भारतीय उप-महाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थ-स्थान देश के प्राचीनतम तीर्थ-स्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंद-पुराण, श्री-मद्भागवत गीता, शिव-पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।
श्री सोमनाथ मंदिर का इतिहास और महिमा तथा महत्त्व क्या है ?
भारत के गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में भगवान् शिव का यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पौराणिक समय में यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से ख्यातिप्राप्त था अर्थात इस नाम से इस क्षेत्र को जाना जाता था । यहीं भगवान् श्रीकृष्ण ने जरा नामक व्याध के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला का वरण किया था। यहां के ज्योतिर्लिंग की कथा का सनातन धर्म के अनेक पुराणों में वर्णन है, यहाँ हम शिव पुराण की कथा के माध्यम से इस मंदिर के इतिहास और महात्म्य के विषय में जानने का प्रयास करेंगे |
शिव पुराण में सोमेश्वर महादेव मंदिर अर्थात श्री सोमनाथ मंदिर का इतिहास और महिमा का वर्णन
राजा दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। राजा दक्ष ने उन सभी का विवाह चंद्रदेव के किया था। किंतु चंद्रदेव का समस्त अनुराग व प्रेम तथा आकर्षण उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से राजा दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी पीड़ा की व्यथा-कथा अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया।
किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर, इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः राजा दक्ष ने क्रोधित होकर उन्हें ‘क्षय-ग्रस्त’ हो जाने का श्राप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काच ल क्षय-ग्रस्त हो गए। उनके क्षय-ग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। क्योंकि चंद्रदेव सृष्टी वासियों के मन के कारक है, और उन्ही से समस्त सृष्टी वासियों को मन की शीतलता प्राप्त होती है | चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे। सम्पूर्ण सृष्टी पर इस बात का नकारात्मक परिणाम आने लगता है |
चन्द्रदेव अपनी व्याधि की पीड़ा देवराज इंद्र को सुनाते है | उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास जाते है । सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- ‘चंद्रमा अपने श्राप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभास-क्षेत्र में जाकर महा मृत्युंजय भगवान् शिव की आराधना व् उपासना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका श्राप नष्ट हो जाएगा और चन्द्रमा क्षय के रोग से मक्त हो जाएंगे। ऐसा उपाय ब्रह्माजी श्री चन्द्र देव को बतलाते है |
मित्रो आप सभी को बतला दे की वर्तमान समय में यह प्रभास क्षेत्र भारत के गुजरात राज्य के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे के एक विशिष्ट स्थान को कहा जाता है जो की सोमनाथ मंदिर परिसर है |
प्रजापिता श्री ब्रह्मा जी के कथनानुसार चंद्रदेव ने महा मृत्युंजय भगवान् की आराधना और उपासना का सारा कार्य शुरू कर छह माह तक तपश्या की । चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान् शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार महा मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- है सोमेश्वर ‘चंद्रदेव! कलानिधे तुम व्यर्थ शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा श्राप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।
माह के एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः दुसरे पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।’ चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण अर्थात शीतलता के वितरण का कार्य पूर्ववत् करने लगे।
श्राप से मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए भूलोक के प्राणियों के उद्धार के लिए यहाँ निवास करें। भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे।
इस ज्योतिर्लिंग को सोमदेव अर्थात चन्द्र देव के द्वारा प्रतिष्ठित किया गया था अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं।
वर्तमान समय में
भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है और इसका उल्लेख स्कंदपुराण, श्रीमद्भागवत गीता, शिवपुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में भी है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।
यह लिंग शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार मुग़ल आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर 6 बार आक्रमण किया। इसके बाद भी इस मंदिर का वर्तमान अस्तित्व इसके पुनर्निर्माण के प्रयास और सांप्रदायिक सद्भावना का ही परिचायक है। सातवीं बार यह मंदिर कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में बनाया गया है। इसके निर्माण कार्य से सरदार वल्लभभाई पटेल भी जुड़े रह चुके हैं।
यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका 150 फुट ऊंचा शिखर है। इसके शिखर पर स्थित कलश का वजन दस टन है और इसकी शिखर की ध्वजा 27 फुट ऊंची है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है। आप दर्शको एवं पाठको को बता दे की इस मंदिर का पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई के द्वारा करवाया गया था।
श्री सोमनाथ मंदिर कैसे पहुंचें?
How to Reach Somnath Mandir
मित्रो वायु मार्ग से सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए – सोमनाथ से 55 किलोमीटर की दुरी पर स्थित केशोड नामक स्थान से सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा उपलब्ध है। केशोड और सोमनाथ के बीच बस व टैक्सी सेवा भी सहजता से उपलब्ध होती है। साथ ही रेल मार्ग से सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए – सोमनाथ के सबसे समीप वेरावल रेलवे स्टेशन है, जो वहां से मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहाँ से अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों का सीधा संपर्क है। इसके अलावा सड़क परिवहन से सोमनाथ मंदिर पहुचने के लिए – सोमनाथ वेरावल से 7 किलोमीटर, मुंबई 889 किलोमीटर, अहमदाबाद 400 किलोमीटर, भावनगर 266 किलोमीटर, जूनागढ़ 85 और पोरबंदर से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। पूरे राज्य में इस स्थान के लिए बस सेवा उपलब्ध है। विश्रामशाला- इस स्थान पर तीर्थयात्रियों के लिए गेस्ट हाउस, विश्रामशाला व धर्मशाला की व्यवस्था है। साधारण व किफायती सेवाएं उपलब्ध हैं। वेरावल में भी रुकने की व्यवस्था है।