा जाता है। इससे कम लंबाई हो तो फलों में कमी आ जाती हैं और अधिक हो तो कोई दोष की बात नहीं होती।

चल प्रतिष्ठा वाले चर-लिंग में भी वैसा ही नियम है उसकी लंबाई कम से कम कर्ता के एक अंगुल के बराबर होनी चाहिए। उससे छोटा होने पर अल्प फल मिलता है, किंतु उससे अधिक होना दोस्त की बात नहीं है।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

प्रत्येक सनातनीयों के घरों में जो भगवान शिव के प्रतीक के रूप में शिवलिंग होता है वह चल शिवलिंग ही कहलाता है। जिसे स्थान परिवर्तित किया जा सकता है। जिसे चल शिवलिंग अथवा चर शिवलिंग कहते हैं। जो कि न्यूनतम रूप से एक अंगुल के बराबर होना आवश्यक है उसके ऊपर की आकृति भी श्रेष्ठ ही है।

दिन के समय के कितने भाग होते हैं?

दिन के समय के तीन विभाग होते हैं सुबह को प्रातः काल दोपहर को मध्यान्ह काल वह संध्या समय को सायंकाल कहते हैं। इन तीनों में क्रमशः एक एक प्रकार के कर्म का संपादन किया जाता है। प्रातः काल को शास्त्र विहित नित्य कर्म के अनुष्ठान का समय जानना चाहिए मध्यान्ह काल को सकाम कर्म के लिए उपयोगी है वह सायंकाल शांति कर्म के लिए उपयुक्त है ऐसा जानना चाहिए।

शिव पुराण के अनुसार वृक्ष, लता आदि को स्थावर लिंग कहते हैं और भूमिगत रहने वाले कर्मी किट आदि को जंगम लिंग कहते हैं। स्थावर लिंग की सींचने आदि से सेवा करनी चाहिए। जंगम लिंग को आहार एवं जल आदि देकर तृप्त करना उचित है। स्थावर व जंगम जीवो को सुख पहुंचाने में लिप्त होने से भगवान शिव को प्रसन्नता होती है, इसी प्रकार चराचर जीवो को ही भगवान शंकर के प्रत्तीक मानकर उनका पूजन करना चाहिए।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

हमारा यह ब्रह्मांड शिवलिंग की ही भांति दिखाई पड़ता है या यूं कहें कि शिवलिंग ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

जो लिंग काले रंग की आकृति में अंडाकार प्रारूप में होता है या यूं कहें कि उल्कापिंड की तरह दिखाई पड़ता है इस तरह के शिवलिंग को ही ज्योतिर्लिंग कहते हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

भारतवर्ष की इस पवित्र पावन धरा पर जिन शिवलिंग की स्थापना देवताओं के द्वारा या अन्य प्राणियों के द्वारा की गई थी उन्हें हम देव लिंग के नाम से जानते हैं। असुरों के द्वारा भगवान शिवलिंग की प्रतिमा की स्थापना की गई थी उन्हें आसुर लिंग नाम दिया जाता है।

वही प्राचीन काल में संतों एवं मुनियों के द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा की जाती थी उन्हें अर्थ लिंग जाना जाता है वह ऐसे लिंक जिन की स्थापना पुराण के समय से हैं या पौराणिक काल के व्यक्तियों के द्वारा जिन शिवलिंग की स्थापना की गई थी उन्हें पुराण लिंग कहते हैं हमारे देश में ऐतिहासिक रूप से महापुरुषों ने या बड़े-बड़े राजाओं ने जिन शिवलिंग की स्थापना की उन्हें मनुष्य शिवलिंग कहा गया है साथ ही ऐसे शिवलिंग जो किसी कारणवश स्वयं ही प्रकट हो गए उन्हें भगवान शिव के स्वयंभू शिवलिंग कहा जाता है।

आप, मै और हम सभी भक्त लोग भगवान शिव के विग्रह प्रतिक शिवलिंग को अपनीक्षमता और  श्रद्धाअनुसार अलग अलग तरीके से बनाकर उनकी पूजा अर्चना कर सकते है । भगवान प्रभु श्री राम ने भी एक शिवलिंग रामेश्वरम में बनाया था। कहावत हैं कि यह एक विशेष प्रकार की समुद्री रेत का था जिसने बाद में ठोस रूप ले लिया था।सनातन धर्म परम्परा में शिवलिंग के निम्न प्रकारों के अलावा भी स्फटिक, आंवलें, कपूर आदि से बने शिवलिंग की पूजा भी होती है। सभी का अलग अलग महत्व है।

1.पारद शिवलिंग:- शिव लिंग का यह विग्रह (पारद शिवलिंग) आमतौर पर घर, ऑफिस, दूकान आदि स्थानों पर रखा जाता है। इस शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुखशांति और सौभाग्य प्राप्त होता हैं। What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

2.मिश्री शिवलिंग:- यह शिवलिंग चीनी या मिश्री से बनाया जाता  हैं। परंपरा में कहावत हैं कि इस की पूजा करने से शरीर के रोगों का नाश होकर पीड़ा से मुक्ति मिलती हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

3.जौं और चावल से निर्मित शिवलिंग:- पारिवारिक समृद्धि के लिए इसका पूजना होता हैं। जो दम्पति संतानसुख से वंचित हैं उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।

4.भस्म शिवलिंग:- अक्सर अघोरी सम्प्रदाय के लोग यज्ञ की भस्म से बनाए गए इस शिवलिंग कि पूजा  सिद्धियों के लिए करते है ।

5.गुड़ शिवलिंग:- सनातन धर्म परंपरा में गुड़ और अन्न से मिल कर भी शिवलिंग के विग्रह कि रचना कि जाती है और इनकी पूजा करने से कृषि और अन्न उत्पादन में वृद्धि होती हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

6.:फल-फूल के शिवलिंग:- फूल से बने शिवलिंग की पूजा करने से भूमि-भवन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा मिलता हैं। वहीं, फल से बने शिवलिंग की पूजा करने से घर में अन्न-जल आदि में बरकत बनी रहती।

7.स्वर्ण-रजत से बने शिवलिंग:- सोने और चांदी की धातु से बने शिवलिंग से सुख-समृद्धि तथा धन वैभव की प्राप्ति होती हैं।

8.बिबर मिटटी के शिवलिंग:- बिबर की मिटटी से बने शिवलिंग की पूजा करने से विषैले प्राणी जैसे सर्प-बिच्छू आदि के भय से मुक्ति मिलती हैं।What is ShivLinga ? How ShivLinga Energized?

9.दही से बने शिवलिंग:- दही को कपड़े में बांध कर बनाया गया शिवलिंग सुख, समृद्धि और धन संपत्ति की प्राप्ति के लिए होता हैं।

10.लहसुनिया शिवलिंग:- लहसुनिया से बने शिवलिंग की पूजा से हमें हमारे शत्रु पर विजय प्राप्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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